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पापा जब बच्चे थे - अशोक भाटिया

लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं नई, पुरानी, अनजान, प्रसिद्ध, मौलिक और अनूदित, यानि के हर प्रकार की कहानियाँ। पिछली बार आपने अनुराग शर्मा के स्वर में सौरभ शर्मा की मार्मिक कथा "नदी, जो झील बन गई" का वाचन सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं, अशोक भाटिया की लघुकथा पापा जब बच्चे थे, अनुराग शर्मा के स्वर में। पुनर्जन्म लेते एक नगर की मार्मिक कथा को दो मित्रों के पत्राचार के माध्यम से सौरभ ने बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है।

इस लघुकथा पापा जब बच्चे थे का मूल गद्य द्वैभाषिक मासिक पत्रिका सेतु पर उपलब्ध है। लघुकथा का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 54 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें।



अम्बाला छावनी में जन्मे अशोक भाटिया की मुख्य कृतियाँ: जंगल में आदमी, अँधेरे में आँख (लघुकथा-संग्रह), लोकल विद्वान (व्यंग्य), समकालीन हिंदी लघुकथा (आलोचना) के अलावा 'निर्वाचित लघुकथाएं' और 'नींव के नायक' हैं।

विविध: 'समुद्र का संसार' पुस्तक पर हरियाणा साहित्य अकादमी का पुस्तक पुरस्कार। 'भीतर का सच' लघुकथा और 'चक्रव्यूह' नाटक पर लघु फ़िल्में।

हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी


" बेटी के आत्मविश्वास को चार चाँद लग गए।”
 (अशोक भाटिया की कथा "पापा जब बच्चे थे" से एक अंश)


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यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:
पापा जब बच्चे थे MP3

#Fourteenth Story, papa jab bachche the: Ashok Bhatia /Hindi Audio Book/2016/14. Voice: Anurag Sharma

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