स्वरगोष्ठी – 273 में आज
मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 6 : पहली फिल्म का पहला राग आधारित गीत
‘मोरी अटरिया पे कागा बोले...’
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों
हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ जारी है। श्रृंखला की
छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने
के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक
इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला
फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित
है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित
गीत की चर्चा और फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी दे रहे हैं। श्रृंखला
की छठी कड़ी में आज हम आपको राग पहाड़ी के स्वरों में पिरोये गए 1950 में
प्रदर्शित फिल्म ‘आँखें’ के एक गीत का रसास्वादन कराएँगे। इस राग आधारित
गीत को स्वर दिया है, तत्कालीन पार्श्वगायिका मीना कपूर ने। संगीतकार मदन
मोहन द्वारा राग पहाड़ी के स्वर में निबद्ध फिल्म ‘आँखें’ के इस गीत के साथ
ही राग का यथार्थ स्वरूप उपस्थित करने के लिए हम सुविख्यात गायिका विदुषी
परवीन सुलताना के स्वरों में राग पहाड़ी की एक मनभावन रचना भी प्रस्तुत कर
रहे हैं।
मदन
मोहन के संगीत सफ़र के शुरुआत की कहानी में हम पिछले अंक में आ पहुँचे थे
उस मुकाम पर जहाँ मदन जी सचिनदेव बर्मन और श्यामसुन्दर जैसे संगीतकारों के
सहायक के रूप में काम करने लगे थे। वह 1948-49 का समय था। इसके एक साल के
भीतर ही उन्हें मौक़ा मिल गया फ़िल्म में स्वतन्त्र रूप से संगीत देने का।
फ़िल्म थी 1950 की ’आँखें’। पूरी टीम नई थी। फ़िल्म के नायक थे शेखर जो मदन
जी के दिल्ली के मित्र थे। फ़िल्म के निर्देशक थे देवेन्द्र गोयल, और वो भी
इस फ़िल्म से अपने पारी की शुरुआत कर रहे थे। देवेन्द्र गोयल फ़िल्म के
निर्माता भी थे। बिल्कुल नई अनभिज्ञ टीम होने की वजह से मदन मोहन को इस
फ़िल्म से ख़ास उम्मीद नहीं थी। यहाँ तक कि उन्हें लग रहा था कि फ़िल्म शायद
पूरी भी नहीं हो सकेगी। मदन मोहन कुछ फ़िल्म वितरकों को जानते थे। उन्होंने
एक तरीक़ा सोचा फ़िल्म को बेचने का। उन्होंने देवेन्द्र गोयल से कह कर उन
वितरकों को चर्चगेट के एक रेस्तोराँ में चाय पर बुलवाया और वहाँ से
चाय-पर्व समाप्त होने के बाद सब को लेकर मरीन ड्राइव के प्राचीर पर जा कर
बैठे और वहाँ बैठे-बैठे उन्होंने उन सभी को इस फ़िल्म के लिए उनके बनाए
गीतों को गा गा कर सुनाया। गीतों को सुन कर उन वितरकों को इतना अच्छा लगा
कि उनमें से कई वितरकों ने अपने अपने इलाकों के लिए फ़िल्म वितरण के अधिकार
के अनुबन्ध पर हस्ताक्षर कर दिए। इस तरह से ’आँखें’ का निर्माण पूरा हुआ।
अपनी गायकी और संगीत का नमूना पेश करने की वजह से ही देवेन्द्र गोयल अपनी
इस फ़िल्म को बेच सके, वरना फ़िल्म का क्या अंजाम होता कहना मुश्किल है।
मीना कपूर |
राग पहाड़ी : ‘मोरी अटरिया पे कागा बोले...’ : मीना कपूर : फिल्म – आँखें
परवीन सुलताना |
राग पहाड़ी : ‘जा जा रे कगवा मोरा सन्देशवा पिया पास ले जा...’ : विदुषी परवीन सुलताना
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 273वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको फिर एक बार मदन मोहन के राग
आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ के 280वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी
के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के तीसरे सत्र (सेगमेंट) का विजेता
घोषित किया जाएगा।
1 – इस गीतांश के स्वरों में आपको किस राग का अनुभव हो रहा है?
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गीत की गायिका की आवाज़ को पहचान रहे हैं? हमें उनका नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 11 जून, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 275वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 271 की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म
‘चाचा ज़िन्दाबाद’ से राग आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन
प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहेली के
पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – ललित, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- पार्श्वगायक – लता मंगेशकर और मन्ना डे।
इस
बार की संगीत पहेली में अधिकतर प्रतिभागियों ने तीनों प्रश्नों का सही
उत्तर देकर विजेता बनने का गौरव प्राप्त किया है। ये विजेता हैं - हैदराबाद
से डी. हरिणा माधवी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया। पहेली के सभी पाँच विजेताओं को 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप हमारी
श्रृंखला ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ का रसास्वादन कर रहे हैं। इस
श्रृंखला में हम फिल्म संगीतकार मदन मोहन के कुछ राग आधारित गीतों को चुन
कर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। आज की इस कड़ी में हमने आपसे राग पहाड़ी के
बारे में चर्चा की। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारी एक
पाठक और श्रोता मुंबई से शैलजा शितुत ने हमसे एक सवाल किया है-
“Shailaja Shitut
mukesh ji mujase rag hemavati kebareme jankari chahiye kaunsa that hai
hindi gana jayeye ao kaha jate ho .ragka chalan aur kisragse najadik hai
please batayeye muje gana bajana hai sitarpar aur rag bajana hai”
शैलजा जी के सवाल पर हमने राग हेमवती अथवा हेमावती के बारे में जानकारी एकत्र की है, जिसे आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ।
राग हेमवती या हेमावती दक्षिण भारतीय कर्नाटक संगीत
पद्यति का राग है। यह इसी नाम से प्रचलित 58वाँ मेलकर्ता राग है। इस राग
में गान्धार और निषाद स्वर कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध लगते हैं। इसके आरोह
के स्वर हैं – सा रे ग(कोमल) म प ध नि(कोमल) सां तथा अवरोह के स्वर हैं – सां नि(कोमल) ध प म ग(कोमल)
रे सा। इस राग पर आधारित एक फिल्मी गीत का उल्लेख भी मिलता है। 1965 में
प्रदर्शित फिल्म ‘मेरे सनम’ का गीत है- “जाइए आप कहाँ जाएंगे, ये नज़र लौट
के फिर आएगी...”। गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी और संगीतकार ओ.पी. नैयर हैं।
सुप्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद अब्दुल हलीम जाफ़र खाँ के अनुसार इस गीत में
राग हेमवती के साथ राग ‘सिंहेन्द्र मध्यम’ और राग ‘सरस्वती’ का स्पर्श भी
है। कुछ विद्वान इस गीत को राग ‘पीलू’ के निकट मानते हैं। राग हेमवती अथवा हेमावती का स्वरूप स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
‘स्वरगोष्ठी’
पर आप भी अपने सुझाव और फरमाइश हमें भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश पूर्ण
करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें
ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नई श्रृंखला के नए अंक के साथ प्रातः
8 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत
करेंगे।
शोध व आलेख : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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