Skip to main content

"मधुकर श्याम हमारे चोर...", कैसे इस भजन ने सहगल और पृथ्वीराज कपूर के मनमुटाव को समाप्त किया?


एक गीत सौ कहानियाँ - 84
 

'मधुकर श्याम हमारे चोर...' 



रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना
रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।इसकी 84-वीं कड़ी में आज जानिए 1942 की मशहूर फ़िल्म ’भक्त सूरदास’ की प्रसिद्ध भजन "मधुकर श्याम हमारे चोर..." के बारे में जिसे कुन्दन लाल सहगल ने गाया था। मूल पारम्परिक रचना सूरदास की, फ़िल्मी संस्करण डी. एन. मधोक का, और संगीत ज्ञान दत्त का। 


 र्ष 1940-41 के दौरान द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया और कलकत्ता में जातीय दंगे शुरू हो गए। इस
Gramophone Record of "Madhukar Shyam..."
डावांडोल स्थिति में न्यू थिएटर्स धीरे धीरे बन्द होने लगा। ऐसे में इस थिएटर के सबसे सशक्त स्तंभ, कुन्दन लाल सहगल, इसे छोड़ बम्बई आ गए और वहाँ के ’रणजीत स्टुडियोज़’ में शामिल हो गए। ’रणजीत’ में सहगल साहब की पहली फ़िल्म थी ’भक्त सूरदास’ जो बनी थी 1942 में। फ़िल्म में गीत लिखे डी. एन. मधोक ने और संगीत दिया ज्ञान दत्त ने। सहगल की आवाज़ में फ़िल्म के सभी गीत और भजन बेहद सराहे गए और इस फ़िल्म के गाने सहगल साहब के करीअर के सर्वश्रेष्ठ गीतों में माने जाते रहे हैं। राग दरबारी आधारित “नैनहीन को राह दिखा प्रभु”, राग भटियार आधारित “निस दिन बरसत नैन हमारे” और राग भैरवी आधारित “मधुकर श्याम हमारे चोर” फ़िल्म की सर्वाधिक लोकप्रिय सहगल की गाई हुई रचनाएँ थीं। “मधुकर श्याम हमारे चोर” को सुनते हुए 60 के दशक के हिट गीत “अजहूं न आये साजना सावन बीता जाये” से समानता महसूस की जा सकती है। इस भजन की रेकॉर्डिंग् से जुड़ी एक मार्मिक उपाख्यान जुड़ा हुआ है। ’रणजीत’ के अन्य गीतकार किदार शर्मा ने अपनी आत्मकथा में इस भजन के रेकॉर्डिंग् के बारे में बताया है कि सहगल साहब को इसे HMV के स्टुडियो में रेकॉर्ड करना था। सारे म्युज़िशियन्स आ चुके थे, रिहर्सल हो चुकी थी। स्नेहल भाटकर उन कलाकारों में से एक थे। जब सहगल साहब ने स्टुडियो के अन्दर क़दम रखा तो वो लड़खड़ा रहे थे। सब ने सोचा कि रेकॉर्डिंग् का तो अब कोई सवाल ही नहीं है, ज्ञान दत्त घबरा गए। सहगल साहब नशे में धुत दिख रहे थे। लड़खड़ाते हुए सहगल साहब माइक्रोफ़ोन के सामने जा खड़े हुए और नज़दीक रखे एक कुर्सी पर एक पैर रख कर अपने आप को सहारा दिया और कहने लगे, "हाँ, मैं तैयार हूँ, मेरे लड़खड़ाने की तरफ़ ध्यान ना दें, यह मेरा मुर्ख शरीर साथ नहीं देता, पर मैं अपने शरीर से नहीं गाता, मैं अपनी आत्मा से गाता हूँ, इसलिए टेक पर्फ़ेक्ट होगा।" और वाक़ई टेक बिल्कुल ठीक रहा। सहगल ने अपनी आत्मा से ही गाया, यह इस भजन को सुनने पर पता चलता है। इसी फ़िल्म के अन्य गीत “नैनहीन को राह दिखा प्रभु” तो 14 बार में रेकॉर्ड हुआ और फिर भी सहगल साहब को संतुष्टि नहीं हुई। इस गीत की धुन इतनी मार्मिक थी कि रेकॉर्डिंग पूरी होने पर सहगल फूट-फूट कर रो पड़े। 



"मधुकर श्याम हमारे चोर..." भजन के साथ एक और घटना भी जुड़ी हुई है। बात तब की है जब कुन्दनलाल
Saigal & Prithviraj
सहगल और पृथ्वीराज कपूर अपने परिवार सहित माटुंगा बम्बई के एक ही इमारत में रहते थे। दोनों में दोस्ती भी गहरी थी। पर बकौल श्रीमती आशा सहगल, दोनों के बीच किसी बात पर अनबन हो गई। बात यहाँ तक बढ़ गई कि आपस में बोलचाल भी बन्द हो गई। अब इत्तेफ़ाकन सहगल शूटिंग् के निकले तो थोड़ी देर में सीढ़ियाँ चढ़ते, हाँफ़ते, वापस घर लौट आए, और पत्नी आशा से बोले कि मन्दिर से आती हुईं माँ, यानी पृथ्वीराज की माँ मिल गईं थीं, कह रही थीं "कुन्दन, बहुत दिन हो गए तूने कोई भजन नहीं सुनाया!"। बस इसलिए अपना हारमोनियम लेने आया हूँ। और अगले ही पल वो हारमोनियम गले से बाँधे वो सीढ़ियों से नीचे उतर गए और फिर देखते क्या हैं कि वो खड़े-खड़े ही पृथ्वीराज जी की माताजी को भजन सुना रहे हैं "मधुकर श्याम हमारे चोर..."। उनका गाना शुरू ही हुआ था कि वहाँ ना केवल पृथ्वीराज बल्कि और भी सुनने वालों की भीड़ जमा हो गई। भजन जब पूरा हुआ तो पृथ्वीराज ने लपक कर सहगल के गले से हारमोनियम उतारा और लिपट गए अपने भाई से, रोने लगे। कैसा भावुक दृश्य रहा होगा, इसका अन्दाज़ा लगाया जा सकता है! "मैल मलीन सब धोए दियो, लिपटाए गले से सखा को सखा ने"। लीजिए, अब आप वही भजन सुनिए। 


"मधुकर श्याम हमारे चोर..." : कुन्दनलाल सहगल : फिल्म - भक्त सूरदास : संगीत - ज्ञानदत्त




अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर। 


आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 




Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की