कहकशाँ - 12
जगजीत-चित्रा की दिली ख़्वाहिश
"आइये चराग़-ए-दिल आज ही जलाएँ हम..."
’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहकशाँ। आज पेश है छाया गांगुली की आवाज़, इब्राहिम अश्क़ के बोल और भूपेन्द्र सिंह का संगीत।
"मिट्टी दा बावा नइयो बोलदा वे नइयो चालदा...", इस नज़्म ने न जाने कितनों को रूलाया है, कितनों को ही किसी खोए हुए अपने की याद में डूबो दिया है। अपने जिगर के टुकड़े को खोने का क्या दर्द होता है, वह इस नज़्म में बख़ूबी झलकता है। तभी तो गायिका मिट्टी का एक खिलौना बनाती है ताकि उसमें अपने खोए बेटे को देख सके, लेकिन मिट्टी तो मिट्टी ठहरी, उसमें कोई जान फूँके तभी तो इंसान बने। यह गाना बस ख़्यालों में ही नहीं है, बल्कि यथार्थ में उस गायिका की निजी ज़िंदगी से जु्ड़ा है। ८ जुलाई १९९० को अपने बेटे "विवेक" को एक दु्र्घटना में खोने के बाद वह गायिका कभी भी वापस गा नहीं सकी। संगीत से उसने हमेशा के लिए तौबा कर लिया और खुद में ही सिमट कर रह गईं। उस गायिका या कहिए उस फ़नकारा ने अब अध्यात्म की ओर रूख़ कर लिया है ताकि ईश्वर से अपने बेटे की ग़लतियों का ब्योरा ले सके। भले ही आज वह नहीं गातीं, लेकिन फ़िज़ाओं में अभी भी उनकी आवाज़ की खनक मौजूद है और हम सबको यह अफ़सोस है कि उनके बाद "जगजीत सिंह" जी की गायकी का कोई मुकम्मल जोड़ीदार नहीं रहा। जी आप सब सही समझ रहे हैं, हम "जगजीत सिंह" की धर्मपत्नी और मशहूर गज़ल गायिका "चित्रा सिंह" की बात कर रहे हैं।
चित्रा सिंह, जिनका वास्तविक नाम "चित्रा दत्ता" है, मूलत: एक बंगाली परिवार से आती हैं। घर में संगीत का माहौल था इसलिए ये भी संगीत की तरफ़ चल निकलीं। १९६० में "द अनफौरगेटेबल्स" एलबम की रिकार्डिंग के दौरान जगजीत सिंह के संपर्क में आईं और वह संपर्क शादी में परिणत हो गया। जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने एक साथ न जाने कितनी ही गज़लें गाई हैं; जगजीत सिंह का संगीत और दो सदाबहार आवाज़, इससे ज़्यादा कोई क्या चाह सकता है! इनकी गज़लें बस हिंदी तक ही सीमित नहीं रही, इन्होंने पंजाबी और बंगाली में भी बेहतरीन नज़्में और गज़लें दी हैं। यह तो हुई दोनों के साथ की बात, अब चलते हैं चित्रा सिंह के सोलो गानों की ओर। "ये तेरा घर, ये मेरा घर", "क्यों ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए", "तुम आओ तो सही", "वो नहीं मिलता मुझे", "सारे बदन का खून", "दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है", "दिल ही तो है", "हर एक बात पर कहते हो", ये सारी कुछ ऐसी नज़्में और गज़लें हैं जो बरबस ही चित्रा जी की मखमली आवाज़ का दीवाना बना देती हैं। इनकी आवाज़ में है ही ऐसा जादू कि कोई एक बार सुन ले तो फिर इनका फ़ैन हो जाए। इससे पहले कि इस जादू का असर कम हो, हम आपको आज की गज़ल से मुख़ातिब कराते हैं।
आज की गज़ल चित्रा जी के संगीत सफ़र के अंतिम दिनों की गज़ल है। १९९० में जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की साथ में एक एलबम आई थी.. "समवन समवेयर(someone somewhere)"| इस एलबम में शामिल सारी ग़ज़लें एक से बढ़कर एक थीं। यूँ तो हर ग़ज़ल का मजमून मु्ख्तलिफ़ होता है, लेकिन यह नामुमकिन नहीं कि हरेक गज़ल में कोई न कोई चीज एक जैसी हो। आप खुद मानेंगे कि दुनिया में प्यार एक ऐसी ही चीज है, जो ना चाहते हुए भी सब कुछ में शामिल है। "फ़ासला तो है मगर कोई फ़ासला नहीं" - यह ग़ज़ल भी इसी प्यार के कोमल भावों से ओत-प्रोत है। "शमिम करबानी" साहब ने हर प्रेमी की दिली ख़्वाहिश कागज़ पर उतार दी है। कहते हैं कि अगर आपके पास प्यार है तो आपको और कुछ नहीं चाहिए। शायद यही विश्वास है जो किसी प्रेमी को दुनिया से बग़ावत करा देता है। मंझधार में फ़ँसा आशिक़ बस अपने इश्क़ और अपने ख़ुदा को पुकारता है, नाख़ुदा की तरफ़ देखता भी नहीं। और वैसे भी जिसकी पु्कार इश्क़ ने सुन ली उसे औरों की क्या जरूरत...फिर चाहे वह "और" कोई ख़ुदा ही क्यों न हो!!!
तो अगर आपका इश्क़ चुप है, आपका हबीब ख़ामोश है तो पहले उसे मनाइये, ख़ुदा का क्या है, इश्क़ उसे मना ही लेगा:
तुम बोलो कुछ तो बात बने,
जीने लायक हालात बने।
ये तो हुए मेरे जज़्बात, अब हम "शमिम" साहब के जज़्बातों में डूबकी लगाते हैं और जगजीत-चित्रा के मौजों का मज़ा लेते हैं:
फ़ासला तो है मगर कोई फ़ासला नहीं,
मुझसे तुम जुदा सही, दिल से तो जुदा नहीं।
आसमां की फ़िक्र क्या, आसमां ख़फ़ा सही,
आप ये बताइये, आप तो खफ़ा नहीं।
कश्तियाँ नहीं तो क्या, हौसले तो पास हैं,
कह दो नाखुदाओं से, तुम कोई ख़ुदा नहीं।
लीजिए बुला लिया आपको ख़्याल में,
अब तो देखिये हमें, कोई देखता नहीं।
आइये चराग़-ए-दिल आज ही जलाएँ हम,
कैसी कल हवा चले कोई जानता नहीं।
चित्रा सिंह, जिनका वास्तविक नाम "चित्रा दत्ता" है, मूलत: एक बंगाली परिवार से आती हैं। घर में संगीत का माहौल था इसलिए ये भी संगीत की तरफ़ चल निकलीं। १९६० में "द अनफौरगेटेबल्स" एलबम की रिकार्डिंग के दौरान जगजीत सिंह के संपर्क में आईं और वह संपर्क शादी में परिणत हो गया। जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने एक साथ न जाने कितनी ही गज़लें गाई हैं; जगजीत सिंह का संगीत और दो सदाबहार आवाज़, इससे ज़्यादा कोई क्या चाह सकता है! इनकी गज़लें बस हिंदी तक ही सीमित नहीं रही, इन्होंने पंजाबी और बंगाली में भी बेहतरीन नज़्में और गज़लें दी हैं। यह तो हुई दोनों के साथ की बात, अब चलते हैं चित्रा सिंह के सोलो गानों की ओर। "ये तेरा घर, ये मेरा घर", "क्यों ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए", "तुम आओ तो सही", "वो नहीं मिलता मुझे", "सारे बदन का खून", "दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है", "दिल ही तो है", "हर एक बात पर कहते हो", ये सारी कुछ ऐसी नज़्में और गज़लें हैं जो बरबस ही चित्रा जी की मखमली आवाज़ का दीवाना बना देती हैं। इनकी आवाज़ में है ही ऐसा जादू कि कोई एक बार सुन ले तो फिर इनका फ़ैन हो जाए। इससे पहले कि इस जादू का असर कम हो, हम आपको आज की गज़ल से मुख़ातिब कराते हैं।
आज की गज़ल चित्रा जी के संगीत सफ़र के अंतिम दिनों की गज़ल है। १९९० में जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की साथ में एक एलबम आई थी.. "समवन समवेयर(someone somewhere)"| इस एलबम में शामिल सारी ग़ज़लें एक से बढ़कर एक थीं। यूँ तो हर ग़ज़ल का मजमून मु्ख्तलिफ़ होता है, लेकिन यह नामुमकिन नहीं कि हरेक गज़ल में कोई न कोई चीज एक जैसी हो। आप खुद मानेंगे कि दुनिया में प्यार एक ऐसी ही चीज है, जो ना चाहते हुए भी सब कुछ में शामिल है। "फ़ासला तो है मगर कोई फ़ासला नहीं" - यह ग़ज़ल भी इसी प्यार के कोमल भावों से ओत-प्रोत है। "शमिम करबानी" साहब ने हर प्रेमी की दिली ख़्वाहिश कागज़ पर उतार दी है। कहते हैं कि अगर आपके पास प्यार है तो आपको और कुछ नहीं चाहिए। शायद यही विश्वास है जो किसी प्रेमी को दुनिया से बग़ावत करा देता है। मंझधार में फ़ँसा आशिक़ बस अपने इश्क़ और अपने ख़ुदा को पुकारता है, नाख़ुदा की तरफ़ देखता भी नहीं। और वैसे भी जिसकी पु्कार इश्क़ ने सुन ली उसे औरों की क्या जरूरत...फिर चाहे वह "और" कोई ख़ुदा ही क्यों न हो!!!
तो अगर आपका इश्क़ चुप है, आपका हबीब ख़ामोश है तो पहले उसे मनाइये, ख़ुदा का क्या है, इश्क़ उसे मना ही लेगा:
तुम बोलो कुछ तो बात बने,
जीने लायक हालात बने।
ये तो हुए मेरे जज़्बात, अब हम "शमिम" साहब के जज़्बातों में डूबकी लगाते हैं और जगजीत-चित्रा के मौजों का मज़ा लेते हैं:
फ़ासला तो है मगर कोई फ़ासला नहीं,
मुझसे तुम जुदा सही, दिल से तो जुदा नहीं।
आसमां की फ़िक्र क्या, आसमां ख़फ़ा सही,
आप ये बताइये, आप तो खफ़ा नहीं।
कश्तियाँ नहीं तो क्या, हौसले तो पास हैं,
कह दो नाखुदाओं से, तुम कोई ख़ुदा नहीं।
लीजिए बुला लिया आपको ख़्याल में,
अब तो देखिये हमें, कोई देखता नहीं।
आइये चराग़-ए-दिल आज ही जलाएँ हम,
कैसी कल हवा चले कोई जानता नहीं।
खोज और आलेख : विश्वदीपक ’तन्हा’
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
Comments