Skip to main content

’बेबी डॉल’ की गायिका कनिका कपूर के संघर्ष की मार्मिक दास्तान


तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 13
 
कनिका कपूर 



’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी'। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं। आज का यह अंक केन्द्रित है इस ज़माने की जानी-मानी गायिका कनिका कपूर पर।


"बेबी डॉल मैं सोने दी" गाने वाली गायिका कनिका कपूर की रातों रात कामयाबी को देख कर आप यह ना समझ बैठें कि उन्हें इस मुक़ाम तक पहुँचने के लिए किसी भी तरह का संघर्ष नहीं करना पड़ा। आज कनिका कपूर की कहानी ख़ुद उन्हीं की ज़ुबानी।

"मेरा जन्म लखनऊ के एक खाते-पीते अच्छे खत्री परिवार में हुआ। छह साल की उम्र से शास्त्रीय संगीत सीखती हुई बड़ी हुई हूँ। 11 साल की उम्र में मैं आकाशवाणी पर शुद्ध शास्त्रीय संगीत गाया करती थी। 12 साल की उम्र में मैं भजन-सम्राट अनूप जलोटा जी के साथ शोज़ करने लगी। वो मेरे पिता के दोस्त हैं और मेरे लिए पिता समान हैं। लखनऊ के हमारे घर के गराज को मैंने अपने स्टुडिओ में तब्दिल कर दिया था जहाँ मैं गाती और रेकॉर्ड करती थी। 17 साल की उम्र में मैं मुंबई गई संगीतकार ललित सेन के साथ एक ऐल्बम करने और अपने आप को एक गायिका के रूप में स्थापित करने। मैंने संगीत में स्नातकोत्तर (Masters) किया है, जिस वजह से मैं शास्त्रीय संगीत सिखा-पढ़ा सकती हूँ। शादी करने का कोई विचार उस समय मेरे मन में नहीं था। पर मुझे राज नाम के एक पंजाबी युवक से प्यार हो गया और हमने शादी कर ली। मेरी माँ उस शादी से ख़ुश थी सिर्फ़ इसलिए नहीं कि राज पढ़ा-लिखा और अमीर परिवार से था, बल्कि इसलिए भी कि मेरा अब मुंबई फ़िल्म जगत से नाता टूट जाएगा। इस तरह से मैं एक गृहणी बन गई, राज से शादी कर लंदन जा कर बस गई। मात्र 18 साल की उम्र में मैं पापड-अचार डालने वाली बहू बन गई, फिर एक एक कर तीन बच्चों की माँ भी बनी। संगीत जैसे कहीं पीछे छूट गया। पर मैं अपने परिवार और घर-संसार को लेकर बहुत ख़ुश थी। राज ने मुझे दुनिया भर की सैर कराई।

पर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था। राज मुझे धोखा देने लगा। एक अन्य शादीशुदा लड़की से उसका संबंध हुआ। हम दोनों में मनमुटाव और झगड़े शुरू हो गए। मुझे मेरा घर संसार उजड़ता हुआ साफ़ दिखाई दे रहा था। हमारी शादी की दसवीं सालगिरह पर मैंने उससे एक उपहार माँगा। मैंने कहा कि मुझे कोई ज़ेवर-गहने नहीं चाहिए, मुझे अपनी आवाज़ में एक ऐल्बम रेकॉर्ड करवाना है, यह मेरा एक सपना है। वो मान गया और हमने एक प्रोड्युसर की तलाश करनी शुरू कर दी। हमारी मुलाक़ात हुई बलजीत सिंह पदम उर्फ़ Dr. Zeus से जो 5000 पाउण्ड प्रति गीत के दर से आठ गीतों का ऐल्बम बनाने के लिए मान गया। राज ने उसे पैसा दे दिया और मैं बिर्मिंघम में हफ़्ते में एक दिन गाना रेकॉर्ड करने के उद्येश्य से जाने लगी। एक साल बीत गया पर अब तक कोई भी गाना वो लोग नहीं बना सके। इधर मेरा वैवाहिक जीवन बद से बदतर होता चला गया। दो तीन महीने मैं स्टुडिओ भी नहीं गई। फिर एक दिन मेरे एक दोस्त ने मेरा परिचय "जुगनी" नामक गीत से करवाया जो पाक़िस्तानी गायक आरिफ़ लोहर का गाया हुआ गाना था। हमने Dr. Zeus के ज़रिए इस गीत का एक सस्ता रीमिक्स बना कर इन्टरनेट पर फ़्री डाउनलोड के लिए डाल दिया। यह जनवरी 2012 की बात थी। विडिओ बेहद सफल रहा और इसे तीस लाख हिट्स मिले। जुलाई 2012 को मैं और राज अलग हो गए, और अक्टुबर में मुझे ’ब्रिटिश एशिअन अवार्ड’ मिला "जुगनी" के लिए। 

जैसे ही Dr. Zeus को पता चला कि मेरा पति अब मेरे साथ नहीं है, उसने हमारे पूरे 40,000 पाउण्ड (जो हमने उसे दिए थे ऐल्बम बनाने के लिए) खा गया और दोष डाल दिया अपने मैनेजर विवेक नायर पर कि वो पैसे लेकर भाग गया है। ऐल्बम का सपना सपना ही बन कर रह गया। इधर समाज में लोग मेरे बारे में गंदी-गंदी बातें करने लगे। मैं अपनी नज़रों में ही जैसे गिर चुकी थी और आत्महत्या का ख़याल आने लगा था। आस पड़ोस से लोगों ने मेरे बारे में अफ़वाहें उड़ानी शुरू कर दी कि मैंने अपने पति को छोड़ कर किसी और के साथ संबंध बना लिया, मैं वेश्या बन गई हूँ, वगेरह वगेरह। ये सब झूठ था। लोगों ने मेरे साथ बात करना बन्द कर दिया और मुझे सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा। इन सब हालातों ने मुझे आज एक मज़बूती प्रदान की है, इसमें कोई शक़ नहीं। ये सब कुछ होने के बाद 2013 के शुरु में मुझे मनमीत (मीत ब्रदर्स अनजान), जो मेरा राखी भाई है और जिसे मैं लखनऊ के छुटपन से जानती हूँ, का फ़ोन आया कि एकता कपूर ने मेरी आवाज़ "जुगनी" में सुनी है, उन्हें पसन्द आया है, और वो मुझे "बेबी डॉल" के एक ट्रायल के लिए मिलना चाहती हैं। और फ़ाइनली इस "बेबी डॉल" को गाकर मुझे मिला फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड। वही औरतें जो मुझे कॉल-गर्ल बुलाती थी पीछे से, अब मेरे साथ सेल्फ़ी खींचवा कर फ़ेसबूक में पोस्ट करती हैं। अब मैं ख़ुश हूँ, मेरी माँ मेरे साथ अब लंदन में रहती हैं, और हम दोनों मिल कर मेरे तीन बच्चों की परवरिश कर रहे हैं।" 


आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमे अवश्य लिखिए। हमारा यह स्तम्भ प्रत्येक माह के दूसरे शनिवार को प्रकाशित होता है। यदि आपके पास भी इस प्रकार की किसी घटना की जानकारी हो तो हमें पर अपने पूरे परिचय के साथ cine.paheli@yahoo.com मेल कर दें। हम उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करने का प्रयास करेंगे। आप अपने सुझाव भी ऊपर दिये गए ई-मेल पर भेज सकते हैं। आज बस इतना ही। अगले शनिवार को फिर आपसे भेंट होगी। तब तक के लिए नमस्कार। 

खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी  



Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...