स्वरगोष्ठी – 259 में आज
दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 7 : राग नन्द
कुमार गन्धर्व और मदन मोहन का राग नन्द
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी
श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन
मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस
श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की चर्चा कर रहे हैं,
जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। संगीत के सात स्वरों
में ‘मध्यम’ एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे संगीत में मध्यम स्वर के
दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप शुद्ध मध्यम कहलाता है। 22
श्रुतियों में दसवाँ श्रुति स्थान शुद्ध मध्यम का होता है। मध्यम का दूसरा
रूप तीव्र या विकृत मध्यम कहलाता है, जिसका स्थान बारहवीं श्रुति पर होता
है। शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित
किये हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, “अध्वदर्शक स्वर”। इस सिद्धान्त
के अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अध्वदर्शक स्वर
सिद्धान्त के अनुसार राग में यदि तीव्र मध्यम स्वर की उपस्थिति हो तो वह
राग दिन और रात्रि के पूर्वार्द्ध में गाया-बजाया जाएगा। अर्थात, तीव्र
मध्यम स्वर वाले राग 12 बजे दिन से रात्रि 12 बजे के बीच ही गाये-बजाए जा
सकते हैं। इसी प्रकार राग में यदि शुद्ध मध्यम स्वर हो तो वह राग रात्रि 12
बजे से दिन के 12 बजे के बीच का अर्थात उत्तरार्द्ध का राग माना गया। कुछ
राग ऐसे भी हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वर प्रयोग होते हैं। इस श्रृंखला में
हम ऐसे ही रागों की चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की छ्ठी कड़ी में आज हम राग
नन्द के स्वरूप की चर्चा करेंगे। साथ ही सबसे पहले हम आपको अप्रतिम
संगीतज्ञ पण्डित कुमार गन्धर्व के स्वरों में राग नन्द का एक खयाल सुनवाते
हैं। इसके बाद इसी राग पर आधारित फिल्म ‘मेरा साया’ से मदनमोहन का
संगीतबद्ध किया और लता मंगेशकर का गाया मधुर गीत भी प्रस्तुत करेंगे।
दो मध्यम अरु शुद्ध स्वर, आरोहण रे हानि,
स-प वादी-संवादी तें, नन्द राग पहचानि।
आज
के अंक में हमने आपके लिए दोनों मध्यम स्वरों से युक्त, अत्यन्त मोहक राग
‘नन्द’ चुना है। इस राग को नन्द कल्याण, आनन्दी या आनन्दी कल्याण के नाम से
भी पहचाना जाता है। यह कल्याण थाट का राग माना जाता है। यह षाडव-सम्पूर्ण
जाति का राग है, जिसके आरोह में ऋषभ स्वर का प्रयोग नहीं होता। इसके आरोह
में शुद्ध मध्यम का तथा अवरोह में दोनों मध्यम का प्रयोग किया जाता है।
इसका वादी स्वर षडज और संवादी स्वर पंचम माना जाता है। यह राग कामोद, हमीर
और केदार के निकट होता है अतः गायन-वादन के समय राग नन्द को इन रागों से
बचाना चाहिए। राग नन्द से मिल कर राग नन्द भैरव, नन्द-भैरवी, नन्द-दुर्गा
और नन्द-कौंस रागों का निर्माण होता है।
पण्डित कुमार गन्धर्व |
राग
नन्द की सार्थक अनुभूति कराने के लिए आज हम आपको पण्डित कुमार गन्धर्व के
स्वर में एक बन्दिश सुनवाएँगे। पण्डित कुमार गन्धर्व का जन्म आठ अप्रैल,
1924 को बेलगाम, कर्नाटक के पास सुलेभवी नामक स्थान में एक संगीत-प्रेमी
परिवार में हुआ था। माता-पिता का रखा नाम तो था शिवपुत्र सिद्धरामय्या
कोमकलीमठ, किन्तु आगे चल कर संगीत-जगत ने उसे कुमार गन्धर्व के नाम से
पहचाना। जिन दिनों कुमार गन्धर्व ने संगीत-जगत में पदार्पण किया, उन दिनों
भारतीय संगीत दरबारी जड़ता से प्रभावित था। कुमार गन्धर्व, पूर्णनिष्ठा और
स्वर-संवेदना से एकाकी ही संघर्षरत हुए। उन्होने अपनी एक निजी गायन-शैली
विकसित की, जो हमें भक्ति-पदों के आत्म-विस्मरणकारी गायकी का स्मरण कराती
थी। वे मात्र एक साधक ही नहीं अन्वेषक भी थे। उनकी अन्वेषण-प्रतिभा ही
उन्हें भारतीय संगीत का कबीर बनाती है। उनका संगीत इसलिए भी रेखांकित किया
जाएगा कि वह लोकोन्मुख रहा है। कुमार गन्धर्व ने अपने समय में गायकी की
बँधी-बँधाई लीक से अलग हट कर अपनी एक भिन्न शैली का विकास किया। 1947 से
1952 के बीच वे फेफड़े के रोग से ग्रसित हो गए। चिकित्सकों ने घोषित कर दिया
की स्वस्थ हो जाने पर भी वे गायन नहीं कर सकेंगे, किन्तु अपनी साधना और
दृढ़ इच्छा-शक्ति के बल पर संगीत-जगत को चमत्कृत करते हुए संगीत-मंचों पर
पुनर्प्रतिष्ठित हुए। अपनी अस्वस्थता के दौरान कुमार गन्धर्व, मालवा अंचल
के ग्राम्य-गीतों का संकलन और प्राचीन भक्त-कवियों की विस्मृत हो रही
रचनाओं को पुनर्जीवन देने में संलग्न रहे। आदिनाथ, सूर, मीरा, कबीर आदि
कवियों की रचनाओं को उन्होने जन-जन का गीत बनाया। वे परम्परा और प्रयोग,
दोनों के तनाव के बीच अपने संगीत का सृजन करते रहे। कुमार गन्धर्व की
सांगीतिक प्रतिभा की अनुभूति कराने के लिए अब हम आपको उनके प्रिय राग नन्द
के स्वरों में एक बन्दिश सुनवाते हैं। तीनताल में निबद्ध इस खयाल के बोल
हैं- “राजन अब तो आजा रे...”।
राग नन्द : ‘राजन अब तो आजा रे...’ : पण्डित कुमार गन्धर्व
राग
नन्द में तीव्र मध्यम स्वर का अल्प प्रयोग अवरोह में पंचम स्वर के साथ
किया जाता है, जैसा कि कल्याण थाट के अन्य रागों में किया जाता है। राग
नन्द में राग बिहाग, कामोद, हमीर और गौड़ सारंग का सुन्दर समन्वय होता है।
यह अर्द्ध चंचल प्रकृति का राग होता है। अतः इसमें विलम्बित आलाप नहीं किया
जाता। साथ ही इस राग का गायन मन्द्र सप्तक में नहीं होता। इस राग का हर
आलाप अधिकतर मुक्त मध्यम से समाप्त होता है। आरोह में ही मध्यम स्वर पर
रुकते हैं, किन्तु अवरोह में ऐसा नहीं करते। राग नन्द में पंचम और ऋषभ स्वर
की संगति बार-बार की जाती है। आरोह में धैवत और निषाद स्वर अल्प प्रयोग
किया जाता है, इसलिए उत्तरांग में पंचम से सीधे तार सप्तक के षडज पर
पहुँचते है।
लता मंगेशकर और मदन मोहन |
भारतीय
संगीत के इस बेहद मनमोहक राग नन्द के सौन्दर्य का आभास कराने के लिए अब हम
आपको इस राग पर आधारित एक फिल्मी गीत सुनवाएँगे। लता मंगेशकर के सुरों और
मदनमोहन के संगीत से सजे अनेक गीत कर्णप्रियता और लोकप्रियता की सूची में
आज भी शीर्षस्थ हैं। इस सूची में 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘मेरा साया’ का
एक गीत है- ‘तू जहाँ जहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा...’। राजा मेंहदी अली
खाँ की गीत-रचना को मदनमोहन ने राग नन्द के आकर्षक स्वरों पर आधारित कर
लोचदार कहरवा ताल में ढाला है। मदनमोहन से इस गीत को राग नन्द में निबद्ध
किये जाने का आग्रह स्वयं लता मंगेशकर जी ने किया था। न जाने क्यों, हमारे
फिल्म-संगीतकारों ने इस मनमोहक राग का प्रयोग लगभग नहीं के बराबर किया। आप
यह गीत सुनिए और राग नन्द के सौन्दर्य में खो जाइए। आप यह गीत सुनिए और
मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। और हाँ, इस अंक की
संगीत पहेली को हल करने का प्रयास करना न भूलिएगा।
राग नन्द : ‘तू जहाँ जहाँ चलेगा...’ : लता मंगेशकर : फिल्म – मेरा साया
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 259वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको राग आधारित फिल्मी गीत का एक
अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो
प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 260वें अंक की पहेली के
सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष
की पहली श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि यह किस राग पर आधारित गीत है?
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गीत के गायक और गायिका की आवाज़ को पहचान रहे हैं? हमें उनका नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 5 मार्च, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व
तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है,
किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया
जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 261वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ
के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 257 की संगीत पहेली में हमने आपको 1953 में प्रदर्शित फिल्म
‘हमदर्द’ के एक रागमाला गीत का एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन
प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली
के पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – गौड़ सारंग, दूसरे प्रश्न का सही
उत्तर है- ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायक-गायिका – मन्ना
डे और लता मंगेशकर।
इस
बार की संगीत पहेली में पाँच प्रतिभागी सही उत्तर देकर विजेता बने हैं। ये
विजेता हैं - जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका
से विजया राजकोटिया, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी, वोरहीज, न्यूजर्सी से
डॉ. किरीट छाया और चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल। सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप हमारी
श्रृंखला ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ का रसास्वादन कर रहे हैं। श्रृंखला
के सातवें अंक में हमने आपसे राग नन्द पर चर्चा की। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक
स्तम्भ के बारे में हमारे पास हर सप्ताह आपकी फरमाइशे आती हैं। हमारे कई
पाठकों ने ‘स्वरगोष्ठी’ में दी जाने वाली रागों के विवरण के प्रामाणिकता की
जानकारी माँगी है। उन सभी पाठकों की जानकारी के लिए बताना चाहूँगा कि
रागों का जो परिचय इस स्तम्भ में दिया जाता है, वह प्रामाणिक पुस्तकों से
पुष्टि करने का बाद ही लिखा जाता है। यह पुस्तकें है; संगीत कार्यालय,
हाथरस द्वारा प्रकाशित और श्री वसन्त द्वारा संकलित और श्री लक्ष्मीनारायण
गर्ग द्वारा सम्पादित ‘राग-कोष’, संगीत सदन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित और
श्री हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक ‘राग परिचय’ तथा आवश्यकता
पड़ने पर पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे के ग्रन्थ ‘क्रमिक पुस्तक मालिका’।
हम इन ग्रन्थों से साभार पुष्टि करके ही आप तक रागों का परिचय पहुँचाते
हैं। आप भी अपने विचार, सुझाव और फरमाइश हमें भेज सकते हैं। हम आपकी फरमाइश
पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी
लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9
बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत
करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
Comments
Thanks Krishnamohan ji for your sincere efforts to bring out the depth of classical music.
Regards,,,Vijaya Rajkotia