स्वरगोष्ठी – 256 में आज 
दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 4 : राग श्यामकल्याण 
उस्ताद अमजद अली खाँ और किशोर कुमार से सुनिए श्यामकल्याण की प्रस्तुतियाँ 
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक 
स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले 
राग’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक 
स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की 
चर्चा कर रहे हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। 
संगीत के सात स्वरों में ‘मध्यम’ एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे 
संगीत में मध्यम स्वर के दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप 
शुद्ध मध्यम कहलाता है। 22 श्रुतियों में दसवाँ श्रुति स्थान शुद्ध मध्यम 
का होता है। मध्यम का दूसरा रूप तीव्र या विकृत मध्यम कहलाता है, जिसका 
स्थान बारहवीं श्रुति पर होता है। शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण 
के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित किये हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, 
“अध्वदर्शक स्वर”। इस सिद्धान्त के अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण 
हो जाता है। अध्वदर्शक स्वर सिद्धान्त के अनुसार राग में यदि तीव्र मध्यम 
स्वर की उपस्थिति हो तो वह राग दिन और रात्रि के पूर्वार्द्ध में 
गाया-बजाया जाएगा। अर्थात, तीव्र मध्यम स्वर वाले राग 12 बजे दिन से रात्रि
 12 बजे के बीच ही गाये-बजाए जा सकते हैं। इसी प्रकार राग में यदि शुद्ध 
मध्यम स्वर हो तो वह राग रात्रि 12 बजे से दिन के 12 बजे के बीच का अर्थात 
उत्तरार्द्ध का राग माना गया। कुछ राग ऐसे भी हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वर
 प्रयोग होते हैं। इस श्रृंखला में हम ऐसे ही रागों की चर्चा करेंगे। 
श्रृंखला की चौथी कड़ी में आज हम राग श्यामकल्याण के स्वरूप की चर्चा 
करेंगे। साथ ही इस राग में पहले सरोद वाद्य पर उस्ताद अमजद अली खाँ की एक 
रचना प्रस्तुत करेंगे और इसी राग पर आधारित फिल्म ‘दर्द का रिश्ता’ का एक 
गीत गायक किशोर कुमार की आवाज़ में सुनवाएँगे।
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक 
स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले 
राग’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक 
स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की 
चर्चा कर रहे हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। 
संगीत के सात स्वरों में ‘मध्यम’ एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे 
संगीत में मध्यम स्वर के दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप 
शुद्ध मध्यम कहलाता है। 22 श्रुतियों में दसवाँ श्रुति स्थान शुद्ध मध्यम 
का होता है। मध्यम का दूसरा रूप तीव्र या विकृत मध्यम कहलाता है, जिसका 
स्थान बारहवीं श्रुति पर होता है। शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण 
के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित किये हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, 
“अध्वदर्शक स्वर”। इस सिद्धान्त के अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण 
हो जाता है। अध्वदर्शक स्वर सिद्धान्त के अनुसार राग में यदि तीव्र मध्यम 
स्वर की उपस्थिति हो तो वह राग दिन और रात्रि के पूर्वार्द्ध में 
गाया-बजाया जाएगा। अर्थात, तीव्र मध्यम स्वर वाले राग 12 बजे दिन से रात्रि
 12 बजे के बीच ही गाये-बजाए जा सकते हैं। इसी प्रकार राग में यदि शुद्ध 
मध्यम स्वर हो तो वह राग रात्रि 12 बजे से दिन के 12 बजे के बीच का अर्थात 
उत्तरार्द्ध का राग माना गया। कुछ राग ऐसे भी हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वर
 प्रयोग होते हैं। इस श्रृंखला में हम ऐसे ही रागों की चर्चा करेंगे। 
श्रृंखला की चौथी कड़ी में आज हम राग श्यामकल्याण के स्वरूप की चर्चा 
करेंगे। साथ ही इस राग में पहले सरोद वाद्य पर उस्ताद अमजद अली खाँ की एक 
रचना प्रस्तुत करेंगे और इसी राग पर आधारित फिल्म ‘दर्द का रिश्ता’ का एक 
गीत गायक किशोर कुमार की आवाज़ में सुनवाएँगे। 
चढ़ते धैवत त्याग कर, दोनों मध्यम मान, 
स-म वादी-संवादी सों, क़हत श्यामकल्याण। 
दोनों
 मध्यम स्वरों से युक्त राग श्यामकल्याण हमारी श्रृंखला, ‘दोनों मध्यम स्वर
 वाले राग’ की चौथी कड़ी का राग है। तीव्र मध्यम स्वर की उपस्थिति के कारण 
इस राग को कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। आरोह में गान्धार और धैवत 
स्वर वर्जित होता है तथा अवरोह में सभी सातो स्वर प्रयोग किये जाते हैं। 
दोनों मध्यम के अलावा शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में 
पाँच और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाने के कारण राग श्यामकल्याण की 
जाति औड़व-सम्पूर्ण होती है। राग के आरोह में तीव्र मध्यम और अवरोह में 
दोनों मध्यम स्वरो का प्रयोग किया जाता है। इसका वादी स्वर पंचम और संवादी 
स्वर षडज होता है। श्रृंखला के पिछले रागों की तरह राग श्यामकल्याण का 
गायन-वादन भी पाँचवें प्रहर अर्थात रात्रि के प्रथम प्रहर में किया जाता है। 
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| उस्ताद अमजद अली खाँ | 
अब
 हम आपको राग श्यामकल्याण का उदाहरण सुविख्यात संगीतज्ञ उस्ताद अमजद अली 
खाँ द्वारा सरोद पर बजाया यही राग सुनवाते हैं। विश्वविख्यात संगीतज्ञ और 
सरोद-वादक उस्ताद अमजद अली खाँ का जन्म 9 अक्टूबर, 1945 को ग्वालियर में 
संगीत के सेनिया बंगश घराने की छठी पीढ़ी में हुआ था। संगीत इन्हें विरासत 
में प्राप्त हुआ था। इनके पिता उस्ताद हाफ़िज़ अली खाँ ग्वालियर राज-दरबार 
में प्रतिष्ठित संगीतज्ञ थे। इस घराने के संगीतज्ञों ने ही ईरान के 
लोकवाद्य ‘रबाब’ को भारतीय संगीत के अनुकूल परिवर्द्धित कर ‘सरोद’ नामकरण 
किया था। अमजद अली अपने पिता हाफ़िज़ अली के सबसे छोटे पुत्र हैं। उस्ताद 
हाफ़िज़ अली खाँ ने परिवार के सबसे छोटे और सर्वप्रिय सन्तान को बहुत छोटी 
उम्र में ही संगीत-शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। मात्र बारह वर्ष की आयु 
में एकल सरोद-वादन का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन किया था। एक छोटे से बालक की
 सरोद पर अनूठी लयकारी और तंत्रकारी सुन कर दिग्गज संगीतज्ञ दंग रह गए। 
उस्ताद अमजद अली खाँ को बचपन में ही सरोद से ऐसा लगाव हुआ कि युवावस्था तक 
आते-आते एक श्रेष्ठ सरोद-वादक के रूप में पहचाने जाने लगे। उन्होने 
सरोद-वादन की शैली में विकास के लिए कई प्रयोग किये। उनका एक महत्त्वपूर्ण 
प्रयोग यह है कि सरोद के तारों को उँगलियों के सिरे से बजाने के स्थान पर 
नाखून से बजाना। सितार की भाँति सरोद में स्वरों के पर्दे नहीं होते, 
इसीलिए जब उँगलियों के सिरे के स्थान पर नाखूनों से इसे बजाया जाता है तब 
स्वरों की स्पष्टता और मधुरता बढ़ जाती है। अब आप सरोद पर बजाया राग 
श्यामकल्याण सुनिए। रचना के आरम्भ में आप राग का समृद्ध आलाप और फिर तीनताल
 में एक आकर्षक गत सुनेगे। 
राग श्यामकल्याण : सरोद पर आलाप और तीनताल की गत : उस्ताद अमजद अली खाँ 
|  | 
| राहुलदेव बर्मन और किशोर कुमार | 
राग
 श्यामकल्याण, राग कल्याण का ही एक प्रकार है, यह इसके नाम से ही स्पष्ट 
है। राग के नाम से ऐसा प्रतीत होता है, मानो यह दो रागों- श्याम और कल्याण 
के मेल से बना है। किन्तु ऐसा नहीं है। दरअसल इस राग में राग कामोद और 
कल्याण का सुन्दर मिश्रण होता है। राग के अवरोह में गान्धार का अल्प और 
वक्र प्रयोग किया जाता है। पूर्वांग में कामोद अंग कम करने के लिए गान्धार 
का अल्प प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक आलाप के अन्त में ग म रे स्वरो का 
प्रयोग होता है। इस राग में निषाद स्वर का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। 
यद्यपि धैवत वर्जित माना जाता है, किन्तु निषाद पर धैवत का कण दिया जाता 
है। यह कण कल्याण रागांग का सूचक है। वादी स्वर पंचम होने से यह उत्तरांग 
प्रधान राग होना चाहिए, किन्तु वास्तव में यह पूर्वांग प्रधान होता है। 
इसीलिए कुछ विद्वान राग का वादी स्वर षडज और संवादी स्वर पंचम तथा कुछ 
विद्वान ऋषभ स्वर को वादी और पंचम को संवादी मानते हैं। राग को शुद्ध सारंग
 से बचाने के लिए अवरोह में गान्धार का प्रयोग तथा कामोद से बचाने के लिए 
निषाद स्वर को बढ़ाते है। आज हमने राग श्यामकल्याण पर आधारित फिल्मी गीत के 
रूप में 1983 में प्रदर्शित फिल्म ‘दर्द का रिश्ता’ से एक गीत का चुनाव 
किया है। इस गीत के संगीतकार राहुलदेव बर्मन हैं और इसे हरफनमौला 
पार्श्वगायक किशोर कुमार ने स्वर दिया है। दादरा ताल में निबद्ध इस गीत के 
बोल हैं- ‘यूँ नींद से वो जान-ए-चमन जाग उठी है...’। आप यह गीत सुनिए और 
हमें आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। और हाँ, नीचे की 
पहेली को सुलझाना न भूलिएगा। 
राग श्यामकल्याण : ‘यूँ नींद से वो जान-ए-चमन...’ : किशोर कुमार : फिल्म - दर्द का रिश्ता  
 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 256वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक राग पर आधारित फिल्मी गीत
 का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं 
दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 260वें अंक की पहेली के 
सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष 
की पहली श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा। 
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का आभास हो रहा है? 
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए। 
3 – क्या आप गीत के गायक का नाम हमे बता सकते हैं? 
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com  या  radioplaybackindia@live.com
 पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 13 फरवरी, 2016 की मध्यरात्रि से 
पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते 
है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया 
जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 258वें अंक में 
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा 
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
 बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ 
के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 क्रमांक 254 की संगीत पहेली में हमने आपको 1969 में प्रदर्शित फिल्म 
‘तलाश’ से राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। 
आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली के पहले प्रश्न 
का सही उत्तर है- राग छायानट, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल सितारखानी
 अथवा पंजाबी ठेका और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायक – मन्ना डे। 
इस
 बार की पहेली में कुल चार प्रतिभागियों ने सही उत्तर दिया है। हमारे 
नियमित प्रतिभागी विजेता हैं- जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, 
पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और
 वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया। सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो 
प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। इससे पूर्व पहेली क्रमांक 253 के 
विजेताओं की सूची में औरंगाबाद, महाराष्ट्र के नारायण सिंह हजारी के नाम की
 घोषणा पहेली की औपचारिकता पूर्ण न होने से हम नहीं कर सके थे। नारायण जी 
संगीत पहेली में पहली बार प्रतिभागी बने और विजयी हुए। हम उनका हार्दिक 
अभिनन्दन करते हैं और आशा करते हैं कि भविष्य में भी अपनी सहभागिता 
निभाएंगे। 
अपनी बात 
 
मित्रो,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप हमारी 
श्रृंखला ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ का रसास्वादन कर रहे हैं। श्रृंखला 
के चौथे अंक में हमने आपसे राग श्यामकल्याण पर चर्चा की। ‘स्वरगोष्ठी’ 
साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पाठक और श्रोता नियमित रूप से हमें 
पत्र लिखते है। हम उनके सुझाव के अनुसार ही आगामी विषय निर्धारित करते है। 
इस बार हम अपने दो पाठको, जेसिका मेनेजेस और विश्वनाथ ओक ने हमें सन्देश 
भेजा है, जिसे हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है।
JESSICA
 MENEZES - Thanks so much for your wonderful posts explaining about the 
various Ragas with beautiful examples. itni khoobsoorti se hamari 
jaankaari badhaane ke liye bahut bahut dhanywaad.
VISHWANATH OKE - Must apprteciate your dedication in regularly sharing these posts every Sunday. Very useful ones. Keep it up.
‘स्वरगोष्ठी’
 पर आप भी अपने सुझाव और फरमाइश हमें शीघ्र भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश 
पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? 
हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे 
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
  
 
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