स्वरगोष्ठी – 257 में आज
दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 5 : राग हमीर
मालिनी राजुरकर और मोहम्मद रफी से सुनिए राग हमीर की प्रस्तुतियाँ
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कल्याणहिं के थाट में, दोनों मध्यम जान,
ध-ग वादी-संवादि सों, राग हमीर बखान।
दिन
के पाँचवें प्रहर या रात्रि के पहले प्रहर में गाने-बजाने वाला, दोनों
मध्यम स्वर से युक्त एक और राग है, हमीर। मूलतः राग हमीर दक्षिण भारतीय
संगीत पद्यति से इसी नाम से उत्तर भारतीय संगीत में प्रचलित राग के समतुल्य
है। राग हमीर को कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इस राग में दोनों
मध्यम का प्रयोग होने और तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग होने के कारण कुछ
प्राचीन ग्रन्थकार और कुछ आधुनिक संगीतज्ञ इसे बिलावल थाट के अन्तर्गत
मानते हैं। ऐसा मानना तर्कसंगत भी है, क्योंकि इस राग का स्वरूप राग बिलावल
से मिलता-जुलता है। किन्तु अधिकांश विद्वान राग हमीर को कल्याण थाट-जन्य
ही मानते हैं। इस राग में दोनों मध्यम स्वर के साथ शेष सभी स्वर शुद्ध
प्रयोग किये जाते है। राग की जाति सम्पूर्ण-सम्पूर्ण होती है, अर्थात आरोह
और अवरोह में सात-सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। राग का वादी स्वर धैवत और
संवादी स्वर गान्धार होता है। यहाँ भी रागों के गायन-वादन के समय
सिद्धान्त और व्यवहार में विरोधाभाष है। समय सिद्धान्त के अनुसार जिन रागों
का वादी स्वर पूर्व अंग का होता है उस राग को दिन के पूर्वांग अर्थात
मध्याह्न 12 बजे से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच गाया-बजाया जाना चाहिए। इसी
प्रकार जिन रागों का वादी स्वर उत्तर अंग का हो उसे दिन के उत्तरांग में
अर्थात मध्यरात्रि 12 से मध्याह्न 12 बजे के बीच प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
परन्तु राग हमीर का वादी स्वर धैवत है, अर्थात उत्तर अंग का स्वर है। स्वर
सिद्धान्त के अनुसार इस राग को दिन के उत्तरांग में गाया-बजाना जाना चाहिए।
परन्तु राग हमीर रात्रि के पहले प्रहर में अर्थात दिन के पूर्वांग में
गाया-बजाया जाता है। सिद्धान्त और व्यवहार में परस्पर विरोधी होते हुए राग
हमीर को समय सिद्धान्त का अपवाद मान लिया गया है।
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राग हमीर : ‘घर जाऊँ लंगरवा कैसे...’ : विदुषी मालिनी राजुरकर
राग
हमीर को सर्वसम्मति से सम्पूर्ण जाति का राग माना जाता है, किन्तु
भातखण्डे जी ने इस राग के आरोह में पंचम स्वर को वर्जित कहा है। परन्तु
व्यवहार में आरोह में पंचम स्वर का प्रयोग किया जाता है। तीव्र मध्यम स्वर
का अल्प प्रयोग केवल आरोह में पंचम स्वर के साथ तथा शुद्ध मध्यम स्वर का
प्रयोग आरोह और अवरोह दोनों में किया जाता है। राग केदार, कामोद और हमीर
में तीव्र मध्यम का प्रयोग एक ही ढंग से किया जाता है। राग हमीर के आरोह
में निषाद स्वर का अधिकतर वक्र प्रयोग होता है। किन्तु कभी-कभी सपाट भी
प्रयोग होता है। इसके अवरोह में गान्धार स्वर वक्र होता है। राग की रंजकता
बढ़ाने के लिए कभी-कभी अवरोह में धैवत स्वर के साथ कोमल निषाद का प्रयोग
किया जाता है। राग कामोद और केदार इस राग के समप्रकृति राग होते हैं।
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राग हमीर : ‘मधुबन में राधिका नाचे रे...’ : मोहम्मद रफी और उस्ताद अमीर खाँ : फिल्म कोहिनूर
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 257वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक राग आधारित फिल्मी गीत का
एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो
प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 260वें अंक की पहेली के
सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष
की पहली श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत का यह अंश सुन कर अनुमान लगाइए कि यह किस राग पर आधारित है?
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गीत के गायक और गायिका की आवाज़ को पहचान रहे हैं? हमें उनका नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 20 फरवरी, 2016 की मध्यरात्रि से
पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते
है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया
जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 259वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ
के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 255 की संगीत पहेली में हमने आपको 1983 में प्रदर्शित फिल्म ‘दर्द
का रिश्ता’ से राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा
था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली के पहले
प्रश्न का सही उत्तर है- राग – श्यामकल्याण, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है-
ताल – दादरा और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायक – किशोर कुमार।
इस
बार की पहेली हमारे प्रतिभागियों को राग का अनुमान लगाने कठिनाई हुई।
गीतांश में कई रागों की छाया थी। एकमात्र प्रतिभागी डॉ. किरीट छाया ने ही
राग की सही पहचान की है। कुल छः प्रतिभागी तीन में से दो प्रश्नों का सही उत्तर देकर
विजेता बने हैं। ये विजेता हैं - जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी,
पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी,
वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, मिन्नेसोटा, अमेरिका से दिनेश
कृष्णजोइस और चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल। सभी छः विजेता प्रतिभागियों को
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप हमारी
श्रृंखला ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ का रसास्वादन कर रहे हैं। श्रृंखला
के पाँचवें अंक में आपने राग हमीर पर चर्चा के सहभागी बने। ‘स्वरगोष्ठी’
साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पास हर सप्ताह आपकी फरमाइशे आती हैं।
हमारे कई पाठकों ने ‘स्वरगोष्ठी’ में दी जाने वाली रागों के विवरण के
प्रामाणिकता की जानकारी माँगी है। उन सभी पाठकों की जानकारी के लिए बताना
चाहूँगा कि रागों का जो परिचय इस स्तम्भ में दिया जाता है, वह प्रामाणिक
पुस्तकों से पुष्टि करने का बाद ही लिखा जाता है। यह पुस्तकें है; संगीत
कार्यालय, हाथरस द्वारा प्रकाशित और श्री वसन्त द्वारा संकलित और श्री
लक्ष्मीनारायण गर्ग द्वारा सम्पादित ‘राग-कोष’, संगीत सदन, इलाहाबाद द्वारा
प्रकाशित और श्री हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक ‘राग परिचय’
तथा आवश्यकता पड़ने पर पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे के ग्रन्थ ‘क्रमिक
पुस्तक मालिका’। हम इन ग्रन्थों से साभार पुष्टि करके ही आप तक रागों का
परिचय पहुँचाते हैं। आप भी अपने विचार, सुझाव और फरमाइश हमें भेज सकते हैं।
हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह
श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए अंक के
साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम
स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति :कृष्णमोहन मिश्र
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Vijaya Rajkotia