Skip to main content

राग गौड़ सारंग : SWARGOSHTHI – 258 : RAG GAUR SARANG


स्वरगोष्ठी – 258 में आज

दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 6 : राग गौड़ सारंग

इस राग में सुनिए पन्नालाल घोष और अनिल विश्वास की रचनाएँ




‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की चर्चा कर रहे हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। संगीत के सात स्वरों में ‘मध्यम’ एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे संगीत में मध्यम स्वर के दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप शुद्ध मध्यम कहलाता है। 22 श्रुतियों में दसवाँ श्रुति स्थान शुद्ध मध्यम का होता है। मध्यम का दूसरा रूप तीव्र या विकृत मध्यम कहलाता है, जिसका स्थान बारहवीं श्रुति पर होता है। शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित किये हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, “अध्वदर्शक स्वर”। इस सिद्धान्त के अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अध्वदर्शक स्वर सिद्धान्त के अनुसार राग में यदि तीव्र मध्यम स्वर की उपस्थिति हो तो वह राग दिन और रात्रि के पूर्वार्द्ध में गाया-बजाया जाएगा। अर्थात, तीव्र मध्यम स्वर वाले राग 12 बजे दिन से रात्रि 12 बजे के बीच ही गाये-बजाए जा सकते हैं। इसी प्रकार राग में यदि शुद्ध मध्यम स्वर हो तो वह राग रात्रि 12 बजे से दिन के 12 बजे के बीच का अर्थात उत्तरार्द्ध का राग माना गया। कुछ राग ऐसे भी हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वर प्रयोग होते हैं। इस श्रृंखला में हम ऐसे ही रागों की चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की छ्ठी कड़ी में आज हम राग गौड़ सारंग के स्वरूप की चर्चा करेंगे। साथ ही सबसे पहले सुप्रसिद्ध बाँसुरी वादक पण्डित पन्नालाल घोष की बाँसुरी पर राग गौड़ सारंग की के स्वर में एक अनूठी रचना सुनेगे, और फिर इसी राग के स्वरों में पिरोया 1953 में प्रदर्शित फिल्म ‘हमदर्द’ का एक गीत मन्ना डे और लता मंगेशकर की युगल आवाज़ में प्रस्तुत करेंगे।

स श्रृंखला में अभी तक आपने जो राग सुने हैं, वह सभी कल्याण थाट के राग माने जाते हैं और इन्हें रात्रि के पहले प्रहर में ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। दोनों मध्यम स्वर स्वर से युक्त आज का राग, ‘गौड़ सारंग’ भी कल्याण थाट का माना जाता है, किन्तु इस राग के गायन-वादन का समय रात्रि का प्रथम प्रहर नहीं बल्कि दिन का दूसरा प्रहर होता है। राग गौड़ सारंग में दोनों मध्यम के अलावा सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। इस राग के आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग होते हैं, इसीलिए इसे सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग कहा जाता है। परन्तु इसमे आरोह और अवरोह के सभी स्वर वक्र प्रयोग किये जाते है, इसलिए इसे वक्र सम्पूर्ण जाति का राग माना जाता है। राग का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर धैवत होता है।

पन्नालाल घोष
प्राचीन ग्रन्थकार राग कामोद, केदार और हमीर की तरह राग गौड़ सारंग को भी बिलावल थाट का राग मानते थे, क्योंकि तब इस राग में तीव्र मध्यम स्वर प्रयोग नहीं किया जाता था। परन्तु जब से इन रागों में दोनों मध्यम का प्रयोग होने लगा, तब से इन्हें कल्याण थाट का राग माना जाने लगा। राग गौड़ सारंग के आरोह और अवरोह में तीव्र मध्यम स्वर का अल्प प्रयोग केवल पंचम स्वर के साथ किया जाता है। शुद्ध मध्यम स्वर आरोह और अवरोह दोनों में किया जाता है। राग की रंजकता को बढ़ाने के लिए कभी-कभी अवरोह में कोमल निषाद का अल्प प्रयोग राग केदार और हमीर की तरह राग गौड़ सारंग में भी किया जाता है। इस राग का चलन वक्र होता है। किन्तु तानों में वक्रता कम की जाती है। राग गौड़ सारंग का उदाहरण हम आपको बाँसुरी पर सुनवाएँगे। बाँसुरी वाद्य को शास्त्रीय मंच पर प्रतिष्ठित कराने वाले सुविख्यात बाँसुरी वादक पण्डित पन्नालाल घोष से अब हम इस राग में निबद्ध एक मनोहारी रचना सुनवा रहे हैं। 24 जुलाई, 1911 को अविभाजित भारत के बारिसाल, पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में जन्में पन्नालाल घोष का एक और नाम था, अमलज्योति घोष। परन्तु अपने संगीतज्ञ जीवन में वह अपने पुकारने के नाम से ही विख्यात हुए। इनके पिता अक्षय कुमार घोष स्वयं एक संगीतज्ञ थे और सितार बजाते थे। पन्ना बाबू को बचपन में अपने पिता से ही सितार वादन की शिक्षा मिली थी। जब वे कुछ बड़े हुए तो उनके हाथ कहीं से एक बाँसुरी मिल गई। उन्होने बाँसुरी पर अपने सितार पर सीखे हुए तंत्रकारी कौशल की नकल करना शुरू किया। एक बार एक सन्यासी ने सुन कर बालक पन्नालाल को भविष्य में महान बाँसुरी वादक बनने का आशीर्वाद दिया। आगे चल कर शास्त्रीय संगीत के मंच पर उन्होने बाँसुरी वाद्य को प्रतिष्ठा दिलाई। लीजिए, अब आप पण्डित पन्नालाल घोष से बाँसुरी पर बजाया राग गौड़ सारंग की तीनताल में निबद्ध एक रचना सुनिए।


राग गौड़ सारंग : तीनताल में निबद्ध एक रचना : पण्डित पन्नालाल घोष 




अनिल विश्वास और लता मंगेशकर
सुप्रसिद्ध फिल्म संगीतकार अनिल विश्वास ने 1953 की फिल्म ‘हमदर्द’ के लिए एक रागमाला गीत तैयार किया था, जिसमें चार अन्तरे चार अलग-अलग रागों में स्वरबद्ध थे। इन्हीं में से एक अन्तरा राग गौड़ सारंग में था। आज हम आपको वही अन्तरा सुनवा रहे हैं। पन्नालाल घोष और अनिल विश्वास परस्पर मित्र भी थे और सम्बन्धी भी। हमारे साथी, फिल्म संगीत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार और स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी ने एक साक्षात्कार में अनिल विश्वास के व्यक्तित्व और कृतित्व को उभारा था। उसी साक्षात्कार का कुछ अंश हम आपके लिए प्रस्तुत करते हैं। 
पन्नालाल घोष बाद में अनिल बिस्वास के बहनोई बने, पहले से ही दोनों बहुत अच्छे मित्र थे। अपने परम मित्र और बहनोई को याद करते हुए विविध भारती के ’संगीत सरिता’ में अनिल दा ने कुछ इस तरह से उनके बारे में बताया था साक्षात्कार लेने वाले सितार वादक तुषार भाटिया को – “पन्नालाल घोष बाँसुरी को कॉनसर्ट के स्तर पर लाने का श्रेय जाता है, अभी तक उन्हीं को पिता माना जाता है। कुछ हमारी पुरानी बातें हमें याद आ जाती हैं। तुमको मालूम नहीं होगा कि पन्ना से पहले मैं बाँसुरी बजाता था। तो एक दिन ऐसा हुआ कि माँ तीरथ से वापस आईं, जब गईं तब मैं बच्चे की आवाज़ में बोलता था, वापस आईं तो मैं मर्द की आवाज़ में बोलने लगा। तो उन्होंने आकर देखा कि हमारी कुलुंगी के उपर, क्या कहते हैं उसको, वह बाँसुरी रखी हुई है, उन्होंने सारे उठाके फेंक दिए और कहा कि यह तेरी आवाज़ को क्या हो गया? मैंने जाकर पन्ना को कहा कि मेरी बाँसुरी तो गई, अब क्या होगा? उन्होंने कहा कि मैं पकड़ लेता हूँ!” अनिल दा ने एक आश्चर्य करने वाले तथ्य को भी उजागर किया कि पन्नालाल घोष बाँसुरी से पहले सितार बजाते थे और उनके पिता (अक्षय घोष) एक बहुत अच्छे सितार वादक थे। तो इस तरह से बाँसुरी बजाने के शौकीन अनिल बिस्वास बन गए मशहूर संगीतकार और सितार बजाने के शौकीन पन्नालाल घोष बन गए मशहूर बाँसुरी वादक। दोनों एक दूसरे से इतना प्यार करते थे कि एक बाद जब अनिल बिस्वास को रेडियो पर पहली बार गायन रेकॉर्ड करने के लिए रेकॉर्डिंग्‍ रूम में भेजा गया तो बाहर प्रतीक्षा कर रहे पन्नालाल घोष पसीना-पसीना हो गए इस घबराहट में कि उनका दोस्त कैसा परफ़ॉर्म करेगा! अनिल दा ने उस साक्षात्कार में यह भी बताया कि पन्ना बाबू का पहला व्यावयासिक वादन अनिल दा के रेकॉर्डिंग्‍ में ही बजाया था, और जब तक वो बम्बई में रहे, अनिल दा के हर फ़िल्म में वो ही बाँसुरी बजाया करते थे। 
 पार्श्वगायक मन्ना डे और लता मंगेशका के गाये, राग गौड़ सारंग के स्वरों में पिरोए फिल्म हमदर्द के इस गीत में पण्डित पन्नालाल घोष की बाँसुरी के अलावा पण्डित रामनारायण की सारंगी का भी योगदान था। तीनताल में निबद्ध यह गीत अब आप सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।


राग गौड़ सारंग : “ऋतु आए ऋतु जाए सखी री...” : मन्ना डे और लता मंगेशकर फिल्म – हमदर्द 





संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 258वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक राग पर आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 260वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की पहली श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि आपको किस राग का अनुभव हो रहा है?

2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।

3 – क्या आप गीत की गायिका का नाम हमे बता सकते हैं?

आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 27 फरवरी, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 260वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ क्रमांक 256 की संगीत पहेली में हमने आपको 1960 में प्रदर्शित फिल्म ‘कोहिनूर’ से राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग - हमीर, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायक – मुहम्मद रफी (और उस्ताद अमीर खाँ)।

इस बार की पहेली में कुल पाँच प्रतिभागियों ने सही उत्तर दिया है। हमारे नियमित प्रतिभागी विजेता हैं- चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया। सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात

मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप हमारी श्रृंखला ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ का रसास्वादन कर रहे हैं। श्रृंखला के छठे अंक में हमने आपसे राग गौड़ सारंग पर चर्चा की। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पाठक और श्रोता नियमित रूप से हमें पत्र लिखते है। हम उनके सुझाव के अनुसार ही आगामी विषय निर्धारित करते है। ‘स्वरगोष्ठी’ पर आप भी अपने सुझाव और फरमाइश हमें शीघ्र भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र



Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट