Skip to main content

"सदियों से दुनिया में यही तो क़िस्सा है....", इस गीत के बनने की कहानी से श्रद्धांजलि स्वर्गीय निदा फ़ाज़ली को!


एक गीत सौ कहानियाँ - 76
 

'सदियों से दुनिया में यही तो क़िस्सा है...' 



रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।इसकी 76-वीं कड़ी में आज श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं जानेमाने शायर और फ़िल्मी गीतकार निदा फ़ाज़ली को जिनका 8 फ़रवरी 2016 को निधन हो गया। बताने जा रहे हैं उनके लिखे वर्ष 1981 की फ़िल्म ’बीवी ओ बीवी’ के लोकप्रिय गीत "सदियों से दुनिया में यही तो क़िस्सा है..." के बारे में जिसे किशोर कुमार ने गाया था। संगीत राहुल देव बर्मन का। 

8 फ़रवरी चले गए निदा फ़ाज़ली अपनी अन्तिम यात्रा पर। और पीछे रह गईं उनकी लिखी ग़ज़लें, गीत, शायरी
Nida Fazli
जो किसी धरोहर से कम नहीं। जब एक बार किसी रेडियो कार्यक्रम के उद्‍घोषक ने निदा साहब से मुलाक़ात के सवालात शुरू करना चाहा, तब निदा साहब ने अपनी शायराना अंदाज़ में कहा, "एक साथ बहुत सारे सवालात, और उन सब सवालातों का जवाब एक शेर - अब जहाँ भी हैं वहीं तक लिखो रुदाद-ए-सफ़र, हम तो निकले थे कहीं और ही जाने के लिए। किसी मंज़र पर बहुत देर तक आँख को ठहरने की इजाज़त वक़्त ने नहीं दी, इनमें मंज़रों का क़सूर नहीं है, क़सूर उस सुलूग का है जो ज़िन्दगी ने मेरे साथ किया।" आज निदा साहब के गुज़र जाने के बाद उनकी कही ये बातें याद आ गईं। यूं तो निदा साहब ने एक से एक अच्छा गीत लिखा है हिन्दी फ़िल्मों के लिए, जिस गीत के बनने की कहानी आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं, वह है कमचर्चित हास्य फ़िल्म ’बीवी ओ बीवी’ से। यह फ़िल्म इस बात के लिए महत्वपूर्ण थी कि इसे निर्माता थे शोमैन राज कपूर। हालाँकि फ़िल्म को निर्देशित उन्होंने नहीं बल्कि राहुल रवैल ने किया था। संजीव कुमार, रणधीर कपूर, पूनम ढिल्लों अभिनीत यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर बुरी तरह से असफल रही। फ़िल्म के गीतों की वजह से फिर कुछ हद तक राज कपूर की मान बची रही। किशोर कुमार की एकल आवाज़ में "गोरी हो काली हो या नख़रेवाली हो...", "वक़्त से पहले क़िस्मत से ज़्यादा..." और "सदियों से दुनिया में यही तो क़िस्सा है..." जैसे गीत उस दौर युवाओं के होठों पर चढ़ गया था। "मेरी बुलबुल यूं ना हो गुल इस क़दर..." (किशोर - लता) और "पैसे का खेल निराला..." (रफ़ी - आशा) फ़िल्म के दो युगल गीत थे जो लोगों के दिलों को छू नहीं सके। राज कपूर की फ़िल्मों में संगीत का क्या महत्व और स्तर होता है, इससे हम वाक़िफ़ हैं, पर इस फ़िल्म के गीत-संगीत को सुन कर राज कपूर की उपस्थिति नज़र नहीं आती।


ख़ैर, हम याद कर रहे हैं निदा फ़ाज़ली साहब को। इस फ़िल्म में उनका लिखा "सदियों से दुनिया में..." गीत ख़ूब
The Musical Team of 'Biwi O Biwi' (Photo Courtesy: K C Pingle)
लोकप्रिय हुआ था। इसी गीत के बनने की कहानी उन्हीं की ज़ुबानी पढ़िए। "मुझे याद है कि मैं राहुल देव बर्मन के साथ एक गाना लिख रहा था। गाना तैयार हो चुका था और फ़िल्म का नम था ’बीवी ओ बीवी’। फ़ाइनल रिहर्सल हो रहा था और अगले ही दिन गाना रेकॉर्ड होने वाला था। तो क्या देखते हैं कि दोपहर के दो बजे राज कपूर साहब हाथ में भेजपुरी लेकर अन्दर दाख़िल हुए और अपने स्टाइल में बैठ कर गाने की तारिफ़ की। जब रिहर्सल ख़त्म हो गया तो उन्होंने मुझे अपने क़रीब बुलाया। पूछा कि आपको यह सिचुएशन किसने बताई थी? मैंने कहा रणधीर कपूर ने। कहने लगे कि बहुत अच्छे! फिर कहने लगे कि कल अगर आपको फ़ुरसत हो तो हमारे कॉटेज में आ जाइए चेम्बुर में, मैं आपको एक सिचुएशन सुनाना चाहता हूँ। आर. डी. ने मुझे आँख मारी, बताना चाहा कि यह गाना ख़त्म हो गया, ट्युन तुम्हारे ज़हन में है और तुम जा रहे हो कल। अगर तुम वहाँ पर एक्स्टेम्पोर गाना लिख दो तो यह गाना रेकॉर्ड होगा वरना नहीं होगा। राज कपूर ने कम से कम आधा घंटा तो अपने नॉस्टल्जिया में सर्च किया कि व्यजयन्तीमाला ये थीं, और नरगिस ये थीं, फ़लानी ये थीं और उनसे ये हुआ वो हुआ, वगेरह वगेरह वगेरह वगेरह। और फिर आख़िर में तीन लाइन उन्होंने बोली, कि भाई सिचुएशन तो इतनी सी है, अंग्रेज़ी में बोलने लगे कि there is a girl, there is a boy, there will be a girl, there will be a boy, there was a girl, there was a boy, and that is the whole life। मेरे ज़हन में ट्युन थी, मैंने बोला कि राज साहब, आपने तो पूरा गाना ही बोल दिया! बोले, "वो कैसे जी?" मैंने कहा "सदियों से दुनिया में यही तो क़िस्सा है, एक ही तो लड़की है, एक ही तो लड़का है, जब भी ये मिल गए प्यार हो गया"। कहने लगे "यही हमें चाहिए था जी!" उसी दिन यह गाना पूरा होकर रेकॉर्ड हुआ और सभी को पसन्द आया।" लीजिए, अब आप इसी गीत का वीडियो देखिए। 


फिल्म - बीवी ओ बीवी : "सदियों से दुनिया में..." : किशोर कुमार : गीतकार - निदा फाजली


अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर। 



आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 




Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...