स्वरगोष्ठी – 240 में आज
संगीत के शिखर पर – 1 : सरोद वादन
सरोद वादन में अप्रतिम उस्ताद अमजद अली खाँ
'रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के
साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ हो रही हमारी नई
श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब
संगीतानुरागियों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की
विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनकी प्रस्तुतियों की
चर्चा करेंगे। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक
शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर उनके व्यक्तित्व और उनकी कृतियों को प्रस्तुत
करेंगे। आज श्रृंखला की पहली कड़ी में हम अत्यन्त लोकप्रिय तंत्रवाद्य सरोद
और इसके विश्वविख्यात वादक उस्ताद अमजद अली खाँ के व्यक्तित्व तथा कृतित्व
की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और उनका बजाया राग श्याम कल्याण, कामोद और
भैरवी की रचनाएँ सुनेगे।
संगीत रत्नाकर’ ग्रन्थ के अनुसार भारतीय संगीत के वाद्ययंत्रों को चार मुख्य वर्ग- तत्, सुषिर, अवनद्ध और घन में बांटा गया है। जिन वाद्यों में ताँत या तार से ध्वनि उत्पन्न होती है उन्हें तत् वाद्य कहा जाता है। जैसे- सितार, सरोद, गिटार, सारंगी, वायलिन आदि। आगे चल कर तत् श्रेणी के वाद्यों को वादन शैली में भिन्नता के कारण दो भागों में बाँटा जाता है। कुछ तत् वाद्ययंत्र गज या कमानी द्वारा वाद्य के तारों पर रगड़ कर बजाया जाता है। इस श्रेणी के व्वाद्ययंत्रों में सारंगी, वायलिन, इसराज, दिलरुबा, चेलो आदि आते हैं। दूसरी श्रेणी में वाद्ययंत्रों के तारों पर मिज़राब, जवा या उँगलियों से आघात करके बजाया जाता है। इस श्रेणी में वीणा, सुरबहार, सितार, सरोद, गिटार आदि वाद्य रखे गए हैं। सरोद वाद्य इसी श्रेणी का है। आधुनिक सरोद प्राचीन वाद्य ‘रबाब’ का संशोधित और विकसित रूप है। आज की ‘स्वरगोष्ठी में हम सरोद और उसके अप्रतिम साधक और वादक उस्ताद अमजद अली खाँ पर चर्चा कर रहे हैं।
विश्वविख्यात
संगीतज्ञ और सरोद-वादक उस्ताद अमजद अली खाँ का जन्म 9 अक्टूबर, 1945 को
ग्वालियर में संगीत के सेनिया बंगश घराने की छठी पीढ़ी में हुआ था। संगीत
इन्हें विरासत में प्राप्त हुआ था। इनके पिता उस्ताद हाफ़िज़ अली खाँ
ग्वालियर राज-दरबार में प्रतिष्ठित संगीतज्ञ थे। इस घराने के संगीतज्ञों ने
ही ईरान के लोकवाद्य ‘रबाब’ को भारतीय संगीत के अनुकूल परिवर्द्धित कर
‘सरोद’ नामकरण किया। अमजद अली अपने पिता हाफ़िज़ अली के सबसे छोटे पुत्र हैं।
उस्ताद हाफ़िज़ अली खाँ ने परिवार के सबसे छोटे और सर्वप्रिय सन्तान को बहुत
छोटी उम्र में ही संगीत-शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। मात्र बारह वर्ष की
आयु में एकल सरोद-वादन का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन किया था। एक छोटे से
बालक की सरोद पर अनूठी लयकारी और तंत्रकारी सुन कर दिग्गज संगीतज्ञ दंग रह
गए। उस्ताद अमजद अली खाँ और उनके सरोद पर चर्चा जारी रहेगी, आइए, उस्ताद के
सरोद-वादन का एक उदाहरण सुनते हैं। उस्ताद अमजद अली खाँ प्रस्तुत कर रहे
हैं, कल्याण थाट का राग ‘श्याम कल्याण’। इस राग में दोनों मध्यम स्वर
प्रयोग किये जाते हैं और आरोह में धैवत स्वर वर्जित होता है। रचना मध्यलय
तीनताल में निबद्ध है।
राग श्याम कल्याण : मध्यलय तीनताल की रचन : उस्ताद अमजद अली खाँ
उस्ताद
अमजद अली खाँ को बचपन में ही सरोद से ऐसा लगाव हुआ कि युवावस्था तक
आते-आते एक श्रेष्ठ सरोद-वादक के रूप में पहचाने जाने लगे। उन्होने
सरोद-वादन की शैली में विकास के लिए कई प्रयोग किये। उनका एक महत्त्वपूर्ण
प्रयोग यह है कि सरोद के तारों को उँगलियों के सिरे से बजाने के स्थान पर
नाखून से बजाना। सितार की भाँति सरोद में स्वरों के पर्दे नहीं होते,
इसीलिए जब उँगलियों के सिरे के स्थान पर नाखूनों से इसे बजाया जाता है तब
स्वरों की स्पष्टता और मधुरता बढ़ जाती है। अब आप सरोद पर बजाया राग ‘कामोद’
सुनिए। राग कामोद कल्याण थाट और सम्पूर्ण जाति का राग है। इस राग में भी
दोनों मध्यम स्वर प्रयोग किये जाते हैं। इस राग का वादी स्वर पंचम और
संवादी स्वर ऋषभ होता है। रात्रि के प्रथम प्रहर में इस राग का गायन-वादन
सुखदायी होता है। आप उस्ताद अमजद अली खाँ का बजाया, चाँचर या दीपचन्दी ताल
में निबद्ध यह रचना सुनिए।
राग कामोद : चाँचर ताल में निबद्ध रचना : उस्ताद अमजद अली खाँ
युवावस्था
में ही उस्ताद अमजद अली खाँ ने सरोद-वादन में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति
प्राप्त कर ली थी। 1971 में उन्होने द्वितीय एशियाई अन्तर्राष्ट्रीय
संगीत-सम्मेलन में भाग लेकर ‘रोस्टम पुरस्कार’ प्राप्त किया था। यह सम्मेलन
यूनेस्को की ओर से पेरिस में आयोजित किया गया था, जिसमें उन्होने
‘आकाशवाणी’ के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया था। अमजद अली ने यह पुरस्कार
मात्र 26 वर्ष की आयु में प्रपट किया था, जबकि इससे पूर्व 1969 में यही
‘रोस्टम पुरस्कार’ उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ को शहनाई-वादन के लिए प्राप्त हो
चुका था। 1963 में मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्होने पहली अमेरिका यात्रा
की थी। इस यात्रा में पण्डित बिरजू महाराज के नृत्य-दल की प्रस्तुति के साथ
अमजद अली खाँ का सरोद-वादन भी हुआ था। इस यात्रा का सबसे उल्लेखनीय पक्ष
यह था कि खाँ साहब के सरोद-वादन में पण्डित बिरजू महाराज ने तबला संगति की
थी और खाँ साहब ने बिरजू महाराज की कथक संरचनाओं में सरोद की संगति की थी।
उस्ताद अमजद अली खाँ ने देश-विदेश के अनेक महत्त्वपूर्ण संगीत केन्द्रों
में प्रदर्शन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। इनमें कुछ प्रमुख हैं-
रायल अल्बर्ट हाल, रायल फेस्टिवल हाल, केनेडी सेंटर, हाउस ऑफ कामन्स,
फ़्रंकफ़र्ट का मोजर्ट हाल, शिकागो सिंफनी सेंटर, आस्ट्रेलिया के सेंट जेम्स
पैलेस और ओपेरा हाउस आदि। खाँ साहब अनेकानेक पुरस्कारों और सम्मानों से
अलंकृत किये जा चुके हैं। इनमें कुछ प्रमुख सम्मान हैं- भारत सरकार द्वारा
प्रदत्त ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ सम्मान, संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार,
तानसेन सम्मान, यूनेस्को पुरस्कार, यूनिसेफ का राष्ट्रीय राजदूत सम्मान
आदि। वर्तमान में उस्ताद अमजद अली खाँ के दो पुत्र, अमान और अयान सहित
देश-विदेश के अनेक शिष्य सरोद वादन की पताका फहरा रहे हैं। अब हम उस्ताद
अमजद अली खाँ द्वारा सरोद पर प्रस्तुत राग ‘भैरवी’ में एक दादरा सुनवाते
हैं। आप यह दादरा सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति
दीजिए।
राग भैरवी : दादरा में रचना : उस्ताद अमजद अली खाँ
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 240वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको भारतीय संगीत की एक मशहूर
गायिका द्वारा प्रस्तुत कण्ठ-संगीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर
आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के
सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की चौथी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता
घोषित किया जाएगा।
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि यह गीत किस राग में निबद्ध है?
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – गीतांश में गायिका के स्वरों को पहचानिए और हमे उनका नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 24 अक्टूबर, 2015 की मध्यरात्रि से
पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते
है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया
जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 242वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ
के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 238 की संगीत पहेली में हमने 1959 में प्रदर्शित फिल्म ‘चाचा
ज़िन्दाबाद’ से मदन मोहन का संगीतबद्ध एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन
प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहले
प्रश्न का सही उत्तर है- राग ललित, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल
तीनताल तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- मन्ना डे और लता मंगेशकर।
इस बार की पहेली में करवार, कर्नाटक से सुधीर हेगड़े, जबलपुर से क्षिति तिवारी, वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी ने सही उत्तर दिये हैं। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
इस बार की पहेली में करवार, कर्नाटक से सुधीर हेगड़े, जबलपुर से क्षिति तिवारी, वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी ने सही उत्तर दिये हैं। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर लघु श्रृंखला ‘संगीत के शिखर पर’ का यह पहला अंक था। अगले अंक में हम भारतीय संगीत की किसी अन्य विधा के किसी शिखर व्यक्तित्व के कृतित्व पर आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। इस श्रृंखला के लिए यदि आप किसी राग, गीत अथवा कलाकार को सुनना चाहते हों तो अपना आलेख या गीत हमें शीघ्र भेज दें। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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