"लायी कहाँ ऐ ज़िन्दगी..." - दो सन्तानों को खोने के बाद शायद आशा भोसले अपनी ज़िन्दगी से यही पूछ रही हैं
एक गीत सौ कहानियाँ - 67
'लायी कहाँ ऐ ज़िन्दगी...'
आशा भोसले का शुरुआती जीवन जितना दुखद था, उनकी वृद्धावस्था में वही दुखद स्थिति जैसे फिर से काले बादल की तरह वापस आ गई है। तीन वर्ष पहले उनकी सिंगापुर शो के दौरान उनकी बेटी वर्षा ने अपने आप को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी। आशा जी के मन से उस दर्दनाक हादसे की याद अभी ताज़ी ही थी कि पिछले 26 सितंबर को उनके बेटे हेमन्त भोसले का स्कॉटलैण्ड में निधन हो गया जो कैन्सर की बीमारी से जूझ रहे थे। एक माँ के लिए अपनी दो दो सन्तानों की मृत्यु को अपनी आँखों से देखने की पीड़ा क्या होती है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। और संयोग देखिये, वर्षा के समय आशा जी सिंगापुर में थीं, और हेमन्त के समय भी वो सिंगापुर में ही शो कर रही थीं। कैसा विचित्र संयोग है यह? हेमन्त और वर्षा, दोनो ने फ़िल्म-संगीत जगत में क़दम तो रखे थे, पर बहुत आगे तक नहीं जा सके। वर्षा ने तो गिनती के चन्द गीत गाने के बाद फ़िल्म जगत को अल्विदा कह दिया था, पर हेमन्त ने कुछ हद तक अपनी छाप ज़रूर बनाई थी। हेमन्त भोसले के संगीत में ढल कर 15 के आसपास हिन्दी फ़िल्म आये, और मराठी में भी उनके कई गीत लोकप्रिय हुए जिनमें "शरद सुन्दर" और "येउ कशि प्रिया" गीत बहुत चर्चित रहे जिन्हें उनकी माँ ने ही गाया था। उनके संगीत से सजी हिन्दी फ़िल्मों में उल्लेखनीय रहे ’जादू टोना’, ’टैक्सी-टैक्सी’, ’दामाद’, ’अनपढ़’, ’श्रद्धांजलि’, ’बैरिस्टर’, ’राजा जोगी’, ’बच्चों का खेल’, ’बंधन कच्चे धागों का’, ’धर्म शत्रु’ और अन्तिम फ़िल्म थी 1997 की ’आख़िरी संघर्ष’। 1977 से 1997 तक के करीयर में हेमन्त भोसले ने जी-तोड़ मेहनत तो की, पर उन्हें अच्छा फल नहीं मिला और ’आख़िरी’ संघर्ष’ फ़िल्म उनके संघर्ष की आख़िरी फ़िल्म ही सिद्ध हुई।
बेटे हेमन्त के बारे में उनकी माँ आशा भोसले ने विविध भारती के ’जयमाला’ कार्यक्रम में कुछ यूं कहा था - "आपको एक बात बताऊँ, जब मैं 15 साल की थी, तभी हेमन्त मेरे गोद में आ गया था और वह मुझे अपनी बड़ी बहन से ज़्यादा कुछ भी नहीं मानता था। हर बात में ज़िद करता, कभी खाने में ज़िद तो कभी सोने में ज़िद। एक बार मैंने उसे बाथरूम में बन्द कर दिया तो वह पानी भर भर कर दरवाज़े से बाहर फेंकने लगा और पूरा घर पानी से भरने लगा। ऐसा नटखट था मेरा हेमन्त। बाद में संगीतकार बनने के बाद जब मैंने उसका बनाया हुआ फ़िल्म ’श्रद्धांजलि’ का गीत "हाये बड़ा नटखट है बड़ा शैतान" गाने लगी तो वही नटखटपन याद आ गया"। 1977 में जब ’जादू टोना’ फ़िल्म से हेमन्त ने शुरुआत की थी और अपनी बहन वर्षा से इस फ़िल्म में गीत गवाया था, इसके बारे में भी आशा जी कुछ यूं कहा था - "कोई कोई क्षण ज़िन्दगी के ऐसे होते हैं जो भूलाये नहीं जा सकते, बड़े मज़ेदार होते हैं। मेरा लड़का हेमन्त, आप समझते होंगे माँ के लिए बेटा क्या चीज़ होता है, एक दिन वह म्युज़िक डिरेक्टर बन गया और मेरे पास आकर कहने लगा कि यह मेरा गाना है, तुम गाओ। कैसा लगता है ना? जो कल तक इतना सा था, आज वह मुझसे कह रहा है कि मेरा गाना गाओ। फिर उसने अपनी बहन, मेरी बेटी वर्षा से कहने लगा कि तुम्हे भी गाना पड़ेगा। वर्षा बहुत शर्मिली है, उसने कहा कि बड़ी मासी इतना अच्छा गाती हैं, माँ इतना अच्छा गाती है, मैं नहीं गाऊँगी। लेकिन हेमन्त ने बहुत समझाया और उसका पहला गाना रेकॉर्ड हुआ "यह गाँ प्यारा प्यारा"। मैं स्टुडियो पहुँची तो देखा कि लड़की माइक के सामनेखड़ी है और उसका भाई वन टू बोल रहा है। यह क्षण मैं कभी नहीं भूल सकती।"
आज हेमन्त भोसले को श्रद्धांजलि स्वरूप जिस गीत को हम पेश कर रहे हैं वह उपर बताये गए गीतों में से कोई भी नहीं है। बल्कि वह गीत है फ़िल्म ’टैक्सी टैक्सी’ का जिसे हेमन्त की माँ और बड़ी मासी, यानी कि आशा और लता ने साथ-साथ गाया है। गीत के बोल हैं "लायी कहाँ ऐ ज़िन्दगी, है सामने मंज़िल मेरी, फिर भी मंज़िल तक मैं जा न सकूँ, सपनों की दुनिया पा न सकूँ"। आज इस गीत को याद करते हुए ऐसा लग रहा है कि जैसे आशा जी अब ख़ुद अपनी ज़िन्दगी से ही यह बात पूछ रही हैं। संयोग की बात है कि फ़िल्म के परदे पर भी आशा जी ही नज़र आती हैं गीत को गाते हुए। रेकॉर्डिंग् स्टुडियो में आशा जी गा रही हैं, और बीच में ही कोरस रूम में चुपचाप खड़ी फ़िल्म की नायिका ज़हीरा अचानक गा उठती हैं सभी को हैरान करते हुए। ज़हीरा का पार्श्वगायन लता मंगेशकर ने किया है इस गीत में। इस तरह से यह एक बड़ा ही अनोखा गीत है जिसकी तरफ़ लोगों का बहुत कम ही ध्यान गया है आज तक। पर इस गीत को सुनते हुए यह ख़याल ज़रूर आता है कि इतना सुन्दर कम्पोज़िशन के बावजूद हेमन्त भोसले को किसी ने तवज्जु क्यों नहीं दी? ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की तरफ़ से हेमन्त भोसले को भावभीनी श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए आइए उनका रचा यह बड़ा ही मीठा और दर्दीला गीत सुनते हैं आशा जी और लता जी की युगल आवाज़ों में, गीत लिखा है मजरूह साहब ने।
Hemant & Asha |
आज हेमन्त भोसले को श्रद्धांजलि स्वरूप जिस गीत को हम पेश कर रहे हैं वह उपर बताये गए गीतों में से कोई भी नहीं है। बल्कि वह गीत है फ़िल्म ’टैक्सी टैक्सी’ का जिसे हेमन्त की माँ और बड़ी मासी, यानी कि आशा और लता ने साथ-साथ गाया है। गीत के बोल हैं "लायी कहाँ ऐ ज़िन्दगी, है सामने मंज़िल मेरी, फिर भी मंज़िल तक मैं जा न सकूँ, सपनों की दुनिया पा न सकूँ"। आज इस गीत को याद करते हुए ऐसा लग रहा है कि जैसे आशा जी अब ख़ुद अपनी ज़िन्दगी से ही यह बात पूछ रही हैं। संयोग की बात है कि फ़िल्म के परदे पर भी आशा जी ही नज़र आती हैं गीत को गाते हुए। रेकॉर्डिंग् स्टुडियो में आशा जी गा रही हैं, और बीच में ही कोरस रूम में चुपचाप खड़ी फ़िल्म की नायिका ज़हीरा अचानक गा उठती हैं सभी को हैरान करते हुए। ज़हीरा का पार्श्वगायन लता मंगेशकर ने किया है इस गीत में। इस तरह से यह एक बड़ा ही अनोखा गीत है जिसकी तरफ़ लोगों का बहुत कम ही ध्यान गया है आज तक। पर इस गीत को सुनते हुए यह ख़याल ज़रूर आता है कि इतना सुन्दर कम्पोज़िशन के बावजूद हेमन्त भोसले को किसी ने तवज्जु क्यों नहीं दी? ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की तरफ़ से हेमन्त भोसले को भावभीनी श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए आइए उनका रचा यह बड़ा ही मीठा और दर्दीला गीत सुनते हैं आशा जी और लता जी की युगल आवाज़ों में, गीत लिखा है मजरूह साहब ने।
फिल्म टैक्सी टैक्सी : "लायी कहाँ ए ज़िन्दगी..." : लता और आशा : संगीत - हेमन्त भोसले
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खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
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