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BAATON BAATON MEIN-13: INTERVIEW OF PULKIT SAMRAT

बातों बातों में - 13

अभिनेता पुलकित सम्राट से लम्बी बातचीत


"हर कोई सर्वोच्च शिखर पर चढ़ना चाहता है, और मैं उसी कोशिश में लगा हूँ"  




नमस्कार दोस्तो। हम रोज़ फ़िल्म के परदे पर नायक-नायिकाओं को देखते हैं, रेडियो-टेलीविज़न पर गीतकारों के लिखे गीत गायक-गायिकाओं की आवाज़ों में सुनते हैं, संगीतकारों की रचनाओं का आनन्द उठाते हैं। इनमें से कुछ कलाकारों के हम फ़ैन बन जाते हैं और मन में इच्छा जागृत होती है कि काश, इन चहेते कलाकारों को थोड़ा क़रीब से जान पाते, काश; इनके कलात्मक जीवन के बारे में कुछ जानकारी हो जाती, काश, इनके फ़िल्मी सफ़र की दास्ताँ के हम भी हमसफ़र हो जाते। ऐसी ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' ने फ़िल्मी कलाकारों से साक्षात्कार करने का बीड़ा उठाया है। । फ़िल्म जगत के अभिनेताओं, गीतकारों, संगीतकारों और गायकों के साक्षात्कारों पर आधारित यह श्रृंखला है 'बातों बातों में', जो प्रस्तुत होता है हर महीने के चौथे शनिवार को। इस बार हम आपके लिए लेकर आए हैं जाने-माने अभिनेता पुलकित सम्राट से की हुई लम्बी बातचीत के सम्पादित अंश। पुलकित सम्राट इन दिनों सफलता की सीढ़ियाँ लगातार चढ़ते चले जा रहे हैं। तो आइए मिलते हैं पुलकित सम्राट से।
    




’बिट्टू बॉस’, ’फ़ुकरे’, ’ओ तेरी’, ’बंगिस्तान’, ’डॉली की डोली’ जैसी फ़िल्मों और ’क्योंकि सास भी कभी बहु थी’ जैसे लोकप्रिय धारावाहिक में अभिनय करने वाले पुलकित सम्राट आज हमारे साथ हैं, नमस्कार पुलकित, और बहुत बहुत स्वागत है आपका।

नमस्कार, और धन्यवाद मुझे याद करने के लिए!

पुलकित, सबसे पहले तो यह बताइए कि आपकी पैदाइश कहाँ की है, अपने परिवार और बचपन की यादों के बारे में कुछ बताइए?

मेरी पैदाइश 1983 की है, मैं एक पंजाबी हूँ और मेरा जन्म दिल्ली के शालीमार बाग़ में एक बहुत बड़े संयुक्त परिवार में हुआ। मैं परिवार का बड़ा बेटा हूँ, और सबसे ज़्यादा लाड-प्यार मुझे ही मिला। मेरे परिवार का real estate का कारोबार है। आर्थिक रूप से परिवार मज़बूत था, इसलिए मुझे कभी पैसों की कमी वाला जो संघर्ष है, वो नहीं करना पड़ा। न्यु राजेन्द्र नगर में ’मानव स्थली स्कूल’ है, मैं उसमें दसवीं कक्षा तक पढ़ा। उसके बाद अशोक विहार स्थित Montfort Senior Secondary School से बारहवीं की पढ़ाई पूरी की।

पुलकित, माफ़ी चाहूँगा टोकने के लिए, पर यहाँ एक सवाल पूछना चाहूँगा कि क्योंकि मैं भी दिल्ली से हूँ और मुझे यह पता है कि ’मानव स्थली’ बारहवीं तक है, फिर आपने स्कूल क्यों बदला?

बहुत अच्छा सवाल है यह (हँसते हुए); दरसल बात ऐसी थी कि मुझे ’मानव स्थली’ से निकाल दिया गया था, मेरा जुर्म यह था कि मैंने वाइस-प्रिन्सिपल के ऑफ़िस के बाहर पटाखे फोड़े थे। 

हा हा हा, मतलब आपके अव्वल दर्जे के शरारती हुआ करते थे?

पूछिए मत... मैं कभी अपने क्लासेस बंक नहीं करता था क्योंकि मेरा लक्ष्य ही था क्लास में बैठ कर टीचर को परेशान करना। मैं बिल्कुल सामने वाली पंक्ति में बैठ कर वो सब शरारतें करता जो आम तौर पर लास्ट बेन्चर्स करते हैं।


वैसे पढ़ाई में आप कैसे थे?

पढ़ाई में काफ़ी अच्छा था, मुझे दसवी में 87% मार्क्स मिले थे, पर ’मानव स्थली’ वालों ने मुझे जान-बूझ कर ग्यारहवीं में ’non-medical science’ लेने नहीं दिया। और यही वजह है स्कूल बदलने की। वहाँ मैं IIT और Medical entrance tests की तैयारी भी करने लगा। पर जल्द ही मुझे पता चल गया कि मुझे पढ़ाई-लिखाई में खास रुचि नहीं है, और मैं मनोरंजन की दुनिया में जाना चाहता हूँ। यह सोच कर मैंने Apeejay Institute of Design में दाखिला ले लिया, और केवल पाँच महीने के भीतर मुझे मॉडल के रूप में काम करने का मौका मिल गया। वह एक Asian Paints का विज्ञापन था।

यानी कि यह आपके प्रोफ़ेशनल करीअर का पहला ब्रेक था। क्या उम्र थी उस वक़्त आपकी?

मैं 19 साल का था उस वक़्त। इस विज्ञापन के तुरन्त बाद मैंने मुंबई जाने का फ़ैसला कर लिया, और मुंबई आकर किशोर नमित कपूर के वहाँ अभिनय का एक कोर्स करने लगा। यह 2005 की बात थी। इससे फ़ायदा यह हुआ कि मुझे ’बालाजी टेलीफ़िल्म्स’ में ऑडिशन देने का मौक़ा मिल गया। उन दिनों ’क्योंकि सास भी कभी बहु थी’ टॉप पर चल रही थी, उसी धारावाहिक में एक नए चेहरे की ज़रूरत थी जिसका ऑडिशन वो लोग कर रहे थे। मैं इस ऑडिशन में कामयाब रहा और लक्ष्य वीरानी का किरदार मुझे मिल गया।

और इस तरह से पुलकित सम्राट इस देश के हर घर में पहुँच गया, है ना?

सही बात है! 


’क्योंकि सास...’ में लक्ष्य वीरानी की भूमिका में
अच्छा, आपका किरदार काफ़ी सराहा जा रहा था, पर जल्द ही, यानी कि एक साल के भीतर ही आपने इस धारावाहिक को छोड़ने का फ़ैसला कर लिया। ऐसा क्यों?

एकता (कपूर) का मैं आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे बड़ा ब्रेक दिया और मुझे हिन्दुस्तान के हर घर तक पहुँचाया। मुझे बहुत जल्दी गुस्सा आता है जब मेरे आसपास चीज़ें सही नहीं चलती हैं। और शायद यही वजह है बालाजी को छोड़ने का।

ज़रा विस्तार से बताएँगे कि मुद्दा क्या था?

मैं उस धारावाहिक में करीब डेढ़ साल से काम कर रहा था। पर देखा जाए तो मेरे रोल के लिए मैंने केवल चार-पाँच महीने ही काम किए होंगे मुश्किल से। मुझे महीने के 30 दिन शूट पर जाना पड़ता था जहाँ 14 घंटे इन्तज़ार करने के बाद मेरा दो-तीन मिनट का शॉट होता था। मैं दिल्ली से मुंबई ये करने तो नहीं आया था। मुझे पता है कि इन्डस्ट्री में काम ऐसे ही होता है और अगर रोल दमदार हो तो ये सब जायज़ है। मेरे हिस्से में तो कभी-कभी सिर्फ़ ऐसे लाइन्स आते थे कि "खाना अच्छा है", या फिर मुझे जाकर दरवाज़ा खोलना है। जब मैंने इन सब बातों को सामने रखा और कहा कि मैं ’बालाजी’ के बाहर भी काम करना चाहता हूँ क्योंकि मेरा यहाँ समय बरबाद हो रहा है तो उन लोगों ने मुझे मेरा बालाजी के साथ तीन साल का कॉनट्रैक्ट दिखाया। और तरह तरह की अफ़वाहें उड़ने लगी कि मैं नियम तोड़ कर बाहर काम कर रहा हूँ वगेरह वगेरह। और एक दिन तो हद ही हो गई। मुझे एक कोर्ट का नोटिस मिला जिसमें यह लिखा हुआ था कि मैं ना तो शूट पे जा रहा हूँ और ना प्रोडक्शन हाउस के फ़ोन कॉल्स अटेन्ड कर रहा हूँ, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था।

आपने एकता कपूर से बात की इस बारे में?

मैंने कोशिश की उन्हें समझाने की पर उन्हें मुझ पर यकीन नहीं हुआ। कुछ लोगों ने उन्हें ग़लत बातें बताई जिन पर उन्हें बहुत ज़्यादा विश्वास था, और उन्हीं के कहने पर वो ये सब करवा रही थीं।

अच्छा फिर क्या हुआ?

उस नोटिस को देख कर तो मेरा दिमाग़ ख़राब हो गया और मैंने भी कोर्ट में केस कर दिया ’बालाजी’ के ख़िलाफ़। हर प्रोडक्शन का कॉनट्रैक्ट होता है, पर उसके बाहर आप काम नहीं कर सकते, यह उचित बात नहीं है। एक अभिनेता के लिए निरन्तर आगे बढ़ना बहुत ज़रूरी होता है। इसलिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने के अलावा मेरे पास कोई उपाय नहीं था।

कोर्ट का फ़ैसला किसके पक्ष में गया?

निस्संदेह मेरे पक्ष में, अभिनेताओं के पक्ष में। मैं आभारी हूँ उन सभी लोगों का जिन्होंने मुझे इस लड़ाई को लड़ने का हौसला दिया। जस्टिस चन्द्रचुड़ ने बालाजी को हिदायत दी कि वो अभिनेताओं के साथ ऐसा नहीं कर सकते और उन्हें अन्य प्रोडक्शन हाउसेस में काम करने से नहीं रोक सकते।

एकता कपूर के साथ पंगा लेना करीअर के लिए खतरा मोल लेना नहीं लगा आपको?

मैंने एकता से माफ़ी माँगी, मुझे उनसे कोई ज़ाती दुश्मनी तो थी नहीं, मुझे उस कॉनट्रैक्ट से परेशानी थी। मुझे पता है कि उनके पास कुछ ख़ास तरह की शक्तियाँ हैं, पर अगर उन सब के बारे में सोचने लगता तो ज़िन्दगी में आगे नहीं बढ़ पाता। कोर्ट केस ख़त्म होने पर एकता ने मुझे एक SMS भेजा कि 'We will see to it by next year you will be nowhere.' मुझे ख़ुशी है कि मैंने यह क़दम उठाया, मुझे ढेरों संदेश मिले इंडस्ट्री से, चैनल वालों से, पत्रकारों से, दोस्तों और चाहने वालों से।

’बालाजी’ की चर्चा ख़त्म करने से पहले यह जानना चाहूँगा कि लक्ष्य वीरानी के रोल के लिए आपको कुछ पुरस्कार भी मिले थे, उनके बारे में कुछ बताइए?

मुझे उसके लिए The Indian Telly Awards में Best Fresh New Face Award मिला था। इसके अलवा Star Parivaar Awards में Favourite Naya Sadasya Award मिला था। पर उससे भी ज़्यादा, उससे भी बड़ा अवार्ड था लोगों का प्यार। देश के कोने कोने से मुझे लोगों के, चाहने वालों के संदेश मिलते थे, जो मेरा हौसला अफ़ज़ाई करते थे।

अच्छा, ’क्यॊंकि सास...’ और कोर्ट केस का मसला सुलझने के बाद आपने क्या किया?

उसके बाद मैं ’ताज एक्स्प्रेस’ शीर्षक से एक म्युज़िकल थिएट्रिकल शो किया जो कोरीओग्राफ़र वैभवी मर्चैन्ट का शो था। इस शो ने मेरे आत्मविश्वास को और भी ज़्यादा बढ़ा दिया। इस शो का जो कास्टिंग् डिरेक्टर था, वही कास्टिंग् डिरेक्टर ’बिट्टू बॉस’ की भी कास्टिंग् कर रहे थे। कई राउन्ड्स ऑडिशन होने के बाद मेरा सेलेक्शन हो गया इस फ़िल्म के लिए।


’बिट्टू बॉस’ का दृश्य
और इस तरह से आप छोटे परदे से बड़े परदे पर आ गए?

जी हाँ!

’बिट्टू बॉस’ फ़िल्म में आपके किरदार के बारे में कुछ बताइए।

इस फ़िल्म में मैंने एक पंजाबी wedding videographer बिट्टू का रोल किया था, यानी कि जो शादी के विडियोज़ शूट करता है। किस तरह से वो अपनी चारों तरफ़ ख़ुशियाँ फैलाता है, कैसे एक लड़की से प्यार होने पर उसकी ज़िन्दगी बदल जाती है, ये सब कुछ मिला कर है इस फ़िल्म की कहानी।

इस फ़िल्म को लेकर विवाद भी खड़ा हुआ था, उसके बारे में बताइए?

सेन्सर बोर्ड ने इस फ़िल्म का प्रोमो रीजेक्ट कर दिया था। प्रोमो में सबकुछ कैमरामैन के कैमरे से दिखाया गया था, जिसमें शादी में आए महमान कैमरामैन से कहते हैं कि "मेरी भी लो" जिसका डबल मीनिंग् भी होता है। वैसे ही गाने में बोल थे "बिट्टू सबकी लेगा"। ये सब देख कर सेन्सर बोर्ड ने फ़िल्म के प्रोमो को अश्लील करार देते हुए इसे रद्द कर दिया। उस गीत को भी रद्द कर दिया। अन्त में PG Certification के साथ फ़िल्म को मुक्ति मिली। यहाँ मैं बताना चाहूँगा कि भारत में PG certificate वाला यह पहला फ़िल्म है, जिसका अर्थ है 15 वर्ष के उपर के लोग इसे देख सकते हैं अपने अभिभावक की उपस्थिति में।


अपने ’भाई’ के साथ
पर यह फ़िल्म असफल रही?

जी हाँ, बॉक्स ऑफ़िस पर फ़िल्म पिट गई। भाई ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि "आज भले मैं एक ऊँचे मुकाम पे हूँ, पर हर शुक्रवार हमारी ज़िन्दगी बदल सकता है। बड़े-बड़े अभिनेताओं को भी फ़्लॉप का सामना करना पड़ता है। इसलिए फ़िल्म के नतीजे से परेशान मत हुआ करो। इमानदारी से अपना काम करते रहो और यही तुम्हे एक दिन पार लगाएगा।" उनकी इस बात को मैं हमेशा ध्यान में रखता हूँ।

आपने "भाई" का ज़िक्र किया, कौन है ये भाई?

सलमान भाई, सलमान ख़ान! 

अच्छा अच्छा! जी हाँ, हमने भी सुना है आपके और सलमान ख़ान के रिश्ते के बारे में। आप बहुत अच्छा नकल भी उतारते हैं उनकी, उनके मैनरिज़्म्स की। तो बताइए सलमान ख़ान से आपका क्या रिश्ता है?

आप मुझे उनका साला कह सकते हैं। मेरी पत्नी श्वेता उनकी "राखी बहन" है। श्वेता एक सिंधी लड़की है जो मुंबई में अपना बूटिक़ चलाती है। पर जब मैं उससे मिला था तब वो एक पत्रकार थीं जो मेरा इन्टरव्यू लेने आई थी जब मैं ’क्योंकि...’ कर रहा था। हम दोस्त बन गए और जल्द ही एक दूसरे को पसन्द करने लगे। श्वेता जब छोटी थी, तब वो सलमान भाई के घर ज़बरदस्ती घुस गई। जब सलमा आन्टी नीचे आईं तो उनसे कहा कि मैं सलमान को राखी बाँधना चाहती हूँ। भाई नीचे आए और श्वेता से पूछा कि क्या तुम राखी बाँधने वाली बात पे गम्भीर हो? उनका यह कहना था कि अगर वो एक बार राखी बाँधेगी तो हर साल बाँधना पड़ेगा क्योंकि वो रिश्तों को सदा कायम रखने में विश्वास करते हैं। उन्होंने श्वेता से कहा कि अगर तुम यह नहीं कर सकती तो राखी मत बाँधो। और उस दिन से लेकर आज तक वो हर साल भाई को राखी बाँधती चली आ रही है।

तो अपने भाई से आपकी मुलाक़ातें होती रहती हैं?

जब भी वो शहर में होते हैं। हम कभी भी उनके घर जा सकते हैं। पूरी दुनिया उनसे प्यार करती है। हम ख़ुशनसीब हैं कि भाई भी हमसे प्यार करते हैं। उनके पास एक नहीं पर चार-चार दिल है। He is one of the best human beings that I have seen, इसलिए नहीं कि वो एक स्टार हैं, बल्कि इसलिए कि एक स्टार होने के बावजूद इतने ज़्यादा सीधे हैं और उनके पाँव हमेशा ज़मीन पर ही रहते हैं। उन्हें सादा जीवन पसन्द है। अगर आप उन्हें एक छोटी गाड़ी में बिठा दो, तो भी वो कुछ नहीं कहेंगे। वो 24x7 फ़िल्मों के बारे में सोचते रहते हैं। लोगों को यह लगता है कि वो सेट पर देर से आते हैं वगेरह वगेरह, पर सच पूछिये तो वो सिर्फ़ फ़िल्मों की ही बातें करते हैं, फ़िल्मों से ही उनकी साँसें चलती हैं।

आपके अभिनय के बारे में कभी उन्होंने कोई टिप्पणी की?

’बिट्टू बॉस’ में मेरा डान्स उनको अच्छा लगा और मुझसे उनकी बहुत सी आशाएँ हैं। मैं कोशिश करूँगा कि उनकी इस उम्मीद पर खरा उतर सकूँ। अतुल अग्निहोत्री की ’ओ तेरी’ फ़िल्म में उन्होंने ही मुझे मौका दिलवाया अभिनय का।

बहुत ख़ूब! ’क्योंकि सास...’ और ’बिट्टू बॉस’ - एक टेलीविज़न, दूसरी फ़िल्म। किस तरह का फ़र्क आपने महसूस किया दोनो में?

फ़र्क सिर्फ़ स्केल और डीटेलिंग् का है। दोनों माध्यमों की अपनी लाभ और हानियाँ हैं। टेलीविज़न को हमेशा फ़िल्मों की ज़रूरत पड़ेगी ग्लैमर के लिए, और फ़िल्मों को टीवी की ज़रूरत पड़ती रहेगी पब्लिसिटी के लिए, प्रोमोशन के लिए। मुझे दोनों माध्यमों में काम करने में रुचि है, पर यह सच है कि हर कोई सर्वोच्च शिखर पर चढ़ना चाहता है, और मैं उसी कोशिश में लगा हूँ। मुझे प्रतीक्षा रहेगी यह जानने की कि दर्शक मुझे टेलीविज़न पर स्वीकार करती है या फ़िल्मों में।


’फ़ुकरे’ का दृश्य
पुलकित, ’बिट्टू बॉस’ के बाद आपकी दूसरी फ़िल्म आई ’फ़ुकरे’। इसका ऑफ़र कैसे मिला आपको?

रितेश सिधवानी ने ’बिट्टू बॉस’ के किसी डान्स नंबर को देखा और मुझे ’फ़ुकरे’ की ऑडिशन के लिए बुलाया। फ़रहान और रितेश को मुझ पर भरोसा था और यह रोल मुझे मिल गया।

’फ़ुकरे’ में और भी कई चेहरे नज़र आए, आपके रोल के बारे में कुछ बताइए।

मैंने इसमें हनी नाम के लड़के का रोल किया जो एक बेकार लड़का है, वेला जिसे कहते हैं पंजाबी में। वह सुबह घर से निकल जाता है और वापस सिर्फ़ सोने के लिए आता है। वह सोचता है कि वह ग़लत घर में पैदा हो गया जबकि उसे टाटा या बिरला परिवार में पैदा होना चाहिए था। स्कूल में पहली कक्षा से ही फ़ेल होता आया है पर उसे कॉलेज जाने की इच्छा है जहाँ वह लड़कियों के साथ घूमने और मस्ती करने के सपने देखता है। वह हमेशा कोई ना कोई प्लान बनाता रहता है पैसे कमाने का, और एक दिन अपने दोस्त चूचा की एक अद्वितीय क्षमता का इस्तेमाल करके एक प्लान बनाता है जो उसे अपनी कब्र की ओर लिए जाता है।

इस फ़िल्म में आपका दिल्ली उच्चारण अलग हट के था। कैसे तैयारी की थी इसकी?

इस फ़िल्म में भाषा एक चिन्ता की विषय ज़रूर थी क्योंकि यह पूरी तरह से दिल्ली की भाषा नहीं थी, बल्कि पूर्वी दिल्ली की भाषा थी। इसमें एक स्पीच पैटर्ण होती है। इसलिए मैं पूर्वी दिल्ली के एक म्युनिसिपल स्कूल में गया, और वहाँ जाकर देखा कि वो लोग वही सब कर रहे थे जो हम फ़िल्म में दिखाने वाले थे। दीवारों पर से कूदना, क्लासेस बंक करना, कभी सटीक यूनिफ़ॉर्म में न रहना वगेरह। वहाँ एक क्लास था जहाँ स्कूल के रेज़ल्ट बताए जा रहे थे, और जिसने भी पास नहीं किया, उसे क्लास से बाहर भेजा जा रहा था। रेज़ल्ट घोषणा के ख़त्म होने के बाद उस क्लास में केवल दो ही लड़के अन्दर बैठे हुए थे। पूरी क्लास बाहर थी। मैं उसी तरह का किरदार निभा रहा था। मेरे लिए वहाँ जाना बहुत ही लाभदायक सिद्ध हुआ। फ़िल्म के सेट पर भी इन किरदारों को निभाते हुए हमने जो जो चीज़ें की, ’फ़ुकरे’ के बाद अगर अब मुझे नंगा होकर सड़क पर दौड़ने के लिए कहोगे तो मुझे कोई झिझक नहीं होगी (हँसते हुए)।


’ओ तेरी’ का दृश्य
’फ़ुकरे’ के बाद आई ’ओ तेरी’, जो अतुल अग्निहोत्री की फ़िल्म थी और इस फ़िल्म के पीछे सलमान ख़ान का भी हाथ था। यानी कि पूरी तरह से यह आपकी पारिवारिक फ़िल्म जैसी थी। इस फ़िल्म के बारे में बताइए कुछ?

इस फ़िल्म में यही दिखाने की कोशिश की गई है कि मीडिया के हाथ काफ़ी लम्बे होते हैं। इसमें मेरे साथ बिलाल अमरोही ने भी काम किया, हम दोनो ने टीवी जर्नलिस्ट के किरदार निभाए। हमने बहुत मस्ती किए शूटिंग् के दौरान। लेकिन यह फ़िल्म चल नहीं पाई।

पुलकित, अब तक जितनी भी फ़िल्मों की चर्चा हमने की, किसी में भी आप सोलो हीरो नहीं थे। क्या आप अब सोलो-हीरो वाली फ़िल्म में अभिनय करने का प्रयास कर रहे हैं?

जी नहीं, बल्कि मैं एक ऐसी फ़िल्म की तलाश में हूँ जिसकी कहानी फ़िल्म का हीरो है। आप समझ रहे होंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूँ।

जी जी, मतलब कहानी में दम होनी चाहिए।

मुझे लगता है कि मैं अब तक अपनी प्रधान गुण (forte) को खोज नहीं पाया हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि मुझे अपने आप को अभी और दो तीन साल देने होंगे ताकि मैं यह भाँप सकूँ कि एक अभिनेता के कौन कौन से गुण मेरे अन्दर है और किस जौनर में मुझे जाना चाहिए। अभी के लिए मुझे जो भी रोल मिलता है मुझे उसे पूरी इमानदारी के साथ निभाना है और कहानी का हिस्सा बनना है।


'डॉली की डोली’ में पुलकित दिखे चुलबुल पाण्डे जैसे
इस साल 2015 में आपकी अब तक दो फ़िल्में आ चुकी हैं - ’डॉली की डोली’ और ’बंगिस्तान’। पहली फ़िल्म के बारे में बताइए।

’डॉली की डोली’ भी एक कॉमेडी-ड्रामा फ़िल्म थी, जिसमें मुझे सोनम कपूर के साथ काम करने का मौक़ा मिला। इसमें मैंने एक सख़्त पुलिसवाले का किरदार निभाया था। मेरा जो गेट-अप था, लोगों को लगा कि वो भाई के चुलबुल पाण्डे से मिलता-जुलता है। 

’बंगिस्तान’ में आपने रितेश देशमुख के साथ काम किया। उस अनुभव के बारे में बताइए?


रितेश बहुत ही मज़ाक़िया मिज़ाज के हैं। उनका सेन्स ऑफ़ ह्युमर कमाल का है। पर शुरु में मुझे उनके साथ काम करने में थोड़ा डर लग रहा था क्योंकि वो मुझसे काफ़ी सीनीयर हैं। इसलिए मैं सोचता था कि पता नहीं वो कैसे मेरे साथ पेश आएँगे, कैसे मैं उनक्से साथ काम करूँगा वगेरह वगेरह। जब पहली बार हम मिले तो मैंने कुछ नहीं बोला। रीतेश ने ही पहले ’हैलो’ कह कर दोनों के बीच के बर्फ़ को तोड़ा, he made me the most comfortable. वो अपने आइडियाज़ देते थे कि 'let's do something’, हमलोग वर्कशॉप्स करते थे और इतने ज़्यादा मस्ती करते थे कि दोनों के बीच फिर कोई दीवार नहीं रह गई थी और दोनों एक दूसरे के सामने ऐसे खुल गए थे कि वही बात फ़िल्म के परदे पर भी नज़र आई है। 

’बंगिस्तान’ फ़िल्म के बारे में कुछ बताइए?


’बंगिस्तान’ का दृश्य
करण अंशुमन निर्देशित यह पहली फ़िल्म है, जो एक व्यंगात्मक फ़िल्म है दो स्खलित उग्रवादियों के जीवन पर आधारित। बंगिस्तान के दो प्रान्तों से आए हुए दो युवकों की यह कहानी है। रीतेश द्वारा अभिनीत चरित्र उत्तर बंगिस्तान से आता है, जो एक मुसलमान है और मैंने प्रवीण चतुर्वेदी का चरित्र निभाया है जो आता है दक्षिण बंगिस्तान से। हम दोनों अपने अपने विचारों और उसूलों के पक्के हैं और इसी बात का हम दोनों के अपने-अपने कट्टरपंथी उग्रवादी दल फ़ायदा उठाते हैं। 

पुलकित, भले आपको फ़िल्मों में अब तक बहुत बड़ी सफलता नहीं मिली है, पर एक बात जो सराहनीय है, वह यह कि आपने हर फ़िल्म में एक नई भूमिका अदा की है जिसे लोगों ने पसन्द किया है। 

जी शुक्रिया!


’भाई’ के नक्श-ए-क़दम पर चल रहे हैं पुलकित
अब बात करते हैं आपके आने वाली फ़िल्म ’सनम रे’ के बारे में, जिसका फ़र्स्ट लूक रीलीज़ हो चुका है। इसमें पहली बार आपने कमीज़ उतार कर अपनी बॉडी दिखाई है। मीडिया में यह चर्चा है कि आप अगले सलमान ख़ान के रूप में उभर कर सामने आने वाले हैं। क्या ख़याल है आपका इस बारे में?

सनम रे’ के लिए मैंने अपनी बॉडी को बहुत मेहनत से तैयार किया है। इसके पीछे भाई का इन्स्पिरेशन तो है ही। लेकिन भाई के साथ मेरा नाम जोड़ना ठीक नहीं। उनकी कोई बराबरी नही कर सकता।

फिर भी आपका जो लूक इस फ़िल्म के लिए दिया गया है, उसे देख कर सलमान ख़ान के शुरुआती दिनों की याद आ जाती है।

यह सुन कर बहुत अच्छा लगा, वैसे यह आपकी बस एक ख़ूबसूरत ग़लतफ़हमी है।


'सनम रे’ का दृश्य
इस सीन में आप एक लेक में नाव के उपर खड़े दिखते हैं। कहाँ फ़िल्माया गया है यह सीन?

यह लदाख का वही पैंगॉंग् लेक है जहाँ ’3 Idiots' फ़िल्म में करीना कपूर ने आमिर ख़ान को चूमा था। इस सीन को जब हम शूट कर रहे थे तो तापमान शून्य से नीचे था, इस कड़ाके की ठंड में बिना कमीज़ पहने इस सीन को हमने शूट किया।

’सनम रे’ दिव्या खोसला कुमार की फ़िल्म है। उनकी पहली फ़िल्म ’यारियाँ’ ने बॉक्स ऑफ़िस पर कमाल किया था, कैसी उमीदें हैं आपकी इस फ़िल्म से?

दिव्या ने जिस तरह से अपनी पहली फ़िल्म को ट्रीट किया था, मुझे वह बहुत पसन्द आया। 2014 की एक बहुत बड़ी हिट फ़िल्म थी ’यारियाँ’। मुझे बहुत ज़्यादा ख़ुशी है कि इस प्रेम-कहानी ’सनम रे’ का मैं हिस्सा हूँ, और यह मेरी पहली मच्योर लव-स्टोरी जौनर की फ़िल्म है। मेरी नायिका इस फ़िल्म में यामी गौतम हैं जो एक अच्छी अभिनेत्री हैं, और मैं उम्मीद करता हूँ कि हमारी जोड़ी कामयाब रहेगी और दर्शकों को हमारी जोड़ी पसन्द आएगी। बहुत ज़्यादा उम्मीदें हैं इस फ़िल्म से। अगले साल वलेन्टाइन डे पर यह फ़िल्म रिलीज़ होने जा रही है।

और कौन कौन सी फ़िल्में आपकी आने वाली है अगले साल?

’सनम रे’ के अलावा तीन और फ़िल्में हैं - ’जुनूनियत’, ’बादशाहो’, और ’थ्री स्टोरीज़’। इसमें ’बादशाहो’ मिलन लुथरिया की निर्देशित फ़िल्म है, भूषण कुमार निर्मित फ़िल्म है, जिसमें अजय देवगन साहब का लीड रोल है। ’जुनूनियत’ भी भूषण साहब की ही फ़िल्म है और उसमें भी यामी गौतम मेरी हीरोइन है।

फ़िल्मों के अलावा ख़ाली समय में क्या करना पसन्द करते हैं? आपके शौक़ क्या-क्या हैं?

जादू (मैजिक) और अभिनय, ये दो मेरे पैशन रहे हैं। मुझे जादू, माया, उत्तोलन, मस्तिष्क-पठन, और ताश के खेल में हाथ की सफ़ाई दिखाना बहुत अच्छा लगता है। एक समय था जब मैं अपने मोहल्ले में मैजिक शो दिखाना चाहता था। बचपन से ही मुझे जादू में दिलचस्पी है। दिल्ली के दिवाली के मेलों में घूम घूम कर तरह तरह की किताबें खोजता रहता था जादू वाले। यहाँ तक कि देश-विदेश के जादूगरों को ख़त भी लिखता था उनकी किताबों को पढ़ने के बाद। मुझे बहुत उत्तेजक लगता है जादू, और मैं यह चाहता हूँ कि एक दिन मैं ज़रूर अपनी जादूई दुनिया में वापस जा सकूँगा।

वाह! बहुत ख़ूब! अच्छा खाने में क्या पसन्द करते हैं?

वैसे तो सबकुछ खाता है, वेज और नॉन-वेज। घर का बना खाना प्रेफ़र करता हूँ। राजमा-चावल मुझे ख़ास पसन्द है।

पुलकित, आपने इतना समय हमें दिया, इतनी सारी बातें की, आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आपकी आने वाली फ़िल्म ’सनम रे’ सफल हो, आप शोहरत की बुलन्दियों को छुयें, यह कामना हम करते हैं। एक बार फिर, बहुत बहुत शुक्रिया और शुभकामनाएँ!

आपका बहुत बहुत शुक्रिया!



आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमे अवश्य बताइएगा। आप अपने सुझाव और फरमाइशें ई-मेल आईडी soojoi_india@yahoo.co.in पर भेज सकते है। अगले माह के चौथे शनिवार को हम एक ऐसे ही चर्चित अथवा भूले-विसरे फिल्म कलाकार के साक्षात्कार के साथ उपस्थित होंगे। अब हमें आज्ञा दीजिए। 



प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 





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स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

खमाज थाट के राग : SWARGOSHTHI – 216 : KHAMAJ THAAT

स्वरगोष्ठी – 216 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 3 : खमाज थाट   ‘कोयलिया कूक सुनावे...’ और ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय मे...