रवीन्द्र जैन को श्रद्धांजलि
’तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी’ विशेष
"मन की आँखें हज़ार होती हैं"
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रवीन्द्र जैन ने एक साक्षात्कार में बताया था कि उन्हें कभी भी अपने नेत्रहीनता पर अफ़सोस नहीं हुआ। उन्हीं के शब्दों में, "मैं जानता हूँ कि दुनिया में हर आदमी किसी ना किसी पहलू से विकलांग है, चाहे वो शरीर से हो, मानसिक रूप से हो या कोई अभाव जीवन में हो। विकलांगता का मतलब यह नहीं कि शारीरिक असुविधा है, कहीं ना कहीं लोग मोहताज हैं, अपाहिज हैं, और उसी पर विजय पाना है। उससे निराश होने की ज़रूरत नहीं है। disability can be your ability also, उससे आपकी क्षमता दुगुनी हो जाती है।"
और यही संदेश उन्होंने एक बार अंध-विद्यालय के छात्रों को भी दिया। उन्हें एक बार एक ब्लाइन्ड स्कूल में मुख्य अतिथि के रूप में आमन्त्रित किया गया। जब उन्हें बच्चों को संबोधित करने को कहा गया, तो उन्होंने संदेश के रूप में यह कविता पढ़ी...
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मन की आँखें हज़ार होती हैं
तन की आँखें तो सो ही जाती हैं
मन की आँखें कभी ना सोती हैं।
चाँद सूरज के हैं जो मोहताज
भीख ना माँगो उन उजालों से,
बन्द आँखों से तुम वो काम करो
आँख खुल जाए आँख वालों की।
हैं अन्धेरे बहुत सितारे बनो
दूसरों के लिए किनारे बनो,
है ज़माने में बेसहारे बहुत
तुम सहारे ना लो, सहारे बनो।
’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ रवीन्द्र जैन जी को दिल से करती है सलाम और उन्हें देती है अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि! रवीन्द्र जैन के अर्थपूर्ण गीत और पवित्र रचनाएँ हमेशा हमेशा लोगों के मन को शुद्ध करती रहेंगी।
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