एक गीत सौ कहानियाँ - 51
‘महलों का राजा मिला कि रानी बेटी राज करेगी...’
हिन्दी फ़िल्म संगीत जगत में कई संगीतकार ऐसे हुए हैं जो अपनी अप्रतिम प्रतिभा के बावजूद बहुत ज़्यादा अन्डर-रेटेड रहे। एक से एक बेहतरीन रचना देने के बावजूद इंडस्ट्री और पब्लिक ने उनकी तरफ़ उतना ध्यान नहीं दिया जितना कुछ गिने-चुने और "सफल" संगीतकारों की तरफ़ दिया करते थे। ऐसे एक अन्डर-रेटेड संगीतकार थे रोशन। 40 के दशक में रोशन साहब की प्रतिभा और कला से प्रभावित होकर निर्माता-निर्देशक और संगीतकार ख़्वाजा ख़ुर्शीद अनवर, जो बाद में देश-विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गये थे, उन्होंने रोशन को All India Radio Delhi में नौकरी दिलवा दी बतौर इन्स्ट्रूमेण्टलिस्ट। और वहीं रोशन साहब की मुलाक़ात हुई कलकत्ता की इरा मोइत्रा से। इरा जी उनके साथ ही काम करने लगीं। दोनों ही कला और संगीत के प्रेमी थे। ऐसे में दोनो का एक दूसरे के निकट आना, प्रेम का पुष्प खिलना बहुत ही प्राकृतिक और सामान्य बात थी। रोशन और इरा के बीच प्यार हो गया और दोनो ने विवाह कर लिया। विवाह के बाद रोशन साहब मुम्बई (तब बम्बई) आ गये और ख़्वाजा ख़ुर्शीद अनवर के साथ म्युज़िक ऐसिस्टैन्ट के रूप में काम करने लगे। एक लम्बे संघर्ष और कई चुनौतियों को पार करने के बाद उन्हें स्वतंत्र फ़िल्में मिलने लगी। जिन फ़िल्मों में संगीत देकर उन्होंने हिन्दी फ़िल्म संगीत संसार में अपने नाम की छाप छोड़ दी, वो फ़िल्में थीं 'बावरे नैन', 'बरसात की रात', 'आरती', 'ताज महल', 'ममता', 'बहू बेग़म', 'दिल ही तो है', 'दूज का चाँद', 'चित्रलेखा', 'भीगी रात', 'देवर' और 'अनोखी रात'। रोशन ने लगभग 94 फ़िल्मों में स्वतंत्र रूप से संगीत दिया और उसके अलावा भी कई ऐसी फ़िल्में की जिनमें उन्होंने दो या तीन गीतों का संगीत तैयार किया जब कि उन फ़िल्मों में कोई और मुख्य संगीतकार थे।
रोशन दम्पति |
राजेश रोशन |
फिल्म - अनोखी रात : 'महलों का राजा मिला कि रानी बेटी राज करेगी...' : लता मंगेशकर : संगीत - रोशन : गीत - कैफी आज़मी
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आभार.