स्वरगोष्ठी – 201 में आज
मंगलध्वनि और राग भैरवी
मंगलवाद्य शहनाई-वादन से नववर्ष का अभिनन्दन
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक
स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का नए वर्ष के पहले अंक
में हार्दिक अभिनन्दन है। इसी 201वें अंक से आपका प्रिय स्तम्भ
‘स्वरगोष्ठी’ पाँचवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। विगत चार वर्षों से हमें
असंख्य पाठकों, श्रोताओं, संगीत शिक्षकों और वरिष्ठ संगीतज्ञों का प्यार,
दुलार और मार्गदर्शन इस स्तम्भ को मिलता रहा है। इन्टरनेट पर शास्त्रीय,
उपशास्त्रीय, लोक और सुगम संगीत विषयक चर्चा का सम्भवतः यह एकमात्र नियमित
साप्ताहिक स्तम्भ है, जो विगत चार वर्षों से निरन्तरता बनाए हुए है। इस
पुनीत अवसर पर मैं कृष्णमोहन मिश्र, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक
मण्डल के सभी सदस्यों- सजीव सारथी, सुजॉय चटर्जी, अमित तिवारी, अनुराग
शर्मा, विश्वदीपक और संज्ञा टण्डन के प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ, जिनकी
आहुतियाँ भी इस यज्ञ में होती हैं। आज पाँचवें वर्ष के इस प्रवेशांक में हम
आपसे इस साप्ताहिक स्तम्भ के आरम्भ की कुछ स्मृतियों को बाँटेंगे। इसके
साथ ही आज के इस अंक में शुभ अवसरों पर परम्परागत रूप से बजने वाले
मंगलवाद्य शहनाई का वादन भी प्रस्तुत करेंगे। वादक हैं, भारतरत्न के
सर्वोच्च अलंकरण से विभूषित उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और राग है सर्वप्रिय
भैरवी। इसके अलावा राग भैरवी के स्वरों में पिरोया एक अर्थपूर्ण फिल्मी गीत
भी प्रस्तुत करेंगे, जिसे सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पण्डित राजन मिश्र ने
गाया है।
ठीक चार वर्ष पूर्व ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ संचालक मण्डल के प्रमुख सदस्य सुजॉय चटर्जी ने रविवार, 2 जनवरी 2011 को इस स्तम्भ का शुभारम्भ किया था। आरम्भ में यह ‘हिन्दयुग्म’ के ‘आवाज़’ मंच पर हमारे अन्य नियमित स्तम्भों के साथ प्रकाशित हुआ करता था। उन दिनों इस स्तम्भ का शीर्षक ‘सुर संगम’ था। दिसम्बर 2011 से हमने ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ नाम से एक नया मंच बनाया और पाठकों के अनुरोध पर जनवरी 2012 से इस स्तम्भ का शीर्षक ‘स्वरगोष्ठी’ हो गया। तब से हम आपसे निरन्तर यहीं मिलते हैं। समय-समय पर आपसे मिले सुझावों के आधार पर हम अपने सभी स्तम्भों में संशोधन भी करते रहते हैं। इस स्तम्भ के प्रवेशांक में सुजॉय जी ने इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला था। उन्होने लिखा था-
“नये साल के इस पहले रविवार की सुहानी सुबह में मैं, सुजॊय चटर्जी, आप सभी का 'आवाज़' पर स्वागत करता हूँ। यूँ तो हमारी मुलाक़ात नियमित रूप से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर होती रहती है, लेकिन अब से मैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अलावा हर रविवार की सुबह आपसे मुख़ातिब रहूँगा इस नये स्तम्भ में जिसकी हम आज से शुरुआत कर रहे हैं। दोस्तों, प्राचीनतम संगीत की अगर हम बात करें तो वो है हमारा शास्त्रीय संगीत, जिसका उल्लेख हमें वेदों में मिलता है। चार वेदों में सामवेद में संगीत का व्यापक वर्णन मिलता है। इन वैदिक ऋचाओं को सामगान के रूप में गाया जाता था। फिर उससे 'जाति' बनी और फिर आगे चलकर 'राग' बनें। ऐसी मान्यता है कि ये अलग-अलग राग हमारे अलग-अलग 'चक्र' (ऊर्जा विंदु) को प्रभावित करते हैं। ये अलग-अलग राग आधार बनें शास्त्रीय संगीत का और युगों-युगों से इस देश के सुरसाधक इस परम्परा को निरन्तर आगे बढ़ाते चले जा रहे हैं, हमारी संस्कृति को सहेजते हुए बढ़े जा रहे हैं। संगीत की तमाम धाराओं में सब से महत्वपूर्ण धारा है शास्त्रीय अर्थात रागदारी संगीत। बाकी जितनी तरह का संगीत है, उन सबसे उच्च स्थान पर है अपना रागदारी संगीत। तभी तो संगीत की शिक्षा का अर्थ ही है शास्त्रीय संगीत की शिक्षा। अक्सर साक्षात्कारों में कलाकार इस बात का ज़िक्र करते हैं कि एक अच्छा गायक या संगीतकार बनने के लिए शास्त्रीय संगीत का सीखना बेहद ज़रूरी है। तो दोस्तों, आज से 'आवाज़' पर पहली बार एक ऐसा साप्ताहिक स्तम्भ शुरु हो रहा है जो समर्पित है, भारतीय परम्परागत शास्त्रीय संगीत को। गायन और वादन, यानी साज़ और आवाज़, दोनों को ही बारी-बारी से इसमें शामिल किया जाएगा। भारतीय संगीत से इस स्तम्भ की हम शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन आगे चलकर अन्य संगीत शैलियों को भी शामिल करने की उम्मीद रखते हैं।...”
तो यह सन्देश हमारे इस स्तम्भ के प्रवेशांक का था। ‘स्वरगोष्ठी’ की कुछ और पुरानी यादों को ताज़ा करने से पहले आज का चुना हुआ संगीत सुनते हैं। आज ‘स्वरगोष्ठी’ पाँचवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इस पावन अवसर पर मंगल वाद्य शहनाई का वादन प्रस्तुत कर रहे हैं। इस अंक में हम देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई पर राग भैरवी प्रस्तुत कर रहे हैं।
मंगलध्वनि : राग भैरवी : शहनाई वादन : उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ
हमारे दल के सर्वाधिक कर्मठ साथी सुजोय चटर्जी ने ‘स्वरगोष्ठी’ स्तम्भ की नीव रखी थी। उद्देश्य था- शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत-प्रेमियों को एक ऐसा मंच देना जहाँ किसी कलासाधक, प्रस्तुति अथवा किसी संगीत-विधा पर हम आपसे संवाद कायम कर सकें और आपसे विचारों का आदान-प्रदान कर सकें। आज के 201वें अंक के माध्यम से हम कुछ पुरानी स्मृतियों को ताज़ा कर रहे हैं। जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है कि इस स्तम्भ की बुनियाद सुजॉय चटर्जी ने रखी थी और आठवें अंक तक अपने आलेखों के माध्यम से अनेक संगीतज्ञों की कृतियों से हमें रससिक्त किया था। नौवें अंक से हमारे एक नये साथी सुमित चक्रवर्ती हमसे जुड़े और आपके अनुरोध पर उन्होने शास्त्रीय, उपशास्त्रीय संगीत के साथ लोक संगीत को भी ‘सुर संगम’ से जोड़ा। सुमित जी ने इस स्तम्भ के 30वें अंक तक आपके लिए बहुविध सामग्री प्रस्तुत की, जिसे आप सब पाठकों-श्रोताओं ने सराहा। इसी बीच मुझ अकिंचन को भी कई विशेष अवसरों पर कुछ अंक प्रस्तुत करने का अवसर मिला। सुमित जी की पारिवारिक और व्यावसायिक व्यस्तता के कारण 31वें अंक से ‘सुर संगम’ का पूर्ण दायित्व मेरे मित्रों ने मुझे सौंपा। मुझ पर विश्वास करने के लिए अपने साथियों का मैं आभारी हूँ। साथ ही अपने पाठकों-श्रोताओं का अनमोल प्रोत्साहन भी मुझे मिला, जो आज भी जारी है।
पिछले 200 अंकों में ‘स्वरगोष्ठी’ से असंख्य पाठक, श्रोता, समालोचक और संगीतकार जुड़े। हमें उनका प्यार, दुलार और मार्गदर्शन मिला। उन सभी का नामोल्लेख कर पाना सम्भव नहीं है। ‘स्वरगोष्ठी’ का सबसे रोचक भाग प्रत्येक अंक में प्रकाशित होने वाली ‘संगीत पहेली’ है। इस पहेली में गत वर्ष के दौरान लगभग बारह संगीत-प्रेमियों ने सहभागिता की, जिनमें से चार प्रतिभागी नियमित थे। सभी प्रतिभागियों के पूरे वर्ष भर के प्राप्तांकों की गणना जारी है। अगले अंक में हम प्रथम तीन विजेताओं की घोषणा करेंगे। इस अंक में हम राग भैरवी पर चर्चा कर रहे हैं। राग भैरवी में ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद सभी कोमल स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। राग भैरवी के आरोह स्वर हैं, सा, रे॒ (कोमल), ग॒ (कोमल), म, प, ध॒ (कोमल), नि॒ (कोमल), सां तथा अवरोह के स्वर, सां, नि॒ (कोमल), ध॒ (कोमल), प, म ग (कोमल), रे॒ (कोमल), सा होते हैं। यूँ तो इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल, सन्धिप्रकाश बेला में है, किन्तु आम तौर पर इसका गायन-वादन किसी संगीत-सभा अथवा समारोह के अन्त में किये जाने की परम्परा बन गई है। आइए, इसी राग के स्वरों में निबद्ध एक फिल्मी गीत सुनते हैं। यह गीत हमने 1985 की फिल्म ‘सुर संगम’ से लिया है। फिल्म के संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल और गीतकार बसन्त देव हैं। राग भैरवी पर आधारित जो गीत हम प्रस्तुत कर रहे हैं, उसे सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित राजन मिश्र ने स्वर दिया है। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग भैरवी : ‘धन्यभाग सेवा का अवसर पाया...’ : फिल्म सुर संगम : पण्डित राजन मिश्र और कविता कृष्णमूर्ति
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 201 अंक की पहेली में आज
हम आपको किसी गीत या संगीत का अंश नहीं सुनवा रहे हैं। आज की पहेली के
दोनों प्रश्न ऊपर सुनवाए गए मंगलवाद्य शहनाई से सम्बन्धित है। उपरोक्त
शहनाई वादन को एक बार पुनः ध्यान से सुनिए। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो
प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 210 के सम्पन्न होने तक जिस
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2015 की इस पहली श्रृंखला
(सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1
– इस वाद्य संगीत को सुन कर क्या आपको किसी लोकप्रिय भक्ति-गीत की प्रचलित
धुन का अनुभव हो रहा है? यदि हाँ, तो उस गीत की आरम्भिक पंक्ति बताइए।
2 – यह भी बताइए कि यह भक्ति-काल के किस कवि / कवयित्री की रचना है?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 10 जनवरी, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 203वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 199वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1981 में प्रदर्शित फिल्म ‘कुदरत’ के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग भैरवी और पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका विदुषी परवीन सुल्ताना। इस बार की पहेली में पूछे गए दोनों प्रश्नो के सही उत्तर पूर्व की भाँति जबलपुर से क्षिति तिवारी, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और पेंसिलवानिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ ने इस अंक के साथ पाँचवें वर्ष में प्रवेश किया है। नए वर्ष में हम आपके लिए कुछ नई श्रृंखलाएँ लेकर उपस्थित हो रहे हैं। हमारी आगामी श्रृंखलाएँ आपके सुझावों पर आधारित है। यदि आपने अभी तक अपने सुझाव और फरमाइश नहीं भेजी हैं तो आविलम्ब हमें भेज दें। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। अगले अंक भी हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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हार्दिक मंगलकामनाएं!
Sujoy Chatterjee