एक गीत सौ कहानियाँ - 49
‘तुझे देखा तो यह जाना सनम...’
हिन्दी सिनेमा के इतिहास के सुनहरे पन्नों में जिन फ़िल्मों का शुमार होता है, उनमें से एक हैं ’दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’, जिसे हम और आप प्यार से DDLJ कह कर बुलाते हैं। 1995 में प्रदर्शित इस फ़िल्म ने आज 1000 सप्ताह पूरे कर लिए हैं मुम्बई के ’मराठा मन्दिर’ सिनेमा घर में। पिछले 19 वर्षों से यह फ़िल्म लगातार हर रोज़ प्रदर्शित होती चली आई है इस थिएटर में जो अपने आप में एक रेकॉर्ड है। इस फ़िल्म की हर बात निराली है, हर पहलू सुपरहिट है, और उनमें संगीत भी एक ख़ास महत्व है। यूँ तो यश चोपड़ा की फ़िल्मों का संगीत हमेशा से ही सर चढ़ कर बोलता रहा है, पर DDLJ के गीतों ने तो लोकप्रियता की सारी हदें पार कर दी है। फ़िल्म के सातों गीत सूपर-डूपर हिट और एक से बढ़ कर एक। इनमें से कौन सा गीत उपर है और कौन सा नीचे, यह तय पाना आसान काम नहीं है। भले ही फ़िल्म के संगीतकार जतिन-ललित के लिए यह फ़िल्म किसी वरदान से कम नहीं थी, पर दुर्भाग्यवश उस साल का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड ए. आर. रहमान की झोली में चला गया फ़िल्म ’रंगीला’ के लिए। DDLJ के अलावा अन्य नामांकन थे ’अकेले हम अकेले तुम’, ’राजा’ और ’करण अर्जुन’। पर जतिन-ललित को DDLJ के लिए लोगों का इतना ज़्यादा प्यार मिला कि जो हर पुरस्कार से बढ़ कर था। और हाल ही में BBC Asia ने एक मतदान करवाया जिसमें लोगों से सर्वश्रेष्ठ हिन्दी म्युज़िकल फ़िल्म के लिए अपना मत व्यक्त करने को कहा गया। इस मतदान के आख़िरी चरण में कुल 40 फ़िल्मों का चयन हुआ जिनमें ’मुग़ल-ए-आज़म’, ’तीसरी मंज़िल’, ’गाइड’, ’दिलवाले दुल्हनिआ ले जायेंगे’, ’कुछ कुछ होता है’ आदि फ़िल्में थीं, और जिस फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ म्युज़िकल फ़िल्म का ख़िताब मिला, वह फ़िल्म थी ’दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे।
यश चोपड़ा DDLJ से पहले की फ़िल्मों में संगीतकार शिव-हरि से संगीत तैयार करवा रहे थे। ’सिलसिला’, ’फ़ासले’, ’विजय’, ’लम्हे’, ’चाँदनी’ और ’डर’ जैसी फ़िल्मों में इनके संगीत थे। इन तमाम फ़िल्मों में या तो लोक धुनों पर आधारित गीतों की गुंजाइश थी या फिर इन फ़िल्मों के नायक-नायिका थोड़े से उम्रदराज़ थे, यानी कि थोड़े से वयस्क। लेकिन DDLJ की कहानी बिल्कुल अलग थी। इसमें नायक-नायिका बिल्कुल जवान, और यूरोप में पले बढ़े हैं; ऐसे में फ़िल्म का गीत-संगीत भी उसी अंदाज़ का होना चाहिए, इस बात को ध्यान में रखते हुए यश चोपड़ा ने संगीतकार जतिन-ललित को साइन करने का फ़ैसला किया। मेलडी में विश्वास रखने वाले यश जी जतिन-ललित के संगीत को सुन चुके थे और उस समय जतिन-ललित की जुबान पर मेलडियस संगीत चारों ओर धूम मचा रही थी। ’यारा दिलदारा’, ’जो जीता वही सिकन्दर’, ’खिलाड़ी’, ’राजू बन गया जेन्टलमैन’, और ’कभी हाँ कभी ना’ जैसी फ़िल्मों में सुपरहिट संगीत देकर जतिन-ललित शीर्ष के संगीतकारों की श्रेणी में जा बैठे थे। पर जब ’यशराज फ़िल्म्स’ की तरफ़ से उन्हें DDLJ में संगीत देने का मौका मिला तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा, जिसके दो मुख्य कारण थे। एक तो यह कि यश चोपड़ा की फ़िल्म में संगीत देना ही अपने आप में एक अहम सम्मान है, और दूसरा यह कि इस फ़िल्म में उन्हें लता मंगेशकर के साथ काम करने का मौका मिलेगा (लता जी के साथ जतिन-ललित की यह पहली फ़िल्म थी)। जतिन-ललित ने अपने एक इन्टरव्यू में यह कहा है कि इस फ़िल्म के गीतों को बनाते समय उन्होंने यह सोचा भी नहीं था कि ये गानें इतने ज़्यादा लोकप्रिय हो जायेंगे। फ़िल्म के सभी के सभी गीत कैसे इतने अच्छे बन गए यह उन्हें भी नहीं पता। ललित पंडित ने कहा है कि इस फ़िल्म के गीतों को पहले लिखा गया है और उसके बाद उनकी धुनें बनी हैं। गीतों के इन्टरल्यूड म्यूज़िक को रिचार्ड मित्र, अरेंजर बाबुल और ललित पंडित ने बनाया था।
और अब आते हैं "तुझे देखा तो यह जाना सनम..." पर। फ़िल्मी गीतों के इतिहास के सर्वश्रेष्ठ रोमान्टिक गीतों की सूची जब बनायी जाएगी तब उसमें इस गीत का ज़िक्र ज़रूर आएगा। गीतकार आनन्द बक्शी के सीधे-सच्चे शब्द लोगों के दिल में ऐसे उतर गए कि पिछले 19 सालों से निरन्तर सुनते रहने के बावजूद इस गीत से ऊबे नहीं। बक्शी साहब को इसी गीत के लिए उस साल सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला था। इससे पहले आनद बक्शी को केवल दो बार यह पुरस्कार मिला था - "आदमी मुसाफ़िर है" (अपनापन) और "तेरे मेरे बीच में" (एक दूजे के लिए) गीतों के लिए। DDLJ के लिए शाहरुख़ ख़ान के लिए उदित नारायण की आवाज़ तय हुई थी और अधिकांश गीतों में उदित की ही आवाज़ सुनाई दी है। पर दो गीत ऐसे हैं जिनमें अभिजीत और कुमार सानू की आवाज़ें हैं। "ज़रा सा झूम लूँ मैं" की मादकता को देखते हुए अभिजीत की आवाज़ ली गई, पर "तुझे देखा तो यह जाना सनम" के लिए उदित नारायण के स्थान पर कुमार सानू की आवाज़ को चुनने का निर्णय आश्चर्यपूर्ण है। दरसल बात ऐसी हुई कि इस गीत की शुरुआत "तुझे" शब्द से होती है और उदित नारायण का उच्चारण कुछ ऐसा है कि "झ" वाले शब्द कुछ-कुछ "ज्ह" जैसी सुनाई देती है (शायद उनके नेपाली होने की वजह से)। और क्योंकि शुरुआती मुखड़ा बिना किसी साज़ के शुरू होता है, ऐसे में उदित की आवाज़ में "तुझे" शब्द का उच्चारण ठीक ना होने की सम्भावना को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया कि गीत को कुमार सानू से गवा लिया जाए। वैसे उदित नारायण को "मेहन्दी लगाके रखना" गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कार ज़रूर मिला था। अब बात इस गीत के फ़िल्मांकन की। गीत फ़िल्माया गया था पीले सरसों के खेतों में। पर फ़िल्मांकन में कन्टिन्यूइटी की गड़बड़ी ज़रूर देखी जा सकती है। गीत शुरू होने से ठीक पहले सिमरन (काजोल) हरे घाँस वाले खेत में खड़ी हैं, पर अगले ही शॉट में वो पीले फूलों के खेत से दौड़ने लग पड़ती हैं। ख़ैर, जो हिट है, वही फ़िट है। "तुझे देखा" से सम्बन्धित एक अन्तिम जानकारी यह भी है कि 1998 की फ़िल्म ’प्यार तो होना ही था’ में जतिन-ललित ने लगभग इसी धुन पर कम्पोज़ किया था "अजनबी मुझको इतना बता दिल मेरा क्यों परेशान है" जिसे आशा भोसले और उदित नारायण ने गाया था और एक बार फिर काजोल पर ही फ़िल्माया गया था। पर इस गीत को वह ख्याति नहीं मिली जो ख्याति "तुझे देखा..." को मिली। लीजिए, अब आप वही चर्चित गीत सुनिए।
फिल्म - दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे : 'तुझे देखा तो ये जाना सनम...' : कुमार सानू और लता मंगेशकर :
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