नववर्ष विशेष
2014 के कमचर्चित सुरीले गीतों की हिट परेड - भाग 2
The Unsung Melodies of 2014
रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार और नववर्ष 2015 की हार्दिक शुभकामनाएँ। स्वागत है आप सभी का साल 2015 की प्रथम प्रस्तुति में। आज हम वर्ष के दूसरे दिन आपके मनोरंजन के लिए हम लेकर आए हैं इस विशेष प्रस्तुति का दूसरा भाग। साल 2014 हिन्दी फ़िल्म-संगीत के लिए अच्छा ही कहा जा सकता है; अच्छा इस दृष्टि से कि इस वर्ष जनता को बहुत सारे हिट गीत मिले, जिन पर आज की युवा पीढ़ी ख़ूब थिरकी, डान्स क्लब की शान बने, FM चैनलों पर बार-बार लगातार ये गाने बजे। "बेबी डॉल", "जुम्मे की रात है", "मुझे प्यार ना मिले तो मर जावाँ", "पलट तेरा ध्यान किधर है", "आज ब्लू है पानी पानी", "तूने मारी एन्ट्री यार", "सैटरडे सैटरडे", "दिल से नाचे इण्डिया वाले", जैसे गीत तो जैसे सर चढ़ कर बोले साल भर। लेकिन इन धमाकेदार गीतों की चमक-दमक के पीछे गुमनाम रह गए कुछ ऐसे सुरीले नग़मे जिन्हें अगर लोकप्रियता मिलती तो शायद सुनने वालों को कुछ पलों के लिए सुकून मिलता। कुछ ऐसे ही कमचर्चित पर बेहद सुरीले और अर्थपूर्ण गीतों की हिट परेड लेकर हम उपस्थित हुए हैं आज की इस विशेष प्रस्तुति में। आज के इस अंक में प्रथम सात गीत हम प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है आपको हमारी यह प्रस्तुति पसन्द आएगी। सुनिए और अपनी राय दीजिए।
7: "अखियाँ तिहारी..." (जल)
फ़िल्म ’जल’ पिछले साल की एक क्रिटिकली ऐक्लेम्ड फ़िल्म थी जिसे देश-विदेश के कई फ़िल्म महोत्सवों में कई पुरस्कार मिले। यहाँ राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला इस फ़िल्म को। इस फ़िल्म से फ़िल्म-संगीतकार बने गायक सोनू निगम। उनके साथ बिक्रम घोष ने इस फ़िल्म में संगीत दिया। फ़िल्म का शीर्षक गीत शुभा मुदगल की आवाज़ में है "जल दे", जिसमें सोनू और बिक्रम ने मारवा और पूरिया जैसे रागों के इस्तमाल के साथ-साथ दुर्लभ साज़ आरमेनियन डुडुक का भी प्रयोग किया जिसकी काफ़ी प्रशंसा हुई। इसी फ़िल्म में उस्ताद ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ाँ साहब और सुज़ेन का गाया "अखियाँ तिहारी" गीत भी तारीफ़-ए-क़ाबिल है जिसे ख़ुद सोनू और बिक्रम ने ही लिखा भी है। यह सोचने वाली ही बात है कि क्यों नहीं चल पाते ऐसे गीत आज के बाज़ार में! ज़रा सुनिए तो इस गीत को!
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6: "तू हँसे तो लगे जैसे कोई झरणा बहता है..." (कहीं है मेरा प्यार)
’विवाह’ और ’एक विवाह ऐसा भी’ से वापसी हुई थी संगीतकार रवीन्द्र जैन की। रवीन्द्र जैन का संगीत हमेशा उत्कृष्ट रहा है। व्यावसायिक्ता के चलते उन्होंने कभी अपने संगीत से समझौता नहीं किया, फिर चाहे उनके गाने चले या ना चले। 80 के दशक में जब फ़िल्म संगीत अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रही थी, तब रवीन्द्र जैन उन चन्द गिने-चुने संगीतकारों में से एक थे जिन्होंने फ़िल्म संगीत के स्तर को उपर बनाये रखने की भरपूर कोशिशें की। 2014 में उनके संगीत से सजी म्युज़िकल फ़िल्म आई ’कहीं है मेरा प्यार’। फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर बुरी तरह पिट गई और फ़िल्म के गाने भी नज़रन्दाज़ हो गए। युं तो फ़िल्म के सभी गीत कर्णप्रिय हैं, पर जो गीत सबसे ज़्यादा दिलो-दिमाग़ पर हावी होता है वह है शान और श्रेया घोषाल का गाया रोमान्टिक युगल गीत "तू हँसे तो लगे जैसे कोई झरणा बहता है"। सुनिए इस गीत को और बह जाइए रवीन्द्र जैन के सुरीले धुनों में।
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https://www.youtube.com/watch?v=S4vOyzH0mkM
5: "जो दिखते हो, वह लगते नहीं..." (क्या दिल्ली क्या लाहौर)
’क्या दिल्ली क्या लाहौर’ 2014 की फ़िल्म रही जो 1948 के हालातों के पार्श्व पर लिखी एक कहानी पर आधारित है। देश-विभाजन पर बनने वाली इस फ़िल्म की ख़ास बात यह है कि फ़िल्म के प्रस्तुतकर्ता के रूप में गुलज़ार का नाम नामावली में दिखाई देता है। गुलज़ार देश के बटवारे के हालातों से गुज़रे हैं, इसलिए उनसे बेहतर इस फ़िल्म के साथ बेहतर न्याय और कौन सकता था भला! करण अरोड़ा निर्मित इस फ़िल्म को निर्देशित किया नवोदित निर्देशक विजय राज़ जो इस फ़िल्म के नायक भी हैं। फ़िल्म के फ़र्स्ट लूक को वाघा सीमा पर प्रदर्शित किया गया था और 2 मई 2014 को पूरे विश्व में यह फ़िल्म रिलीज़ हुई। फ़िल्म को लोगों ने पसन्द ज़रूर किया पर बॉक्स ऑफ़िस पर फ़िल्म पिट गई। गुलज़ार के लिखे गीत, संदेश शान्डिल्य का संगीत भी दब कर रह गया। इस फ़िल्म के जिस गीत को हमने चुना है वह है पाकिस्तानी गायक शफ़क़त अमानत अली का गाया "जो दिखते हो वह लगते नहीं"। इस गीत के बारे में और क्या कहें, यही काफ़ी है कि इसे गुलज़ार ने लिखा है, सुनिए।
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4: "शामें डूबती हैं तेरे ख़यालों में..." (ख़्वाब)
Rahat & Shreya |
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3: "अन्धेरों में ढूंढ़ते हैं टुकड़ा टुकड़ा ज़िन्दगी..." (Children of War)
मृत्युंजय देवरत निर्देशित ’Children of War’ फ़िल्म 1971 के बांगलादेश मुक्ति युद्ध के पार्श्व पर बनी फ़िल्म है। पहले फ़िल्म का शीर्षक ’The Bastard Child' रखा गया था पर IMPPA ने इस शीर्षक को स्वीकृति नहीं दी। फ़िल्म में संगीत था सिद्धान्त माथुर का। इस फ़िल्म को क्रिटिकल अक्लेम मिला है। वरिष्ठ फ़िल्म पत्रकार सुभाष के झा ने लिखा है, "It is impossible to believe that this war epic has been directed by a first-time filmmaker. How can a virgin artiste conceive such a vivid portrait of the rape of a civilization?" गोपाल दत्त के लिखे और संगीतकार सिद्धान्त माथुर के ही गाए फ़िल्म का सबसे अच्छा गीत है "अन्धेरों में ढूंढ़ते हैं टुकड़ा टुकड़ा ज़िन्दगी", जिसे सुनना एक बेहद सुरीला अनुभव रहता है। दीपचन्दी ताल पर कम्पोज़ किया यह गीत शायद फ़िल्म की कहानी और कथन को अपने आप में समेट लेता है। सिद्धान्त की तरो-ताज़ी आवाज़ ने गीत में एक नया रंग भरा है जो शायद किसी स्थापित गायक की आवाज़ नहीं ला पाती। सुनिए और महसूस कीजिए किसी भी युद्द के दौरान बच्चों पर होने वाले शोषण और अत्याचार।
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2: "मारे नैनवा के बान..." (बाज़ार-ए-हुस्न)
यह वाकई बहुत ही सराहनीय बात है कि 2014 में भी कुछ फ़िल्मकार मुन्शी प्रेमचन्द की कहानी पर फ़िल्म बनाने का जस्बा रखते हैं। इसके लिए निर्माता ए. के. मिश्र की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। प्रेम्चन्द की उर्दू उपन्यास ’बाज़ार-ए-हुस्न’ पर इसी शीर्षक से फ़िल्म बनाई मिश्र जी ने जो 18 जुलाई 2014 को प्रदर्शित हुई। रेशमी घोष, जीत गोस्वामी, ओम पुरी और यशपाल शर्मा अभिनीत इस फ़िल्म की एक और ख़ास बात यह है कि इस फ़िल्म में संगीत दिया है वरिष्ठ और सुरीले संगीतकार ख़य्याम ने। ख़य्याम साहब का संगीत हमेशा ही बड़ा सुकून देता आया है। ठहराव भरे उनके गीत जैसे कुछ पलों के लिए हमारे सारे तनाव दूर कर देते हैं। ’बाज़ार-ए-हुस्न’ के गीतों में भी ख़य्याम साहब का वही जादू सुनाई देता है। सुनिधि चौहान की आवाज़ में फ़िल्म का मुजरा "मारे नैनवा के बान" अपना छाप छोड़ जाती है; चल्ताऊ किस्म के मुजरे बनाने वालों के लिए यह मुजरा एक सबक है कि 2014 में भी स्तरीय मुजरा बनाया जा सकता है। आप भी सुनिए और मस्त हो जाइए इस मुजरे को सुनते हुए...
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1: "जगावे सारी रैना..." (डेढ़ इश्क़िया)
Rekha Bhardwaj |
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तो यह थी नववर्ष की हमारी विशेष प्रस्तुति, आशा है आपको पसन्द आई होगी। अपनी राय टिप्पणी में ज़रूर लिखें। चलते चलते आप सभी को नववर्ष की एक बार फिर से शुभकामनाएँ देते हुए विदा लेता हूँ, नमस्कार।
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र
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