स्मृतियों के स्वर - 15
अभिनेत्री जयश्री टी. और माला सिन्हा की स्मृतियों में रफ़ी, मुकेश और लता
सूत्र: 'उजाले उनकी यादों के', विविध भारती
कॉपीराइट: विविध भारती
जयश्री टी - मोहम्मद रफ़ी
"मैंने रफ़ी साहब के साथ बहुत शोज़ किये हैं। साउथ अफ़्रीका मैं गई थी उनके साथ, वहाँ पर हम लोगों ने बहुत सारे शोज़ किये। वहाँ जाने के लिए हमें बड़ी तकलीफ़ हुई, मतलब तकलीफ़ in the sense कि हमें काफ़ी वेट करना पड़ा। लेकिन वहाँ जाने के बाद जो प्यार मोहब्बत मिली है वहाँ के लोगों से यह आप इमाजिन नहीं कर सकते। जितनी पब्लिक अन्दर थी, वहाँ ऐसे टेण्ट जैसे लगे होते थे बड़े-बड़े, उसके अन्दर जितनी पब्लिक होती थी, उतनी ही पब्लिक बाहर होती थी। सूट-बूट पहने हुए लोग, कहते थे हमको टिकट दे दीजिये, हम कहीं भी नीचे बैठ जायेंगे, हमको शो देखना है। और जयश्री टी, मीना टी, मोहम्मद रफ़ी। उन दिनो मतलब इतने सारे शोज़, इतने सारे आर्टिस्ट्स नहीं आते थे। यानी कि हीरो-हीरोइन तो कोई आता ही नहीं था। लोग मुझसे कहते थे कि जयश्री, तुम स्टेज पे कैसे डान्स कर लेती हो, तुम तो फ़िल्मस्टार हो। मैंने कहा तो क्या हुआ? I was much ahead of time. वहाँ पर लोगों ने हमें बहुत रेस्पॉन्स दिया, वन्स मोर हमें मिलता था। और रफ़ी साहब was a great man, मैं रफ़ी साहब के बारे में एक बात कहना चाहूँगी कि जब हम स्टेज पे जाते थे, हम उनके पैर छूते थे, लेकिन वो जब स्टेज पे जाते थे तो मेरी माँ के पैर छूते थे और कहते थे माँ भगवान का रूप होती है। बहुत ही प्यारे, बहुत ही नेक इंसान थे। तो उनके साथ प्रोग्राम करने में बहुत मज़ा आया, और हम लोग वहाँ पे खाना खाते थे तो रफ़ी साहब कहते थे कि पहले सबको बुलाओ, एक साथ बैठ के खाना खायेंगे। बिल्कुल परिवार का माहौल था और हम घूमने भी जाते थे तो सबको साथ में लेके जाते थे। उनकी मिसेस, उनके जो ज़हीर साहब थे, और मेरी माँ थीं, मीना टी थीं, मेरी सिस्टर, तो हम लोग सब साथ में ही जाते थे।
रफ़ी साहब गाते हुए बीच में कभी-कभी हाथ को ऐसे उठा कर, जैसे ऐक्शन करते थे तो पब्लिक खिल जाती थी, तालियाँ मार कर सपोर्ट करती थी। तो कभी कभी ऐसा जेस्चर मार कर, ख़ुश हो जाती थी पब्लिक। रफ़ी साहब बातें बहुत कम करते थे। और आपस में जब हम बात करते थे तो बहुत सॉफ़्ट स्पोकेन एक दम, एक दम आहिस्ते से बात करते थे, कभी उनको ऊँची आवाज़ में आज तक सुना ही नहीं, किसी से भी नहीं। बहुत अच्छे से बात करते थे। रफ़ी साहब के साथ हम कई बार स्टेज पे गये, तो उनसे कहा जाता था कि दो शब्द कहिये। तो वो कहते थे कि मैं दो शब्द नहीं, दो लाइन गा के सुनाऊँगा। और वो हमेशा गा के सुनाते थे। कुछ कहते नहीं थे।"
जयश्री टी - मुकेश
"मुकेश जी के साथ मैंने बचपन में शोज़ किये हैं। जब मैं छोटी थी तो हम लोगों ने गुजरात के बहुत दौरे किये। तो हम क्या करते थे कि शो ख़तम हो जाने के बाद हम कार में बैठ के दूसरे गाँव जाते थे और वहाँ पे हम होटल में जाते थे। तो मुकेश जी हमेशा मुझसे और मेरी माँ से कहते थे कि आप लोग सो जाओ, मैं ड्राइवर से बात करता हूँ ताकि वो सोये नहीं ट्रैवलिंग में। और मुकेश जी was the first person who told me कि जयश्री, देखो तुम फ़िल्मों में आयी हो, तुम्हारा नाम हो गया है, तो सबसे पहले यह शो बिज़नेस है, यहाँ पे तुम जितना शो-ऑफ़ करोगी, उतना तुम्हारा मार्केट बढ़ेगा। यह उन्होंने मुझे सिखाया। और उन्होंने सबसे पहले मुझको बताया कि तुम घर लेने से पहले गाड़ी ले लो। एक बड़ी गाड़ी ले लो और इसलिए मैंने फ़ोर्ड की गाड़ी उस वक़्त ली थी। और एक बात बताना चाहूँगी, पता नहीं रफ़ी साहब और मुकेश जी के साथ, शायद मेरी माँ का, अगले जनम का, या मैं उनकी माँ रह चुकी हूँ पता नहीं, जब मुकेश जी फ़ॉरेन चले गये अमरीका शो के लिये तो जाने से पहले वहाँ हमारे घर आ के हमसे मिल के गये। और मेरी माँ से भी आशीर्वाद लेके गये। और वहाँ जाने के बाद वो गुज़र गये।"
माला सिन्हा - लता मंगेशकर
"लता जी, लता जी, लता जी से हम मिलने गये तो मैं उनको निहारती ही रही, निहारती ही गई। पर लता जी जो हैं, वो धरती पर हैं, धरती के उपर न उनका दिमाग़ है और न पैर। तो उनको देखा, खिलखिलाके हँसती हैं, बहने कहकर बातचीत करती हैं, हमने सब बातचीत की, मैंने कहा कि दीदी, मुझे आपकी आवाज़ बहुत अच्छी लगती है, आपने इतने गाने गाये, मेरे लिये भी गाये, मैं तो बचपन से आपका फ़ैन रह चुकी हूँ। मैं आपका गाना गा गा कर मुझे 'बेबी लता' का खिताब मिला हुआ था। तो उन्होंने कहा कि फिर गाना क्यों प्रैक्टिस करती? उन्होंने मुझे कहा, मुझे डाँटा कि अरे इतनी अच्छी आवाज़ है, उन्होंने सुना भी मुझे, गाके बता, प्रैक्टिस किया करो, उनके भाई भी, हृदयनाथ जी ने भी कहा, दोनो ने मुझे सुना है, फ़ंक्शन में, गाना गाते हुए, क्योंकि बाँग्ला में मैंने बहुत सारे फ़ंक्शन में गाने गाये हैं। कल्याणजी-आनन्दजी भाई के गाने गाये, "कंकरिया मार के जगाया", यह गाना मैंने, तो उन्होंने मेरी आवाज़ सुनी हुई है। तो बोली कि तू पागल है, रियाज़ किया कर। तो मैंने बोला कि दीदी, आपके होते हुए मैं क्यों गाऊँ? आप इतना अच्छा गाती हैं मेरे लिए, मेरी ऐक्टिंग ही ठीक है।"
"मैंने रफ़ी साहब के साथ बहुत शोज़ किये हैं। साउथ अफ़्रीका मैं गई थी उनके साथ, वहाँ पर हम लोगों ने बहुत सारे शोज़ किये। वहाँ जाने के लिए हमें बड़ी तकलीफ़ हुई, मतलब तकलीफ़ in the sense कि हमें काफ़ी वेट करना पड़ा। लेकिन वहाँ जाने के बाद जो प्यार मोहब्बत मिली है वहाँ के लोगों से यह आप इमाजिन नहीं कर सकते। जितनी पब्लिक अन्दर थी, वहाँ ऐसे टेण्ट जैसे लगे होते थे बड़े-बड़े, उसके अन्दर जितनी पब्लिक होती थी, उतनी ही पब्लिक बाहर होती थी। सूट-बूट पहने हुए लोग, कहते थे हमको टिकट दे दीजिये, हम कहीं भी नीचे बैठ जायेंगे, हमको शो देखना है। और जयश्री टी, मीना टी, मोहम्मद रफ़ी। उन दिनो मतलब इतने सारे शोज़, इतने सारे आर्टिस्ट्स नहीं आते थे। यानी कि हीरो-हीरोइन तो कोई आता ही नहीं था। लोग मुझसे कहते थे कि जयश्री, तुम स्टेज पे कैसे डान्स कर लेती हो, तुम तो फ़िल्मस्टार हो। मैंने कहा तो क्या हुआ? I was much ahead of time. वहाँ पर लोगों ने हमें बहुत रेस्पॉन्स दिया, वन्स मोर हमें मिलता था। और रफ़ी साहब was a great man, मैं रफ़ी साहब के बारे में एक बात कहना चाहूँगी कि जब हम स्टेज पे जाते थे, हम उनके पैर छूते थे, लेकिन वो जब स्टेज पे जाते थे तो मेरी माँ के पैर छूते थे और कहते थे माँ भगवान का रूप होती है। बहुत ही प्यारे, बहुत ही नेक इंसान थे। तो उनके साथ प्रोग्राम करने में बहुत मज़ा आया, और हम लोग वहाँ पे खाना खाते थे तो रफ़ी साहब कहते थे कि पहले सबको बुलाओ, एक साथ बैठ के खाना खायेंगे। बिल्कुल परिवार का माहौल था और हम घूमने भी जाते थे तो सबको साथ में लेके जाते थे। उनकी मिसेस, उनके जो ज़हीर साहब थे, और मेरी माँ थीं, मीना टी थीं, मेरी सिस्टर, तो हम लोग सब साथ में ही जाते थे।
रफ़ी साहब गाते हुए बीच में कभी-कभी हाथ को ऐसे उठा कर, जैसे ऐक्शन करते थे तो पब्लिक खिल जाती थी, तालियाँ मार कर सपोर्ट करती थी। तो कभी कभी ऐसा जेस्चर मार कर, ख़ुश हो जाती थी पब्लिक। रफ़ी साहब बातें बहुत कम करते थे। और आपस में जब हम बात करते थे तो बहुत सॉफ़्ट स्पोकेन एक दम, एक दम आहिस्ते से बात करते थे, कभी उनको ऊँची आवाज़ में आज तक सुना ही नहीं, किसी से भी नहीं। बहुत अच्छे से बात करते थे। रफ़ी साहब के साथ हम कई बार स्टेज पे गये, तो उनसे कहा जाता था कि दो शब्द कहिये। तो वो कहते थे कि मैं दो शब्द नहीं, दो लाइन गा के सुनाऊँगा। और वो हमेशा गा के सुनाते थे। कुछ कहते नहीं थे।"
जयश्री टी - मुकेश
"मुकेश जी के साथ मैंने बचपन में शोज़ किये हैं। जब मैं छोटी थी तो हम लोगों ने गुजरात के बहुत दौरे किये। तो हम क्या करते थे कि शो ख़तम हो जाने के बाद हम कार में बैठ के दूसरे गाँव जाते थे और वहाँ पे हम होटल में जाते थे। तो मुकेश जी हमेशा मुझसे और मेरी माँ से कहते थे कि आप लोग सो जाओ, मैं ड्राइवर से बात करता हूँ ताकि वो सोये नहीं ट्रैवलिंग में। और मुकेश जी was the first person who told me कि जयश्री, देखो तुम फ़िल्मों में आयी हो, तुम्हारा नाम हो गया है, तो सबसे पहले यह शो बिज़नेस है, यहाँ पे तुम जितना शो-ऑफ़ करोगी, उतना तुम्हारा मार्केट बढ़ेगा। यह उन्होंने मुझे सिखाया। और उन्होंने सबसे पहले मुझको बताया कि तुम घर लेने से पहले गाड़ी ले लो। एक बड़ी गाड़ी ले लो और इसलिए मैंने फ़ोर्ड की गाड़ी उस वक़्त ली थी। और एक बात बताना चाहूँगी, पता नहीं रफ़ी साहब और मुकेश जी के साथ, शायद मेरी माँ का, अगले जनम का, या मैं उनकी माँ रह चुकी हूँ पता नहीं, जब मुकेश जी फ़ॉरेन चले गये अमरीका शो के लिये तो जाने से पहले वहाँ हमारे घर आ के हमसे मिल के गये। और मेरी माँ से भी आशीर्वाद लेके गये। और वहाँ जाने के बाद वो गुज़र गये।"
माला सिन्हा - लता मंगेशकर
"लता जी, लता जी, लता जी से हम मिलने गये तो मैं उनको निहारती ही रही, निहारती ही गई। पर लता जी जो हैं, वो धरती पर हैं, धरती के उपर न उनका दिमाग़ है और न पैर। तो उनको देखा, खिलखिलाके हँसती हैं, बहने कहकर बातचीत करती हैं, हमने सब बातचीत की, मैंने कहा कि दीदी, मुझे आपकी आवाज़ बहुत अच्छी लगती है, आपने इतने गाने गाये, मेरे लिये भी गाये, मैं तो बचपन से आपका फ़ैन रह चुकी हूँ। मैं आपका गाना गा गा कर मुझे 'बेबी लता' का खिताब मिला हुआ था। तो उन्होंने कहा कि फिर गाना क्यों प्रैक्टिस करती? उन्होंने मुझे कहा, मुझे डाँटा कि अरे इतनी अच्छी आवाज़ है, उन्होंने सुना भी मुझे, गाके बता, प्रैक्टिस किया करो, उनके भाई भी, हृदयनाथ जी ने भी कहा, दोनो ने मुझे सुना है, फ़ंक्शन में, गाना गाते हुए, क्योंकि बाँग्ला में मैंने बहुत सारे फ़ंक्शन में गाने गाये हैं। कल्याणजी-आनन्दजी भाई के गाने गाये, "कंकरिया मार के जगाया", यह गाना मैंने, तो उन्होंने मेरी आवाज़ सुनी हुई है। तो बोली कि तू पागल है, रियाज़ किया कर। तो मैंने बोला कि दीदी, आपके होते हुए मैं क्यों गाऊँ? आप इतना अच्छा गाती हैं मेरे लिए, मेरी ऐक्टिंग ही ठीक है।"
कॉपीराइट: विविध भारती
तो दोस्तों, आज बस इतना ही। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आयी होगी। अगली बार ऐसे ही किसी स्मृतियों की गलियारों से आपको लिए चलेंगे उस स्वर्णिम युग में। तब तक के लिए अपने इस दोस्त, सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिये, नमस्कार! इस स्तम्भ के लिए आप अपने विचार और प्रतिक्रिया नीचे टिप्पणी में व्यक्त कर सकते हैं, हमें अत्यन्त ख़ुशी होगी।
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
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