Skip to main content

राम चाहे सुरों की "लीला"

निर्देशक से संगीतकार बने संजय लीला बंसाली ने 'गुज़ारिश' में जैसे गीत रचे थे उनका नशा उनका खुमार आज तक संगीत प्रेमियों के दिलो-जेहन से उतरा नहीं है. सच तो ये है कि इस साल मुझे सबसे अधिक इंतज़ार था, वो यही देखने का था कि क्या संजय वाकई फिर कोई ऐसा करिश्मा कर पाते हैं या फिर "गुजारिश" को मात्र एक अपवाद ही माना जाए. दोस्तों रामलीला, गुजारिश से एकदम अलग जोनर की फिल्म है. मगर मेरी उम्मीदें आसमां छू रही थी, ऐसे में रामलीला का संगीत सुन मुझे क्या महसूस हुआ यही मैं आगे की पंक्तियों में आपको बताने जा रहा हूँ. 

अदिति पॉल की नशीली आवाज़ से खुलता है गीत अंग लगा दे. हल्की हल्की रिदम पर मादकता से भरी अदिति के स्वर जादू सा असर करती है उसपर शब्द 'रात बंजर सी है, काले खंजर सी है' जैसे हों तो नशा दुगना हो जाता है. दूसरे अंतरे से ठीक पहले रिदम में एक तीव्रता आती है जिसके बाद समर्पण का भाव और भी मुखरित होने लगता है. कोरस का प्रयोग सोने पे सुहागा लगता है. 

धूप से छनके उतरता है अगला गीत श्रेया की रेशम सी बारीक आवाज़ में, सुरों में जैसे रंग झलकते हैं. ताल जैसे धडकन को धड्काते हों, शहनाई के स्वरों में पारंपरिक स्वरों की मिठास...रोम रोम नापता है, रगों में सांप सा है....सरल मगर सुरीला और मीलों तक साया बन साथ चलता गीत. 

संजय की फिल्मों में गायक के के एक जरूरी घटक रहते हैं पर जाने क्यों यहाँ उनकी जगह उन्होंने चुना आदित्य नारायण को. शायद किरदार का रोबीलापन उनकी आवाज़ में अधिक जचता महसूस हुआ होगा. आदित्य का गाया पहला गीत है इश्कियाँ डीश्कियाँ. फिल्म के दो प्रमुख किरदारों के बीच प्रेम और नफ़रत की जंग को गीत के माध्यम से दर्शाता है ये गीत. 

अरिजीत सिंह की रूहानी आवाज़ में एक और दिल को गहरे तक छूता गीत मिला है श्रोताओं को लाल इश्क में. आरंभिक कोरस को सुनकर एक सूफी गीत होने का आभास होता है मगर जैसे ही अरिजीत की आवाज़ मिलती है गीत का कलेवर बदल जाता है. रिदम ऊपर के सभी गीतों की ही तरह लाजवाब और संयोजन बेमिसाल. शब्द करीने से चुने हुए और गायिकी गजब की. जब अरिजीत 'बैराग उठा लूँ' गाते हैं तो उनकी आवाज़ में भी एक बैराग उभर आता है. 

शैल हडा तो जैसे लगता है अपना सर्वश्रेष्ठ संजय की धुनों के लिए ही बचा कर रखते हैं. पारंपरिक गुजराती लोक धुन की महक के बाद शैल की कशिश भरी आवाज़ में लहू मुँह लग गया में नफ़रत को प्रेम में बदलते उन नाज़ुक क्षणों की झनकार है. धुन कैची है और जल्द ही श्रोताओं के मुँह लग जायेगा इसमें शक नहीं. गीत के अंतरे खूबसूरती से रचे गए हैं. 

अगले दो गीत फिल्म की गुजरती पृष्भूमि को उभारते हुए हैं मोर बनी थन्घट करे अधिक पारंपरिक है और लोक गायकों की आवाज़ में बेहद जचता है. वहीँ नगाडा संग ढोल में हम दिल दे चुके सनम की ढोल बाजे की झलक होने के बावजूद गीत अपनी एक अलग छाप छोड़ता है. श्रेया की आवाज़ गीत का खास आकर्षण है. 

शैल को एक और रूहानी गीत दिया है संजय ने पूरे चाँद की ये आधी रात है में, पहले गीत से अधिक जटिल गीत है ये पर शैल ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी है. हाँ पर मुझे यहाँ के के की कमी जरा सी खली. गीत में ठहराव है गजब का और गति भी है चढ़ते ढलते चाँद सी. अनूठा विरोधाभास है गीत में. बार बार सुनने को मन हो जाए ऐसा.

रामलीला के ठेठ अंदाज़ में शुरु होता है राम चाहे लीला गीत. अक्सर रामलीला में पर्दा गिरने और उठने के बीच कुछ गीत परोसे जाते हैं मनोरंजन के लिए. इन्डियन आइडल से चर्चा में आई भूमि त्रिवेदी को सौंपा संजय ने इस मुश्किल गीत को निभाने का जिम्मा. यकीं मानिये भूमि ने इंडस्ट्री में धमाकेदार एंट्री कर दी है इस गीत के साथ. यहाँ शब्द भी काफी ठेठ हैं. राम चाहे लीला चाहे लीला चाहे राम....देखे तो सरल मगर गहरे तक चोट करते शब्द हैं. जबरदस्त गीत. 

अंतिम गीत राम जी की चाल देखो में रामलला की झाँकी का वर्णन है, अगर कोई भी और संगीतकार होते तो आज के चलन अनुसार इस गीत के लिए मिका को चुनते. मगर यही तो बात है संजय में जो उन्हें सब से अलग करती है. उन्होंने आदित्य पर अपना विश्वास कायम रखा और आदित्य ने कहीं भी गीत की ऊर्जा को कम नहीं होने दिया. और तो और उनके भाव, ताव सब उत्कृष्ट माहौल को रचने में जमकर कामियाब हुए हैं यहाँ. एक धमाल से भरा गीत है ये जिसमें दशहरे का जोश और उत्सव तो झलकता ही है किरदारों के बीच की आँख मिचौलो भी उभरकर सामने आती है.       

कोई बेमतलब के रीमिक्स नहीं. बेवजह की तोड़ मरोड़ नहीं गीतों में. सीधे मगर जटिल संयोजन वाले, मधुर मगर सुरों में घुमाव वाले, मिटटी से जुड़े १० गीतों की लड़ी लेकर आये हैं संजय अपने इस दूसरे प्रयास में. जब उम्मीदें अधिक होती है यो संभावना निराशा की अधिक होती है पर खुशी की बात है कि बतौर संगीतकार संजय लीला बंसाली में वही सूझ बूझ, वही आत्मीयता, वही समर्पण नज़र आता है जो एक निर्देशक के रूप में वो बखूबी साबित कर चुके हैं. ये एक ऐसी एल्बम है जिस पर फिल्म की सफलता असफलता असर नहीं डाल सकती. रामलीला सभी संगीत प्रेमियों के लिए इस वर्ष के सर्वोत्तम तोहफों में से एक है. अवश्य सुनें और सुनाएँ. गीतकार सिद्धार्थ गरिमा को भी हमारी टीम की विशेष बधाई. 

एल्बम के बहतरीन गीत - राम जी की चाल, राम चाहे लीला,  पूरे चाँद की आधी रात है, लहू मुँह लग गया, लाल इश्क, अंग लगा दे, धूप से छनके 

हमारी रेटिंग - ४.९/५ 

    


Comments

Vijay Vyas said…
नगाडा संग ढोल... गीत के बीच वाले कोरस की जो रिदम है, वह राजस्‍थान के एक लोक भजन 'चौसठ जोगणी ए' के मुखडे से हूबहू मिलती है।
आभार ।
Sajeev said…
जी विजय जी, तभी गीत में शायद इतनी मिठास है कि हर दिन इसे कम से कम ५-६ बार सुन ही लेता हूँ आजकल

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...