Skip to main content

एक आवाज़ जिसने गज़ल को दिए नए मायने

खमली आवाज़ की रूहानी महक और ग़ज़ल के बादशाह जगजीत सिंह को हमसे विदा हुए लगभग २ साल बीत चुके हैं, बीती १० तारिख को उनकी दूसरी बरसी के दिन, उनकी पत्नी चित्रा सिंह ने उनके करोड़ों मुरीदों को एक अनूठी संगीत सी डी का लाजवाब तोहफा दिया. "द वोईस बियोंड' के नाम से जारी इस नायब एल्बम में जगजीत के ७ अप्रकाशित ग़ज़लें सम्मिलित हैं, जी हाँ आपने सही पढ़ा -अप्रकाशित. शायद ये जगजीत की गाई ओरिजिनल ग़ज़लों का अंतिम संस्करण होगा, पर उनकी मृत्यु के पश्चात ऐसी कोई एल्बम नसीब होगी ऐसी उम्मीद भी आखिर किसे थी ? 

खुद चित्रा सिंह ने जो खुद भी एक बेमिसाल गज़ल गायिका रहीं हैं, ने इस एल्बम को श्रोताओं के लिए जारी किया यूनिवर्सल मुय्सिक के साथ मिलकर. जगजीत खुद में गज़ल की एक परंपरा हैं और उनकी जगह खुद उनके अलावा और कोई नहीं भर सकता. जगजीत की इस एल्बम में आप क्या क्या सुन सकते हैं आईये देखें. 

निदा फाजली के पारंपरिक अंदाज़ में लिखा गया एक भजन है. धडकन धडकन धड़क रहा है बस एक तेरो नाम ... जगजीत के स्वरों में इसे सुनते हुए आप खुद को ईश्वर के बेहद करीब पायेंगें. नन्हों की भोली बातों में उजली उजली धूप , गुंचा गुंचा चटक रहा है बस एक तेरो नाम  सुनकर जगजीत -निदा के एल्बम इनसाईट  की बरबस ही याद आ जाती है. 

अगली ग़ज़ल एक तेरे करीब आने से  को सुनकर लगता है कि शयद जगजीत के बेहद शुरूआती दिनों की गज़ल रही होगी जो किसी कारणवश प्रकाशित नहीं हो पायी. जाने क्यों बिजलियों को रंजिश है, सिर्फ मेरे ही आशियाने से , आग दिल की सुलगती रहने दो, और भड़केगी ये बुझाने से  अब यहाँ भड़केगी  जैसे शब्दों पे उनकी पकड़ को ध्यान से सुनिए...क्या कहें कमाल ....

अगली ग़ज़ल तो सरापा जगजीत की छाप लिए है. जिंदगी जैसी तम्मना थी नहीं कुछ कम है .... आगे के मिसरे सुनिए - घर की तामीर तस्सवुर ही में हो सकती है, अपने नक़्शे के मुताबिक ये ज़मीन कुछ कम है .... वाह क्या कहने शहरयार साहब. हैरत होती है कि ऐसे नायब हीरे कैसे अप्रकाशित रह गए होंगें. 

दाग दहलवी का लिखा रस्मे उल्फत सिखा गया कोई  सरल शब्दों में बहुत कुछ कहती है. जगजीत की गायिकी शब्दों को एक अलग ही मुकाम दे जाती है. विंटेज जगजीत का मखमली अंदाज़. वहीँ सईद राही की गज़ल खुदा के वास्ते  में किसी और ही दौर के जगजीत नज़र आते हैं. ये क्या कि खुदी हुए जा रहे हो पागल से, ज़रा सी देर तो रुख पे नकाब रहने दो.... वाह.

शायर नसीम काज़मी की एक बेहद खूबसूरत गज़ल है आशियाने की बात करते हो  वैसे चित्रा जी इन ग़ज़लों के साथ कुछ इन ग़ज़लों के बनने की बातें भी अगर बांटती तो सोने पे सुहागा हो जाता. हादसा था गुजर गया होगा , किसके जाने की बात करते हो  जैसे अशआर सुनकर बहुत कुछ महसूस होता है.

अंतिम गज़ल के शायर हैं गुलज़ार साहब. दर्द हल्का है  को सुनकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसे एल्बम कोई बात चले  के लिए पहले इसे चुना गया होगा, मगर बाद में सुझाव बदल दिया गया होगा, क्योंकि उस एल्बम की एक गज़ल में भी गुलज़ार खुद अपनी आवाज़ में इस गज़ल का एक मिसरा बोलते सुनाई दिए हैं आपके बाद भी हर घडी हमने, आपके साथ ही गुज़री है . वही गुलज़ार, वही जगजीत वही जादू....और क्या कहें.

दोस्तों ऐसा तोहफा हाथ से छोडना समझदारी बिलकुल नहीं होगी. ये एल्बम हर हाल में आपकी लाईब्रेरी का हिस्सा हो, हमारी सिफारिश तो यही रहेगी. चलते चलते एक बार फिर चित्रा सिंह का बहुत बहुत आभार जिन्होंने हम जैसे जगजीत प्रेमियों के लिए उनकी आवाज़ को एक बार फिर से जिंदा कर दिया इस खूबसूरत एल्बम का नजराना देकर. आप ओनलाईन भी इन ग़ज़लों का लुत्फ़ उठा सकते हैं नीचे दिए लिंकों में.

गाना डॉट कॉम
स्मैश हिट्स

Comments

इस जानकारी के लिए आपका बहुत बहुत आभार ! जगजीत सिंह साहब की इस एल्बम के बारे मे सुना तो था पर अधिक जानकारी नहीं मिल पायी थी !
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सब 'उल्टा-पुल्टा' चल रहा है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट