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सूफी संतों के सदके में बिछा सूफी संगीत (सूफी संगीत ०३)


सूफी संगीत पर विशेष प्रस्तुति संज्ञा टंडन के साथ 
सूफी संतों की साधना में चार मकाम बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं- शरीअततरी-कतमारि-फत तथा हकीकत। शरीयत में सदाचरण कुरान शरीफ का पाठपांचों वक्त की नमाजअवराद यानी मुख्य आयतों का नियमित पाठअल्लाह का नाम लेनाजिक्रे जली अर्थात बोलकर या जिक्रे शफी यानी मुंह बंद करके अल्लाह का नाम लिया जाता है। उस मालिक का ध्यान किया जाता है। उसी का प्रेम से नाम लिया जाता है। मुराकवा में नामोच्चार के साथ-साथ अल्लाह का ध्यान तथा मुजाहिदा में योग की भांति चित्त की वृत्तियों का निरोध किया जाता है। पांचों ज्ञानेन्दियों के लोप का अभ्यास इसी में किया जाता है। इस शरीअत के बाद पीरो मुरशद अपने मुरीद को अपनाते हैं उसे रास्ता दिखाते हैं। इसके बाद शुरू होती है तरी-कत। इस में संसार की बातों से ऊपर उठकर अहम् को तोड़ने छोड़ने का अभ्यास किया जाता है।

अपनी इद्रियों को वश में रखने के लिए शांत रहते हुए एकांतवास में व्रत उपवास किया जाता है। तब जाकर मारिफत की पायदान पर आने का मौका मिलता है। इस परम स्थिति में आने के लिए भी सात मकाम तय करने पड़ते हैं। तौबा, जहद, सब्र, शुक्र, रिजाअ, तबक्कुल और रजा की ऊंचाइयों पर चढ़ने के बाद सूफी साधक इस दुनिया को ही नहीं, बल्कि खुद को भी भूलकर अल्लाह के इश्क में पूरी तरह से डूब जाते हैं, वे परम ज्ञानी हो जाते हैं। इसके बाद सूफी साधक हकीकत से रूबरू होता है। यह परम स्थिति उसे प्रेम के चरम पर ले जाती है। उसे खुशी और तकलीफों से छुटकारा दिलाती है। ऐसी स्थिति में पहुंचने के बाद फिर बस अल्लाह के अलावा दूसरा न कोई सूझता है और न सुहाता है। हर वक्त उसी अल्लाह में प्रेम की लौ लगी रहती है। दिल के अंदर उसी की चाहत बसी रहती है। सारी इच्छाएं , चिंताएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं। मीरा के प्रेम और सूफियों के इश्क में कोई अंतर नहीं लगता है। आंसुओं के जल से दिल का मैल जब घुलने लगे , जिंदगी में फूल हर तरफ खिलने लगें , तब समझना रास्ता है ठीक आगे बढ़ने के लिए। सारे झंझट छोड़ दिल में प्रेम रस घुलने लगे। प्रेम ऐसा , जो सिर्फ दिखावटी न हो। प्रेम ऐसा , जो जिंदगी में पूरी तरह रच बस जाए। हर तरफ बस तू ही तू-तू ही तू नजर आए। (साभार -ममता भारती)

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