Skip to main content

आज की 'सिने पहेली' लता जी के नाम...

सिने पहेली – 82

  







"मुझसे चलता है सर-ए-बज़्म सुखन का जादू
चाँद ज़ुल्फ़ों के निकलते है मेरे सीने से,
मैं दिखाता हूँ ख़यालात के चेहरे सब को
सूरतें आती हैं बाहर मेरे आईने से।

हाँ मगर आज मेरे तर्ज़-ए-बयां का यह हाल
अजनबी कोई किसी बज़्म-ए-सुखन में जैसे,
वो ख़यालों के सनम और वो अल्फ़ाज़ के चाँद
बेवतन हो गए हों अपने ही वतन में जैसे।

फिर भी क्या कम है, जहाँ रंग न ख़ुशबू है कोई
तेरे होंठों से महक जाते हैं अफ़कार मेरे,
मेरे लफ़्ज़ों को जो छू लेती है आवाज़ तेरी
सरहदें तोड़ के उड़ जाते हैं अशार मेरे।

तुझको मालूम नहीं, या तुझे मालूम भी हो
वो सियाह बख़्त जिन्हें ग़म ने सताया बरसों,
एक लम्हे को जो सुन लेते हैं तेरा नग़मा
फिर उन्हें रहती है जीने की तमन्ना बरसों।

जिस घड़ी डूब के आहंग में तू गाती है
आयतें पढ़ती है साज़ों की सदा तेरे लिए,
दम बदम ख़ैर मनाते हैं तेरी चंग-ओ-रबाब
सीने नये से निकलती है दुआ तेरे लिए।

नग़मा-ओ-साज़ के ज़ेवर से रहे तेरा सिंगार
हो तेरी माँग में तेरी ही सुरों की अफ़शां,
तेरी तानों से तेरी आँख में काजल की लकीर
हाथ में तेरे ही गीतों की हिना हो रखशां।"







बरसों पहले शायर और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने इन शब्दों में जिस आवाज़ की तारीफ़ें की थी, उस आवाज़ का जादू पिछले छह दशकों से सर चढ़ कर बोल रहा है। कानों में मिश्री घोलने वाली, मन की हर पीड़ा को दूर करने वाली इस आवाज़ की शीतल छाँव में बैठ कर इंसान ज़िन्दगी की दुख-तकलीफ़ों को पल में भूल जाता है। यह वह आवाज़ है जिसकी स्वरगंगा में नहा कर हर मन पवित्र हो जाता है। यह आवाज़ है लता मंगेशकर की। मरुस्थल को भी हरियाली में परिवर्तित कर देने वाली लता जी का आज अपना 85-वाँ जनमदिवस मना रही हैं। आइए लता जी को जनमदिवस की शुभकामनायें देते हुए शुरु करते हैं आज की 'सिने पहेली', और उपहार स्वरूप आज की यह पहेली उन्हीं को समर्पित करते हैं।



आज की पहेली : बूझो तो जाने!




लता मंगेशकर का गाया एकल गीत है "A"। इसके फ़िल्म का नाम है "B"। इस गीत के संगीतकार हैं राहुल देव बर्मन।

मज़ेदार बात यह है कि इस फ़िल्म के रिलीज़ होने के तीन वर्ष पहले (1965 में) एक सस्पेन्स थ्रिलर फ़िल्म आयी थी "C" जिसमें "A" के मुखड़े के पहले कुछ शब्दों को हास्य अभिनेता महमूद ने फ़िल्म के एक सीन में गुनगुनाया था, और वह भी बिल्कुल उसी धुन में जिस धुन में तीन वर्ष बाद "A" गीत बना। पर "C" फ़िल्म के संगीतकार राहुल देव बर्मन नहीं थे, बल्कि वो थे शंकर जयकिशन।

"B" शब्द से अमिताभ बच्चन का गाया हुआ एक फ़िल्मी गीत शुरू होता है जिसके फ़िल्म का नाम है "D"। अब "D" शब्द से लता मंगेशकर और किशोर कुमार का गाया एक युगल गीत भी तो शुरू होता है जिसे हम "E" कह सकते हैं, और यह गीत फ़िल्माया गया है संजीव कुमार और वहीदा रहमान पर। तो फिर पहचानिये A, B, C, D, और E को। यही है आज की पहेली। कुल अंक हैं 10।

इस पहेली का जवाब आप cine.paheli@yahoo.com के पते पर भेजें। 'टिप्पणी' में जवाब कतई न लिखें, वो मान्य नहीं होंगे। ईमेल के सब्जेक्ट लाइन में "Cine Paheli # 82" अवश्य लिखें, और अंत में अपना नाम व स्थान लिखें। आपका ईमेल हमें बृहस्पतिवार 3 अक्टुबर शाम 5 बजे तक अवश्य मिल जाने चाहिए। इसके बाद प्राप्त होने वाली प्रविष्टियों को शामिल नहीं किया जाएगा।







पिछली पहेली का हल

A-  आशा भोसले
B-  ओ पी नैय्यर
C-  फ़िल्म - प्राण जाए पर वचन न जाए
D-  फ़िल्म - राम तेरी गंगा मैली
E- सुनो तो गंगा ये क्या सुनाये,
कि मेरे तट पर जो लोग आए,
जिन्होंने ऐसे नियम बनाए,
प्राण जाए पर वचन न जाए
गंगा हमारी कहे बात ये रोते-रोते
राम तेरी गंगा मैली हो गयी
पापियों के पाप धोते-धोते
[टाईटल सांग - 'राम तेरी गंगा मैली' -----
सुरेश वाडेकर वाले वर्जन के शुरू में कोरस]
[इस गाने के अंतरे में --- 'जिस देश में गंगा बहती है' की
ये पंक्ति है --> "हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है..... न तो होठों पे सच्चाई, न ही दिल में सफाई...."
F-  सुरेश वाडकर
G-  राज कपूर
H-  फिल्म - जिस देश में गंगा बहती है
I-  "होठों पे सच्चाई रहती है..."
J-  मुकेश


पिछली पहेली के विजेता

नवे सेगमेण्ट के पहले अंक की गीतों भरी गूगली शायद प्रतियोगियों पर भारी पड़ा और अधिकतर प्रतियोगी क्लीन बोल्ड हो गए। जी हाँ, इस पहेली के जवाब में केवल चार प्रतियोगी के ईमेल हमें प्राप्त हुए, और उनमें केवल दो प्रतियोगियों ने पहेली का 100% सही जवाब दिया। सबसे पहले सही जवाब देकर इस बार 'सरताज प्रतियोगी' बने हैं लखनऊ के श्री प्रकाश गोविंद। बीकानेर के श्री विजय कुमार व्यास के भी जवाब सही हैं। स्कोरकार्ड इस प्रकार रहा...



कौन बनेगा 'सिने पहेली' महाविजेता?


1. सिने पहेली प्रतियोगिता में होंगे कुल 100 एपिसोड्स। इन 100 एपिसोड्स को 10 सेगमेण्ट्स में बाँटा गया है। अर्थात्, हर सेगमेण्ट में होंगे 10 एपिसोड्स। इस प्रतियोगिता के 81 एपिसोड्स पूरे हो चुके हैं, आज है 82वाँ एपिसोड।

2. प्रत्येक सेगमेण्ट में प्रत्येक खिलाड़ी के 10 एपिसोड्स के अंक जोड़े जायेंगे, और सर्वाधिक अंक पाने वाले तीन खिलाड़ियों को सेगमेण्ट विजेता के रूप में चुन लिया जाएगा। 

3. इन तीन विजेताओं के नाम दर्ज हो जायेंगे 'महाविजेता स्कोरकार्ड' में। सेगमेण्ट में प्रथम स्थान पाने वाले को 'महाविजेता स्कोरकार्ड' में 3 अंक, द्वितीय स्थान पाने वाले को 2 अंक, और तृतीय स्थान पाने वाले को 1 अंक दिया जायेगा। आठवें सेगमेण्ट की समाप्ति तक 'महाविजेता स्कोरकार्ड' यह रहा-



4. 10 सेगमेण्ट पूरे होने पर 'महाविजेता स्कोरकार्ड' में दर्ज खिलाड़ियों में सर्वोच्च पाँच खिलाड़ियों में होगा एक ही एपिसोड का एक महा-मुकाबला, यानी 'सिने पहेली' का फ़ाइनल मैच। इसमें पूछे जायेंगे कुछ बेहद मुश्किल सवाल, और इसी फ़ाइनल मैच के आधार पर घोषित होगा 'सिने पहेली महाविजेता' का नाम। महाविजेता को पुरस्कार स्वरूप नकद 5000 रुपये दिए जायेंगे, तथा द्वितीय व तृतीय स्थान पाने वालों को दिए जायेंगे सांत्वना पुरस्कार।

तो आज बस इतना ही, अगले सप्ताह फिर मुलाक़ात होगी 'सिने पहेली' में। लेकिन 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के अन्य स्तंभ आपके लिए पेश होते रहेंगे हर रोज़। तो बने रहिये हमारे साथ और सुलझाते रहिये अपनी ज़िंदगी की पहेलियों के साथ-साथ 'सिने पहेली' भी, लता जी को जनमदिन की एक बार फिर से हार्दिक शुभकामनायें देते हुए अनुमति चाहूँगा, नमस्कार!


प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी

Comments

सुंदर सार्थक प्रस्तुति ....
Pankaj Mukesh said…
Sujoy ji!!
Aapki googli ne hamein clean bold nahin kiya, hamein to waqt ki mari ne catch out kiya. Isiliye maine aapki agali googli par apna sixer laga diya. Lekin poore raste bhr main bas yahi sochata raha ki "pran jaye par vachan na jaay- ke liye kewal Ravindra jain se badhiya koi ho nahin sakata. aur gayak mukesh ji ka naam agar ho to raaj kapoor ko ignore kiya nahin jaa sakata. magar kambakht safar ke kaaran complete concentration nahin ban paai... any way aapki peshkash pasand aai!!!
Shukriya!!!!

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट