Skip to main content

नये वर्ष में नई लघु श्रृंखला ‘राग और प्रहर’ की शुरुआत



स्वरगोष्ठी – 103 में आज
राग और प्रहर – 1

'जागो मोहन प्यारे...' राग भैरव से आरम्भ दिन का पहला प्रहर 


‘स्वरगोष्ठी’ के नये वर्ष के पहले अंक में कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमी पाठकों और श्रोताओं का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। आज से हम आरम्भ कर रहे हैं, एक नई लघु श्रृंखला- ‘राग और प्रहर’। भारतीय शास्त्रीय संगीत, विशेषतः उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। इस श्रृंखला में हम आपसे राग और समय के अन्तर्सम्बन्धों पर आपसे चर्चा करेंगे।

सूर्योदय : छायाकार -नारायण द्रविड़
काल-गणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर, दिन के और सूर्यास्त से लेकर अगले सूर्योदय से पहले के चार प्रहर, रात्रि के प्रहर कहलाते हैं। उत्तर भारतीय संगीत के साधक कई शताब्दियों से विविध प्रहर में अलग-अलग रागों का परम्परागत रूप से प्रयोग करते रहे हैं। रागों का यह समय-सिद्धान्त हमारे परम्परागत संस्कारों से उपजा है। विभिन्न रागों का वर्गीकरण अलग-अलग प्रहर के अनुसार करते हुए आज भी संगीतज्ञ व्यवहार करते हैं। राग भैरव का गायन-वादन प्रातःकाल और मालकौंस मध्यरात्रि में ही किया जाता है। कुछ राग ऋतु-प्रधान माने जाते हैं और विभिन्न ऋतुओं में ही उनका गायन-वादन किया जाता है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। ऋतु-प्रधान रागों की चर्चा आपसे हम आगे किसी श्रृंखला में करेंगे, परन्तु इस श्रृंखला में हम विभिन्न प्रहरों में बाँटे गए रागों की आपसे चर्चा करेंगे।

दिन और रात के आठ प्रहरों में सबसे पहला प्रहर प्रातः सूर्योदय के सन्धिप्रकाश बेला से लेकर प्रातः नौ बजे तक का माना जाता है। इस अवधि में मानव के मन और शरीर को नई ऊर्जा के संचार की आवश्यकता होती है। रात्रि विश्राम के बाद तन और मन अलसाया हुआ होता है। ऐसे में कोमल स्वरों वाले राग स्फूर्ति और ऊर्जा का संचार करते है। इस प्रहर में भैरवी, भैरव, अहीर भैरव, आसावरी, रामकली, बसन्त मुखारी आदि रागों का गायन-वादन उपयोगी माना जाता है। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में आज हम आपको दिन के पहले प्रहर के इन रागों में से सबसे पहले राग आसावरी सुनवाते हैं। परम्परागत रूप से सूर्योदय के बाद गाये-बजाए जाने वाले इस राग में तीन कोमल स्वर, गान्धार, धैवत और निषाद का प्रयोग किया जाता है। शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। यह औड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है, जिसका वादी धैवत और संवादी गान्धार स्वर होता है। अब हम आपके लिए संगीत-मार्तण्ड पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर का गाया राग आसावरी प्रस्तुत करते हैं। तीनताल में निबद्ध इस बन्दिश में आपको पण्डित बलवन्त राव भट्ट के कण्ठ–स्वर और विदुषी एन. राजम् की वायलिन संगति का आनन्द भी मिलेगा।


राग आसावरी : ‘सजन घर लागे...’ : पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर



सूर्योदय के बाद, अर्थात दिन के पहले प्रहर में गाया-बजाया जाने वाला एक और राग है- ‘रामकली’। भैरव थाट के इस राग में दोनों मध्यम और दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। इस राग में प्रयोग किये जाने वाले कोमल स्वर हैं, ऋषभ, धैवत और निषाद। तीव्र मध्यम स्वर सन्धिप्रकाश के वातावरण की सार्थक अनुभूति कराता है। आज के अंक में हम आपके लिए पण्डित रविशंकर का सितार पर बजाया राग रामकली प्रस्तुत कर रहे हैं। पिछले दिनों भारतीय संगीत की समृद्ध परम्परा को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने वाले इस महान कलासाधक का निधन हो गया था। पिछली शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक भारतीय संगीत की आध्यात्मिकता और शास्त्रीयता, पाश्चात्य संगीत जगत के लिए एक जटिल प्रक्रिया थी। पण्डित जी ने आरम्भ में अपनी विदेश यात्राओं के दौरान इस विरोधाभास का अध्ययन किया और फिर अपनी कठोर साधना से अर्जित संगीत-ज्ञान को विदेशों में इस प्रकार प्रस्तुत किया कि पूरा यूरोप ‘वाह-वाह’ कर उठा। 7 अप्रेल, 1920 को तत्कालीन बनारस (अब वाराणसी) के बंगाली टोला नामक मुहल्ले में एक संगीत-प्रेमी परिवार में जन्मे रवीन्द्रशंकर चौधरी (बचपन में रखा गया पूरा नाम) का गत मास निधन हो गया था। इस महान कलासाधक को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए आपको उन्हीं का बजाया राग रामकली सुनवा रहे हैं।


राग रामकली : मध्य व द्रुत लय की दो रचनाएँ : पण्डित रविशंकर



प्रथम प्रहर के अन्तिम चरण में प्रयोग किया जाने वाला एक बहुत ही मोहक किन्तु आजकल कम प्रचलित राग है- ‘बसन्त मुखारी’ है। आमतौर पर संगीत-साधक इस राग का प्रयोग प्रथम प्रहर की समाप्ति से कुछ समय पूर्व करते हैं। कभी-कभी दूसरे प्रहर के आरम्भ में भी इस राग का प्रयोग किया जाता है। भैरव थाट और सम्पूर्ण जाति के इस राग में ऋषभ, धैवत और निषाद स्वर कोमल प्रयोग किये जाते हैं। राग बसन्त मुखारी के पूर्वांग में भैरव और उत्तरांग में भैरवी परिलक्षित होता है। इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। आज हम आपको राग बसन्त मुखारी राग में निबद्ध भक्ति और श्रृंगार रस से मिश्रित एक रचना सुनवाते हैं। इस रचना को सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित जसराज ने स्वर दिया है, जिसके बोल हैं- ‘जल जमुना भरने निकसी गोरी...’।


राग बसन्त मुखारी : ‘जल जमुना भरने निकसी गोरी...’ : पण्डित जसराज



आज हमारी चर्चा में प्रथम प्रहर के राग हैं। विद्वानों का मत है कि सन्धिप्रकाश, अर्थात सूर्योदय की लालिमा आकाश में नज़र आने से लेकर सूर्योदय के बाद तक इस प्रहर के प्रमुख राग 'भैरव' का गायन-वादन मुग्धकारी होता है। इस राग में ऋषभ और धैवत स्वर कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। इस राग का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर ऋषभ होता है। राग ‘भैरव’ पर आधारित फिल्म-गीतों में से एक अत्यन्त मनमोहक गीत आज हमने चुना है। 1956 में विख्यात फ़िल्मकार राज कपूर ने महत्वाकांक्षी फिल्म ‘जागते रहो’ का निर्माण किया था। इस फिल्म के संगीतकार सलिल चौधरी का चुनाव स्वयं राज कपूर ने ही किया था, जबकि उस समय तक शंकर-जयकिशन उनकी फिल्मों के स्थायी संगीतकार हो चुके थे। फिल्म ‘जागते रहो’ बांग्ला फिल्म ‘एक दिन रात्रे’ का हिन्दी संस्करण था और बांग्ला संस्करण के संगीतकार सलिल चौधरी को ही हिन्दी संस्करण के संगीत निर्देशन का दायित्व दिया गया था। सलिल चौधरी ने इस फिल्म के गीतों में पर्याप्त विविधता रखी। इस फिल्म में उन्होने एक गीत ‘जागो मोहन प्यारे, जागो...’ की संगीत रचना ‘भैरव’ राग के स्वरों पर आधारित की थी। शैलेन्द्र के लिखे गीत जब लता मंगेशकर के स्वरों में ढले, तब यह गीत हिन्दी फिल्म संगीत का मीलस्तम्भ बन गया। आइए, आज हम राग ‘भैरव’ पर आधारित, फिल्म ‘जागते रहो’ का यह गीत सुनते हैं। आप इस गीत का रसास्वादन करें और हमें ‘राग और प्रहर’ श्रृंखला की पहली कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।


राग भैरव : फिल्म जागते रहो : ‘जागो मोहन प्यारे...’ : लता मंगेशकर




आज की पहेली


‘स्वरगोष्ठी’ के 103वीं संगीत पहेली में हम आपको एक राग आधारित फिल्मी गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 110वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।



1- संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?


2- इस गीत के गायक-गायिका कौन हैं?

आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 105वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।



पिछली पहेली के विजेता


‘स्वरगोष्ठी’ के 101वें अंक में हमने आपको सुप्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर के स्वरों में राग केदार पर आधारित फिल्म ‘मुगल-ए-आज़म’ के एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग केदार और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका लता मंगेशकर। दोनों प्रश्नो के सही उत्तर लखनऊ के प्रकाश गोविन्द, जबलपुर की क्षिति तिवारी और जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से बधाई।



झरोखा अगले अंक का


मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक से हमने ‘राग और प्रहर’ शीर्षक से यह नवीन श्रृंखला आरम्भ की है। अगले अंक में हम दिन के दूसरे प्रहर के कुछ रागों पर चर्चा करेंगे। दिन के इस दूसरे प्रहर की अवधि प्रातः 9 से मध्याह्न 12 बजे के बीच माना जाता है। आप दूसरे से लेकर आठवें प्रहर के प्रचलित रागों और इन रागों में निबद्ध रचनाओं के बारे में अपनी फरमाइश भी कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों को पूरा सम्मान देंगे। अगले अंक में रविवार को प्रातः ९-३० बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सब संगीत-रसिकों की हम प्रतीक्षा करेंगे।



कृष्णमोहन मिश्र 


Comments

bahoot acchha prayas hai,hamare paramparagat shastriya sanggeet se hi man ko shaanti milti hai.
film sangeet ko aadhaar bana kar shastriya sangeet /raag parichaya karwaana ek saarthak aur samayik prayaas hai.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...