ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 429/2010/129
कल्याणजी-आनंदजी के सुर लहरियों से सजी इस लघु शृंखला 'दिल लूटने वाले जादूगर' में आज छा रहा है शास्त्रीय रंग। इसे एक रोचक तथ्य ही माना जाना चाहिए कि तुलनात्मक रूप से कम लोकप्रिय राग चारूकेशी पर कल्याणजी-आनंदजी ने कई गीत कम्पोज़ किए हैं जो बेहद कामयाब सिद्ध हुए हैं। चारूकेशी के सुरों को आधार बनाकर "छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए" (सरस्वतीचन्द्र), "मोहब्बत के सुहाने दिन, जवानी की हसीन रातें" (मर्यादा), "किसी राह में किसी मोड़ पर (मेरे हमसफ़र), "अकेले हैं चले आओ" (राज़), "एक तू ना मिला" (हिमालय की गोद में), "कभी रात दिन हम दूर थे" (आमने सामने), "बेख़ुदी में सनम उठ गए जो क़दम" (हसीना मान जाएगी), "जानेजाना, जब जब तेरी सूरत देखूँ" (जाँबाज़) जैसे गीतों की याद कल्याणजी-आनंदजी के द्वारा इस राग के विविध प्रयोगों के उदाहरण के रूप में फ़िल्म संगीत में जीवित रहेगी। चारूकेशी का इतना व्यापक व विविध इस्तेमाल शायद ही किसी और संगीतकार ने किया होगा! दूसरे संगीतकारों के जो दो चार गानें याद आते हैं वो हैं लक्ष्मी-प्यारे के "आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं" (मिलन), "मेघा रे मेघा रे मत परदेस जा रे" (प्यासा सावन), मदन मोहन का "बैयाँ ना धरो हो बलमा" (दस्तक), और रवीन्द्र जैन का "श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम" (गीत गाता चल)। ऒरकेस्ट्रेशन भले ही पाश्चात्य हो, लेकिन उस पर भी शास्त्रीय रागों के इस्तेमाल से मेलोडी में इज़ाफ़ा करने से कल्याणजी-आनंदजी कभी नहीं पीछे रहे। उनका हमेशा ध्यान रहा कि गीत मेलोडियस हो, सुमधुर हो, और शायद यही कारण है कि उनके बनाए गीतों की लोकप्रियता आज भी वैसे ही बरकरार है जैसा कि उस ज़माने में हुआ करता था। उनका संगीत मास और क्लास, दोनों को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता रहा है। दोस्तों, आज हम राग चारूकेशी पर आधारित १९७० की फ़िल्म 'मेरे हमसफ़र' का गीत सुनने जा रहे हैं "किसी राह में किसी मोड़ पर, कहीं चल ना देना तू छोड़ कर, मेरे हमसफ़र मेरे हमसफ़र"। लता मंगेशकर और मुकेश की आवाज़ें, गीतकार आनंद बक्शी के बोल! जीतेन्द्र और शर्मीला टैगोर पर एक ट्रक के उपर फ़िल्माया गया था यह गाना। फ़िल्म तो ख़ास नहीं चली, लेकिन यह गीत अमर हो कर रह गया।
आज ३० जून है। कल्याणजी भाई का जन्मदिवस। 'हिंद-युग्म' की तरफ़ से हम कल्याणजी भाई को श्रद्धांजली अर्पित करते हैं उन्ही के रचे इस ख़ूबसूरत और दिल को छू लेने वाले गीत के ज़रिए। कल्याणजी भाई का २४ अगस्त २००० में निधन हो गया, आनंदजी भाई के बड़े भाई और उनके सुरीले हमसफ़र उनसे हमेशा के लिए बिछड़ गए। लेकिन यह भी सच है कि कल्याणजी भाई अपनी धुनों के ज़रिए हमेशा जीवित रहेंगे। आनंदजी भाई ने कल्याणजी भाई के अंतिम समय का हाल कुछ इस तरह से बयान किया था विविध भारती के उसी इंटरव्यू में - "फ़ादर फ़िगर थे। सब से दुख की बात मुझे लगती है कि ये जब बीमार थे, अस्पताल में मैं उनसे मिलने गया। तो अक्सर ऐसा होता है कि मिलने नहीं देते हैं; डॊक्टर्स कहते हैं कि इनको रेस्ट करने दो, समझते नहीं हैं इस बात को कि आख़िरी टाइम जो होता है। तो जाने से पहले आख़िरी दिन, जब मैं उनसे मिलने अंदर गया, तो उनकी आँख में आँसू थे और वो कुछ बोलना चाहते थे। अब क्या कहना चाहते थे यह समझ में नहीं आया। डॊक्टर कहने लगे कि 'dont disturb him, dont disturb him'. मुझे समझ में नहीं आया कि क्या कहना चाहते थे। वह बात दिल में ही रह गई। उनके जाने के बाद मैं रो रहा था तो किसी ने कहा कि मत रो। मैंने कहा कि अब नहीं रोऊँ तो कब रोऊँ!" दोस्तों, कल्याणजी भाई इस फ़ानी दुनिया से जाकर भी हमारे बीच ही हैं अपनी कला के ज़रिए। आज का यह प्रस्तुत गीत हमें इसी बात का अहसास दिलाता है। यह गीत हम अपनी तरफ़ से ही नहीं बल्कि आनंदजी भाई की तरफ़ से भी डेडिकेट करना चाहेंगे उनके बड़े भाई, गुरु और हमसफ़र कल्याणजी भाई के नाम।
"तेरा साथ है तो है ज़िंदगी,
तेरा प्यार है तो है रोशनी,
कहाँ दिन ये ढल जाए क्या पता,
कहाँ रात हो जाए क्या ख़बर,
मेरे हमसफ़र, मेरे हमसफ़र।
किसी राह में किसी मोड़ पर,
कहीं चल ना देना तू छोड़ कर,
मेरे हमसफ़र, मेरे हमसफ़र।"
क्या आप जानते हैं...
कि कल्याणजी-आनंदजी को १९९६ में फ़िल्म जगत में विशिष्ट सेवाओं के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रदत्त 'लता मंगेशकर पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस गीत के दो वर्जन हैं फिल्म में, एक आशा की आवाज़ में है, दूसरे वर्जन जो कल बजेगा उसके गायक बताएं -३ अंक.
२. गीतकार बताएं इस शानदार गीत के - २ अंक.
३. संजय दत्त अभिनीत फिल्म का नाम बताएं - २ अंक.
४. फिल्म की नायिका का नाम क्या है - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी आपके ३ अंकों का त्याग भी काम नहीं आया, खैर आपको और अवध जी को २-२ अंकों की बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
कल्याणजी-आनंदजी के सुर लहरियों से सजी इस लघु शृंखला 'दिल लूटने वाले जादूगर' में आज छा रहा है शास्त्रीय रंग। इसे एक रोचक तथ्य ही माना जाना चाहिए कि तुलनात्मक रूप से कम लोकप्रिय राग चारूकेशी पर कल्याणजी-आनंदजी ने कई गीत कम्पोज़ किए हैं जो बेहद कामयाब सिद्ध हुए हैं। चारूकेशी के सुरों को आधार बनाकर "छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए" (सरस्वतीचन्द्र), "मोहब्बत के सुहाने दिन, जवानी की हसीन रातें" (मर्यादा), "किसी राह में किसी मोड़ पर (मेरे हमसफ़र), "अकेले हैं चले आओ" (राज़), "एक तू ना मिला" (हिमालय की गोद में), "कभी रात दिन हम दूर थे" (आमने सामने), "बेख़ुदी में सनम उठ गए जो क़दम" (हसीना मान जाएगी), "जानेजाना, जब जब तेरी सूरत देखूँ" (जाँबाज़) जैसे गीतों की याद कल्याणजी-आनंदजी के द्वारा इस राग के विविध प्रयोगों के उदाहरण के रूप में फ़िल्म संगीत में जीवित रहेगी। चारूकेशी का इतना व्यापक व विविध इस्तेमाल शायद ही किसी और संगीतकार ने किया होगा! दूसरे संगीतकारों के जो दो चार गानें याद आते हैं वो हैं लक्ष्मी-प्यारे के "आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं" (मिलन), "मेघा रे मेघा रे मत परदेस जा रे" (प्यासा सावन), मदन मोहन का "बैयाँ ना धरो हो बलमा" (दस्तक), और रवीन्द्र जैन का "श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम" (गीत गाता चल)। ऒरकेस्ट्रेशन भले ही पाश्चात्य हो, लेकिन उस पर भी शास्त्रीय रागों के इस्तेमाल से मेलोडी में इज़ाफ़ा करने से कल्याणजी-आनंदजी कभी नहीं पीछे रहे। उनका हमेशा ध्यान रहा कि गीत मेलोडियस हो, सुमधुर हो, और शायद यही कारण है कि उनके बनाए गीतों की लोकप्रियता आज भी वैसे ही बरकरार है जैसा कि उस ज़माने में हुआ करता था। उनका संगीत मास और क्लास, दोनों को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता रहा है। दोस्तों, आज हम राग चारूकेशी पर आधारित १९७० की फ़िल्म 'मेरे हमसफ़र' का गीत सुनने जा रहे हैं "किसी राह में किसी मोड़ पर, कहीं चल ना देना तू छोड़ कर, मेरे हमसफ़र मेरे हमसफ़र"। लता मंगेशकर और मुकेश की आवाज़ें, गीतकार आनंद बक्शी के बोल! जीतेन्द्र और शर्मीला टैगोर पर एक ट्रक के उपर फ़िल्माया गया था यह गाना। फ़िल्म तो ख़ास नहीं चली, लेकिन यह गीत अमर हो कर रह गया।
आज ३० जून है। कल्याणजी भाई का जन्मदिवस। 'हिंद-युग्म' की तरफ़ से हम कल्याणजी भाई को श्रद्धांजली अर्पित करते हैं उन्ही के रचे इस ख़ूबसूरत और दिल को छू लेने वाले गीत के ज़रिए। कल्याणजी भाई का २४ अगस्त २००० में निधन हो गया, आनंदजी भाई के बड़े भाई और उनके सुरीले हमसफ़र उनसे हमेशा के लिए बिछड़ गए। लेकिन यह भी सच है कि कल्याणजी भाई अपनी धुनों के ज़रिए हमेशा जीवित रहेंगे। आनंदजी भाई ने कल्याणजी भाई के अंतिम समय का हाल कुछ इस तरह से बयान किया था विविध भारती के उसी इंटरव्यू में - "फ़ादर फ़िगर थे। सब से दुख की बात मुझे लगती है कि ये जब बीमार थे, अस्पताल में मैं उनसे मिलने गया। तो अक्सर ऐसा होता है कि मिलने नहीं देते हैं; डॊक्टर्स कहते हैं कि इनको रेस्ट करने दो, समझते नहीं हैं इस बात को कि आख़िरी टाइम जो होता है। तो जाने से पहले आख़िरी दिन, जब मैं उनसे मिलने अंदर गया, तो उनकी आँख में आँसू थे और वो कुछ बोलना चाहते थे। अब क्या कहना चाहते थे यह समझ में नहीं आया। डॊक्टर कहने लगे कि 'dont disturb him, dont disturb him'. मुझे समझ में नहीं आया कि क्या कहना चाहते थे। वह बात दिल में ही रह गई। उनके जाने के बाद मैं रो रहा था तो किसी ने कहा कि मत रो। मैंने कहा कि अब नहीं रोऊँ तो कब रोऊँ!" दोस्तों, कल्याणजी भाई इस फ़ानी दुनिया से जाकर भी हमारे बीच ही हैं अपनी कला के ज़रिए। आज का यह प्रस्तुत गीत हमें इसी बात का अहसास दिलाता है। यह गीत हम अपनी तरफ़ से ही नहीं बल्कि आनंदजी भाई की तरफ़ से भी डेडिकेट करना चाहेंगे उनके बड़े भाई, गुरु और हमसफ़र कल्याणजी भाई के नाम।
"तेरा साथ है तो है ज़िंदगी,
तेरा प्यार है तो है रोशनी,
कहाँ दिन ये ढल जाए क्या पता,
कहाँ रात हो जाए क्या ख़बर,
मेरे हमसफ़र, मेरे हमसफ़र।
किसी राह में किसी मोड़ पर,
कहीं चल ना देना तू छोड़ कर,
मेरे हमसफ़र, मेरे हमसफ़र।"
क्या आप जानते हैं...
कि कल्याणजी-आनंदजी को १९९६ में फ़िल्म जगत में विशिष्ट सेवाओं के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रदत्त 'लता मंगेशकर पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस गीत के दो वर्जन हैं फिल्म में, एक आशा की आवाज़ में है, दूसरे वर्जन जो कल बजेगा उसके गायक बताएं -३ अंक.
२. गीतकार बताएं इस शानदार गीत के - २ अंक.
३. संजय दत्त अभिनीत फिल्म का नाम बताएं - २ अंक.
४. फिल्म की नायिका का नाम क्या है - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी आपके ३ अंकों का त्याग भी काम नहीं आया, खैर आपको और अवध जी को २-२ अंकों की बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
अवध लाल
कुछ दिनों अपनी पुत्री के पास विदेश में समय व्यतीत करने बल्कि अपनी दो प्यारी नातिनों के मोह के कारण (आप लोग तो जानते ही हैं कि मूल से सूद अधिक प्यारा होता है.)आवाज़ की दुनिया से शायद जुड़ने में थोड़ी मुश्किल हो.
लौट कर फिर आवाज़ से संपर्क रहेगा.
तब तक के लिए विदा की आज्ञा चाहता हूँ.
और हाँ, महागुरु शरद जी को अग्रिम बधाई.
इंदु बहिन को आज के बाद जन गणना अभियान से मुक्ति मिल गयी होगी तो वोह पूरे जोर शोर से सहभाग लेंगी.
नमस्कार
अवध लाल