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चित्रकथा - 27: इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 1)

अंक - 27

इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 1)


"मैं हूँ हीरो तेरा..." 



’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ में आपका हार्दिक स्वागत है। 



हर रोज़ देश के कोने कोने से न जाने कितने युवक युवतियाँ आँखों में सपने लिए माया नगरी मुंबई के रेल्वे स्टेशन पर उतरते हैं। फ़िल्मी दुनिया की चमक-दमक से प्रभावित होकर स्टार बनने का सपना लिए छोटे बड़े शहरों, कसबों और गाँवों से मुंबई की धरती पर क़दम रखते हैं। और फिर शुरु होता है संघर्ष। मेहनत, बुद्धि, प्रतिभा और क़िस्मत, इन सभी के सही मेल-जोल से इन लाखों युवक युवतियों में से कुछ गिने चुने लोग ही ग्लैमर की इस दुनिया में मुकाम बना पाते हैं। और कुछ फ़िल्मी घरानों से ताल्लुख रखते हैं जिनके लिए फ़िल्मों में क़दम रखना तो कुछ आसान होता है लेकिन आगे वही बढ़ता है जिसमें कुछ बात होती है। हर दशक की तरह वर्तमान दशक में भी ऐसे कई युवक फ़िल्मी दुनिया में क़दम जमाए हैं जिनमें से कुछ बेहद कामयाब हुए तो कुछ कामयाबी की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। कुल मिला कर फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद भी उनका संघर्ष जारी है यहाँ टिके रहने के लिए। ’चित्रकथा’ में आज से हम शुरु कर रहे हैं इस दशक के नवोदित नायकों पर केन्द्रित एक लघु श्रॄंखला जिसमें हम बातें करेंगे वर्तमान दशक में अपना करीअर शुरु करने वाले शताधिक नायकों की। प्रस्तुत है ’इस दशक के नवोदित नायक’ श्रॄंखला की पहली कड़ी। 



आदर और अरमान जैन
हिन्दी फ़िल्मी परिवारों में कपूर परिवार का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। पृथ्वीराज कपूर से लेकर आज तक इस परिवार ने एक से एक सितारे फ़िल्म जगत के आकाश को जगमगाते चले आए हैं। करिश्मा कपूर, करीना कपूर और रणबीर कपूर के बाद राज कपूर की बेटी रीमा जैन के दो बेटे भी फ़िल्म जगत में हाल में उतर चुके हैं - अरमान जैन और आदर जैन। 25 नवंबर 1990 को मुंबई में जन्मे अरमान ने अपनी फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत की शकुन बत्रा की फ़िल्म ’एक मैं और एक तू’ मे सहकारी निर्देशक के रूप में। यहाँ उन्होंने फ़िल्म निर्माण की बारीकियों को क़रीब से देखा और सीखा। करण जोहर की फ़िल्म ’स्टुडेन्ट ऑफ़ दि यीअर’ में भी उन्होंने सहकारी निर्देशक की भूमिका निभाई। इसी फ़िल्म में अरमान और अभिषेक वर्मन की दोस्ती हो गई और अभिषेक ने अरमान का नाम ’लेकर हम दीवाना दिल’ फ़िल्म के लिए सजेस्ट किया फ़िल्म के निर्माता सैफ़ अली ख़ान को। आरिफ़ अली निर्देशित इस फ़िल्म से अरमान जैन का अभिनय सफ़र शुरु हुआ। फ़िल्म तो बॉक्स ऑफ़िस पर असफल रही पर अरमान की अदाकारी दुनिया के सामने आ गई। आगे चल कर अरमान अभिनय करे या निर्देशक बने, या दोनों करें, देखना यह है कि क्या वो कपूर ख़ानदान के नाम को और भी उपर ले जा पाते हैं या नहीं। अरमान के भाई आदर जैन भी इस वर्ष बतौर नायक लौंच होने जा रहे हैं आदित्य चोपड़ा की फ़िल्म में। ’ली स्ट्रॉसबर्ग थिएटर ऐण्ड फ़िल्म इन्स्टिट्युट’ से पढ़े आदर ने पिछले साल करण जोहर की फ़िल्म ’ऐ दिल है मुश्किल’ में सहकारी निर्देशक के रूप में काम किया जहाँ उन्हें फ़िल्म निर्माण की बहुत सी बातें सीखने का मौका मिला। कास्टिंग् डिरेक्टर शानू शर्मा, जिन्होंने ’इशक़ज़ादे’ के लिए अर्जुन कपूर और परिनीति चोपड़ा का आविष्कार किया था, ने ही अरमान का भी आविष्कार किया था। शानू का कहना है कि फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़े फ़िल्मी परिवार से आए लड़के भी रिजेक्ट हो जाते हैं जबकि गुमनाम किसी पर आम परिवार से आने वाला भी स्टार बन जाता है। आदर को इस फ़िल्म में इसलिए नहीं लिया जा रहा है कि वो राज कपूर के नाती हैं, बल्कि इसलिए कि उनमें कुछ ऐसी बात है जो इस फ़िल्म की कहानी के नायक में होनी चाहिए। यह वक़्त ही बताएगा कि शोमैन राज कपूर की बेटी रीमा कपूर जैन के ये दो बेटे - अरमान और आदर - किस मुकाम तक पहुँच पाते हैं।


हर्षवर्धन और अर्जुन कपूर
अभी अर्जुन कपूर का ज़िक्र आया था तो याद आया कि उन्होंने भी इसी दशक में फ़िल्म इंडस्ट्री में क़दम रखा था 2012 की फ़िल्म ’इशक़ज़ादे’ से। एक और कपूर परिवार से ताल्लुख़ रखने वाले अर्जुन फ़िल्मकार बोनी कपूर के सुपुत्र हैं। चाचा अनिल कपूर और संजय कपूर से अभिनय के नुस्खे, और पिता से फ़िल्म निर्माण की बातों का असर अर्जुन पर बचपन से ही पड़ा। अर्जुन बारहवीं फ़ेल हो गया और पढ़ाई छोड़ दी। 27 साल की उम्र तक कुछ ना करने के बाद शानू शर्मा ने उन्हें ’इशक़ज़ादे’ में कास्ट किया। फ़िल्म सुपरहिट रही और अर्जुन कपूर रातों रात स्टार बन गए। उस वर्ष के बेस्ट डेब्यु के तमाम इनाम उन्हीं को मिले। वैसे इससे दस साल पहले ही वो ’कल हो ना हो’ और ’सलाम-ए-इश्क़’ में बतौर सहकारी निर्देशक तथा ’नो एन्ट्री’ और ’वान्टेड’ में बतौर सहकारी निर्माता काम कर चुके थे। ’इशक़ज़ादे’ की अपार सफलता के बाद उन्हें एक के बाद एक फ़िल्में मिलती चली गईं जिनमें शामिल हैं ’औरंगज़ेब’, ’गुंडे’, ’टू स्टेट्स’, ’फ़ाइन्डिंग् फ़ैनी’, ’तेवर’, ’की ऐण्ड का’ और हाल में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ’हाफ़ गर्लफ़्रेन्ड’। इस साल उनके अभिनय से सजकर ’मुबारकाँ’ आने वाली है और 2018 में आएगी ’कनेडा’। आज अर्जुन कपूर एक सफल अभिनेता हैं और इस दौर के शीर्ष नायकों में उनका शुमार हो रहा है। अपने दादा और फ़िल्मकार सुरिन्दर कपूर के ख़ानदान का नाम वो यकीनन यूंही रोशन करते रहेंगे आने वाले समय में। अर्जुन कपूर और अपने पिता अनिल कपूर के नक्श-ए-क़दम पर चलते हुए हर्षवर्धन कपूर ने भी फ़िल्म जगत में क़दम रखा 2015 में बतौर सहायक निर्देशक अनुराग कश्यप की फ़िल्म ’बॉम्बे वेल्वेट’ से। 2016 में राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने हर्षवर्धन को बतौर नायक लौंच किया अपनी फ़िल्म ’मिर्ज़्या’ में। इस फ़िल्म में हर्ष के अभिनय की काफ़ी चर्चा हुई और समीक्षकों के अच्छी राय मिली। उनके जानदार अभिनय के लिए उस वर्ष स्टार स्क्रीन अवार्ड्स और स्टारडस्ट अवार्ड्स का ’बेस्ट मेल डेब्यु’ का पुरस्कार हर्ष को मिला। फ़िल्मफ़ेअर का बेस्ट मेल डेब्यु का पुरस्कार गया सूरज पंचोली को फ़िल्म ’हीरो’ के लिए। 2017 में हर्षवर्धन की दूसरी फ़िल्म आ रही है ’भावेश जोश”। विक्रमादित्य मोतवाने की इस फ़िल्म पर सबकी निगाहें टिकी हुईं है। हर्षवर्धन का फ़िल्मी सफ़र अभी बस शुरु ही हुआ है। देखना है कि क्या अपने पिता के नक़्श-ए-क़दम पर चलते हुए उन्हीं जैसा शोहरत हासिल कर पाते हैं या नहीं।


अहान शेट्टी, सूरज पंचोली
अभी अभी पुरस्कारों के संदर्भ में सूरज पंचोली का ज़िक्र आया था। सूरज पंचोली अभिनेता आदित्य पंचोली और अभिनेत्री ज़रीन वहाब के साहबज़ादे हैं। 2015 में सुपरस्टार सलमान ख़ान ने उन्हें अपनी फ़िल्म ’हीरो’ में ब्रेक दिया। इस फ़िल्म के आने से पहले ही वो सुर्ख़ियों पर आ गए थे जब उनकी दोस्त जिया ख़ान ने ख़ुदकुशी कर ली थी। उन्हें गिरफ़्तार भी होना पड़ा और अब भी वह केस चल रहा है। इन सब के बीच ’हीरो’ रिलीज़ हुई और फ़िल्म ऐवरेज चली। सही या ग़लत कारणों से ही सही, सूरज चर्चा में बने रहे। सूरज के अभिनय को सराहा गया है और कई समीक्षकों ने यह भी कहा है कि उनमें वह बात है जो उन्हें चोटी तक पहुँचा सकती है, बस सही समय और सही फ़िल्म की प्रतीक्षा है। सुनने में आया है कि सलमान ख़ान फिर एक बार सूरज को लेकर फ़िल्म बनाने जा रहे हैं जो एक तेलुगू फ़िल्म का रीमेक है। दूसरी तरफ़ 'ABCD-2’ के निर्देशक व नृत्य निर्देशक रेमो डी’सूज़ा भी सूरज को लेकर अपनी अगली फ़िल्म बना रहे हैं जो एक ऐक्शन लव स्टोरी है। इस तरह से सूरज आजकल काफ़ी व्यस्त हैं और एक उज्वल भविष्य की राह देख रहे हैं। फ़िल्म ’हीरो’ में ही सलमान ने सुनील शेट्टी की बेटी अथिया शेट्टी को भी लौंच किया था। इस वर्ष 2017 में सुनील शेट्टी के बेटे अहान शेट्टी भी फ़िल्मों में क़दम रखने जा रहे हैं। जानेमाने फ़िल्मकार साजिद नडियाडवाला की फ़िल्म में नज़र आएँगे अहान बहुत जल्द। बीस वर्षीय अहान ने अपने शरीर पर बहुत मेहनत की है और एक आकर्षक शरीर का गठन किया है जो एक ऐक्शन हीरो की होनी चाहिए। अहान सलमान ख़ान को अपना रोल मॉडल मानते हैं और उन्हीं की पुरानी फ़िल्मों को देख देख कर अपने आप को तैयार कर रहे हैं। अहान लंदन में अभिनय की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और साथ ही साथ अपनी फ़िल्म पर भी काम कर रहे हैं। फ़िल्म के नायक के चरित्र के अनुसार अहान को लंदन में ही मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग् भी दी जा रही है। सुनने में आया है कि साजिद ने उनसे एक नहीं बल्कि तीन फ़िल्मों का कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाया है। साजिद जैसे मंझे हुए फ़िल्मकार अगर एक नवान्तुक के एक साथ तीन फ़िल्मों में काम करने के लिए राज़ी हो जाए, इसका अर्थ सिर्फ़ एक ही हो सकता है कि सामने वाले बन्दे में दम है। यानी कि अहान में ख़ास बात ज़रूर होगी। अहान साजिद के इस भरोसे पर कितना खरा उतरते हैं यह तो वक़्त ही बताएगा।


आशिम गुलाटी, अर्श सेहरावत
अब बातें दिल्ली के दो नायकों की। दिल्ली में जन्में और पले बढ़े आशिम गुलाटी का बचपन से ही ग्लैमर की दुनिया में क़दम जमाने का सपना था। इसलिए पढ़ाई पूरी होते ही वो मुंबई चले आए। उनकी क़िस्मत अच्छी थी कि उन्हें शुरुआती संघर्ष नहीं करना पड़ा। मॉडल वाली कदकाठी के होने की वजह से उन्हें जल्दी ही मॉडलिंग् का काम मिल गया और टेलीविज़न में भी जल्दी ही वो उतर गए। क़िस्मत ने फिर एक बार उनका साथ दिया जब निर्माता भूषण कुमार और निर्देशक अनुभव सिंहा ने ’तुम बिन 2’ के लिए उन्हें ऑडिशन पर बुलाया। ’तुम बिन’ की अपार सफलता के बाद ’तुम बिन 2’ में मौका पाना अपने आप में एक सफलता थी। हालाँकि इस फ़िल्म को वह सफलता नहीं मिली जो ’तुम बिन’ को मिली थी, पर एक अभिनेता के रूप में आशिम के अभिनय को सराहा गया। आशिम के चेहरे की तुलना लोग अक्सर आदित्य रॉय कपूर से करते हैं जिसका उन पर कोई असर नहीं है। आशिम की दिली ख़्वाहिश है कि वो लंगड़ा त्यागी और ’बरफ़ी’ में रणबीर कपूर द्वारा निभाए किरदारों जैसा अभिनय करें अपनी आने वाली फ़िल्मों में। दिल्ली में पले-बढ़े अर्श सेहरावत ने फ़िल्म जगत में क़दम रखा 2013 की फ़िल्म ’से इट’ से। पूर्णिमा देशपांडे निर्देशित इस फ़िल्म में अर्श नज़र आए अभिनेत्री जेसिक कौर ढुग्गा के विपरीत। बदक़िस्मती से यह फ़िल्म नहीं चली और अर्श को भी किसी ने याद नहीं रखा। इस असफलता से अर्श ने हार नहीं माना और जुटे रहे अपने संघर्ष में। हाल ही में उनकी दूसरी फ़िल्म ’थोड़ी थोड़ी सी मनमानियाँ’ प्रदर्शित हुई है जिसने ’से इट’ से बेहतर प्रदर्शन किया है। अर्श ने ’व्हिस्लिंग् वूड्स’ में ऐक्टिंग् का कोर्स किया है जहाँ पर उनके दोस्त थे अजिंक्य किशोर जो स्क्रिप्ट-राइटिंग् का कोर्स कर रहे थे। और वो ही इस फ़िल्म के स्क्रीनप्ले व संवाद लेखक हैं। और अजिंक्य के ज़रिए ही अर्श की मुलाक़ात हुई इस फ़िल्म के निर्देशक आदित्य सरपोतदार से। आदित्य को अर्श की लघु फ़िल्में पसन्द आई और उन्हें लगा कि ’थोड़ी थोड़ी सी मनमानियाँ’ के नायक के किरदार में अर्श सटीक बैठते हैं। 26 मई 2017 को यह फ़िल्म प्रदर्शित हुई है और आगे वक़्त ही बताएगा कि अर्श फ़िल्म जगत में किस तरह से आगे बढ़ते हैं।


आरन चौधरी, अभिनव शुक्ला, प्रणय दीक्षित
अब ज़िक्र चार अभिनेताओं की जिनका फ़िल्मी सफ़र इसी दशक में शुरु हुआ है। वैसे तो अलग अलग फ़िल्म या टीवी धारावाहिक से इनकी शुरुआत हुई है, लेकिन एक फ़िल्म जो इन चारों को आपस में एक दूसरे से जोड़ती है, वह है ’रोर- टाइगर्स ऑफ़ द सुन्दरबन्स’। इस फ़िल्म में आरन चौधरी, अभिनव शुक्ला, प्रणय दीक्षित और पुल्कित जवाहर एक साथ नज़र आए। अबीस रिज़्वी निर्मित तथा कमल सदानाह निर्देशित यह फ़िल्म चर्चा का विषय बन गया था क्योंकि इसमें VFX पद्धति का प्रयोग कर कमाल के स्पेशल इफ़ेक्ट्स दिखाए गए थे। लुधियाना में जन्में और वहीं पले बढ़े अभिनव शुक्ला ने 2004 में इंजिनीयरिंग् की डिग्री प्राप्त की। लेकिन इसी साल वो बने ग्लैडरैग्ज़ मिस्टर इंडिया कॉन्टेस्ट में मिस्टर बेस्ट पोटेन्शियल। इस ख़िताब की वजह से उन्हें टेलीविज़न के ऑफ़र्स आने लगे और अभिनव चले आए ग्लैमर की दुनिया में। दस साल बाद 2014 में अबीस रिज़्वी ने उन्हें अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म ’रोर’ में पहले नायक का किरदार ऑफ़र किया और इस तरह से इंजिनीयर, मॉडल व टीवी कलाकार अभिनव शुक्ला बन गए फ़िल्म नायक। आने वाले समय में हमारे नज़रें उन पर टिकी होंगी। आरन चौधरी भी एक मशहूर मॉडल हैं जिन्होंने 2010 में ग्लैडरैग्स मैनहन्ट मिस्टर इंडिया ख़िताब जीते और उसी साल उन्हें भारत का बेस्ट रैम्प मॉडल चुना गया तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ’मैनहन्ट इन्टरनैशनल कॉनटेस्ट’ में उन्हें सातवाँ स्थान मिला। इससे वो ग्लैमर की दुनिया में एक नामचीन मॉडल बन गए। फ़िल्मों में उनका आना हुआ 2012 की फ़िल्म ’एक था टैगर’ में। 2014 में ’रोर’ में जानदार अभिनय प्रतिभा दिखाने के बाद आरन ने 2015 में ’सिंह इज़ ब्लिंग्’ और तेलुगू फ़िल्म ’वलियवान’ में अभिनय किया। प्रणय दीक्षित टेलीविज़न के हास्य धारावाहिकों में एक जाना माना चेहरा हैं और उनके कॉमिक सेन्स और टाइमिंग् के तो कहने ही क्या! ’जुगाड़ूलाल’, ’लापतागंज’, ’FIR’, ’चिड़ियाघर’, ’हम आपके हैं इन-लॉज़’, ’बचन पाण्डे की टोली’, ’गिलि गिलि गप्पा’ जैसे बहुत से लोकप्रिय धारावाहिकों में प्रणय नज़र आते रहे हैं। प्रणय दीक्षित से एक बार हमारी लम्बी बातचीत हुई थी, जिसमें उन्होंने इस फ़िल्म में उनका चयन किस तरह से हुआ था, विस्तार से बताया था। "मैं फ़िल्में एक संक्रमण की तरह देखा करता था। साथ-साथ ऑबज़र्वेशन और लर्निंग्‍ भी जारी था। जब भी मुझे समय मिलता मैं जाकर ऑडिशन दे आता अपना आँकलन करने के लिए। और एक समय जाकर मैंने यह महसूस किया कि टीवी में अभिनय और फ़िल्मों में अभिनय दो बिल्कुल अलग चीज़ें हैं। फ़िल्मों में अभिनय करना बच्चों का खेल नहीं, यह बात समझ में आ गई और इसलिए मैंने सोचा कि अब समय आ गया है कि और मेहनत से अपने अभिनय को अगले स्तर तक पहुँचाया जाए। इसलिए ऑडिशन जारी रखा, और करीब करीब 1500 ऑडिशन्स मैंने दिए, और 2.6 साल बाद मुझे 'Roar' के ऑडिशन के लिए बुलावा आया। कास्टिंग्‍ डिरेक्टर का कॉल आया और उन्होंने मुझे बताया कि इस फ़िल्म में एक चरित्र के लिए वो एक ऐसे अभिनेता की तलाश कर रहे हैं जो काफ़ी डायनामिक हो। तो क्या आप इस चरित्र को निभाने के लिए ऑडिशन दोगे? मैं वहाँ गया, उन्होंने मुझे उस किरदार के बारे में विस्तार में बताया। ऑडिशन टेक से पहले मैंने अपने बालों को भिगोया और अलग ही स्टाइल में कंघी की (जो 'Roar' में मेरी हेअर स्टाइल बनी)। और फ़ाइनल टेक के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि परिणाम वो मुझे बाद में सूचित करेंगे। अगले दिन मुझे उनका फ़ोन आया और उन्होंने मुझसे पूछा कि ये तुमने क्या किया? उन्होंने बताया कि निर्देशक महोदय मुझसे कल मिलना चाहते हैं। अगले दिन जब मैं कमल सदानह जी के दफ़्तर पहुँचा तो उन्होंने मुझे देखते ही कहा, "वेलकम मधु!" उनके बाद निर्माता अबीस रिज़्वी साहब आए और कहा, "अरे मधु, कैसे हैं आप?" फिर प्रोडक्शन हेड अंदर आए और कहने लगे कि क्या आप ही मधु हैं? मेरी समझ में आ गया कि ऑडिशन सुपरहिट रहा है। मुझे दो और सीन अदा करने को कहा गया, और उसके बाद निर्देशक साहब आए और कहा कि "you are IN"।" और इस तरह से ’रोर’ फ़िल्म से उनके क़दम फ़िल्म जगत पर पड़े हैं। आगे भी वो टेलीविज़न के साथ-साथ फ़िल्मों में भी नज़र आते रहेंगे, ऐसी हम उम्मीद करते हैं। और चौथे अभिनेता पुल्कित जवाहर ने भी अपना फ़िल्मी करीअर इसी फ़िल्म से शुरु किया। अफ़सोस की बात है कि पुल्कित जवाहर से संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो पायी, लेकिन हम उम्मीद करेंगे कि वो जल्द ही अपनी दूसरी फ़िल्म में नज़र आएँगे।


कपिल शर्मा, युवराज पराशर, राहुल चौधरी
युवराज पराशर और कपिल शर्मा दो ऐसे अभिनेता हैं जिनके साहस की दाद देनी चाहिए। जिस देश में समलैंगिक होना एक अपराध जैसा है, वहाँ इन दोनों ने समलैंगिक प्रेम पर बोल्ड फ़िल्में बना कर एक उदाहरण रचा है। ये दो फ़िल्में हैं ’डोन्नो व्हाइ न जाने क्यों’ (2010) और ’डोन्नो व्हाई 2 - लव इज़ अ मोमेण्ट’ (2015)। ये दोनों फ़िल्में इन्डो-नॉर्वेजियन कोलाअबोरेशन से बनाई गई है और इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है। इस फ़िल्म के बारे में युवराज ने हमें बताया - "'डोन्नो व्हाई...' एक कहानी है रिश्तों की, कुछ ऐसे रिश्ते जिन्हें हमारा समाज स्वीकार नहीं करता। यह कहानी तीन रिश्तों की है, पहला रिश्ता एक 'सिन्गल मदर' की है जो अपने परिवार और अपने पति के परिवार के देखभाल के लिए कुछ भी कर सकती है; दूसरा रिश्ता है है एक जवान लड़की की जो अपने जीजाजी से प्यार करने लगती है; और तीसरा रिश्ता है एक शादीशुदा लड़के का एक सम्लैंगिक रिश्ता।" इस तरह के किरदार निभाने के बारे में जब उनसे पूछा गया तब उन्होंने बताया - "मैं समझता हूँ कि यह केवल एक चरित्र था जिसे मैंने निभाया और हर अभिनेता को हर किस्म का किरदार निभाना आना चाहिए। क्या मुझसे यही सवाल करते अगर मैंने किसी डॉन या बदमाश गुंडे का रोल निभाया होता? फ़िल्में और कुछ नहीं हमारे समाज का ही आईना हैं। मुझे फ़िल्म की कहानी बहुत पसन्द आई और मुझे लगा कि मेरा रोल अच्छा है, इसलिए मैंने किया। जब मेरे पापा नें मेरे निभाये गये रोल के बारे में सुना तो वो बहुत बिगड़ गए थे। मैंने उन्हें समझाने की बहुत कोशिशें की पर उस वक़्त वो कुछ भी सुनना नहीं चाहते थे। पर अब सबकुछ ठीक है। ज़ीनत जी का भी एक बड़ा हाथा था उन्हें समझाने में कि यह केवल एक फ़िल्म मात्र है, हक़ीक़त नहीं। मैं सदा ज़ीनत जी का आभारी रहूंगा।" युवराज ने इससे पहले 2008 की फ़िल्म ’फ़ैशन’ में एक छोटे से रोल में नज़र आए थे। ’डोन्नो व्हाई’ में समलैंगिक चरित्र निभाने के लिए उनके परिवार ने उनसे सारे रिश्ते तोड़ दिए। उधर कपिल शर्मा बचपन में 1981 की फ़िल्म ’श्रद्धांजलि’ में बालकलाकार की भूमिका और 2004 की फ़िल्म ’अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों’ में एक छोटा किरदार निभा चुके थे। ’डोन्नो व्हाइ’ के अलावा कपिल ने 2013 की फ़िल्म ’ब्लैक करेन्सी’ में भी अभिनय किया है। युवराज और कपिल अच्छे अदाकार हैं लेकिन समलैंगिक्ता विषय पर अत्यधिक काम करने की वजह से शायद वो टाइपकास्ट हो गए हैं और उन्हें साधारण फ़िल्में नहीं मिल रही हैं। यह तो वक़्त ही बताएगा कि क्या ये दोनों अपने इस इमेज से बाहर निकल पाते हैं या नहीं। इसी फ़िल्म में एक तीसरे अभिनेता ने भी अपना फ़िल्मी सफ़र शुरु किया था जिनका नाम है राहुल चौधरी। ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश से एक अभिनेता बनने का सपना लेकर राहुल मुंबई आ गए और मॉडलिंग् करने लगे। धीरे धीरे उन्हें टेलीविज़न पर काम मिलने लगा और कई धारावाहिकों में उन्होंने चरित्र अभिनेता की भूमिकाएँ निभाईं जैसे कि ’महाराणा प्रताप’, ’CID', 'सावधान - India Fights Back' और ’Code Red'। और फिर एक दिन उन्हें मिला पहली फ़िल्म का ऑफ़र। फ़िल्म थी ’डोन्नो व्हाई 2’। रोल तो छोटा सा था पर बड़े परदे में उनकी एन्ट्री हो गई। "जब इस फ़िल्म की कास्टिंग् चल रही थी तो मुझे इसकी ख़बर मिली किसी सूत्र से और मैं ऑडिशन देने के लिए पहुँच गया। संजय सर (फ़िल्म के निर्देशक) को मेरा ऑडिशन पसन्द आया और मुझे एक किरदार के लिए फ़ाइनल कर लिया गया।", राहुल ने हमें बताया। राहुल की अगली फ़िल्म ’दोस्ती ज़िंदाबाद’ इस वर्ष प्रदर्शित होने जा रही है। हम उम्मीद करते हैं कि वो बड़े पर कामयाब सिद्ध होंगे।

यहाँ आकर समाप्त होती है ’इस दशक के नवोदित नायक’ श्रॄंखला की पहली कड़ी। अगले सप्ताह कुछ और नवोदित नायकों के पदार्पण की बातें लेकर फिर उपस्थित होंगे। तब तक के लिए अपने दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार।



आख़िरी बात

’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!





शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र  



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

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स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की