स्वरगोष्ठी – 300 में आज
महाविजेताओं की प्रस्तुतियाँ – 2
संगीत पहेली के महाविजेताओं क्षिति, विजया और किरीट का अभिनन्दन
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर सभी
संगीत-प्रेमियों का नए वर्ष के दूसरे अंक में कृष्णमोहन मिश्र की ओर से
हार्दिक अभिनन्दन है। पिछले अंक में हमने आपसे ‘स्वरगोष्ठी’ स्तम्भ के बीते
वर्ष की कुछ विशेष गतिविधियों की चर्चा की थी। साथ ही पहेली के चौथी
महाविजेता डी. हरिणा माधवी और तीसरे महाविजेता प्रफुल्ल पटेल से आपको
परिचित कराया था और उनकी प्रस्तुतियों को भी सुनवाया था। इस अंक में भी हम
गत वर्ष की कुछ अन्य गतिविधियों का उल्लेख करने के साथ ही संगीत पहेली के
प्रथम और द्वितीय महाविजेताओं की घोषणा करेंगे और उनका सम्मान भी करेंगे।
‘स्वरगोष्ठी’ के पाठक और श्रोता जानते हैं कि इस स्तम्भ के प्रत्येक अंक
में संगीत पहेली के माध्यम से हम हर सप्ताह भारतीय संगीत से जुड़े तीन
प्रश्न देकर आपसे दो प्रश्नों का उत्तर पूछते हैं। आपके दिये गये सही
उत्तरों के प्राप्तांकों की गणना दो स्तरों पर की जाती है। ‘स्वरगोष्ठी’ की
दस-दस कड़ियों को पाँच श्रृंखलाओं (सेगमेंट) में बाँट कर और फिर वर्ष के
अन्त में सभी पाँच श्रृंखलाओं के प्रतिभागियों के प्राप्तांकों की गणना की
जाती है। वर्ष 2016 की संगीत पहेली में अनेक प्रतिभागी नियमित रूप से भाग
लेते रहे। 297वें अंक की पहेली के परिणाम आने तक शीर्ष के चार महाविजेता
चुने गए। तीसरे और चौथे महाविजेताओं का सम्मान हम पिछले अंक में कर चुके
हैं। आज के अंक में हम प्रथम स्थान की दो महाविजेता, विजया राजकोटिया और
क्षिति तिवारी तथा द्वितीय स्थान के महाविजेता डॉ. किरीट छाया को सम्मानित
करेंगे और उनकी प्रस्तुतियाँ सुनवाएँगे।
प्रथम महाविजेता क्षिति तिवारी |
वर्ष
2016 की संगीत पहेली में सर्वाधिक 92 अंक अर्जित कर पेंसिलवानिया, अमेरिका
की विजया राजकोटिया और जबलपुर, मध्यप्रदेश की क्षिति तिवारी ने संयुक्त
रूप से प्रथम महाविजेता होने का सम्मान प्राप्त किया है। यह तथ्य भी
रेखांकन के योग्य हैं कि सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाली दोनों प्रतिभागी
महिलाएँ हैं और संगीत की कलाकार और शिक्षिका भी है। संगीत पहेली के कुल 100
अंको में से 92 अंक अर्जित कर वर्ष 2016 की संगीत पहेली में प्रथम
महाविजेता होने का सम्मान प्राप्त करने वाली जबलपुर, मध्यप्रदेश की श्रीमती
क्षिति तिवारी की संगीत शिक्षा लखनऊ और कानपुर में सम्पन्न हुई। लखनऊ के
भातखण्डे संगीत महाविद्यालय से गायन में प्रथमा से लेकर विशारद तक की
परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। बाद में इस संस्थान को विश्वविद्यालय का दर्जा
प्राप्त हुआ, जहाँ से उन्होने संगीत निपुण और उसके बाद ठुमरी गायन मे तीन
वर्षीय डिप्लोमा भी प्राप्त किया। इसके अलावा कानपुर के वरिष्ठ संगीतज्ञ
पण्डित गंगाधर राव तेलंग जी के मार्गदर्शन में खैरागढ़, छत्तीसगढ़ के इन्दिरा
संगीत कला विश्वविद्यालय की संगीत स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त
की। क्षिति जी के गुरुओं में डॉ. गंगाधर राव तेलंग के अलावा पण्डित
सीताशरण सिंह, पण्डित गणेशप्रसाद मिश्र, डॉ. सुरेन्द्र शंकर अवस्थी, डॉ.
विद्याधर व्यास और श्री विनीत पवइया प्रमुख हैं। क्षिति को स्नातक स्तर पर
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से ग्वालियर घराने की गायकी के अध्ययन के
लिए छात्रवृत्ति भी मिल चुकी है। कई वर्षों तक लखनऊ के महिला कालेज और
जबलपुर के एक नेत्रहीन बच्चों के विद्यालय मे माध्यमिक स्तर के
विद्यार्थियों को संगीत की शिक्षा देने के बाद वर्तमान में जबलपुर के
‘महाराष्ट्र संगीत महाविद्यालय’ में वह संगीत गायन की शिक्षिका के पद पर
कार्यरत हैं। ध्रुपद, खयाल, ठुमरी और भजन गायन के अलावा उन्होने प्रोफेसर
कमला श्रीवास्तव से गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत लोक संगीत भी सीखा है,
जिसे अब वह अपने विद्यार्थियों को बाँट रही हैं। क्षिति जी कथक नृत्य और
नृत्य नाटिकाओं में गायन संगत की विशेषज्ञ हैं। सुप्रसिद्ध नृत्यांगना और
भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय की प्रोफेसर कुमकुम धर और काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय के कला संकाय की प्रोफेसर और नृत्यांगना विधि नागर के कई
कार्यक्रमों में अपनी इस प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुकी हैं। आज के इस विशेष
अंक में श्रीमती क्षिति तिवारी राग भैरवी के एक ध्रुपद रचना को अपना स्वर
दे रही हैं। चारताल में बँधे इस ध्रुपद के बोल हैं, -“भस्म अंग गौरी संग...”।
इस प्रस्तुति में तबला पर विभास बीन और हारमोनियम पर अभिषेक पँवार ने
संगति की है। लीजिए, अब आप यह ध्रुपद सुनिए और प्रथम महाविजेता क्षिति
तिवारी का अभिनन्दन कीजिए।
राग भैरवी : ध्रुपद : “भस्म अंग गौरी संग...” : क्षिति तिवारी
प्रथम महाविजेता विजया राजकोटिया |
92 अंक प्राप्त कर संयुक्त रूप से प्रथम
महाविजेता का गौरव प्राप्त किया है, पेंसिलवेनिया, अमेरिका की विजया
राजकोटिया ने। संगीत की साधना में पूर्ण समर्पित विजया जी ने लखनऊ स्थित
भातखण्डे संगीत महाविद्यालय (वर्तमान में विश्वविद्यालय) से संगीत विशारद
की उपाधि प्राप्त की है। बचपन में ही उनकी प्रतिभा को पहचान कर उनके पिता,
विख्यात रुद्रवीणा वादक और वीणा मन्दिर के प्राचार्य श्री पी.डी. शाह ने कई
तंत्र और सुषिर वाद्यों के साथ-साथ कण्ठ संगीत की शिक्षा भी प्रदान की।
श्री शाह की संगीत परम्परा को उनकी सबसे बड़ी सुपुत्री विजया जी ने आगे
बढ़ाया। आगे चलकर विजया जी को अनेक संगीत गुरुओं से मार्गदर्शन मिला, जिनमें
आगरा घराने के उस्ताद खादिम हुसेन खाँ की शिष्या सुश्री मिनी कापड़िया,
पण्डित लक्ष्मण प्रसाद जयपुरवाले, सुश्री मीनाक्षी मुद्बिद्री और सुविख्यात
गायिका श्रीमती शोभा गुर्टू प्रमुख नाम हैं। विजया जी संगीत साधना के
साथ-साथ ‘क्रियायोग’ जैसी आध्यात्मिक साधना में भी संलग्न रहती हैं।
उन्होने अपने गायन का प्रदर्शन मुम्बई, लन्दन, सैन फ्रांसिस्को, साउथ
केरोलिना, न्यूजर्सी, और पेंसिलवानिया में किया है। सम्प्रति विजया जी
पेंसिलवानिया के अपने स्वयं के संगीत विद्यालय में हर आयु के विद्यार्थियों
को संगीत की शिक्षा प्रदान कर रही हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ पहेली की प्रथम
महाविजेता के रूप में अब हम आपको विजया जी के स्वर में एक ठुमरी सुनवाते
है। यह ठुमरी राग मिश्र काफी के सुरों की चाशनी से पगा हुआ है। दीपचन्दी
ताल में निबद्ध इस ठुमरी के बोल हैं, -“जब से श्याम सिधारे...”। इस
प्रस्तुति में तबला पर रत्नाकर नवाथे और हारमोनियम पर सुरेश वेनेगल ने
संगति की है। लीजिए, राग मिश्र काफी की ठुमरी सुनिए और विजया जी को
महाविजेता बनने पर बधाई दीजिए।
ठुमरी मिश्र काफी : “जब से श्याम सिधारे...” : विजया राजकोटिया
द्वितीय महाविजेता डॉ. किरीट छाया |
वोरहीज, न्यूजर्सी के डॉ. किरीट छाया ने
वर्ष 2016 की संगीत पहेली में 86 अंक अर्जित कर सूसरा स्थान प्राप्त किया
है। किरीट जी पेशे से चिकित्सक हैं और 1971 से अमेरिका में निवास कर रहे
हैं। मुम्बई से चिकित्सा विज्ञान से एम.डी. करने के बाद आप सपत्नीक अमेरिका
चले गए। बचपन से ही किरीट जी के कानों में संगीत के स्वर स्पर्श करने लगे
थे। उनकी बाल्यावस्था और शिक्षा-दीक्षा, संगीत-प्रेमी और पारखी मामा-मामी
के संरक्षण में बीता। बचपन से ही सुने गए भारतीय शास्त्रीय संगीत के स्वरो
के प्रभाव के कारण किरीट जी आज भी संगीत से अनुराग रखते हैं। किरीट जी न तो
स्वयं गाते हैं और न बजाते हैं, परन्तु संगीत सुनने के दीवाने हैं। वह इसे
अपना सौभाग्य मानते हैं कि उनकी पत्नी को भी संगीत के प्रति लगाव है।
नब्बे के दशक के मध्य में किरीट जी ने अमेरिका में रह रहे कुछ संगीत-प्रेमी
परिवारों के सहयोग से “रागिनी म्यूजिक सर्कल” नामक संगीत संस्था का गठन
किया है। इस संस्था की ओर से समय-समय पर संगीत अनुष्ठानों और संगोष्ठियों
का आयोजन किया जाता है। अब तक उस्ताद विलायत खाँ, उस्ताद अमजद अली खाँ,
पण्डित अजय चक्रवर्ती, पण्डित मणिलाल नाग, पण्डित बुद्धादित्य मुखर्जी आदि
की संगीत सभाओं का आयोजन यह संस्था कर चुकी है। पिछले दिनों विदुषी कौशिकी
चक्रवर्ती की संगीत सभा का फिलेडेल्फिया नामक स्थान पर सफलतापूर्वक आयोजन
किया गया था। किरीट जी गैस्ट्रोएंटरोंलोजी चिकित्सक के रूप में विगत 40
वर्षों तक लोगों की सेवा करने के बाद गत जुलाई, 2014 में सेवानिवृत्त हुए
हैं। सेवानिवृत्ति के बाद किरीट जी अब अपना अधिकांश समय शास्त्रीय संगीत और
अपनी अन्य अभिरुचि, फोटोग्राफी और 1950 से 1970 के बीच के हिन्दी फिल्म
संगीत को दे रहे हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ मंच से डॉ. किरीट छाया का सम्पर्क हमारी
एक अन्य नियमित प्रतिभागी विजया राजकोटिया के माध्यम से हुआ है। किरीट जी
निरन्तर हमारे सहभागी हैं और अपने संगीत-प्रेम और स्वरों की समझ के बल पर
वर्ष 2016 की संगीत पहेली में दूसरे महाविजेता बने हैं। रेडियो प्लेबैक
इण्डिया परिवार उन्हें महाविजेता का सम्मान अर्पित करता है। हमारी परम्परा
है कि हम जिन्हें सम्मानित करते हैं उनकी कला अथवा उनकी पसन्द का संगीत
सुनवाते हैं। लीजिए, अब हम डॉ. किरीट छाया की पसन्द का एक वीडियो प्रस्तुत
कर रहे हैं। यूट्यूब के सौजन्य से अब आप इस वीडियो के माध्यम से उस्ताद
विलायत खाँ का सितार पर बजाया राग दरबारी सुनिए। यह रिकार्डिंग 1965 में
उस्ताद विलायत खाँ द्वारा कोलकाता की संगीत सभा की है। आप सितार पर राग
दरबारी सुनिए और मुझे आज के इस विशेष अंक को यहीं विराम देने की अनुमति
दीजिए।
राग दरबारी : सितार पर आलाप और गत : उस्ताद विलायत खाँ
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 300वें अंक की संगीत
पहेली में आज हम आपको एक रागबद्ध फिल्म संगीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे
सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने
हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 310वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद जिस
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के पहले सत्र का विजेता
घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि आपको किस राग की अनुभूति हो रही है?
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।
3 – आप इस गीत मुख्य गायिका के स्वर को पहचान कर उनका नाम बताइए।
आप इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 14 जनवरी, 1017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन उत्तर भेजने की
अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 302वें
अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके
बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के
नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
के 298 और 299 अंक में हमने आपसे कोई प्रश्न नहीं पूछा था, अतः इन अंकों
की पहेली का कोई भी विजेता नहीं है। 302वें अंक से हम पुनः पहेली के
विजेताओं की घोषणा करेंगे।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आज के अंक
में हमने पहेली के महाविजेताओं से आपका परिचय कराया और उनकी पसन्द का अथवा
स्वयं उनके द्वारा प्रस्तुत रचनाओं का रसास्वादन कराया। अगले अंक से अपने
सैकड़ों पाठकों के अनुरोध पर हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं।
श्रृंखला और उनके गीतों के चयन के लिए हमने अपने पाठकों की फरमाइश का हमेशा
ध्यान रखा है। यदि आप भी किसी राग, गीत अथवा कलाकार को सुनना चाहते हों तो
अपना आलेख या गीत हमें शीघ्र भेज दें। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर
सम्भव प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 8 बजे
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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