स्वरगोष्ठी – 297 में आज
नौशाद के गीतों में राग-दर्शन – 10 : राग हमीर का रंग
“मधुबन में राधिका नाचे रे, गिरधर की मुरलिया बाजे...”
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी
श्रृंखला – “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” की दसवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन
मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज के अंक में
हम आपसे राग हमीर पर चर्चा करेंगे। इस श्रृंखला में हम भारतीय फिल्म संगीत
के शिखर पर विराजमान नौशाद अली के व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर
रहे हैं। श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में हम आपको फिल्म संगीत के माध्यम से
रागों की सुगन्ध बिखेरने वाले अप्रतिम संगीतकार नौशाद अली के कुछ
राग-आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। इस श्रृंखला का समापन हम अगले सप्ताह
25 दिसम्बर को नौशाद अली की 98वीं जयन्ती के अवसर पर करेंगे। 25 दिसम्बर,
1919 को सांगीतिक परम्परा से समृद्ध शहर लखनऊ के कन्धारी बाज़ार में एक
साधारण परिवार में नौशाद का जन्म हुआ था। नौशाद जब कुछ बड़े हुए तो उनके
पिता वाहिद अली घसियारी मण्डी स्थित अपने नए घर में आ गए। यहीं निकट ही
मुख्य मार्ग लाटूश रोड (वर्तमान गौतम बुद्ध मार्ग) पर संगीत के वाद्ययंत्र
बनाने और बेचने वाली दूकाने थीं। उधर से गुजरते हुए बालक नौशाद घण्टों
दूकान में रखे साज़ों को निहारा करते थे। एक बार तो दूकान के मालिक गुरबत
अली ने नौशाद को फटकारा भी, लेकिन नौशाद ने उनसे आग्रह किया की वे बिना
वेतन के दूकान पर रख लें। नौशाद उस दूकान पर रोज बैठते, साज़ों की झाड़-पोछ
करते और दूकान के मालिक का हुक्का तैयार करते। साज़ों की झाड़-पोछ के दौरान
उन्हें कभी-कभी बजाने का मौका भी मिल जाता था। उन दिनों मूक फिल्मों का युग
था। फिल्म प्रदर्शन के दौरान दृश्य के अनुकूल सजीव संगीत प्रसारित हुआ
करता था। लखनऊ के रॉयल सिनेमाघर में फिल्मों के प्रदर्शन के दौरान एक लद्दन
खाँ थे जो हारमोनियम बजाया करते थे। यही लद्दन खाँ साहब नौशाद के पहले
गुरु बने। नौशाद के पिता संगीत के सख्त विरोधी थे, अतः घर में बिना किसी को
बताए सितार नवाज़ युसुफ अली और गायक बब्बन खाँ की शागिर्दी की। कुछ बड़े हुए
तो उस दौर के नाटकों की संगीत मण्डली में भी काम किया। घर वालों की फटकार
बदस्तूर जारी रहा। अन्ततः 1937 में एक दिन घर में बिना किसी को बताए माया
नगरी बम्बई की ओर रुख किया।
नौशाद और मोहम्मद रफी |
राग हमीर : ‘मधुबन में राधिका नाचे रे...’ : मोहम्मद रफी और उस्ताद अमीर खाँ : फिल्म कोहिनूर
उस्ताद विलायत खाँ |
राग हमीर : गायन और सितार वादन : “अचानक मोहें पिया के जगाए...” : उस्ताद विलायत खाँ
संगीत पहेली
1 – गीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि आपको किस राग की अनुभूति हो रही है?
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।
3 – आप इस गीत मुख्य गायिका के स्वर को पहचान कर उनका नाम बताइए।
आप इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 24 दिसम्बर, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन उत्तर भेजने की
अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 299वें
अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके
बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के
नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
के 295 वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1960 में प्रदर्शित लोकप्रिय
फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ से राग पर केन्द्रित गीत का एक अंश सुनवाया था और आपसे
तीन में से किसी दो प्रश्न का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर
है- राग – सोहनी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – दीपचन्दी और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है – स्वर – उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ।
इस बार की पहेली के प्रश्नों के सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी हैं, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर से क्षिति तिवारी, वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
यो प्लेबैक इण्डिया
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