कहकशाँ - 17
उस्ताद शफ़क़त अली ख़ान की आवाज़ में ठुमरी
"नदिया किनारे मोरा गाँव रे..."
’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहकशाँ। आज पेश है मशहूर पाक़िस्तानी शास्त्रीय गायक उस्ताद शफ़क़त अली ख़ान की आवाज़ में ठुमरी "नदिया किनारे मोरा गाँव..."।
आज हम जिस नज़्म को लेकर हाज़िर हुए हैं, वह एक ठुमरी है। फ़नकार हैं उस्ताद शफ़क़त अली ख़ान। शुरू-शुरू में मैंने जब इनका नाम सुना तो मैं इन्हें "शफ़क़त अमानत अली ख़ान" ही मान बैठा था, लेकिन इनकी आवाज़ सुनने पर मुझे अपनी ही सोच हजम नहीं हुई। इनकी आवाज़ का टेक्सचर "शफ़कत अमानत अली ख़ान" ("फ़्युज़न" वाले) से काफी अलग है। इनके कई गाने (ठुमरी, ख्याल..) सुनने और इनके बारे में और ढूँढने के बाद मुझे सच का पता चला। लीजिए आप भी जानिए कि ये कौन हैं (सौजन्य: एक्सडॉट २५)।
17 जून 1972 को पाकिस्तान के लाहौर में जन्मे शफ़क़त अली ख़ान पूर्वी पंजाब के शाम चौरासी घराने से ताल्लुक रखते हैं। इस घराने का इतिहास तब से है जब हिन्दुस्तान में मुग़ल बादशाह अकबर का शासन था। इस घराने की स्थापना दो भाइयों चाँद ख़ान और सूरज ख़ान ने की थी। शफ़क़त अली ख़ान के पिताजी उस्ताद सलामत अली ख़ान और चाचाजी उस्ताद नज़ाकत अली ख़ान, दोनो ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते हैं और ये दोनों शाम चौरासी घराने के दसवीं पीढी के शास्त्रीय गायक हैं।
शफ़क़त ने महज 7 साल की उम्र में अपनी हुनर का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। अपनी गायकी का पहला जौहर इन्होंने 1979 में लाहौर संगीत उत्सव में दिखलाया। अभी तक ये यूरोप के कई सारे देशों मसलन फ़्रांस, युनाईटेड किंगडम, इटली, जर्मनी, हॉलेंड, स्पेन एवं स्वीटज़रलैंड (जेनेवा उत्सव) के महत्वपूर्ण कन्सर्ट्स में अपना परफ़ॉरमेंस दे चुके हैं। हिन्दुस्तान, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में तो ये नामी-गिरामी शास्त्रीय गायक के रूप में जाने जाते हैं ही, अमेरिका और कनाडा में भी इन्होंने अपनी गायकी से धाक जमा ली है। 1988 और 1996 में स्मिथसोनियन इन्स्टिच्युट में, 1988 में न्यूयार्क के मेट्रोपोलिटन म्युज़ियम के वर्ल्ड म्युज़िक इन्स्टिच्युट में एवं 1991 में मर्किन कन्सर्ट हॉल में दिए गए इनके प्रदर्शन को अभी भी याद किया जाता है।
शफ़क़त को अभी तक कई सारे पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है। 1986 में इन्हें "सर्वश्रेष्ठ युवा शास्त्रीय गायक" के तौर पर लाहौर का अमिर खुसरो पुरस्कार मिला था। आगे चलकर 1987 में इन्हें पाकिस्तान के फ़ैज़लाबाद विश्वविद्यालय ने "गोल्ड मेडल" से सम्मानित किया। ये अभी तक दुनिया की कई सारी रिकार्ड कंपनियों के लिए गा चुके हैं, मसलन: निम्बस (युके), इ०एम०आई० (हिन्दुस्तान), एच०एम०वी० (युके), वाटरलिली एकॉसटिक्स (युएसए), वेस्ट्रॉन (हिन्दुस्तान), मेगासाउंड (हिन्दुस्तान), कीट्युन प्रोडक्शन (हॉलैंड), प्लस म्युज़िक (हिन्दुस्तान) एवं फोक़ हेरिटेज (पाकिस्तान)। गायकी के क्षेत्र में ये अभी भी निर्बाध रूप से कार्यरत हैं।
चलिए तो हम और आप सुनते हैं उस्ताद की आवाज़ में "नदिया किनारे मोरा गाँव":
संवरिया मोरे आ जा रे,
तोहू बिन भई मैं उदास रे.. हो..
आ जा रे.
नदिया किनारे मोरा गाँव..
आ जा रे संवरिया आ जा..
नदिया किनारे मोरा गाँव..
साजन प्रीत लगा के
अब दूर देस मत जा
आ बस हमरे नगर अब
हम माँगे तू खा..
नदिया किनारे मोरा गाँव रे.
संवरिया रे
ऊँची अटरिया चंदन केंवरिया
राधा सखी रे मेरो नाँव
नदिया किनारे मोरा गाँव..
ना मैं माँगूं सोना, चाँदी
माँगूं तोसे प्रीत रे..
बलमा मैका छाड़ गए
यही जगत की रीत रे..
नदिया किनारे मोरा गाँव रे..
17 जून 1972 को पाकिस्तान के लाहौर में जन्मे शफ़क़त अली ख़ान पूर्वी पंजाब के शाम चौरासी घराने से ताल्लुक रखते हैं। इस घराने का इतिहास तब से है जब हिन्दुस्तान में मुग़ल बादशाह अकबर का शासन था। इस घराने की स्थापना दो भाइयों चाँद ख़ान और सूरज ख़ान ने की थी। शफ़क़त अली ख़ान के पिताजी उस्ताद सलामत अली ख़ान और चाचाजी उस्ताद नज़ाकत अली ख़ान, दोनो ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते हैं और ये दोनों शाम चौरासी घराने के दसवीं पीढी के शास्त्रीय गायक हैं।
शफ़क़त ने महज 7 साल की उम्र में अपनी हुनर का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। अपनी गायकी का पहला जौहर इन्होंने 1979 में लाहौर संगीत उत्सव में दिखलाया। अभी तक ये यूरोप के कई सारे देशों मसलन फ़्रांस, युनाईटेड किंगडम, इटली, जर्मनी, हॉलेंड, स्पेन एवं स्वीटज़रलैंड (जेनेवा उत्सव) के महत्वपूर्ण कन्सर्ट्स में अपना परफ़ॉरमेंस दे चुके हैं। हिन्दुस्तान, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में तो ये नामी-गिरामी शास्त्रीय गायक के रूप में जाने जाते हैं ही, अमेरिका और कनाडा में भी इन्होंने अपनी गायकी से धाक जमा ली है। 1988 और 1996 में स्मिथसोनियन इन्स्टिच्युट में, 1988 में न्यूयार्क के मेट्रोपोलिटन म्युज़ियम के वर्ल्ड म्युज़िक इन्स्टिच्युट में एवं 1991 में मर्किन कन्सर्ट हॉल में दिए गए इनके प्रदर्शन को अभी भी याद किया जाता है।
शफ़क़त को अभी तक कई सारे पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है। 1986 में इन्हें "सर्वश्रेष्ठ युवा शास्त्रीय गायक" के तौर पर लाहौर का अमिर खुसरो पुरस्कार मिला था। आगे चलकर 1987 में इन्हें पाकिस्तान के फ़ैज़लाबाद विश्वविद्यालय ने "गोल्ड मेडल" से सम्मानित किया। ये अभी तक दुनिया की कई सारी रिकार्ड कंपनियों के लिए गा चुके हैं, मसलन: निम्बस (युके), इ०एम०आई० (हिन्दुस्तान), एच०एम०वी० (युके), वाटरलिली एकॉसटिक्स (युएसए), वेस्ट्रॉन (हिन्दुस्तान), मेगासाउंड (हिन्दुस्तान), कीट्युन प्रोडक्शन (हॉलैंड), प्लस म्युज़िक (हिन्दुस्तान) एवं फोक़ हेरिटेज (पाकिस्तान)। गायकी के क्षेत्र में ये अभी भी निर्बाध रूप से कार्यरत हैं।
चलिए तो हम और आप सुनते हैं उस्ताद की आवाज़ में "नदिया किनारे मोरा गाँव":
संवरिया मोरे आ जा रे,
तोहू बिन भई मैं उदास रे.. हो..
आ जा रे.
नदिया किनारे मोरा गाँव..
आ जा रे संवरिया आ जा..
नदिया किनारे मोरा गाँव..
साजन प्रीत लगा के
अब दूर देस मत जा
आ बस हमरे नगर अब
हम माँगे तू खा..
नदिया किनारे मोरा गाँव रे.
संवरिया रे
ऊँची अटरिया चंदन केंवरिया
राधा सखी रे मेरो नाँव
नदिया किनारे मोरा गाँव..
ना मैं माँगूं सोना, चाँदी
माँगूं तोसे प्रीत रे..
बलमा मैका छाड़ गए
यही जगत की रीत रे..
नदिया किनारे मोरा गाँव रे..
खोज और आलेख : विश्वदीपक ’तन्हा’
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
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