तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 15
नौशाद-1
’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी'। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं। आज का यह अंक केन्द्रित है सुप्रसिद्ध संगीतकार नौशाद पर। आज प्रस्तुत है नौशाद के संघर्ष की कहानी का पहला भाग।
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डॉ. नामी साहब मुझे शायर फ़ैज़ के पास ले गए। फ़ैज़ को संगीत से प्यार था। वो मुझे ए. आर. कारदार साहब से मिलवाए। मुश्ताक़ हुसैन उनके संगीतकार थे। मुझे देख कर कारदार साहब ने कहा कि यह तो बच्चा है। मुश्ताक़ साहब ने कहा कि पहले मैं कुछ सीख लूँ, फिर उनके पास आऊँ। लेकिन मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी! ’रणजीत स्टुडिओज़’ के बाहर खड़ा रहता, गेटकीपर मुझ अन्दर जाने न दे। ज्ञान दत्त वहाँ के संगीतकार थे। फिर ’फ़िल्म सिटी’ थी तारदेओ में। वहाँ संगीतकार रफ़ीक़ ग़ज़नवी और फ़िल्मकार ज़ेड. ए. बुख़ारी का ग्रूप था। ग़ज़नवी साहब की एक झलक पाने के लिए मैं गेट के बाहर खड़ा रहता था। एक बार गफ़ुर साहब (जो बनारस से ताल्लुख़ रखते थे और सारंगी नवाज़ थे) मुझे देख कर कहा कि आप ऐसे बाहर क्यों खड़े रहते हैं? मैंने उन्हें अपने सपनों के बारे में बताया तो उन्होंने भी वादा किया कि मेरी एक दिन मुश्ताक़ साहब के पास सिफ़ारिश करेंगे। मैं नामी साहब के साथ सुबह का नाश्ता करके निकलता था और फिर रात को वापस पहुँच कर उन्हीं के साथ रात का खाना खाता था। सुबह नाश्ते के बाद मैं कोलाबा से दादर जाता, 6 पैसे लगते, और शाम को वापस। एक दिन किसी ने मेरी पॉकिट मार ली और उस दिन से मैं रोज़ कोलाबा से दादर पैदल आने-जाने लगा!
नौशाद साहब के संघर्ष की दासतान जारी रहेगी अगले अंक में भी।
सूत्र: नौशादनामा, विविध भारती
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प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
Comments
और हाँ.......आज आई तो सब कुछ एकदम वैसा ही मिला.'आवाज़' जैसा.
नेम-प्लेट बदली है केवल और मैं.......घर ही भूल गई पर यकीन मानो.... न वो दिन भूली न वे साथी ..न वो पहेलियों के दौर को.
अरे! बहुत याद करती हूँ मैं आप सभी को.....सच्चीईईई
क्योंकि अप लोग बदल गये पर आज भी 'ऐसीच ही' हूँ मैं तो :)