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"घुंघट की आढ़ से दिलबर का...", क्यों दिल के क़रीब है यह गीत अलका याज्ञनिक के


एक गीत सौ कहानियाँ - 88
 

'घुंघट की आढ़ से दिलबर का...' 



रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 88-वीं कड़ी में आज जानिए 1993 की फ़िल्म ’हम हैं राही प्यार के’ के मशहूर गीत "घुंघट की आढ़ से दिलबर का..." के बारे में जिसे अलका याज्ञ्निक और कुमार सानू ने गाया था। बोल समीर के और संगीत नदीम-श्रवण का। 

1988 में ’क़यामत से क़यामत तक’ में आमिर ख़ान और जुही चावला की जोड़ी बनी थी जो बेहद कामयाब रही
और लोगों ने इस जोड़ी को हाथोंहाथ ग्रहण किया। इसका श्रेय जाता है आमिर के पिता ताहिर हुसैन को। लेकिन इसके बाद जब 1989 में ’लव लव लव’, 1990 में ’तुम मेरे हो’ और 1992 में ’दौलत की जंग’ जैसी फ़िल्में नाकामयाब रहीं, तब लोगों के मन में आमिर-जुही की जोड़ी के चलने पर संदेह जागृत हुआ। पर ताहिर हुसैन ने ही लोगों की धारणा को ग़लत साबित करते हुए आमिर-जुही को लेकर एक बार फिर से फ़िल्म बनाने की सोची। ’हम हैं राही प्यार के’ में आमिर-जुही की जोड़ी फिर एक बार चल पड़ी और लोगों का रवैया बदल गया। आज इसी फ़िल्म के एक गीत के बारे में हम चर्चा करने जा रहे हैं। अगर यह कहा जाए कि फ़िल्म ’आशिक़ी’ से मेलडी-प्रधान गीतों का दौर वापस आया था, तो शायद ग़लत नहीं होगा। इसके लिए श्रेय जाता है टी-सीरीज़ के गुल्शन कुमार, गायिका अनुराधा पौडवाल और गीतकार-संगीतकार समीर व नदीम-श्रवण की जोड़ी को। 70 के दशक के मध्य भाग से जो मार-धाड़ वाले ऐक्शन फ़िल्मों का दौर चल पड़ा था, फ़िल्म ’आशिक़ी’ ने उस पर कुछ हद तक लगाम लगाया। 90 के दशक में नदीम-श्रवण ने एक के बाद एक म्युज़िकल ब्लॉकबस्टर्स देते चले गए। ’आशिक़ी’, ’जान की क़सम’, ’दिल है कि मानता नहीं’, ’साजन’, ’साथी’, ’फूल और काँटें’, ’सड़क’, ’दिल का क्या क़सूर’, ’सपने साजन के’, ’जान तेरे नाम’, ’दीवाना’, ’बेख़ुदी’, 'दामिनी’, ’हम हैं राही प्यार के’, ’रंग’, ’दिलवाले’, ’साजन का घर’, ’बरसात’, ’राजा’, ’राजा हिन्दुस्तानी’, ’जुदाई’, ’परदेस’, ’सिर्फ़ तुम’, ’धड़कन’ जैसी फ़िल्मों के गीतों ने उस दौर में ख़ूब धूम मचाई थी। इन्हीं फ़िल्मों में से एक ’हम हैं राही प्यार के’ के सर्वाधिक लोकप्रिय गीत के बारे में आज बताने जा रहे हैं।

विविध भारती के ’विशेष जयमाला’ कार्यक्रम में फ़ौजी जवानों को संबोधित करते हुए नदीम-श्रवण के श्रवण राठौड़ ने इस गीत के बनने की कहानी का कुछ इन शब्दों में उल्लेख किया था - "फ़ौजी भाइयों और फ़ौजी
Nadeem-Shravan
बहनों, एक और क़िस्सा मुझे याद आ रहा है। 1980 में जब हम भारी संघर्ष कर रहे थे, काफ़ी सारे निर्माताओं को अपनी धुनें सुनाया करते थे। उनमें से एक थे ताहिर हुसैन साहब, जो आमिर ख़ान के पिताजी हैं। हम उनके पास गए और कहा कि ’सर, प्लीज़ हमें चान्स दे दीजिए’। हमने उनको बहुत सारे गीतों की धुनें सुनाई। पहला गीत जो हमने सुनाया वह कौन सा था यह मैं आपको बाद में बताऊँगा; तो हम लोग दो तीन घंटों तक उनको धुनें सुनाते गए। दूसरे दिन जब हम उनके पास गए तो उन्होंने कहा कि म्युज़िक बहुत अच्छा है लेकिन मैचुरिटी की कमी है। हम अपसेट हो गए कि ताहिर साहब ने यह कह दिया, हमने इतनी मेहनत की थी इन धुनों पर, सब बेकार हो गया। ख़ैर, 12 साल बाद जब हमारी ’आशिक़ी’, ’दिल है कि मानता नहीं’ और ’सड़क’ हिट हो गई तो ताहिर साहब ने हमें बुलाया और कहा कि एक फ़िल्म साथ में करते हैं। हमने कहा ’ठीक है’। तो उन्होंने कहा कि एक हिट गाना चाहिए। तो यह वही गाना था जो हमने 12 साल पहले सबसे पहले उनको सुनाया था। अब मैं आपको बताऊँगा कि यह गाना कौन सा है, और यह गाना है "घुंघट की आढ़ से दिलबर का"। जिस गाने को सुन कर उन्होंने कहा था कि मैचुरिटी नहीं है, उसी गाने को 12 साल बाद उन्होंने अपनी फ़िल्म में लिया और बहुत हिट हुआ। इस गीत के लिए अलका याज्ञ्निक को फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिला और ताहिर साहब बहुत ख़ुश हुए। तो इस वाक़या से हमें यह सबक मिला कि हिम्मत कभी नहीं हारनी चाहिए, एक न एक दिन जीत ज़रूर मिलेगी!"



"घुंघट की आढ़ से दिलबर का..." केवल नदीम-श्रवण के लिए ही यादगार गीत नहीं है, गायिका अलका याज्ञ्निक के दिल में भी इस गीत के लिए ख़ास जगह है। अलका याज्ञ्निक ने भी ’विशेष जयमाला’ कार्यक्रम में इसी गीत को बजाते हुए कहा था कि यह गीत क्यों उनके दिल के करीब है। "अगला गाना फ़िल्म ’हम हैं राही प्यार के’ से है। यह गाना बहुत मशहूर हुआ था या यूं कहिए कि आप लोगों ने इसे बहुत पसन्द किया था। इस गाने के लिए मुझे अपना पहला राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। दूसरा राष्ट्रीय पुरस्कार ’कुछ कुछ होता है’ के लिए मिला था। यह गीत मेरे दिल के बहुत पास है क्योंकि यह गाना मेरे पापा को बहुत पसन्द था। जब यह गाना बजना शुरू हुआ था, मेरे पापा ने कहा था कि देखना इस गाने के लिए तुम्हे ज़रूर अवार्ड मिलेगा। फ़रवरी 1994 में उनकी डेथ हो गई और उसी साल इस गाने के लिए अवार्ड की घोषणा हुई। मुझे बहुत तक़लीफ़ हुई कि वो चले गए इस दिन को देखे बग़ैर, और ख़ुशी इस बात की हुई कि उनका कहना सही निकला। इस वजह से इस गाने का महत्व मेरे लिए बहुत है।"



अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर। 


खोज: चन्द्रकान्त दीक्षित  
आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 




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