Skip to main content

"पन्द्रह अगस्त की पुण्य तिथि फिर धूम-धाम से आई..." विवादास्पद बोल की वजह से किशोर कुमार का गाया यह गीत कभी जारी नहीं हो सका



कहकशाँ - 16
किशोर कुमार का गाया  दुर्लभ देशभक्ति गीत   
"पन्द्रह अगस्त की पुण्य तिथि फिर धूम-धाम से आई..."



’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहकशाँ। आज पेश है गायक किशोर कुमार का गाया एक देशभक्ति गीत जो स्वाधीनता दिवस के मौक़े के लिए बनाया गया था पर कभी जारी न हो सका। 


म तौर पर किशोर कुमार का नाम फ़िल्मों और फ़िल्मी गीतों के साथ ही जोड़ा जाता है, और क्यों ना हो, उनके गाए लगभग 99% हिन्दी गीत फ़िल्मों से ही तो हैं। इस वजह से बाक़ी का जो एक प्रतिशत बच गया, इसमें उनके ग़ैर फ़िल्मी गीत आते हैं जो अपने आप में दुर्लभ और अनूठे हैं। इनमें से कुछ के बारे में बताता हूँ। सम्भवत: उनका गाया पहला हिन्दी ग़ैर फ़िल्मी गीत 1946 में रेकॉर्ड हुआ था। एक नहीं बल्कि दो गीत - पहला "भूलने वाले..." और दूसरा "जिस दिल ने मोहब्बत की..."। एक भजन "हरि नाम का प्याला..." भी एक अद्‍भुत रचना है। प्राइवेट ऐल्बम ’सपनों की मंज़िल’ में दो गीत किशोर दा के थे - "ले चल मुझे..." और "एक लड़की है अजनबी..."। मदन मोहन के संगीत में एक ग़ैर फ़िल्मी गीत "आज मुझे जल जाने दो..." हाल ही में ’तेरे बग़ैर’ ऐल्बम में रिलीज़ किया गया था। "हरि नाम का प्याला..." को छोड़ कर बाक़ी सभी गीत लगभग रोमान्टिक जौनर के ही थे। पर आज हम आपको किशोर दा का गाया जो गीत सुनवाने के लिए लाये हैं, वह एक देशभक्ति गीत रचना है। 15 अगस्त नज़दीक है, और इस गीत में भी 15 अगस्त का ज़िक्र है, इस वजह से आज के इस महफ़िल में इस गीत से बेहतर शायद कोई और गीत नहीं। संगीतकार बाल सिंह द्वारा स्वरबद्ध और किशोर कुमार व आर. पी. शर्मा द्वारा गाया गया यह गीत है "पन्द्रह अगस्त की पुण्य तिथि..."। गीतकार हैं केशव त्रिवेदी। इस गीत के दो भाग हैं। 78 RPM के रेकॉर्ड के दूसरी तरफ़ इस गीत का दूसरा हिस्सा है। रेकॉर्ड संख्या है GE 8194। आर. पी. शर्मा की बात करें तो उन्होंने 1947 में ’नमक’ और ’रेणुका’, 1948 में ’लखपति’ और ’रामबाण’, तथा 1952 में ’शिवशक्ति’ में गीत गाया था। बाल सिंह और केशव त्रिवेदी का नाम फ़िल्म-संगीत में कभी सुनाई नहीं दिया। हाँ, केवल ’केशव’ के नाम से एक गीतकार ज़रूर हुए हैं जिन्होंने 1954 की फ़िल्म ’परिचय’ और 1960 की फ़िल्म ’माया मछिन्द्र’ में गीत लिखे थे।


इससे पहले कि आप इस गीत के दोनों हिस्सों को बारी-बारी से सुनें, आइए इस गीत से संबंधित थोड़ी जानकारी आपको देते हैं। यह गीत 1950 में रचा गया था, सम्भवत: स्वाधीनता दिवस के अवसर पर इसे जारी होना था। पर गीत के साथ एक हादसा हो गया जिस वजह से इस गीत को कभी मुक्ति नहीं मिली। एक गड़बड़ हो गई। गीत में "पुण्य तिथि" शब्द की वजह से सब गड़बड़ हो गया। "पुण्यतिथि" से गीतकार का अर्थ था पुण्य तिथि, यानी कि पवित्र दिन, अर्थात् पन्द्रह अगस्त का पवित्र दिन। लेकिन "पुण्यतिथि" को सेन्सर बोर्ड ने दोहरे अर्थ वाला शब्द करार देते हुए इस गीत पर पाबन्दी लगा दी क्योंकि इससे विवाद खड़ा हो सकता है। पुण्यतिथि को आम तौर पर मृत्यु तिथि के रूप में ही समझा जाता है। तो "पन्द्रह अगस्त की पुण्यतिथि" जुमला काफ़ी वितर्कित हो सकता है। इसलिए इस गीत को मान्यता नहीं मिली और रेकॉर्ड हो चुका यह गीत बन्द बक्से में चला गया। यह वाक़ई अफ़सोस की बात है कि बस एक शब्द की वजह से इतना सुन्दर देशभक्ति गीत दब कर रह गया। लीजिए आप ख़ुद ही इसके बोलों को पढ़ कर तय करें...


पन्द्रह अगस्त की पुण्य तिथि फिर धूम धाम से आई,
भारत के कोने कोने में खुशियाली है छायी।

सन सैन्ताल्लीस में भारत को अंग्रेज़ों ने जोड़ दिया
गोली बरसा के हार गए सब ??? से मुंह मोड़ लिया
बापू की अटल अहिंसा ने अपनी रंगत दिखलाई
फिर धूम धाम से आई...

उस दिन सारे देश की शोभा अपने ढंग की न्यारी थी
महलों से लेकर कुटियों तक दीपों की उजियारी थी
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारों ने फिर दीपावलि मनाई
फिर धूम धाम से आई...

नेताजी ने जिसके ख़ातिर था अपना क़दम बढ़ाया
ला क़िले पर वही तिरंगा क़ौमी झंडा लहराया
इसी तिरंगे झंडे ने भारत की शान बढ़ाई
फिर धूम धाम से आई...

तारों के दीप जला कर के ना सती प्रथा भी झूम रही
भारत माता अपने लालों के मुखड़ों को चूम रही
देश प्रेम की मधुर रागिनी देवलोक में छायी
फिर धूम धाम से आई...

PART-1



PART-2






’कहकशाँ’ की आज की यह पेशकश आपको कैसी लगी, ज़रूर बताइएगा नीचे ’टिप्पणी’ पे जाकर। या आप हमें ई-मेल के ज़रिए भी अपनी राय बता सकते हैं। हमारा ई-मेल पता है soojoi_india@yahoo.co.in. 'कहकशाँ’ के लिए अगर आप कोई लेख लिखना चाहते हैं, तो इसी ई-मेल पते पर हम से सम्पर्क करें। आज बस इतना ही, अगले जुमे-रात को फिर हमारी और आपकी मुलाक़ात होगी इस कहकशाँ में, तब तक के लिए ख़ुदा-हाफ़िज़!


खोज, आलेख, प्रस्तुति: सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र 

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट