स्वरगोष्ठी – 246 में आज
संगीत के शिखर पर – 7 : उस्ताद असद अली खाँ
वैदिक तंत्रवाद्य रुद्रवीणा के साधक उस्ताद असद अली खाँ
रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन
मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस
श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान
व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। संगीत गायन और वादन की
विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके
व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
आज श्रृंखला की सातवीं कड़ी में हम आज हम वैदिककालीन तंत्रवाद्य रुद्रवीणा
अनन्य साधक उस्ताद असद अली खाँ की संगीत साधना के व्यक्तित्व और कृतित्व की
संक्षिप्त चर्चा कर रहे हैं। आज हम आपको उस्ताद असद अली खाँ द्वारा
रुद्रवीणा पर बजाया ध्रुपद अंग में राग आसावरी और आभोगी की रचनाएँ
सुनवाएँगे।
वैदिककालीन
वाद्य रूद्रवीणा को परम्परागत रूप से आधुनिक संगीत जगत में प्रतिष्ठित
कराने वाले अप्रतिम कलासाधक उस्ताद असद अली खाँ जयपुर बीनकार की बारहवीं
पीढ़ी के कलासाधक थे। यह घराना जयपुर के सेनिया घराने का ही एक हिस्सा है।
असद अली खाँ का जन्म 1937 में अलवर रियासत (राजस्थान) में हुआ था। परन्तु
उनके संगीत की शिक्षा-दीक्षा रामपुर में हुई। उनके पिता उस्ताद सादिक अली
खाँ रामपुर दरबार में रूद्रवीणा के प्रतिष्ठित वादक थे। उनके प्रपितामह
उस्ताद रज़ब अली खाँ जयपुर घराने के दरबारी वीणावादक थे तथा रूद्रवीणा के
साथ-साथ सितार और दिलरुबावादन में भी दक्ष थे। असद अली खाँ के पितामह
उस्ताद मुशर्रफ अली खाँ को भी जयपुर के दरबारी वीणावादक के रूप में
प्रतिष्ठा प्राप्त थी।
आज
हम जिसे संगीत का जयपुर घराना के नाम से पहचानते हैं, उसकी स्थापना में
असद अली खाँ के प्रपितामह (परदादा) उस्ताद राजब अली खाँ का योदान रहा है।
उस्ताद रजब अली खाँ जयपुर दरबार के केवल संगीतज्ञ ही नहीं; बल्कि महाराजा
मानसिंह के गुरु भी थे। महाराजा ने उन्हें जागीर के साथ ही एक विशाल हवेली
दे रखी थी तथा उन्हें किसी भी समय बेरोक-टोक महाराजा के महल में आने-जाने
की स्वतन्त्रता थी। असद अली खाँ के दादा जी उस्ताद मुशर्रफ अली खाँ ने भी
जयपुर दरबार में वही प्रतिष्ठा प्राप्त की। वीणावादकों का यह घराना ध्रुवपद
संगीत के खण्डहार वाणी में वादन करता रहा है; जिसका पालन उस्ताद असद अली
खाँ ने भी किया और अपने शिष्यों को भी इसी वाणी की शिक्षा दी। ध्रुवपद
संगीत में चार वाणियों का वर्गीकरण तानसेन के समय में ही हो चुका था।
‘संगीत रत्नाकर’ ग्रन्थ में यह वर्गीकरण शुद्धगीत, भिन्नगीत, गौड़ीगीत और
बेसरागीत नामों से हुआ है; जिसे आज गौड़हार वाणी, डागर वाणी, खण्डहार वाणी
और नौहार वाणी के नाम से जाना जाता है। उस्ताद असद अली खाँ और उनके
पूर्वजों का वादन खण्डहार वाणी का था। इसके अलावा खाँ साहब दूसरी वाणियों
की विशेषताओं को प्रदर्शित करने से नहीं हिचकते थे। ध्रुवपद अंग में
वीणावादन का चलन कम होने के बावजूद उन्होंने परम्परागत वादन शैली से कभी
समझौता नहीं किया। आइए, उनकी वादन शैली की सार्थक अनुभूति करते हैं। इस
प्रस्तुति में उस्ताद असद अली खाँ ने ध्रुवपद अंग में राग आसावरी के स्वरों
में लयबद्ध किन्तु तालरहित झाला और फिर चौताल में एक बन्दिश का वादन किया
है। नाथद्वारा परम्परा के पखावज वादक पण्डित डालचन्द्र शर्मा ने पखावज पर
संगति की है।
राग आसावरी : रुद्रवीणा पर झाला और चौताल में बन्दिश : उस्ताद असद अली खाँ
उस्ताद
असद अली खाँ ने अपने पिता उस्ताद सादिक अली खाँ से रामपुर दरबार में लगभग
15 वर्षों तक रूद्रवीणा के वादन की शिक्षा ग्रहण की, और फिर प्रतिदिन कई
घण्टों तक निरन्तर रियाज करके उन्होंने इस वैदिककालीन वाद्य को सिद्ध कर
लिया। उन्होंने ध्रुवपद अंग में रूद्रवीणा की ‘खान दरबारी’ शैली विकसित की
और उस शैली को यही नाम दिया। खाँ साहब 17 वर्षों तक दिल्ली विश्वविद्यालय
में संगीत के प्रोफ़ेसर रहे। वे आजन्म अविवाहित रहे। अपने भतीजे अली जाकी
हैदर को उन्होंने दत्तक पुत्र बना लिया था और उन्हें रूद्रवीणा वादन में
प्रशिक्षित किया था। अली जाकी के अलावा अन्य कई शिष्यों को भी उन्होंने
संगीत शिक्षा दी है; जो इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। भारतीय शास्त्रीय
संगीत का प्रचार-प्रसार करने में संलग्न संस्था ‘स्पीक मैके’ के साथ जुड़ कर
खाँ साहब ने स्कूल-कालेज के विद्यार्थियों के बीच रुद्रवीणा से नई पीढ़ी को
परिचित कराने का अभियान चलाया था, जो खूब सफल रहा। नई पीढी को रूद्रवीणा
की वादन शैली से परिचित कराने के साथ-साथ उस्ताद असद अली खाँ उन्हें यह
बताना नहीं भूलते थे कि यह तंत्रवाद्य विश्व का सबसे प्राचीन वाद्य है और
ध्वनि के वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आज भी खरा उतरता है। वे भगवान शिव को
रूद्रवीणा का निर्माता मानते थे। उस्ताद असद अली खाँ को अनेक सम्मान और
पुरस्कार से नवाज़ा गया था; जिनमें 1977 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार,
2008 में पद्मभूषण सम्मान, तानसेन सम्मान आदि प्रमुख हैं। 14 जून, 2011 को
उनके निधन से भारतीय संगीत जगत में रिक्तता तो आई है; किन्तु यह विश्वास भी
है कि उनके शिष्यगण रुद्रवीणा वादन की वैदिककालीन परम्परा को आगे
बढ़ाएँगे। इस आलेख को विराम देने से पहले लीजिए सुनिए, उस्ताद असद अली खाँ
का रूद्रवीणा पर बजाया राग आभोगी में एक ध्रुवपद बन्दिश। पखावज संगति
वरिष्ठ पखावजी पण्डित गोपाल दास ने की है। आप यह रचना सुनिए और मुझे आज के
इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग आभोगी : ध्रुपद बन्दिश : उस्ताद असद अली खाँ
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 246वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक तंत्रवाद्य पर वाद्य
संगीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से
किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 250वें अंक की
पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस
वर्ष की पाँचवीं श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – संगीत का यह अंश सुन कर बताइए कि यह किस राग की झलक प्रस्तुत करता है?
2 – संगीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप संगीत वाद्य को पहचान रहे हैं? यदि हाँ, तो हमें उस वाद्य का नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 5 दिसम्बर, 2015 की मध्यरात्रि से
पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते
है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया
जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 248वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ
के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 244 की संगीत पहेली में हमने आपको सुविख्यात गायक उस्ताद फ़ैयाज़
खाँ की आवाज़ में प्रस्तुत दादरा का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा
था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली के पहले
प्रश्न का सही उत्तर है- राग भैरवी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल
दादरा और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायक उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ। सही उत्तर देने
वाले प्रतिभागी हैं- पहली बार ‘स्वरगोष्ठी’ की पहेली में भाग लेने वाले
प्रतिभागी, चेरीहिल (एन.जे.) से प्रफुल्ल पटेल। प्रफुल्ल जी, संगीत
प्रेमियों की इस महफिल में हार्दिक स्वागत है। हमारे अन्य नियमित प्रतिभागी
हैं, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी, और पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया
राजकोटिया। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर लघु
श्रृंखला ‘संगीत के शिखर पर’ का यह सातवाँ अंक था। इस अंक में हमने प्राचीन
तंत्रवाद्य रुद्रवीणा वादक उस्ताद असद अली खाँ के व्यक्तित्व और उनके वादन
पर संक्षिप्त प्रकाश डालने का प्रयत्न किया है। अगले अंक में हम भारतीय
संगीत की किसी अन्य विधा के किसी शिखर व्यक्तित्व के कृतित्व पर आधारित
कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। इस श्रृंखला के लिए यदि आप किसी राग, गीत अथवा
कलाकार को सुनना चाहते हों तो अपना आलेख या गीत हमें शीघ्र भेज दें। हम
आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह
श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए अंक के
साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम
स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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