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"दिल तड़प-तड़प के कह रहा है आ भी जा..." - जानिए पोलैण्ड के उस गीत के बारे में भी जिससे इस गीत की धुन प्रेरित है


एक गीत सौ कहानियाँ - 70
 

'दिल तड़प-तड़प के कह रहा है आ भी जा...' 




रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 70-वीं कड़ी में आज जानिए 1958 की फ़िल्म ’मधुमति’ के गीत "दिल तड़प-तड़प के कह रहा है आ भी जा..." के बारे में जिसे लता मंगेशकर और मुकेश ने गाया था। बोल शैलेन्द्र के और संगीत सलिल चौधरी का।

मैं आजकल पोलैण्ड में हूँ। कार्यालय के काम से मुझे एक महीने के लिए यहाँ रहना पड़ेगा। नवंबर का मध्य होते ही यूरोप में जाड़ा ज़ोर पकड़ चुका है। 3 डिग्री तापमान, बादलों भरा आकाश, धूप का कहीं नामोनिशान नहीं, सूर्योदय सुबह 7:30 और सूर्यास्त शाम 4 बजे, चारों तरफ़ ठण्ड और धुंधलाहट के मद्देनज़र रविवार होने के बावजूद बाहर घूमने-फिरने का ख़ास मौका नहीं मिल रहा। ऐसे में होटल के कमरे में फ़्री वाई-फ़ाई के सहारे लैपटॉप पर दफ़्तर के काम के साथ-साथ यू-ट्यूब पर गाने सुनने या फ़िल्म देखने के अलावा और कोई काम नहीं। यकायक ख़याल आया कि पोलैण्ड आने की तैयारी की भागा-दौड़ी में अगले सप्ताह का ’एक गीत सौ कहानियाँ’ लिखना तो रह ही गया था। दिल मचल उठा यह सोच कर कि अगले एक घंटे का समय इसे लिखते हुए गुज़ार दूँगा। किस गीत के बारे में लिखूँ आज? कुछ सूझ नहीं रहा। बगल के कमरे से पोलैण्ड के किसी गीत के बोल और ताल कानों पर पड़ रही है। अचानक जैसे कोई बिजली सी कौंध गई। याद आया कि फ़िल्म ’मधुमति’ में एक गीत है जो एक पोलिश (पोलैण्ड की भाषा) गीत की धुन पर आधारित है। मन रोमांच से भर उठा। कभी सोचा न था कि पोलैण्ड जैसे देश में भी मेरे क़दम पड़ेंगे। यहँ रहते हुए यहाँ की लोक-धुन से प्रेरित हिन्दी फ़िल्मी गीत का शोध निस्संदेह एक आनन्ददायक अनुभूति होगी।


"दिल तड़प-तड़प के कह रहा है आ भी जा, तू हमसे आँख ना चुरा, तुझे क़सम है आ भी जा..." गीत के कम्पोज़िशन के लिए सलिल चौधरी ने पोलैण्ड के एक लोक धुन का सहारा लिया था। इस गीत के अलावा सलिल दा ने कई बार विदेशी लोक धुनों या विदेशी आधुनिक धुनों का इस्तेमाल अपने गीतों में किया है। उदाहरण स्वरूप ’दो बिघा ज़मीन’ का "धरती कहे पुकार के..." गीत आधारित था लेव निपर द्वारा स्वरबद्ध 'Meadowlands' पर। ’तांगेवाली’ फ़िल्म का "हल्के हल्के चलो साँवरे..." गीत प्रेरित था ’The Wedding Samb” से। फ़िल्म ’छाया’ के "इतना ना मुझसे..." तो सर्वविदित है कि यह मोज़ार्ट के एक सिम्फ़नी से प्रेरित है। फ़िल्म ’माया’ का "ज़िन्दगी क्या है सुन मेरे यार..." चार्ली चैपलिन के 1951 की फ़िल्म ’Limelight' के थीम से प्रेरित था। ’मेमदीदी’ फ़िल्म का "बचपन बचपन..." आधारित था नर्सरी राइम 'A-Tisket, A-Tasket' से जबकि ’हाफ़ टिकट’ का "आँखों में तुम..." 1948 के चार्टबस्टर 'Buttons and Bows' से प्रेरित था। "दिल तड़प-तड़प के..." जिस मूल गीत के धुन पर आधारित है वह गीत है "Szla dzieweczka do gajeczka" जिसका उच्चारण है "shwah jeh-vehtch-ka duh lah-sech-kah"। मूल लोक गीत का रिदम धीमा है ("दिल तड़प-तड़प..." का रिदम इससे थोड़ा तेज़ है), जबकि इस पोलिश लोक गीत के आधुनिक संस्करण भी बने हैं जिनकी रिदम काफ़ी तेज़ है। "Szla dzieweczka do gajeczka" दरसल एक कहानी है जो गीत के माध्यम से कही गई है। यह कहानी है एक युवती की जो जंगल में जाती है फल तोड़ने के लिए। वहाँ उसकी मुलाक़ात एक नौजवान शिकारी से होती है जो जंगल में अपना रास्ता भटक गया है। नौजवान युवती से दो चीज़ें माँगता है - खाना और प्यार। युवती का जवाब है कि वह सारा खाना ख़ुद खा चुकी है और जहाँ तक प्यार का सवाल है तो हालाँकि नौजवान शिकारी बहुत ही ख़ूबसूरत है पर उसके मन में अभी तक उसका पहला प्यार हावी है जिसे वो भुला नहीं पा रही है। बस इतनी सी है इस गीत की कहानी। और हाँ "Szla dzieweczka" का शाब्दिक अर्थ है "चलती हुई लड़की"। 


"Szla dzieweczka" गीत पोलैण्ड के दक्षिण-पश्चिम प्रान्त सिलेसिआ (Silesia) में उत्पन्न हुआ था; यह प्रान्त शताब्दियों से जर्मनी के अधीन हुआ करता था जहाँ पोलिश लोग अल्पसंख्यक हुआ करते थे। यहाँ के लोकगीत और लोकनृत्य साधारण और सरल हुआ करते थे। इस गीत पर शोध करते हुए कार्तिक एस. का लिखा एक ब्लॉग मिला जहाँ इसके बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई गई है। कार्तिक लिखते हैं कि उनके पिता ने उन्हें यह जानकारी दी थी कि "दिल तड़प-तड़प के..." गीत की धुन से मिलती जुलती धुन उन्होंने एक वृत्तचित्र 'Music and dances of Silesia' में सुना है जो Polish World War II के पार्श्व पर बनी Andrez Wajda की क्लासिक फ़िल्म 'Kanal' के साथ जोड़ी गई है। कार्तिक को सुन्दर श्रीनिवासन के ब्लॉग से भी यह पता चला कि ’मधुमति’ का यह गीत किसी विदेशी गीत से प्रेरित है। फिर सुन्दर की सहायता से कार्तिक ने बैंगलोर में ’रेडियो सिटी’ की RJ शीतल अय्यर से सम्पर्क किया जिनके भाई का पोलिश मूल की लड़की से विवाह हुआ है। इस तरह से शीतल अय्यर के भाभी को जब ’मधुमति’ का गीत सुनवाया गया तो उन्होंने तुरन्त "Szla dzieweczka" की धुन को पहचान लिया।

कार्तिक ने इस गीत के बारे में अधिक जानकारी के लिए कई पोलिश म्युज़िक फ़ोरम्स में लिखा था, और कार्तिक को आश्चर्य-चकित करते हुए University of Southern California के Polish Music Center के निर्देशन मिस वान्डा विल्क (Wanda Wilk) ने जवाब देते हुए कई महत्वपूर्ण तथ्य इस गीत के दिए। मिस विल्क के ही शब्दों में - 


Ms. Wanda Wilk
"The song is a very popular folk-song that originated in the Silesian (South-Western) part of Poland i.e., from the regions of Slask Gorny (High Silesia), Cieszyn and Opole regions. The ethnographer Juliusz Roger identifies it as coming from Rybnik, which is near the Czech border. That is where the famous Polish jazz pianist, Adam Makowicz, and the famous Polish composer, Henryk Gorecki, come from. It has been very popular throughout Poland for many years, for various celebratory occasions like namesday, youth gatherings etc. It has been recorded by the professional Folk Song & Dance Ensemble, 'Slask' produced by Polskie Nagrania, by the Lira Ensemble of Chicago and by popular singers like Maryla Rodowicz and popular Polish dance bands.

As far as the pronunciation, it goes something like this...

Szla dzieweczka: shwah jeh-vehtch-ka
do laseczka: duh lah-sech-kah
do zielonego: duh zhyeh-loh-neh-go
nadeszla tam mysliweczka: nah-desh-wah tahm mih-shlee-vetch-kah
bardzo szwarnego: bahr-dzoh schwahr-neh-goh
O moj mily mysliweczku: Oh mooy mee-lyh mih-shlee-vetch-koo
dalabym ci chleba z maslem: dah-wah-bim chee hleh-bah z mahs-wem
alem juz zjadla: a-lehm yoosh zyad-wah" 

लीजिए, अब आप फिल्म 'मधुमती' का यही गीत मुकेश और लता मंगेशकर की आवाज़ में सुनिए। इसके बाद आप मूल पोलिश लोकगीत भी सुन सकते हैं। 



अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर। 


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 




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