"एक ही ख़्वाब कई बार देखा है मैंने..." - जानिए गुलज़ार और पंचम के नोक-झोक की बातें इस गीत के बनने के दौरान
एक गीत सौ कहानियाँ - 69
'एक ही ख़्वाब कई बार देखा है मैंने...'
गुलज़ार उन गीतकारों में से हैं जो अपने गीतों का फ़िल्म की कहानी का हिस्सा बनाते हैं। दूसरे शब्दों में, उनके गीत फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ाते हैं। आम तौर पर फ़िल्मी गीतों को आइटम नम्बर्स के तौर पर फ़िल्मों में डाला जाता है। कहानी गीत के लिए रुक जाती है, और गीत समाप्त पर फिर से चल पड़ती है और अगले गीत पे जाकर दोबारा रुक जाती है। पर गुलज़ार जैसे गीतकार हमेशा लीक से अलग रहे हैं। इस तरह के कहानी को आगे बढ़ाने वाले गीतों में एक गीत है फ़िल्म ’किनारा’ का, "एक ही ख़्वाब कई बार देखा है मैंने..."। हालाँकि यह गीत कोई ट्रेन्ड-सेटर गीत नहीं सिद्ध हुआ, पर इस गीत की ख़ूब सराहना ज़रूर हुई थी। गुलज़ार के शब्दों में यह गीत एक गीत नहीं था, बल्कि एक दृश्य (सीन) था जिसे संगीत की दृष्टि से फ़िल्माया गया था। इस गीत में "टिकू की बच्ची, will you shut up?" जैसे बोल हैं। जब गुलज़ार इस गीत को पंचम के पास ले गए तो पंचम की पहली प्रतिक्रिया थी "क्या है यह... गाना है या सीन है?" गुलज़ार का जवाब था, "यह सीन है, पर इसे गाना है।" यह सुनने के बाद पंचम अपना हाथ अपने माथे पे मारते हुए कहा, "कोई काम सीधा नहीं करता है"। काफ़ी देर तक बड़बड़ाने के बाद पंचम पूरा पढ़ने के लिए तैयार हुए। पर दूसरी ही पंक्ति पे जा कर उनके माथे का शिकन गहराया क्योंकि पंक्ति थी "तूने साड़ी में उड़स ली हैं मेरी चाबियाँ घर की"। पंचम हारमोनियम को पीछे धकेलते हुए फिर से शुरू हो गए, "यह कोई गीत है? चाबियाँ कोई पोएट्री है?" मुखड़े की धुन को गुनगुनाते हुए हर बार पंचम "चाबियाँ" पे रुक जाया करते, थोड़ा बड़बड़ाते और गुलज़ार से इस शब्द को बदलने के लिए कहते। पर गुलज़ार भी अपने निर्णय पे अटल थे। पंचम के लाख चिल्लाने पर भी गुलज़ार इस शब्द को हटाने के लिए राज़ी नहीं हुए। आलम यह हुआ कि इसके बाद एक लम्बे समय तक पंचम गुलज़ार को ’चाबियाँ’ कह कर बुलाया करते थे। जब भी गुलज़ार म्युज़िक रूम में घुसते, पंचम कह उठते, "लो चाबियाँ आ गईं"। और इसके बाद जब भी गुलज़ार कोई इस तरह का शब्द अपने गीतों में इस्तेमाल करते, पंचम उनके पीछे पड़ जाते।
"एक ही ख़्वाब..." भूपेन्द्र और हेमा मालिनी ने गाया था। हेमा मालिनी ने इस गीत को बहुत ही अच्छी और सुरीली तरीके से निभाया जिससे यह हुआ कि भूपेन्द्र को थोड़ी परेशानी होने लगी। गुलज़ार साहब बताते हैं कि एक बार तो भूपेन्द्र अपने आप को रोक नहीं सके और बोल ही पड़े कि "She's too good, yaar!" ऐसा ही हुआ था मन्ना डे और मीना कुमारी के बीच फ़िल्म ’पिंजरे के पंछी’ फ़िल्म के गीत में। मन्ना दा मीना जी से तो कुछ नहीं बोले, पर गुलज़ार और साउन्ड्र रेकॉर्डिस्ट के पास जाकर शिकायत करने लगे कि "यार उनके सामने खड़े होकर गाना बहुत मुश्किल है। मैं उनको देखूँ, या उनसे बात करूँ, या गाना गाऊँ?" ख़ैर, वापस आते हैं ’एक ही ख़्वाब..." पर। गाना रेकॉर्ड होने के बाद पंचम को लगा कि गाने में कुछ कमी सी है, थोड़ा डल लग रहा है। इसलिए उन्होंने भूपेन्द्र को हेडफ़ोन दिया और उनसे अपने गीटार को अनायास बजाते रहने को कहा। सब को हैरान करते हुए भूपेन्द्र ने एक ही टेक में यह काम कर डाला। भूपेन्द्र एक और टेक देना चाहते थे पर पंचम को लगा कि पहला टेक ही उत्तम है। अन्तिम निर्णय हमेशा पंचम का ही होता था। हर किसी को पता था कि उन्हें अपना काम अच्छी तरह से पता है और इस पर उनसे कोई सवाल नहीं कर सकता। इस गीत से पहले हेमा मालिनी ने 1974 की फ़िल्म ’हाथ की सफ़ाई’ में किशोर कुमार के साथ "पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए..." गीत गा चुकी थीं। इसलिए इस गीत में उनकी आवाज़ को लेने का निर्णय लेने में कोई परेशानी नहीं हुई। इन दो गीतों के अलावा एक तीसरा गीत भी है जिसमें हेमा मालिनी की आवाज़ सुनाई दी है, वह है फ़िल्म ’शोले’ का "कोई हसीना जब रूठ जाती है तो...", जिसमें उनकी गाती हुई आवाज़ तो नहीं पर गाली देती हुई आवाज़ ("चल हट साले") सुनाई दी है।
अब आते हैं गीत के फ़िल्मांकन पर। इस गीत का एक फ़्लैशबैक गीत के रूप में प्रयोग में लाया जाने वाला था जिसके लिए एक स्टार कलाकार की तलाश चल रही थी। गुलज़ार हेमा मालिनी से इस रोल के लिए धर्मेद्र से बात करने के लिए कहने से थोड़ा हिचहिचा रहे थे। हालाँकि हेमा और धर्मेन्द्र के प्यार की ख़ुशबू उन दिनों हवाओँ में सुगन्ध फैला रही थी, पर औपचारिक रूप से दोनों ने इसे स्वीकारा नहीं था और एक-दूसरे को बस "अच्छा दोस्त" कहते थे। पर जब वहाँ इस रोल के लिए अलग-अलग नायकों के नाम लिए जा रहे थे तब गुलज़ार को चौंकाते हुए हेमा मालिनी ने शर्माते हुए उनसे पूछा, "मेरा दोस्त क्यों नहीं इस रोल को निभा सकता?" हेमा मालिनी ने अपनी ज़बान से धर्मेन्द्र का नाम नहीं लिया पर उनके पूरे चेहरे पर सिर्फ़ उन्हीं का नाम लिखा हुआ था। इसके बाद गुलज़ार ने धर्मेन्द्र को फ़ोन किया और उसी फ़ोन-कॉल में धर्मेन्द्र ने यह रोल अदा करने के लिए हामी भर दिया। धर्मेन्द्र को गुलज़ार की फ़िल्में अच्छी लगती थी और वो उनके साथ आगे भी काम करना चाहते थे, तभी एक दिन वो गुलज़ार से कहने लगे कि "क्या गेस्ट रोल ही करवाओगे मुझसे?" गुलज़ार ने जब ’देवदास’ बनाने का निर्णय लिया तो देवदास के रूप में धर्मेन्द्र का ही विचार उनके मन में आया। यह किरदार धर्मेन्द्र के करीयर का सबसे महत्वपूर्ण किरदार साबित हो सकता था, पर दुर्भाग्यवश दो शेड्युल के बाद इस फ़िल्म का निर्माण बन्द हो गया। फिर इसके बाद गुलज़ार और धर्मेन्द्र कभी साथ में काम नहीं कर सके और दोनों की एक दूसरे के साथ काम करने की ख़्वाहिश अधूरी ही रह गई, बस एक ही ख़्वाब कई बार देखा है मैंने...। लीजिए अब आप फिल्म 'किनारा' का यही गीत सुनिए।
"एक ही ख़्वाब..." भूपेन्द्र और हेमा मालिनी ने गाया था। हेमा मालिनी ने इस गीत को बहुत ही अच्छी और सुरीली तरीके से निभाया जिससे यह हुआ कि भूपेन्द्र को थोड़ी परेशानी होने लगी। गुलज़ार साहब बताते हैं कि एक बार तो भूपेन्द्र अपने आप को रोक नहीं सके और बोल ही पड़े कि "She's too good, yaar!" ऐसा ही हुआ था मन्ना डे और मीना कुमारी के बीच फ़िल्म ’पिंजरे के पंछी’ फ़िल्म के गीत में। मन्ना दा मीना जी से तो कुछ नहीं बोले, पर गुलज़ार और साउन्ड्र रेकॉर्डिस्ट के पास जाकर शिकायत करने लगे कि "यार उनके सामने खड़े होकर गाना बहुत मुश्किल है। मैं उनको देखूँ, या उनसे बात करूँ, या गाना गाऊँ?" ख़ैर, वापस आते हैं ’एक ही ख़्वाब..." पर। गाना रेकॉर्ड होने के बाद पंचम को लगा कि गाने में कुछ कमी सी है, थोड़ा डल लग रहा है। इसलिए उन्होंने भूपेन्द्र को हेडफ़ोन दिया और उनसे अपने गीटार को अनायास बजाते रहने को कहा। सब को हैरान करते हुए भूपेन्द्र ने एक ही टेक में यह काम कर डाला। भूपेन्द्र एक और टेक देना चाहते थे पर पंचम को लगा कि पहला टेक ही उत्तम है। अन्तिम निर्णय हमेशा पंचम का ही होता था। हर किसी को पता था कि उन्हें अपना काम अच्छी तरह से पता है और इस पर उनसे कोई सवाल नहीं कर सकता। इस गीत से पहले हेमा मालिनी ने 1974 की फ़िल्म ’हाथ की सफ़ाई’ में किशोर कुमार के साथ "पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए..." गीत गा चुकी थीं। इसलिए इस गीत में उनकी आवाज़ को लेने का निर्णय लेने में कोई परेशानी नहीं हुई। इन दो गीतों के अलावा एक तीसरा गीत भी है जिसमें हेमा मालिनी की आवाज़ सुनाई दी है, वह है फ़िल्म ’शोले’ का "कोई हसीना जब रूठ जाती है तो...", जिसमें उनकी गाती हुई आवाज़ तो नहीं पर गाली देती हुई आवाज़ ("चल हट साले") सुनाई दी है।
अब आते हैं गीत के फ़िल्मांकन पर। इस गीत का एक फ़्लैशबैक गीत के रूप में प्रयोग में लाया जाने वाला था जिसके लिए एक स्टार कलाकार की तलाश चल रही थी। गुलज़ार हेमा मालिनी से इस रोल के लिए धर्मेद्र से बात करने के लिए कहने से थोड़ा हिचहिचा रहे थे। हालाँकि हेमा और धर्मेन्द्र के प्यार की ख़ुशबू उन दिनों हवाओँ में सुगन्ध फैला रही थी, पर औपचारिक रूप से दोनों ने इसे स्वीकारा नहीं था और एक-दूसरे को बस "अच्छा दोस्त" कहते थे। पर जब वहाँ इस रोल के लिए अलग-अलग नायकों के नाम लिए जा रहे थे तब गुलज़ार को चौंकाते हुए हेमा मालिनी ने शर्माते हुए उनसे पूछा, "मेरा दोस्त क्यों नहीं इस रोल को निभा सकता?" हेमा मालिनी ने अपनी ज़बान से धर्मेन्द्र का नाम नहीं लिया पर उनके पूरे चेहरे पर सिर्फ़ उन्हीं का नाम लिखा हुआ था। इसके बाद गुलज़ार ने धर्मेन्द्र को फ़ोन किया और उसी फ़ोन-कॉल में धर्मेन्द्र ने यह रोल अदा करने के लिए हामी भर दिया। धर्मेन्द्र को गुलज़ार की फ़िल्में अच्छी लगती थी और वो उनके साथ आगे भी काम करना चाहते थे, तभी एक दिन वो गुलज़ार से कहने लगे कि "क्या गेस्ट रोल ही करवाओगे मुझसे?" गुलज़ार ने जब ’देवदास’ बनाने का निर्णय लिया तो देवदास के रूप में धर्मेन्द्र का ही विचार उनके मन में आया। यह किरदार धर्मेन्द्र के करीयर का सबसे महत्वपूर्ण किरदार साबित हो सकता था, पर दुर्भाग्यवश दो शेड्युल के बाद इस फ़िल्म का निर्माण बन्द हो गया। फिर इसके बाद गुलज़ार और धर्मेन्द्र कभी साथ में काम नहीं कर सके और दोनों की एक दूसरे के साथ काम करने की ख़्वाहिश अधूरी ही रह गई, बस एक ही ख़्वाब कई बार देखा है मैंने...। लीजिए अब आप फिल्म 'किनारा' का यही गीत सुनिए।
फिल्म - किनारा : 'एक ही ख्वाब कई बार देखा है मैंने...' : भूपेन्द्र और हेमा मालिनी : संगीत - राहुलदेव बर्मन
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खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
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