स्वरगोष्ठी – 245 में आज
संगीत के शिखर पर – 6 : उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ
संगीत जगत के आकाश पर चमकते सूर्य – उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ
रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
सुरमयी श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की छठीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र
आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम
भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनके
कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय
शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व का
उल्लेख और उनकी कृतियों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। आज श्रृंखला की
छठीं कड़ी में हम आज ‘आफताब-ए-मौसिकी’ अर्थात संगीत जगत के सूर्य के नाम से
विख्यात, आगरा रँगीला घराने के सिरमौर गायक उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ के
व्यक्तित्व और कृतित्व की संक्षिप्त चर्चा कर रहे हैं। आज हम आपको उस्ताद
फ़ैयाज़ खाँ के स्वरों में पहले राग तिलंग में नोम-तोम का आलाप, राग ललित में
एक द्रुत खयाल और राग भैरवी का एक दादरा सुनवाएँगे।
भारतीय
संगीत के प्रचलित घरानों में जब भी आगरा घराने की चर्चा होगी तत्काल एक
नाम जो उभर कर हमारे सामने आता है, वह है- आफताब-ए-मौसिकी उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ
का। ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक में हम इन्हीं महान गायक कलासाधक को स्मरण
कर रहे हैं। पिछली शताब्दी के पूर्वार्द्ध के जिन संगीतज्ञों की गणना हम
शिखर-पुरुष के रूप में करते हैं उस्ताद फ़ैयाज़ खान उन्ही में से एक थे।
ध्रुवपद-धमार, खयाल-तराना, ठुमरी-दादरा, सभी शैलियों की गायकी पर उन्हें
कुशलता प्राप्त थी। प्रकृति ने उन्हें घन, मन्द्र और गम्भीर कण्ठ का उपहार
तो दिया ही था, उनके शहद से मधुर स्वर श्रोताओं पर रस-वर्षा कर देते थे।
फ़ैयाज़ खाँ का जन्म ‘आगरा रँगीले घराना’ के नाम से विख्यात ध्रुवपद गायकों
के परिवार में हुआ था। दुर्भाग्य से फ़ैयाज़ खाँ के जन्म से लगभग तीन मास
पूर्व ही उनके पिता सफदर हुसैन खाँ का इन्तकाल हो गया। जन्म से ही
पितृ-विहीन बालक को उनके नाना ग़ुलाम अब्बास खाँ ने अपना दत्तक पुत्र बनाया
और पालन-पोषण के साथ-साथ संगीत-शिक्षा की व्यवस्था भी की। यही बालक आगे चल
कर आगरा घराने का प्रतिनिधि बना और भारतीय संगीत के अर्श पर आफताब बन कर
चमका। फ़ैयाज़ खाँ की विधिवत संगीत शिक्षा उस्ताद ग़ुलाम अब्बास खाँ से आरम्भ
हुई, जो फ़ैयाज़ खाँ के गुरु और नाना तो थे ही, गोद लेने के कारण पिता के पद
पर भी प्रतिष्ठित हो चुके थे। फ़ैयाज़ खाँ के पिता का घराना ध्रुपदियों का
था, अतः ध्रुवपद अंग की गायकी इन्हें संस्कारगत प्राप्त हुई। आगे चल कर
फ़ैयाज़ खाँ ध्रुवपद के ‘नोम-तोम’ के आलाप में इतने दक्ष हो गए थे कि संगीत
समारोहों में उनके समृद्ध आलाप की फरमाइश हुआ करती थी। आइए आपको भी उस्ताद
फ़ैयाज़ खाँ के स्वर में राग ‘तिलंग’ में नोम-तोम का आलाप सुनवाते हैं।
राग तिलंग : नोम-तोम आलाप : उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ
फ़ैयाज़
खाँ के नाना का घराना खयाल गायकों का था। नाना ने बचपन से ही कठोर रियाज़
कराया। संगीत के घरानों में संगीत-शिक्षा के लिए एक कठोर व्रत का पालन
शिष्य से कराया जाता है, जिसे ‘चिल्ला’ कहा जाता है। इस व्रत के अनुसार
शिष्य को निरन्तर बारह वर्षों तक प्रतिदिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक संगीत
का अभ्यास करना होता है। प्रशिक्षण की इस अवधि में फ़ैयाज़ खाँ ने
स्वर-साधना, ध्रुवपद और होरी गायन का कठिन अभ्यास किया। 25 वर्ष की आयु तक
वे लोकप्रिय होने लगे थे। उनकी गायकी पर अपने नाना ग़ुलाम अब्बास खाँ के
अतिरिक्त तत्कालीन महान गायक नत्थन खाँ, जयपुर के अब्दुल खाँ और सेनिया
घराने के अमीर खाँ का भी प्रभाव था। आइए अब हम आपको उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ के
स्वरों में राग ललित में द्रुत तीनताल का एक खयाल सुनवाते हैं, जिसके बोल
हैं –“तड़पत हूँ जैसे जल बिन मीन...”।
राग ललित : ‘तड़पत हूँ जैसे जल बिन मीन...’ : उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ
पिछली
शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक के चार दशकों तक उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ देश में
आयोजित होने वाले संगीत समारोहों के प्राण हुआ करते थे। संगीत-प्रेमियों को
सम्मोहित कर लेने की अद्भुत क्षमता उनकी गायकी में थी। उस दौर में उन्हें
जनसामान्य की ओर से ‘महफिल के बादशाह’ के नाम से पुकारा जाता था। 1930 के
आसपास उस्ताद ने कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के निवास स्थान जोरासांकों
ठाकुरबाड़ी में आयोजित संगीत समारोह में भाग लिया था। समारोह के दौरान वे
रवीन्द्रनाथ ठाकुर से अत्यन्त प्रभावित हुए और उन्हें “हिंदुस्तान का सबसे
बड़ा शायर” की उपाधि दे दी। अपने प्रभावशाली संगीत से उन्होने देश के सभी
संगीत केन्द्रों में खूब यश अर्जित किया। उनकी ख्याति के कारण बड़ौदा
राज-दरबार में संगीतज्ञ के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। 1938 में उन्हे
मैसूर दरबार से “आफताब-ए-मौसिकी” (संगीत के सूर्य) की उपाधि से नवाजा गया।
उस्ताद की गायकी में जवारीदार स्वर, राग दरबारी का गान्धार, राग श्री का
ऋषभ और अनूठी लयकारी श्रोताओं को सम्मोहित करती थी। बोलतान में गीत की
पंक्तियों का चमत्कारिक प्रदर्शन किया करते थे। वे स्वर, भाषा, अर्थ, भाव,
लय सभी का भरपूर आनन्द लेकर गाते थे। ध्रुवपद और खयाल गायकी में दक्ष होने
के साथ-साथ ठुमरी-दादरा गायन में भी वे अत्यन्त कुशल थे। फ़ैयाज़ खाँ ने
कलकत्ता (अब कोलकाता) में भैया गनपत राव और मौजुद्दीन खाँ से ठुमरी-दादरा
सुना था और संगीत की इस विधा से अत्यन्त प्रभावित हुए थे। ठुमरी के दोनों
दिग्गजों से प्रेरणा पाकर फ़ैयाज़ खाँ ने इस विधा में भी दक्षता प्राप्त की।
खाँ साहब ठुमरी और दादरा के बीच उर्दू के शे’र जोड़ कर चार चाँद लगा देते
थे। इसके साथ ही टप्पे की तानों को भी वे ठुमरी गाते समय जोड़ लिया करते थे।
उनके द्वारा गायी गई उपशास्त्रीय रचनाओं में- “ना बनाओ बतियाँ चलो काहे को
झूठी....”, “पानी भरे री कौन अलबेली...” आदि आज भी संगीत प्रेमियों का बीच
अत्यन्त लोकप्रिय है। इस आलेख को विराम देने से पहले आइए आपको सुनवाते
हैं, उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ के स्वर में राग भैरवी में निबद्ध अत्यन्त लोकप्रिय
दादरा। खाँ साहब का निधन 5 नवम्बर, 1950 को हुआ था। इसी माह उनकी पुण्यतिथि
भी थी, इस अवसर पर हम उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ को समस्त संगीत-प्रेमियों की ओर से
श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए आज यहीं विराम लेते हैं।
राग भैरवी दादरा : ना बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’ : उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 245वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक तंत्र-वाद्य संगीत रचना
का अंश सुनवा रहे हैं। इस संगीतांश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से
किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 250 के सम्पन्न होने
तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की पाँचवीं
श्रृंखला (सेगमेंट) के विजेताओं के साथ ही वार्षिक विजेताओं की घोषणा भी की
जाएगी।
1 – वाद्ययंत्र पर कौन सा राग बजाया जा रहा है? राग का नाम बताइए।
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।
3 – यह किस वाद्ययंत्र की आवाज़ है? वाद्य का नाम बताइए।
आप इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 28 नवम्बर, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन अन्तिम तिथि के
बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 247वें अंक में प्रकाशित
करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे
में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते
हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए
COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
के 243वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको सुविख्यात वायलिन-वादिका डॉ.
एन. राजम् का वायलिन पर बजाया राग जोग का एक अंश सुनवाया था और आपसे तीन
में से किन्हीं दो प्रश्न का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है-
राग – जोग, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – द्रुत तीनताल और तीसरे
प्रश्न का सही उत्तर है- वाद्य – वायलिन या बेला।
इस
बार की पहेली के प्रश्नों का सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी हैं, हैदराबाद
से डी. हरिणा माधवी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और वोरहीज,
न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक
इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर
जारी हमारी लघु श्रृंखला ‘संगीत के शिखर पर’ के आज के अंक में हमने आपसे
ध्रुपद, खयाल, ठुमरी, दादरा आदि सभी गान-शैली के शिखर पर प्रतिष्ठित उस्ताद
फ़ैयाज़ खाँ के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त चर्चा की है। अगले अंक
में एक अन्य विधा के शिखर पर प्रतिष्ठित व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे। इस
श्रृंखला को हमारे अनेक पाठकों ने पसन्द किया है। हम उन सबके प्रति आभार
व्यक्त करते हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों के बारे में हमें पाठकों,
श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों की अनेक प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते
हैं। प्राप्त सुझाव और फरमार्इशों के अनुसार ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों
का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आपका स्वागत
है। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम
उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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