स्वरगोष्ठी – 243 में आज
संगीत के शिखर पर – 4 : उस्ताद अब्दुल करीम खाँ
खाँ साहब सम्पूर्ण भारतीय संगीत के प्रतिनिधि संगीतज्ञ थे
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आज
हम एक ऐसे संगीत-साधक के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करेंगे जिसने
उत्तर और दक्षिण भारतीय संगीत के बीच एक सेतु बनाने का महान सफल किया था।
किराना घराने के इस महान कलासाधक का नाम है, उस्ताद अब्दुल करीम खाँ। इस
महान संगीतज्ञ का जन्म उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुजफ्फरनगर जिले में स्थित
कैराना नामक कस्बे में वर्ष 1884 में हुआ था। आज जिसे हम संगीत के किराना
घराने के नाम से जानते हैं वह इसी कस्बे के नाम पर पड़ा था। एक संगीतकार
परिवार में जन्में अब्दुल करीम खाँ के पिता का नाम काले खाँ था। खाँ साहब
के तीन भाई क्रमशः अब्दुल लतीफ़ खाँ, अब्दुल मजीद खाँ और अब्दुल हक़ खाँ थे।
सुप्रसिद्ध गायिका रोशन आरा बेग़म उनके सबसे छोटे भाई अब्दुल हक़ की सुपुत्री
थीं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद रोशन आरा बेग़म का गायन लखनऊ रेडियो के
माध्यम से अत्यन्त लोकप्रिय था। जन्म से ही सुरीले कण्ठ के धनी अब्दुल करीम
खाँ की सीखने की रफ्तार इतनी तेज थी कि मात्र छः वर्ष की आयु में ही
संगीत-सभाओं में गाने लगे थे। उनकी प्रतिभा इतनी विलक्षण थी कि पन्द्रह
वर्ष की आयु में बड़ौदा दरबार में गायक के रूप में नियुक्त हो गए थे। वहाँ
वे 1899 से 1902 तक रहे और उसके बाद मिरज चले गए। अब आप उस्ताद अब्दुल करीम
खाँ के स्वरों में राग बसन्त में निबद्ध दो खयाल सुनिए। विलम्बित एकताल के
खयाल के बोल हैं- ‘अब मैंने देखे...’ तथा द्रुत तीनताल की बन्दिश के बोल
हैं- ‘फगुआ ब्रज देखन को चलो री...’।
राग – बसन्त : खयाल – ‘अब मैंने देखे...’ और ‘फगुआ ब्रज देखन...’ : उस्ताद अब्दुल करीम खाँ
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ठुमरी राग झिंझोटी : ‘पिया बिन नाहीं आवत चैन...’ : उस्ताद अब्दुल करीम खाँ
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ठुमरी राग भैरवी : ‘जमुना के तीर...’ : उस्ताद अब्दुल करीम खाँ
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 243वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक वाद्य संगीत रचना का अंश
सुनवा रहे हैं। इस संगीतांश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं
दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 250 के सम्पन्न होने तक जिस
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की पाँचवीं श्रृंखला
(सेगमेंट) के विजेताओं के साथ ही वार्षिक विजेताओं की घोषणा भी की जाएगी।
1 – वाद्ययंत्र पर कौन सा राग बजाया जा रहा है? राग का नाम बताइए।
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।
3 – यह किस वाद्ययंत्र की आवाज़ है? वाद्य का नाम बताइए।
आप इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 14 अक्टूबर, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें।
COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन अन्तिम
तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 245वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक
के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये
गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
के 241वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको सुविख्यात गजल गायक जगजीत
सिंह की आवाज़ में द्रुत खयाल की एक रचना का अंश सुनवाया था और आपसे तीन
में से किसी दो प्रश्न का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग
– दरबारी कान्हड़ा, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – द्रुत एकताल और
तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायक – जगजीत सिंह।
इस
बार की पहेली के प्रश्नों का सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी हैं, हैदराबाद
से डी. हरिणा माधवी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और जबलपुर
से क्षिति तिवारी। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर
से हार्दिक बधाई।
पिछली श्रृंखला के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की चौथी श्रृंखला (पहेली क्रमांक 231 से 241 तक) के प्रतिभागियों के
प्राप्तांकों की गणना के अनुसार निम्नलिखित प्रतिभागियों ने पहले तीन
स्थानो पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया
और जबलपुर से क्षिति तिवारी ने 20-20 अंक अर्जित कर श्रृंखला में प्रथम
स्थान प्राप्त किया है। दूसरे स्थान पर 16 अंक के साथ हैदराबाद से डी.
हरिणा माधवी हैं और पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने 10 अंक
अर्जित कर तीसरा स्थान प्राप्त किया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर
जारी हमारी लघु श्रृंखला ‘संगीत के शिखर पर’ के आज के अंक में हमने आपसे
खयाल, ठुमरी, दादरा और नाट्य संगीत गायकी के शिखर पर प्रतिष्ठित उस्ताद
अब्दुल करीम खाँ के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त चर्चा की है। अगले
अंक में एक अन्य विधा के शिखर पर प्रतिष्ठित व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे।
इस श्रृंखला को हमारे अनेक पाठकों ने पसन्द किया है। हम उन सबके प्रति आभार
व्यक्त करते हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों के बारे में हमें पाठकों,
श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों की अनेक प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते
हैं। प्राप्त सुझाव और फरमार्इशों के अनुसार ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों
का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आपका स्वागत
है। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम
उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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