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सायंकालीन राग : SWARGOSHTHI – 236 : EVENING RAGAS




स्वरगोष्ठी – 236 में आज

रागों का समय प्रबन्धन – 5 : रात के प्रथम प्रहर के राग

राग भूपाली की बन्दिश - ‘जब से तुम संग लागली प्रीत...’




‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला- ‘रागों का समय प्रबन्धन’ की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। है। उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर को दिन के और सूर्यास्त से लेकर अगले सूर्योदय से पहले के चार प्रहर को रात्रि के प्रहर कहे जाते हैं। उत्तर भारतीय संगीत के साधक कई शताब्दियों से विविध प्रहर में अलग-अलग रागों का परम्परागत रूप से प्रयोग करते रहे हैं। रागों का यह समय-सिद्धान्त हमारे परम्परागत संस्कारों से उपजा है। विभिन्न रागों का वर्गीकरण अलग-अलग प्रहर के अनुसार करते हुए आज भी संगीतज्ञ व्यवहार करते हैं। राग भैरव का गायन-वादन प्रातःकाल और मालकौंस मध्यरात्रि में ही किया जाता है। कुछ राग ऋतु-प्रधान माने जाते हैं और विभिन्न ऋतुओं में ही उनका गायन-वादन किया जाता है। इस श्रृंखला में हम विभिन्न प्रहरों में बाँटे गए रागों की चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में आज हम आपसे दिन के पाँचवें प्रहर के रागों पर चर्चा करेंगे और इस प्रहर के एक प्रमुख राग भूपाली की बन्दिश सुविख्यात गायिका विदुषी किशोरी अमोनकर के स्वरों में प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘नरसी भगत’ से राग केदार पर आधारित एक गीत भी सुनवा रहे हैं।


किशोरी अमोनकर
भारतीय संगीत के रागों के गाने-बजाने का समय निर्धारण करने के लिए शास्त्रकारों ने कुछ सिद्धान्त बनाए हैं। इस श्रृंखला के पिछले अंकों में हमने आपसे ‘अध्वदर्शक स्वर’ और ‘वादी संवादी स्वर’ सिद्धान्तों पर चर्चा की थी। आज के अंक में हम पूर्वांग और उत्तरांग के सिद्धान्त पर आपसे चर्चा कर रहे हैं। एक सप्तक के दो भाग किये जाते हैं। षडज से पंचम तक के स्वरों को पूर्वांग के स्वर और मध्यम से अगले सप्तक के षडज तक के स्वरों को उत्तरांग के स्वर कहे जाते हैं। जिस राग का पूर्वांग अधिक प्रधान होता है, वह मध्याह्न 12 बजे से मध्यरात्रि 12 के बीच की अवधि में तथा जिस राग का उत्तर अंग अधिक प्रबल होता है, वह मध्यरात्रि 12 बजे से लेकर मध्याह्न 12 बजे के बीच गाया-बजाया जाता है। राग केदार, भूपाली, दरबारी कान्हड़ा, भीमपलासी आदि पूर्वांग प्रधान राग दिन के 12 बजे से रात्रि 12 बजे से पूर्व गाये-बजाए जाते हैं। इसी प्रकार सोहनी, बसन्त, हिंडोल, बहार, जौनपुरी आदि उत्तरांग प्रधान राग मध्यरात्रि 12 बजे से मध्याह्न 12 बजे तक गाये-बजाए जाते हैं। इन्हें क्रमशः पूर्व राग और उत्तर राग कहा जाता है। पूर्व राग का वादी स्वर सप्तक के पूर्व अंग से तथा संवादी स्वर उत्तर अंग से लिया जाता है। रात्रि के प्रथम प्रहर अर्थात गोधूलि बेला से रात्रि 9 बजे तक ऐसे रागों को गाया-बजाया जाता है जिसमे ऋषभ और गान्धार स्वर शुद्ध होते हैं। राग भूपाली और केदार दो ऐसे राग हैं, जिनमें उपरोक्त दोनों सिद्धान्तों का पालन किया जाता है। यह दोनों राग रात्रि के प्रथम प्रहर में खूब प्रचलित हैं। आज पहले हम आपको राग भूपाली और फिर राग केदार के उदाहरण सुनवाते हैं।

राग भूपाली कल्याण थाट का राग माना जाता है। इसकी जाति औड़व-औड़व होती है, अर्थात राग के आरोह और अवरोह में पाँच-पाँच स्वर प्रयोग होते हैं। इस राग में मध्यम और निषाद स्वर वर्जित होता है। शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। इसका वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर धैवत होता है। रात्रि का प्रथम प्रहर इस राग का आदर्श गायन-वादन समय होता है। यह राग पूर्वांग प्रधान है, अर्थात इसका चलन अधिकतर मन्द्र और मध्य सप्तक के पूर्वांग में होता है। यदि भूपाली के स्वरों को उत्तरांग प्रधान कर दिया जाए तो यह राग देशकार हो जाता है। इन्हीं स्वरों वाले राग को दक्षिण भारतीय संगीत में राग मोहनम् कहा जाता है। अब हम आपको राग भूपाली की एक लोकप्रिय बन्दिश सुविख्यात गायिका विदुषी किशोरी अमोनकर के स्वरों में सुनवा रहे हैं। तीनताल में निबद्ध इस रचना के बोल हैं- ‘जब से तुम संग लागली प्रीत...’


राग भूपाली : “जब से तुम संग लागली प्रीत...” : विदुषी किशोरी अमोनकर




गोपाल सिंह नेपाली 
रात्रि के पहले प्रहर में गाये-बजाए जाने वाले राग भूपाली के अलावा इस प्रहर के कुछ अन्य राग हैं- कामोद, चन्द्रकान्त, छायानट, देशकार, नटविहाग, पटविहाग, जैतकल्याण, बिहागड़ा, यमन, श्यामकल्याण, शुद्धकल्याण, श्रीकल्याण, हमीर, हंसध्वनि, केदार आदि। अब हम आपको राग केदार में पिरोया एक फिल्मी गीत सुनवाते हैं। राग केदार भी कल्याण थाट का राग है। इसकी जाति औड़व-षाड़व होती है, अर्थात आरोह में ऋषभ और गान्धार और अवरोह में केवल गान्धार स्वर वर्जित होता है। इस राग में दोनों मध्यम और शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। दोनों मध्यम के कारण ही कुछ विद्वान इस राग को बिलावल थाट तो कुछ कल्याण थाट का मानते हैं। प्राचीन शास्त्रकारों ने इसे बिलावल थाट का राग माना है। परन्तु अधिकांश आधुनिक गायक इसे कल्याण थाट का राग मानते हैं। इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘नरसी भगत’ का एक गीत- 'दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी रे...' राग केदार का अच्छा उदाहरण है। तीनताल में निबद्ध इस गीत की धुन संगीतकार रवि ने बनाई थी। इस गीत में तीन पार्श्वगायकों की आवाज़ है- हेमन्त कुमार, मन्ना डे और सुधा मल्होत्रा। हिन्दी के यशस्वी गीतकार गोपाल सिंह नेपाली ने इस गीत को लिखा था। इस गीत से जुड़ा एक उल्लेखनीय प्रसंग श्री नेपाली के निधन के चार दशक बाद सामने आया जब ब्रिटिश फिल्म निर्माता डेनी बोयेल ने फिल्म 'स्लमडॉग मिलियोनार' का निर्माण किया था। आस्कर पुरस्कार प्राप्त इस फिल्म में नेपाली जी के गीत का इस्तेमाल किया गया था, किन्तु फिल्म में इस गीत का श्रेय भक्तकवि सूरदास को दिया गया था। गोपाल सिंह नेपाली के सुपुत्र नकुल सिंह ने मुम्बई उच्च न्यायालय में फिल्म के निर्माता के विरुद्ध क्षतिपूर्ति का दावा भी पेश किया था। कैसा दुर्भाग्य है कि एक स्वाभिमानी गीतकार को मृत्यु के बाद भी अन्याय का शिकार होना पड़ा। संगीतकार रवि का स्वरबद्ध किया यही गीत हेमन्त कुमार, मन्ना डे और सुधा मल्होत्रा की आवाज़ में अब आप सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 


राग केदार : ‘दर्शन दो घनश्याम...’ : हेमन्त कुमार, मन्ना डे और सुधा मल्होत्रा : फिल्म नरसी भगत




संगीत पहेली 


‘स्वरगोष्ठी’ के 236वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक छः दशक पुरानी फिल्म के राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 240वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की चौथी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – संगीत का यह अंश सुन कर बताइए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?

2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।

3 – गीतांश में गायिका के स्वरों को पहचानिए और हमे उनका नाम बताइए।

आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार,  26 सितम्बर, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 238वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता 


‘स्वरगोष्ठी’ क्रमांक 234 की संगीत पहेली में हमने 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘सेहरा’ के एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग मारू बिहाग, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका लता मंगेशकर और गायक मुहम्मद रफी। इस बार की पहेली में हमारे दो नये पाठक / श्रोता शामिल हुए हैं। बठिण्डा, पंजाब से सोनू बामराह और किसी अज्ञात स्थान से देवेन श्रोफ। इन दोनों प्रतिभागियों ने तीनों प्रश्नों के सही उत्तर दिये है। परन्तु देवेन जी ने अपना उत्तर फेसबुक पर सार्वजनिक रूप से दिया था, जिसे हमने तत्काल हटा दिया था। पहेली का उत्तर फेसबुक पर भी दिया जा सकता है, किन्तु व्यक्तिगत संदेश के रूप में ही, सार्वजनिक नहीं। इनके अलावा हमारी नियमित प्रतिभागी जबलपुर से क्षिति तिवारी, वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी ने भी सही उत्तर दिये हैं। पाँचो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात


मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर लघु श्रृंखला ‘रागों का समय प्रबन्धन’ का यह पाँचवाँ अंक था। अगले अंक में हम रात के दूसरे प्रहर के रागों पर आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। इस श्रृंखला के लिए यदि आप किसी राग, गीत अथवा कलाकार को सुनना चाहते हों तो अपना आलेख या गीत हमें शीघ्र भेज दें। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  



Comments

bahut sunder bandish .Sangrahniya post !!Abhar
Satyajay Mandal said…
Bakwaas

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