बातों बातों में - 12
स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर से सुजॉय चटर्जी की बातचीत
"क्वीन एलिज़ाबेथ ने मुझे चाय पर बुलाया था ..."
नमस्कार दोस्तो। हम रोज़ फ़िल्म के परदे पर नायक-नायिकाओं को देखते हैं, रेडियो-टेलीविज़न पर गीतकारों के लिखे गीत गायक-गायिकाओं की आवाज़ों में सुनते हैं, संगीतकारों की रचनाओं का आनन्द उठाते हैं। इनमें से कुछ कलाकारों के हम फ़ैन बन जाते हैं और मन में इच्छा जागृत होती है कि काश, इन चहेते कलाकारों को थोड़ा क़रीब से जान पाते, काश; इनके कलात्मक जीवन के बारे में कुछ जानकारी हो जाती, काश, इनके फ़िल्मी सफ़र की दास्ताँ के हम भी हमसफ़र हो जाते। ऐसी ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' ने फ़िल्मी कलाकारों से साक्षात्कार करने का बीड़ा उठाया है। । फ़िल्म जगत के अभिनेताओं, गीतकारों, संगीतकारों और गायकों के साक्षात्कारों पर आधारित यह श्रॄंखला है 'बातों बातों में', जो प्रस्तुत होता है हर महीने के चौथे शनिवार को। दोस्तों, आगामी 28 तारीख़ को जन्मदिन है स्वरसाम्राज्ञी, भारतरत्न लता मंगेशकर का। लता जी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए आज ’बातों बातों में’ में हम प्रस्तुत कर रहे हैं ट्विटर के माध्यम से उनसे पूछे गए कुछ सवालों पर आधारित एक छोटा सा साक्षात्कार, और साथ ही उनके गीतों से सजी एक विशेष प्रस्तुति ’आठ दशक आठ गीत’।
वो एक आवाज़ जो पिछले आठ दशकों से दुनिया की फ़िज़ाओं में अमृत घोल रही है, जिसे इस सदी की आवाज़ होने का गौरव प्राप्त है, जिस आवाज़ में स्वयं माँ सरस्वती निवास करती है, जो आवाज़ इस देश की सुरीली धड़कन है, उस कोकिल-कंठी, स्वर-साम्राज्ञी, भारत-रत्न, लता मंगेशकर से बातचीत करना किस स्तर के सौभाग्य की बात है, उसका अंदाज़ा आप भली भाँति लगा सकते हैं। जी हाँ, मेरा यह परम सौभाग्य है कि ट्विटर के माध्यम से मुझे भी लता जी से कुछ प्रश्न पूछने का मौका नसीब हुआ, और उससे भी बड़ी बात यह कि लता जी ने किस सरलता से मेरे उन चंद सवालों के जवाब भी दिए। जितनी मेरी ख़ुशकिस्मती है उससे कई गुना ज़्यादा बड़प्पन है लता जी का कि वो अपने चाहनेवालों के सवालों के जवाब इस सादगी, सरलता और विनम्रता से देती हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि फलदार पेड़ हमेशा झुके हुए होते हैं। तो आइए, प्रस्तुत है आपके इस दोस्त सुजॉय चटर्जी के सवाल और लता जी के जवाब ।
लता जी, बहुत बहुत नमस्कार, ट्विटर पर आपको देख कर हमें कितनी ख़ुशी हो रही है कि क्या बताऊँ! लता जी, आप ने शांता आप्टे के साथ मिलकर सन 1946 की फ़िल्म 'सुभद्रा' में एक गीत गाया था, "मैं खिली खिली फुलवारी"। तो फिर आपका पहला गीत 1947 की फ़िल्म 'आपकी सेवा में' का "पा लागूँ कर जोरी रे" को क्यों कहा जाता है?
नमस्कार! मैंने 1942 से लेकर 1946 तक कुछ फ़िल्मों में अभिनय किया था जिनमें मैंने गानें भी गाये थे, जो मेरे उपर ही पिक्चराइज़ हुए थे। 1947 में 'आपकी सेवा में' में मैंने पहली बार प्लेबैक किया था।
लता जी, पहले के ज़माने में लाइव रेकॊर्डिंग हुआ करती थी और आज ज़माना है ट्रैक रेकॊर्डिंग का। क्या आपको याद कि वह कौन सा आपका पहला गाना था जिसकी लाइव नहीं बल्कि ट्रैक रेकॊर्डिंग हुई थी?
वह गाना था फ़िल्म 'दुर्गेशनंदिनी' का, "कहाँ ले चले हो बता दो मुसाफ़िर, सितारों से आगे ये कैसा जहाँ है", जिसे मैंने हेमन्त कुमार के लिए गाया था।
लता जी, "ऐ मेरे वतन के लोगों" गीत से पंडित नेहरु की यादें जुड़ी हुई हैं। क्या आपको कभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी से भी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है?
आदरणीय बापू को मैं मिल ना सकी, लेकिन उनके दूर से दर्शन दो बार हुए। आदरणीय पंडित जी और आदरणीया इंदिरा जी को प्रत्यक्ष मिलने का सौभाग्य मुझे कई बार प्राप्त हुआ है।
लता जी, क्या इनके अलावा किसी विदेशी नेता से भी आप मिली हैं कभी?
कई विदेशी लीडर्स से भी मिलना हुआ है जैसे कि प्रेसिडेण्ट क्लिण्टन और क्वीन एलिज़ाबेथ। क्वीन एलिज़ाबेथ ने मुझे चाय पर बुलाया था और मैं बकिंघम पैलेस गई थी उनसे मिलने, श्री गोरे जी के साथ मे, जो उस समय भारत के राजदूत थे।
लता जी, विदेशी लीडर्स से याद आया कि अगर विदेशी भाषाओं की बात करें तो श्रीलंका के सिंहली भाषा में आपने कम से कम एक गीत गाया है, फ़िल्म 'सदा सुलग' में। कौन सा गाना था वह और क्या आप श्रीलंका गईं थीं इस गीत को रेकॊर्ड करने के लिए?
मैंने वह गीत मद्रास (चेन्नई) में रेकॊर्ड किया था और इसके संगीतकार थे श्री दक्षिणामूर्ती। गीत के बोल थे "श्रीलंका त्यागमयी"।
लता जी, आपने अपनी बहन आशा भोसले और उषा मंगेशकर के साथ तो बहुत सारे युगल गीत गाए हैं। लेकिन मीना जी के साथ बहुत कम गीत हैं। मीना मंगेशकर जी के साथ फ़िल्म 'मदर इण्डिया' फ़िल्म में एक गीत गाया था "दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा"। क्या किसी और हिंदी फ़िल्म में आपने मीना जी के साथ कोई गीत गाया है?
मैं और मीना ने 'चांदनी चौक' फ़िल्म में एक गीत गाया था, रोशन साहब का संगीत था, और उषा भी साथ थी।
तो दोस्तों, ये थे चंद सवाल जो मैंने पूछे थे लता जी से, और जिनका लता जी ने बड़े ही प्यार से जवाब दिया था। आगे भी मैं कोशिश करूँगा कि लता जी से कुछ और भी ऐसे सवाल पूछूँ जो आज तक किसी इंटरव्यु में सुनने को नहीं मिला।
और अब लता जी को उनके जनमदिन की अग्रिम शुभकामनाएँ देते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके गाए गीतों से सजी एक विशेष प्रस्तुति ’आठ दशक आठ गीत’।
1945: माता तेरी चरणों में (बड़ी माँ)
जैसा कि लता जी ने उपर कहा है कि भले ही उनका गाया पहला प्लेबैक गीत 1947 में फ़िल्म ’आपकी सेवा में’ में आया, पर 1942 से ही वो फ़िल्मों में अभिनय का काम करना शुरू कर दिया था और कुछ फ़िल्मों में गाने भी गाईं जो उन्हीं पर फ़िल्माये भी गए। पिता की असामयिक मृत्यु की वजह से 13 वर्ष की अल्पायु में लता को मेक-अप लगा कर कैमरे के सामने जाना पड़ा जो उन्हें पसन्द नहीं था। 1942 से 1947 के दौरान उन्होंने जिन फ़िल्मों में अभिनय किया, उनमें एक महत्वपूर्ण फ़िल्म थी ’बड़ी माँ’ जिसमें नूरजहाँ नायिका थीं। तो लीजिए 1945 की इसी फ़िल्म का एक गीत प्रस्तुत है लता मंगेशकर, ईश्वरलाल और साथियों की आवाज़ों में जो लता जी पर ही फ़िल्माया गया था।https://www.youtube.com/watch?v=Y07vWXV73qI
1955: मनमोहना बड़े झूठे (सीमा)
1949 में ’महल’, ’बरसात’ और ’लाहौर’ जैसी फ़िल्मों में सुपरहिट गीत गाने के बाद लता मंगेशकर पहली पंक्ति की गायिकाओं में शामिल हो गईं। स्वाधीनता के बाद बम्बई में बनने वाली फ़िल्मों का चलन भी बदलने लगा था। भारी भरकम आवाज़ों (जैसे कि शमशाद बेगम, अमीरबाई कर्नाटकी, ज़ोहराबाई अम्बालेवाली आदि) के मुक़ाबले पतली आवाज़ का चलन बढ़ने लगा। ऐसे में लता, आशा और कुछ वर्ष बाद सुमन कल्याणपुर (गरीबों की लता) की लोकप्रियता बढ़ने लगी। 50 के दशक में लता जी को एक से एक बेहतरीन गीत गाने का मौका मिला जिनमें एक है फ़िल्म ’सीमा’ का "मनमोहना बड़े झूठे"। सुनिए यह गीत और ख़ुद ही विचार कीजिए कि क्या लता जी में वो सब गुण नहीं थे जो एक शुद्ध शास्त्रीय गायिका में होती हैं! शंकर जयकिशन ने भी क्या निखारा है इस गीत के कम्पोज़िशन को! वाह!https://www.youtube.com/watch?v=ewi3GN7RKNc
1965: आज फिर जीने की तमन्ना है (गाइड)
60 के दशक के आते-आते अन्य सब आवाज़ों को पीछे पटकते हुए सिर्फ़ दो ही आवाज़ें सर चढ कर बोल रही थीं - लता और आशा। इन दो आवाज़ों की चमक ही इतनी ज़्यादा थी कि अत्यन्त प्रतिभाशाली होते हुए भी अन्य गायिकाओं को बड़े बैनर की फ़िल्मों में गाने के मौके नहीं मिल पाते थे। 1965 की फ़िल्मों में से हमने जिस फ़िल्म का गीत चुना है वह है ’गाइड’। यह इसलिए भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि करीब छह सालों तक अनबन रहने के बाद लता मंगेशकर और सचिन देव बर्मन में सुलह हो जाती है और तब उत्पन्न होते हैं फ़िल्म ’गाइड’ के गीतों जैसी अनमोल रचनाएँ। इस गीत को सुनते हुए क्या यह महसूस नहीं होता कि लता और दादा बर्मन के संगम को पा कर जैसे गीत ख़ुद झूम रहा हो?https://www.youtube.com/watch?v=1odcNKyfZJU
1975: न जाने क्यों होता है यह ज़िन्दगी के साथ (छोटी से बात)
दादा बर्मन ही की तरह एक और संगीतकार जिनके गीतों को लता जी के स्वर ने अमर बना दिया, वो हैं सलिल चौधरी। 70 के दशक में जहाँ एक तरफ़ ’शोले’, ’दीवार’, ’धर्मात्मा’ जैसी फ़िल्मों की कहानियों ने फ़िल्मी गीतों का स्वरूप ही बदल कर रख दिया, वहीं दूसरी तरफ़ ’छोटी सी बात’, ’गीत गाता चल’ जैसी मध्य-वर्गीय घरेलु फ़िल्मों ने जी-तोड़ मेहनत की फ़िल्म संगीत की धारा में सुमधुर सुरों को कायम रखने की। सलिल चौधरी की यह ख़ासियत रही है भारतीय धुनों के साथ पाश्चात्य ऑरकेस्ट्रेशन को मिलाने की, और फ़िल्म ’छोटी सी बात’ के इस शीर्षक गीत में भी उनका वही रंग दिखाई देता है। आइए सुनते हैं यह गीत...https://www.youtube.com/watch?v=NC1yM-9Jwrk
1985: सुन साहिबा सुन प्यार की धुन (राम तेरी गंगा मैली)
जिन फ़िल्मकारों के साथ लता जी ने महत्वपूर्ण काम किया है, उनमें एक नाम है राज कपूर। संगीत की अच्छी समझ रखने वाले राज कपूर ने शुरू से अन्त तक लता जी की आवाज़ का सराहा लिया अपनी फ़िल्मों में (’मेरा नाम जोकर’, ’धरम करम’ अपवाद ज़रूर हैं)। 80 के दशक में जब फ़िल्म संगीत का स्तर बहुत ज़्यादा नीचे उतर गया, तब कुछ फ़िल्मकारों और कुछ संगीतकारों ने फ़िल्मी गीतों में मधुरता को कायम रखने की जी-तोड़ कोशिशें की। इनमें शामिल थे राज कपूर और रवीन्द्र जैन। 1985 में प्रदर्शित होने वाली फ़िल्मों में लता मंगेशकर के गाये हुए गीतों में ’राम तेरी गंगा मैली’ फ़िल्म के गीतों के अलावा किसी अन्य फ़िल्म का विचार आ नहीं पाया। तो चलिए हसरत जयपुरी की यह रचना सुनते हैं जिसे लिखने में मदद की थी उनकी बेटी किश्वरी जयपुरी।https://www.youtube.com/watch?v=f5JR_0u5zg4
1995: मेरे ख़्वाबों में जो आये (दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे)
राज कपूर की तरह एक और दो और फ़िल्मकार जिनके साथ लता जी ने एक लम्बी पारी खेली, वो थे यश चोपड़ा और सूरज बरजात्या। चोपड़ा और बरजात्या कैम्प की तमाम फ़िल्मों में लता जी के गाये गीतों की लोकप्रियता सर चढ़ कर बोली। 70 और 80 के दशकों में तो क्या 90 के दशक में भी वही लोकप्रियता बरक़रार रही। अगर बरजात्या के वहाँ ’मैंने प्यार किया’ और ’हम आपके हैं कौन’ जैसी फ़िल्मों के गीतों ने लोकप्रियता की हदें पार की, वहीं दूसरी ओर चोपड़ा कैम्प में ’चाँदनी’, ’लम्हे’, ’डर’, ’दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ और ’दिल तो पागल है’ के गीतों ने भी बहुत धूम मचाई। 1995 में लता जी के गाये गीत केवल तीन फ़िल्मों में सुनाई दिये - ’करण-अर्जुन’, ’सनम हरजाई’ और ’दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’। 65 वर्ष की आयु में 17 वर्ष के किरदार सिमरन के लिए DDLJ में गाने गा कर लता जी ने जितना मंत्रमुग्ध श्रोताओं को किया, उससे ज़्यादा किया उन्हें आश्चर्यचकित।https://www.youtube.com/watch?v=wmTWjT3wG8M
2005: कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पे (Page 3)
2000 के दशक के आते-आते फ़िल्मों की नायिकाओं के चरित्र में इतने बदलाव आ गए कि सुन्दर-सुशील आदर्श भारतीय नारी के चरित्रों को मिलने वाली लता जी की आवाज़ इन नई नायिकाओं पर फ़िट नहीं हो पायी। भले ही करीना कपूर, रानी मुखर्जी, प्रीति ज़िन्टा जैसी अभिनेत्रियों की आवाज़ लता जी बनी, पर स्क्रीन पर जच नहीं पायी। दूसरी तरफ़ फ़िल्म-संगीत की धारा भी कुछ इस क़दर बदल चुकी थी कि वो लता जी के स्टाइल के अनुरूप नहीं रही। ए. आर. रहमान और एक-दो संगीतकारों को छोड़ कर लता जी ने फ़िल्मों में गाना बिल्कुल ना के बराबर कर दिया। 2005 में लता जी के गाये दो गीत आये, एक था फ़िल्म ’बेवफ़ा’ में "कैसे पिया से मैं कहूँ मुझे कितना प्यार है" और दूसरा फ़िल्म ’Page 3' का "कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पे"। 'Page 3' फ़िल्म को बहुत से पुरस्कारों से नवाज़ा गया था, इसलिए आइए इस फ़िल्म के गीत को ही शामिल करते हैं, संगीतकार हैं समीर टंडन।https://www.youtube.com/watch?v=rydPYHqsNBQ
2015: जीना क्या है जाना मैंने (Dunno Y2 - Life is a Moment)
यह बस आश्चर्य ही है कि साल 2015 में भी लता मंगेशकर के गाये हुए गीत फ़िल्म में रिलीज़ हो रहे हैं। 86 वर्ष की आयु में रेकॉर्ड किया हुआ उनका गीत हाल ही में प्रदर्शित फ़िल्म ’Dunno Y2 - Life is a Moment’ के थीम सॉंग् के रूप में जारी हुआ है, और सच पूछिये तो इस गीत को सुनते हुए यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि इसे लता जी ने 2015 में गाया है। कुदरत का करिश्मा और उपरवाले का एक अजूबा ही कहा जा सकता है इसे। लता जी की स्वरगंगा में जिसने भी डुबकी लगाई, उसने ही तृप्ति पायी। नाद की इस अधिष्ठात्री ने पिछले आठ दशकों से इस जगत को गुंजित किया है। उनकी आवाज़ में संगम की पवित्रता है जो हर मन को पवित्र कर देती है। हम कितने भाग्यशाली हैं जो लता जी की आवाज़ को सुन सकते हैं; अफ़सोस तो उन लोगों के लिए होता है जो लता जी के गीत सुने बग़ैर ही इस दुनिया से चले गए थे।https://www.youtube.com/watch?v=VAN4dnZVhx4
लता जी को उनके जनमदिवस पर एक बार फिर से हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं, ईश्वर उन्हें दीर्घायु करें, उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें, यही कामना है। अब आज की इस प्रस्तुति को समाप्त करने की दीजिये हमें अनुमति, नमस्कार!
आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमे अवश्य बताइएगा। आप अपने सुझाव और फरमाइशें ई-मेल आईडी soojoi_india@yahoo.co.in पर भेज सकते है। अगले माह के चौथे शनिवार को हम एक ऐसे ही चर्चित अथवा भूले-विसरे फिल्म कलाकार के साक्षात्कार के साथ उपस्थित होंगे। अब हमें आज्ञा दीजिए।
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
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