तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 06
जैकी श्रॉफ़
इस तरह जयकिशन काकुभाई श्रॉफ़ बन गए जैकी श्रॉफ़
इस तरह जयकिशन काकुभाई श्रॉफ़ बन गए जैकी श्रॉफ़
’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी'। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं। आज का यह अंक केन्द्रित है फ़िल्म जगत के जाने माने अभिनेता जैकी श्रॉफ़ पर।
जयकिशन काकुभाई श्रॉफ़ का जन्म मुंबई के तीन बत्ती इलाके में एक ग़रीब परिवार में हुआ था। पिता काकुभाई श्रॉफ़ पेशे से एक ज्योतिषी और माँ रीता एक गृहणी थीं। रोज़ी-रोटी की तलाश में पिता को अक्सर बाहर घूमना पड़ता था। इसलिए नन्हे जयकिशन अपनी माँ और बड़े भाई हेमन्त के ज़्यादा क़रीब था। दोनो भाइयों की पढ़ाई-लिखाई भी ख़ास हो नहीं पा रही थी क्योंकि ज्योतिष पिता की कमाई से यह संभव नहीं हो पा रहा था। किसी तरह से जयकिशन नाना चौक के Master's Tutorial High-School में भर्ती हुए। कॉलेज शिक्षा का तो सवाल ही नहीं था। जयकिशन जिस इलाके में रहते थे, वह कोई अच्छा इलाका नहीं था। वहाँ अक्सर मार-पीट, गुंडा-गर्दी लगी रहती थी। बालावस्था में जब जयकिशन को मोहल्ले के दूसरे बच्चे तंग करते या मारने आते तो वो अपने बड़े भाई हेमन्त को आगे कर देते, और हर बार हेमन्त जयकिशन को बचा लेते। लेकिन दो भाइयों का साथ बहुत ज़्यादा दिनों तक भगवान को मंज़ूर नहीं था। एक दिन ज्योतिष पिता ने हेमन्त से कहा कि आज का दिन तुम्हारे लिए ठीक नहीं है, आज तुम घर से बाहर मत निकलना। यह कह कर पिता काम पर निकल गए। तभी एकाएक खबर आई कि कोई बच्चा पानी में डूब रहा है। सुनते ही हेमन्त भागा और नदी में कूद गया। उस बच्चे को तो उसने बचा लिया पर हेमन्त की आँखें हमेशा के लिए बन्द हो गईं। जयकिशन उस समय मात्र 10 वर्ष का था। उसके लिए जैसे सबकुछ ख़त्म हो गया। बड़े भाई का हाथ सर से उठते ही मोहल्ले के बच्चे और गुंडे जयकिशन को पीटने लगे। बात बे-बात पे झगड़ा और हाथापाई शुरू हो जाया करता। स्ट्रीट-फ़ाइट जैसे जयकिशन की ज़िन्दगी का एक हिस्सा बन चुका था। फिर धीरे धीरे जयकिशन को समझ आया कि जब तक वह चुपचाप मार खाता रहेगा, लोग उसे मारते रहेंगे। और एक दिन ऐसा आया जब उसने भी पलट वार करना शुरू किया। ख़ुद मार खाता और दूसरों को भी मारता। एक आवारा लड़के की तरह बड़ा होने लगा जयकिशन।
कुछ समय बाद जयकिशन को यह अहसास हुआ कि अब वक़्त आ गया है कि जीवन में कुछ उपार्जन करना चाहिए। होटलों और एयरलाइनों में उसने नौकरी की अर्ज़ियाँ दी पर सभी जगहों से "ना" ही सुनने को मिली। अन्त में ट्रेड विंग्स ट्रैवल अजेन्सी में टिकट ऐसिस्टैण्ट की एक नौकरी उसे मिली। कुछ दिनों बाद एक दिन जब वह सड़क पर से गुज़र रहा था तो एक मॉडेलिंग् एजेन्सी के एक महाशय ने उसकी कदकाठी को देखते हुए उसे मॉडेलिंग् का काम ऑफ़र कर बैठे। और इसी से जयकिशन के क़िस्मत का सितारा थोड़ा चमका। ख़ाली जेब में कुछ पैसे आने लगे। इसी मॉडेलिंग् के चलते उन्हें देव आनन्द की फ़िल्म ’स्वामी दादा’ में छोटा रोल निभाने का अवसर मिला। इस छोटे से सीन को सुभाष घई ने जब देखा तो उन्हें लगा कि इस लड़के में दम है और उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म ’हीरो’ में उसे हीरो बनाने का निर्णय ले लिया। और इस तरह से जयकिशन काकुभाई श्रॉफ़ बन गए जैकी श्रॉफ़। And rest is history!!! जैकी श्रॉफ़ जिस परिवार और समाज से निकल कर एक स्थापित अभिनेता बने हैं, उससे हमें यही सीख मिलती है कि ज़िन्दगी किसी पर भी मेहरबान हो सकती है, सही दिशा में बढ़ने का प्रयास करना चाहिए और बस सही समय का इन्तज़ार करना चाहिए। जैकी श्रॉफ़ के जीवन की इस कहानी को जानने के बाद यही कहा जा सकता है कि जैकी, तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी!
खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
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