Skip to main content

"झुमका गिरा रे बरेली के बज़ार में..." - बड़ी रोचक है इस गीत के बनने की कहानी


एक गीत सौ कहानियाँ - 66

 

'झुमका गिरा रे बरेली के बज़ार में...' 




रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 66-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म ’मेरा साया’ के सुपरहिट गीत "झुमका गिरा रे बरेली के बज़ार में..." के बारे में जिसे आशा भोसले ने गाया था।


फ़िल्मी गीतों में शहरों के नाम की परम्परा पुरानी है। हर दशक में बहुत से फ़िल्मी गीत ऐसे बने जिनमें शहरों के नामों का उल्लेख हुआ है। जहाँ तक भारतीय शहरों के नामों का सवाल है, तो शायद सबसे ज़्यादा बम्बई या मुंबई नगरी का ज़िक्र फ़िल्मी गीतों में हुआ है। बम्बई या मूम्बई पर बनने वाले अनगिनत गीतों में कुछ उल्लेखनीय गीत हैं "ये है बम्बई नगरिया तू देख बबुया" (डॉन), "ये है बॉम्बे मेरी जान"(सी.आइ.डी), "ये बम्बई शहर हादसों का शहर है"(हादसा), "बम्बई से आया मेरा दोस्त"(आपकी ख़ातिर), "बम्बई से आया बाबू चिनन्ना" (बम्बई का बाबू), "बम्बई शहर की चल तुझको सैर करा दूँ"(पिया का घर), "बम्बई शाम के बाद हसीं कुछ और ही हो जाती है"(सरकारी मेहमान) आदि। इसी तरह से दिल्ली पर भी कई गीत बन चुके हैं। उत्तर प्रदेश के शहरों में फ़िल्म 'चौदहवीं का चाँद’ में "यह लखनऊ की सरज़मीं" गीत ख़ासा उल्लेखनीय है; बनारस पर सर्वाधिक लोकप्रिय गीत रहा "ओ खईके पान बनारस वाला"(डॉन)। ताज महल की ख़ातिर आगरा शहर भी कई बार गीतों में जगह पाया है। यू.पी का एक और शहर जिसे कई गीतों में सुना गया, वह है बरेली। बरेली का ज़िक्र पहली बार शायद 1942 की फ़िल्म ’दि रिटर्ण ऑफ़ तूफ़ान मेल’ के एक गीत में हुआ था जिसके बोल थे "मेरा बालम गया है बरेली रे..." जिसे गाया बृजमाला ने, लिखा इन्द्र चन्द्र ने और स्वरबद्ध किया ज्ञान दत्त ने। बरेली वाले कुछ और गीत हैं "वो तो बांस बरेली से आया, सावन में ब्याहन आया"(दहेज), "सुरमा बरेली का, काजल है देहली का" (जलवा), "मेरी दुल्हन बरेली से आई रे" (मेहन्दी), "झुमका बरेली वाला कानो में ऐसा डाला, झुमके ने ले ली मेरी जान" (किस्मत), "आगरे से आई हो या आई बरेली से, पूछ लेंगे जाके हम आपकी सहेली से" (दिल की बाज़ी), "न्यू डेल्ही में बरेली जैसा स‍इयाँ" (U Me Aur Hum), और बरेली के ज़िक्र वाला जो सबसे ज़्यादा मशहूर गीत रहा वह है फ़िल्म ’मेरा साया’ का "झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में"। बरेली के बाज़ार से मतलब है वहाँ के बड़ा बाज़ार इलाके का जो मुग़ल काल से बहुत मशहूर रहा है। इसी गीत से प्रेरित हाल की फ़िल्म ’आजा नचले’ के शीर्षक गीत के शुरुआती पंक्ति में कहा गया है कि "मेरा झुमका उठा के लाया रे यार वे, जो गिरा था बरेली के बाज़ार में"। बरेली के बाज़ार में झुमका गिरने का अर्थ बरेली वासी कुछ यूं बताया करते हैं कि वहाँ की गलियाँ इतनी तंग हैं कि आते जाते लोगों में कभी कभार धक्का लग जाने की वजह से कभी कभी कान के झुमके गिर जाते हैं। पर ’मेरा साया’ के गीत में झुमका गिरने की कहानी कुछ और ही थी।

Harivanshrai & Teji Bachchan
अब सवाल यह है कि "झुमका गिरा रे" गीत में बरेली के बाज़ार का ज़िक्र क्यों आया जबकि फ़िल्म की कहानी या पार्श्व में दूर दूर तक बरेली का ज़िक्र नहीं, ताल्लुख नहीं? बड़ी दिलचस्प है इसके पीछे की कहानी। दरसल बात उन दिनों की है जब दादा बच्चन, यानी कि मशहूर साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन, और तेजी जी एक दूसरे के नज़दीक आ रहे थे। दोनों के बेच प्रेम का बंधन बंध रहा था। तो ऐसे में इन दोनो की मुलाक़ात होती थी मशहूर साहित्यकार निरंकार देव जी के घर पर और निरंकार देव जी रहते थे बरेली में। जब एक दिन दोनों से यह पूछा गया कि भाई बात क्या है, इतने दिन हो गए, अब यह स्वीकार क्यों नहीं कर लेते कि तुम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हो, एक दूसरे के लिए जो प्रेम है उसका निवेदन क्यों नहीं कर देते, तब एक दिन जब तेजी जी और हरिवंश जी ने एक दूसरे से प्रेम की बात को कुबूल किया तो एकाएक तेजी के मुख से निकल गया "मेरा झुमका खो गया रे बरेली के बाज़ार में"। उन्होंने यूं ही कह दिया होगा कि बरेली में आकर वो हरिवंशराय जी से मिल कर अपना सुध बुध खो बैठीं हैं, यानी कि झुमका गिर गया हो और उन्हें ख़बर तक नहीं हुई। और यही बात उन दिनों हिन्दी साहित्य जगत में ख़ूब चर्चा में आ गई। अब इत्तेफ़ाक़ देखिये इस क़िस्से से राज मेहन्दी अली ख़ाँ साहब भी अच्छे तरह से वाक़िफ़ थे। तो जब ’मेरा साया’ के गीत लिखने की बारी आई तो उन्हें अचानक यह क़िस्सा याद आ गया और उन्होंने गीत में हीरोइन के झुमके को बरेली में ही गिरा दिया। है ना बड़ा ही अनोखा और रोचक क़िस्सा। 

Shamshad Begum
इस गीत से जुड़ा एक और दिलचस्प बात यह है कि यूं तो इस गीत की रचना राजा मेहन्दी अली ख़ाँ और मदन मोहन ने साल 1966 में की थी, पर यह उनकी मौलिक रचना नहीं है। इस गीत के बनने से क़रीब 20 साल पहले 1947 में एक फ़िल्म बनी थी ’देखो जी’ के नाम से, जिसमें वली साहब ने बिल्कुल ऐसा ही एक गीत लिखा था जिसके बोल थे "झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में, होय झुमका गिरा रे, मोरा झुमका गिरा रे"। तूफ़ैल फ़ारूख़ी द्वारा स्वरबद्ध इस गीत को गाया था शमशाद बेगम ने। यह बात और है कि ना तो यह फ़िल्म चली थी और ना ही यह गीत। फ़िल्म के ना चलने से इस गीत की तरफ़ किसी का नज़र नहीं गया, जबकि 20 साल बाद एक नए पैकेज में पिरोया हुआ गीत चल पड़ा और आज भी उतना ही लोकप्रिय है। शमशाद बेगम के साथ ऐसा एकाधिक बार हुआ है कि उनका गाया मूल गीत ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ जबकि बाद में उन गीतों को आधार बना कर बनने वाला नया गीत ख़ूब कामयाब हो गया। ’देखो जी’ के इस गीत के अलावा एक और गीत था "इन्ही लोगों ने ले ली ना दुपट्टा मेरा" जिसे उन्होंने 1941 की फ़िल्म ’हिम्मत’ में गाया था, जिसका लता मंगेशकर का गाया फ़िल्म ’पाक़ीज़ा’ का संस्करण ज़्यादा लोकप्रिय हुआ। इसी तरह से हाल में बनी 2011 की फ़िल्म ’Rockstar' का गीत "कतेया करूँ" भी शमशाद बेगम ने 1963 की पंजाबी फ़िल्म ’पिण्ड दी कुड़ी’ में गाया था जिसके संगीतकार थे हंसराज बहल। आशा भोसले का गाया "झुमका गिरा रे..." आपने हज़ारों बार सुना होगा, पर आज इस गीत से जुड़ी तमाम बातों को जानने के बाद इस गीत को सुनने का मज़ा दोगुना हो जाएगा यकीनन! आइए सुनते हैं फ़िल्म ’मेरा साया’ से "झुमका गिरा रे..."। 


फिल्म मेरा साया : "झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में..." : आशा भोसले : मदनमोहन : राजा मेंहदी अली खाँ 



अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर। 


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 




Comments

Smart Indian said…
क्या बात है!

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट