स्वरगोष्ठी – 234 में आज
रागों का समय प्रबन्धन – 3 : दिन के तीसरे प्रहर के राग  
राग पीलू की ठुमरी- ‘पपीहरा पी की बोल न बोल...’ 
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के 
साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला- ‘रागों का समय 
प्रबन्धन’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का 
हार्दिक स्वागत करता हूँ।  उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं 
में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु 
प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर 
विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु
 में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के 
गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक 
निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द 
प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले 
प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है।
 सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर को दिन के और सूर्यास्त से 
लेकर अगले सूर्योदय से पहले के चार प्रहर को रात्रि के प्रहर कहे जाते हैं।
 उत्तर भारतीय संगीत के साधक कई शताब्दियों से विविध प्रहर में अलग-अलग 
रागों का परम्परागत रूप से प्रयोग करते रहे हैं। रागों का यह समय-सिद्धान्त
 हमारे परम्परागत संस्कारों से उपजा है। विभिन्न रागों का वर्गीकरण अलग-अलग
 प्रहर के अनुसार करते हुए आज भी संगीतज्ञ व्यवहार करते हैं। राग भैरव का 
गायन-वादन प्रातःकाल और मालकौंस मध्यरात्रि में ही किया जाता है। कुछ राग 
ऋतु-प्रधान माने जाते हैं और विभिन्न ऋतुओं में ही उनका गायन-वादन किया 
जाता है। इस श्रृंखला में हम विभिन्न प्रहरों में बाँटे गए रागों की चर्चा 
कर रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में आज हम आपसे दिन के तृतीय प्रहर के 
रागों पर चर्चा करेंगे और इस प्रहर के राग पीलू की एक ठुमरी सुविख्यात 
गायिका गिरिजा देवी के स्वरों में प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही संगीतकार 
रोशन का स्वरबद्ध किया राग भीमपलासी पर आधारित, फिल्म ‘बावरे नैन’ का एक 
गीत गायिका लता मंगेशकर की आवाज़ में सुनवा रहे हैं।
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के 
साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला- ‘रागों का समय 
प्रबन्धन’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का 
हार्दिक स्वागत करता हूँ।  उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं 
में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु 
प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर 
विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु
 में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के 
गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक 
निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द 
प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले 
प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है।
 सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर को दिन के और सूर्यास्त से 
लेकर अगले सूर्योदय से पहले के चार प्रहर को रात्रि के प्रहर कहे जाते हैं।
 उत्तर भारतीय संगीत के साधक कई शताब्दियों से विविध प्रहर में अलग-अलग 
रागों का परम्परागत रूप से प्रयोग करते रहे हैं। रागों का यह समय-सिद्धान्त
 हमारे परम्परागत संस्कारों से उपजा है। विभिन्न रागों का वर्गीकरण अलग-अलग
 प्रहर के अनुसार करते हुए आज भी संगीतज्ञ व्यवहार करते हैं। राग भैरव का 
गायन-वादन प्रातःकाल और मालकौंस मध्यरात्रि में ही किया जाता है। कुछ राग 
ऋतु-प्रधान माने जाते हैं और विभिन्न ऋतुओं में ही उनका गायन-वादन किया 
जाता है। इस श्रृंखला में हम विभिन्न प्रहरों में बाँटे गए रागों की चर्चा 
कर रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में आज हम आपसे दिन के तृतीय प्रहर के 
रागों पर चर्चा करेंगे और इस प्रहर के राग पीलू की एक ठुमरी सुविख्यात 
गायिका गिरिजा देवी के स्वरों में प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही संगीतकार 
रोशन का स्वरबद्ध किया राग भीमपलासी पर आधारित, फिल्म ‘बावरे नैन’ का एक 
गीत गायिका लता मंगेशकर की आवाज़ में सुनवा रहे हैं।  भारतीय
 संगीत के प्राचीन विद्वानों ने विभिन्न स्वर-समूहों से उपजने वाले रस व 
भावों, अपने अनुभव, और मनोवैज्ञानिक आधार पर विभिन्न रागों के प्रयोग का 
समय निर्धारित किया है। उन्होने राग के समय निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त 
बनाए हैं। पिछले अंक में हमने आपसे ‘अध्वदर्शक स्वरसिद्धान्त’ पर चर्चा की 
थी, जिसके अन्तर्गत राग के मध्यम स्वर से रागों के पूर्वार्द्ध या 
उत्तरार्द्ध समय का निर्धारण किया गया है। आज के अंक में हम वादी और संवादी
 स्वरों के आधार पर रागों के समय निर्धारण के सिद्धान्त पर चर्चा कर रहे 
हैं। जिस प्रकार चौबीस घण्टे की अवधि को दो भागों, पूर्वार्ध और 
उत्तरार्द्ध, में बाँट कर रागों के समय निर्धारण कर सकते हैं, उसी प्रकार 
सप्तक के भी दो भाग, उत्तरांग और पूर्वांग, में विभाजित कर रागों का समय 
निर्धारित किया जाता है। संख्या की दृष्टि से सप्तक के प्रथम चार स्वर, 
अर्थात षडज, ऋषभ, गान्धार और मध्यम पूर्वांग तथा पंचम, धैवत, निषाद और अगले
 सप्तक का षडज मिल कर उत्तरांग कहलाते हैं। शास्त्रकारों ने यह नियम बनाया 
कि जिन रागों का वादी स्वर पूर्वांग के स्वर में से कोई एक स्वर है उस राग 
को दिन के पूर्वार्द्ध में अर्थात मध्याह्न 12 बजे से मध्यरात्रि 12 बजे के
 बीच तथा जिन रागों का वादी स्वर उत्तरांग के स्वरों में से कोई एक स्वर हो
 तो उसे दिन के उत्तरार्द्ध में अर्थात मध्यरात्रि 12 बजे से लेकर मध्याह्न
 12 बजे के बीच गाया-बजाया जा सकता है। इस नियम की रचना से कुछ राग अपवाद 
रह गए। उदाहरण के रूप में राग भीमपलासी का उल्लेख किया जा सकता है। इस राग 
में वादी मध्यम और संवादी षडज होता है। उपरोक्त नियम से राग का वादी और 
संवादी सप्तक के पूर्वांग में आ जाता है। राग का एक प्रमुख नियम है कि अगर 
वादी स्वर सप्तक के पूर्वांग में होगा तो संवादी स्वर उत्तरांग में और यदि 
वादी स्वर उत्तरांग में होगा तो संवादी स्वर पूर्वांग में होना चाहिए। इस 
दृष्टि से राग भीमपलासी और भैरव उपरोक्त नियम के प्रतिकूल हैं। इस नियम के 
अनुसार भीमपलासी के समान भैरवी भी पूर्वांग प्रधान राग होना चाहिए, किन्तु 
भैरवी प्रातःकालीन राग है। इन अपवादों के चलते उपरोक्त नियम में संशोधन 
किया गया। संशोधन के अनुसार सप्तक के दोनों अंगों का दायरा बढ़ा दिया गया, 
अर्थात सप्तक के पूर्वांग में षडज से पंचम तक के स्वर और उत्तरांग में 
मध्यम से तार सप्तक के षडज तक के स्वर हो सकते हैं। इस नियम के अनुसार राग 
का वादी स्वर यदि सप्तक के पूर्वांग में आता है तो उसका गायन-वादन दिन के 
पूर्व अंग में होगा और यदि वादी स्वर उत्तरांग में आता है तो उसका 
गायन-वादन दिन के ऊतर अंग में किया जाएगा।
भारतीय
 संगीत के प्राचीन विद्वानों ने विभिन्न स्वर-समूहों से उपजने वाले रस व 
भावों, अपने अनुभव, और मनोवैज्ञानिक आधार पर विभिन्न रागों के प्रयोग का 
समय निर्धारित किया है। उन्होने राग के समय निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त 
बनाए हैं। पिछले अंक में हमने आपसे ‘अध्वदर्शक स्वरसिद्धान्त’ पर चर्चा की 
थी, जिसके अन्तर्गत राग के मध्यम स्वर से रागों के पूर्वार्द्ध या 
उत्तरार्द्ध समय का निर्धारण किया गया है। आज के अंक में हम वादी और संवादी
 स्वरों के आधार पर रागों के समय निर्धारण के सिद्धान्त पर चर्चा कर रहे 
हैं। जिस प्रकार चौबीस घण्टे की अवधि को दो भागों, पूर्वार्ध और 
उत्तरार्द्ध, में बाँट कर रागों के समय निर्धारण कर सकते हैं, उसी प्रकार 
सप्तक के भी दो भाग, उत्तरांग और पूर्वांग, में विभाजित कर रागों का समय 
निर्धारित किया जाता है। संख्या की दृष्टि से सप्तक के प्रथम चार स्वर, 
अर्थात षडज, ऋषभ, गान्धार और मध्यम पूर्वांग तथा पंचम, धैवत, निषाद और अगले
 सप्तक का षडज मिल कर उत्तरांग कहलाते हैं। शास्त्रकारों ने यह नियम बनाया 
कि जिन रागों का वादी स्वर पूर्वांग के स्वर में से कोई एक स्वर है उस राग 
को दिन के पूर्वार्द्ध में अर्थात मध्याह्न 12 बजे से मध्यरात्रि 12 बजे के
 बीच तथा जिन रागों का वादी स्वर उत्तरांग के स्वरों में से कोई एक स्वर हो
 तो उसे दिन के उत्तरार्द्ध में अर्थात मध्यरात्रि 12 बजे से लेकर मध्याह्न
 12 बजे के बीच गाया-बजाया जा सकता है। इस नियम की रचना से कुछ राग अपवाद 
रह गए। उदाहरण के रूप में राग भीमपलासी का उल्लेख किया जा सकता है। इस राग 
में वादी मध्यम और संवादी षडज होता है। उपरोक्त नियम से राग का वादी और 
संवादी सप्तक के पूर्वांग में आ जाता है। राग का एक प्रमुख नियम है कि अगर 
वादी स्वर सप्तक के पूर्वांग में होगा तो संवादी स्वर उत्तरांग में और यदि 
वादी स्वर उत्तरांग में होगा तो संवादी स्वर पूर्वांग में होना चाहिए। इस 
दृष्टि से राग भीमपलासी और भैरव उपरोक्त नियम के प्रतिकूल हैं। इस नियम के 
अनुसार भीमपलासी के समान भैरवी भी पूर्वांग प्रधान राग होना चाहिए, किन्तु 
भैरवी प्रातःकालीन राग है। इन अपवादों के चलते उपरोक्त नियम में संशोधन 
किया गया। संशोधन के अनुसार सप्तक के दोनों अंगों का दायरा बढ़ा दिया गया, 
अर्थात सप्तक के पूर्वांग में षडज से पंचम तक के स्वर और उत्तरांग में 
मध्यम से तार सप्तक के षडज तक के स्वर हो सकते हैं। इस नियम के अनुसार राग 
का वादी स्वर यदि सप्तक के पूर्वांग में आता है तो उसका गायन-वादन दिन के 
पूर्व अंग में होगा और यदि वादी स्वर उत्तरांग में आता है तो उसका 
गायन-वादन दिन के ऊतर अंग में किया जाएगा। 
आज
 हम आपसे दिन के तीसरे प्रहर के रागों पर चर्चा कर रहे हैं। दिन का तीसरा 
प्रहर, अर्थात मध्याह्न 12 से अपराह्न 3 बजे के बीच का समय। इस प्रहर के 
रागों का का वादी स्वर सप्तक के पूर्वांग के स्वर, अर्थात षडज से पंचम स्वर में से कोई एक स्वर होता 
है। इस प्रहर का एक बेहद लोकप्रिय राग पीलू है। राग पीलू में उपशास्त्रीय 
रचनाएँ खूब निखरती हैं। अब हम आपको राग पीलू में निबद्ध एक ठुमरी विदुषी 
गिरिजा देवी की आवाज़ में सुनवाते हैं। पीलू काफी थाट और सम्पूर्ण जाति का 
राग है। इसका वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग में 
गान्धार, धैवत और निषाद स्वर के दोनों रूप, शुद्ध और कोमल प्रयोग किये जाते
 हैं। अब आप राग पीलू की ठुमरी- ‘पपीहरा पी की बोल न बोल...’ सुनिए, जिसे 
विदुषी गिरिजा देवी ने गाया है। 
राग पीलू ठुमरी : “पपीहरा पी की बोल न बोल...” : विदुषी गिरिजा देवी 
 राग
 पीलू के अलावा दिन के तीसरे प्रहर के कुछ अन्य प्रमुख राग हैं- धनाश्री, 
पटमंजरी, प्रदीपकी या पटदीपकी, भीमपलासी, मधुवन्ती, हंसकंकणी, हंसमंजरी 
आदि। अब हम आपको दिन के तीसरे प्रहर के एक और राग, भीमपलासी का रसास्वादन 
कराते हैं। राग भीमपलासी भी काफी थाट का राग है। इस राग की जाति 
औडव-सम्पूर्ण होती है, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में सात स्वर प्रयोग 
किये जाते हैं। आरोह में ऋषभ और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं किया जाता। राग
 में कोमल गान्धार और कोमल निषाद का प्रयोग होता है, शेष सभी शुद्ध स्वर 
प्रयोग किये जाते हैं। आइए, भक्त कवयित्री मीरा का एक पद अब राग भीमपलासी 
पर आधारित सुनें। 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘नौबहार’ में इस भक्तिपद को 
शामिल किया गया था। इसके संगीतकार थे रोशन और इसे स्वर दिया, सुप्रसिद्ध 
गायिका लता मंगेशकर ने। संगीतकार रोशन ने इस भक्तिपद को राग भीमपलासी के 
स्वरों में और कहरवा ताल में पिरोया है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी 
स्वर षडज होता है। इसके गायन-वादन का उपयुक्त समय दिन का तृतीय प्रहर होता 
है। राग भीमपलासी के स्वर भक्तिरस के साथ-साथ श्रृंगाररस की अभिव्यक्ति में
 समर्थ होते है। राग के इसी स्वभाव के कारण मीरा के इस पद की प्रस्तुति में
 भक्ति के साथ श्रृंगाररस की अनुभूति भी होगी। श्रृंखला के पिछले अंक में 
आपने यही पद राग तोड़ी में सुना था। लीजिए, भजन का यह दूसरा संस्करण राग 
भीमपलासी के स्वरों में सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की 
अनुमति दीजिए।
राग
 पीलू के अलावा दिन के तीसरे प्रहर के कुछ अन्य प्रमुख राग हैं- धनाश्री, 
पटमंजरी, प्रदीपकी या पटदीपकी, भीमपलासी, मधुवन्ती, हंसकंकणी, हंसमंजरी 
आदि। अब हम आपको दिन के तीसरे प्रहर के एक और राग, भीमपलासी का रसास्वादन 
कराते हैं। राग भीमपलासी भी काफी थाट का राग है। इस राग की जाति 
औडव-सम्पूर्ण होती है, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में सात स्वर प्रयोग 
किये जाते हैं। आरोह में ऋषभ और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं किया जाता। राग
 में कोमल गान्धार और कोमल निषाद का प्रयोग होता है, शेष सभी शुद्ध स्वर 
प्रयोग किये जाते हैं। आइए, भक्त कवयित्री मीरा का एक पद अब राग भीमपलासी 
पर आधारित सुनें। 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘नौबहार’ में इस भक्तिपद को 
शामिल किया गया था। इसके संगीतकार थे रोशन और इसे स्वर दिया, सुप्रसिद्ध 
गायिका लता मंगेशकर ने। संगीतकार रोशन ने इस भक्तिपद को राग भीमपलासी के 
स्वरों में और कहरवा ताल में पिरोया है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी 
स्वर षडज होता है। इसके गायन-वादन का उपयुक्त समय दिन का तृतीय प्रहर होता 
है। राग भीमपलासी के स्वर भक्तिरस के साथ-साथ श्रृंगाररस की अभिव्यक्ति में
 समर्थ होते है। राग के इसी स्वभाव के कारण मीरा के इस पद की प्रस्तुति में
 भक्ति के साथ श्रृंगाररस की अनुभूति भी होगी। श्रृंखला के पिछले अंक में 
आपने यही पद राग तोड़ी में सुना था। लीजिए, भजन का यह दूसरा संस्करण राग 
भीमपलासी के स्वरों में सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की 
अनुमति दीजिए। 
राग भीमपलासी : “ए री मैं तो प्रेम दीवानी...” : लता मंगेशकर : फिल्म – नौबहार
 
संगीत पहेली - 234 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 234वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको 60 के दशक की फिल्म का राग 
आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित 
तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 240वें
 अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, 
उन्हें इस वर्ष की चौथी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा। 
1 – संगीत का यह अंश सुन कर बताइए कि यह गीत किस राग पर आधारित है? 
2 – संगीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए। 
3 – गीतांश मे गायक और गायिका के युगल स्वरों को पहचानिए और हमे उनके नाम बताइए। 
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com  या  radioplaybackindia@live.com
 पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 12 सितम्बर, 2015 की मध्यरात्रि से 
पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते 
है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया 
जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 236वें अंक में 
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा 
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
 बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ 
के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली और श्रृंखला के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 क्रमांक 230 की संगीत पहेली में हमने आपसे फिल्म ‘मीरा’ से मीराबाई के एक 
पद का अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न
 का उत्तर देना था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग तोड़ी, दूसरे प्रश्न 
का सही उत्तर है- ताल रूपक तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका वाणी 
जयराम। इस बार की पहेली में पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, 
जबलपुर से क्षिति तिवारी, वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद
 से डी. हरिणा माधवी ने सही उत्तर दिये हैं। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो 
प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। 
‘स्वरगोष्ठी’
 की इस वर्ष की तीसरी श्रृंखला (पहेली क्रमांक 221 से 230 तक) के विजेताओं 
के प्राप्तांकों की गणना के जा चुकी है। प्राप्तांक के अनुसार प्रथम और 
द्वितीय स्थान पर दो-दो प्रतिभागी हैं। 20-20 अंक के साथ पेंसिलवेनिया, 
अमेरिका से विजया राजकोटिया और जबलपुर से क्षिति तिवारी ने श्रृंखला में 
प्रथम स्थान प्राप्त किया है। दूसरे स्थान पर वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. 
किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी हैं। इन दोनों प्रतिभागियों को 
18-18 अंक प्राप्त हुए हैं। तीसरे स्थान पर 4 अंक के साथ रायपुर, छत्तीसगढ़ 
की राजश्री श्रीवास्तव रहीं। इन सभी पाँच प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक 
इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई। 
अपनी बात 
 
मित्रो,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर लघु 
श्रृंखला ‘रागों का समय प्रबन्धन’ का यह तीसरा अंक था। अगले अंक में हम दिन
 के चौथे प्रहर के रागों पर आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। इस श्रृंखला
 के लिए यदि आप किसी राग, गीत अथवा कलाकार को सुनना चाहते हों तो अपना आलेख
 या गीत हमें शीघ्र भेज दें। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास
 करते हैं। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल swargoshthi@gmail.com
 पर अवश्य लिखिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे 
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 
 
 
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