एक गीत सौ कहानियाँ - 53
‘जाओ रे जोगी तुम जाओ रे...’
फ़िल्म संगीत जगत में कुछ संगीतकार ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपने करिअर के शुरुआत में धार्मिक और ऐतिहासिक फ़िल्मों में संगीत देने की वजह से "टाइप-कास्ट" हो गए और जिसकी वजह से सामाजिक और पॉपुलर फ़िल्मों में संगीत कभी नहीं दे सके। पर ऐसा भी नहीं कि इन संगीतकारों को धार्मिक और ऐतिहासिक फ़िल्मों में बड़ी सफलता प्राप्त हुई हो। तब इन संगीतकारों ने यह तर्क दिया कि इन जौनरों के गीतों को सफलता नहीं मिलती है। इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता क्योंकि संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन ने यह कई बार साबित किया है कि फ़िल्म चाहे सामाजिक हो या धार्मिक, या फिर ऐतिहासिक, अगर संगीतकार में काबिलियत है तो उसे सफलता की बुलन्दी तक पहुँचा सकता है। 'हलाकू', 'यहूदी' और 'आम्रपाली' आदि ऐसी फ़िल्में हैं जो ऐतिहासिक और पौराणिक जौनर के होते भी अपने गीत-संगीत की वजह से बेहद कामयाब रहीं। 'आम्रपाली' लेख टंडन की फ़िल्म थी जिसमें वैजयन्तीमाला और सुनील दत्त मुख्य किरदारों में थे। फ़िल्म की कहानी 500 BC काल के वैशाली राज्य की नगरवधू आम्रपाली पर केन्द्रित थी। मगध साम्राज्य के राजा अजातशत्रु आम्रपाली से प्यार करने लगता है और उसे पाने के लिए वैशाली को तबाह कर देता है। पर तब तक आम्रपाली गौतम बुद्ध के विचारों से प्रभावित होकर बुद्ध के शरण में चली जाती है। इस फ़िल्म को लेख टंडन ने इतनी ख़ूबसूरती के साथ परदे पर उतारा कि इस फ़िल्म को उस साल ऑस्कर के लिए भारत की तरफ़ से 'Best Foreign Language Film' के लिए भेजा गया। फ़िल्म को बॉक्स ऑफ़िस पर भले बहुत ज़्यादा कामयाबी न मिली हो पर इसे एक क्लासिक फ़िल्म का दर्जा दिया गया है। फ़िल्म के गीत-संगीत ने भी फ़िल्म को चार-चाँद लगाए। शंकर-जयकिशन के शास्त्रीय-संगीत पर आधारित इस फ़िल्म की रचनाएँ आज भी कानों में शहद घोलती है। फ़िल्म में कुल पाँच गीत थे, जिनमें से चार गीत लता मंगेशकर की एकल आवाज़ में थे ("नील गगन की छाँव में...", "तड़प ये दिन रात की...", "जाओ रे जोगी तुम जाओ रे...", "तुम्हे याद करते करते जायेगी रैन सारी...") और पाँचवाँ गीत "नाचो गाओ धूम मचाओ..." एक समूह गीत था। इनमें से केवल एक गीत "नील गगन की छाँव में" हसरत जयपुरी का लिखा हुआ था, और बाक़ी चार गीत शैलेन्द्र के थे।
और अब बारी एक मज़ेदार क़िस्से की। गीत बन रहा था "जाओ रे जोगी तुम जाओ रे"। रेकॉर्डिंग स्टूडियो में शंकर, जयकिशन, शैलेन्द्र और लता मंगेशकर इस गीत का रिहर्सल कर रहे थे। संयोग से राज कपूर भी किसी काम से उस स्टूडियो में उस समय मौजूद थे। इस गीत की धुन उनके कानों में पड़ते ही वो उठ खड़े हुए और रिहर्सल के जगह पर पहुँच गए। उन्होंने शंकर-जयकिशन से कहा कि यह धुन तो मेरी है, इसे तुम लोग किसी और की फ़िल्म में कैसे इस्तेमाल कर सकते हो? दरसल बात ऐसी थी कि जिस धुन पर "जाओ रे जोगी तुम..." को बनाया गया था, वह धुन इससे पहले शंकर जयकिशन ने राज कपूर की किसी फ़िल्म के लिए बनाई थी जिसका इस्तेमाल राज कपूर ने उस फ़िल्म में नहीं किया था। इसलिए शंकर-जयकिशन यह समझ बैठे कि राज साहब को वह धुन नहीं चाहिए। पर राज कपूर उस धुन का इस्तेमाल अपनी आनेवाली किसी फ़िल्म में करना चाहते थे। तो उस रिहर्सल रूम में राज कपूर से यह ऐलान कर दिया कि वो इस धुन का इस्तेमाल 'मेरा नाम जोकर' के किसी गीत में करना चाहते हैं, इसलिए "जाओ रे जोगी" के लिए शंकर-जयकिशन कोई और धुन बना ले। यह कह कर राज कपूर वहाँ से चले गए। एक पल के लिए जैसे रूम में सन्नाटा हो गया। लेख टंडन एक समय राज कपूर के सहायक हुआ करते थे और राज कपूर से उन्होंने फ़िल्म निर्माण के महत्वपूर्ण पहलू सीखे थे; ऐसे में वो राज कपूर के ख़िलाफ़ कैसे जाते या उनसे बहस करते, पर अब इस उलझन से कैसे निकले?
लेख टंडन |
स्टूडियो के अन्दर पहुँच कर दोनों ने देखा कि लता मंगेशकर काँच से घिरे सिंगर के केबिन में पहुँच चुकी हैं। लेख टंडन ने मॉनिटर रूम में जाते हुए शैलेन्द्र जी से कहा कि वो जाकर लता जी से बात करे। शैलेन्द्र और लता के बीच क्या बातचीत हो रही थी यह लेख साहब को पता नहीं चला, वो सिर्फ़ शीशे से देख रहे थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर इतनी क्या बातें हो रही हैं दोनों में जबकि गाना लिखा ही नहीं गया है। अपनी उत्सुकता को काबू में न रख पाते हुए लेख टंडन ने रेकॉर्डिस्ट से कहा कि वो सिंगर का माइक्रोफ़ोन ऑन कर दे ताकि वो वहाँ क्या चल रहा है उसे सुन सके। जैसे ही माइक्रोफ़ोन ऑन हुआ तो जो शब्द उनके कान में गए वो थे - "शैलेन्द्र जी, बस... दो ही अन्तरे काफ़ी हैं इस गाने के लिए... बहुत अच्छे हैं!" लेख टंडन चकित रह गए। उन्हें ज़रा सा भी पता नहीं चला कि कविराज शैलेन्द्र ने किस समय ये अन्तरे बना लिए थे। शायद आरे कॉलोनी से वापस आते समय गाड़ी में जो चुप्पी साधे दोनो बैठे थे, उस वक़्त वो असल में अन्तरे ही रच रहे थे। क्या लिखा है शैलेन्द्र ने, राग कामोद के सुरों का आधार लेकर क्या कम्पोज़ किया है शंकर जयकिशन ने और क्या गाया है लता मंगेशकर ने। आप भी सुनिए।
फिल्म आम्रपाली : 'जाओ रे जोगी तुम जाओ रे...' : लता मंगेशकर : शंकर जयकिशन : शैलेन्द्र
खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
Comments
आपके लेख बहुतही अर्थपूर्ण और आशय से भेर हुए होते हई. हमारे जैसे गान प्रेमीयोन के लीये वो खजाने की तरहा होते हई. एक गाना कैसा तैयार होता है इसके बारे मे जाणकार बहोत खुशी होती है. आपका दिल से धन्यवाद
माधवी चारुदत्ता
"कारवां सिनेसंगीत का" इस किताब की तरहा क्या आप् एक गीत सौ कहानियाँ के लेखिन के संकलन की भी किताब निकलेंगे। It will be very interesting to all the old song lovers.
Thank you
Madhavi Charudatta
Sujoy Chatterjee