Skip to main content

INTERVIEW OF LYRICIST HASRAT JAIPURI'S DAUGHTER KISHWARI JAIPURI

 बातों बातों में - 05

 गीतकार हसरत जयपुरी की पुत्री किश्वरी जयपुरी से सुजॉय चटर्जी की बातचीत

"तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे..." 






नमस्कार दोस्तो। हम रोज़ फ़िल्म के परदे पर नायक-नायिकाओं को देखते हैं, रेडियो-टेलीविज़न पर गीतकारों के लिखे गीत गायक-गायिकाओं की आवाज़ों में सुनते हैं, संगीतकारों की रचनाओं का आनन्द उठाते हैं। इनमें से कुछ कलाकारों के हम फ़ैन बन जाते हैं और मन में इच्छा जागृत होती है कि काश, इन चहेते कलाकारों को थोड़ा क़रीब से जान पाते; काश; इनके कलात्मक जीवन के बारे में कुछ जानकारी हो जाती, काश, इनके फ़िल्मी सफ़र की दास्ताँ के हम भी हमसफ़र हो जाते। ऐसी ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' ने फ़िल्मी कलाकारों से साक्षात्कार करने का बीड़ा उठाया है। । फ़िल्म जगत के अभिनेताओं, गीतकारों, संगीतकारों और गायकों के साक्षात्कारों पर आधारित यह श्रॄंखला है 'बातों बातों में', जो प्रस्तुत होता है हर महीने के चौथे शनिवार को। आज फ़रवरी माह का चौथा शनिवार है और आज प्रस्तुत है फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध गीतकार हसरत जयपुरी की पुत्री किश्वरी जयपुरी से की गई हमारी लम्बी बातचीत के सम्पादित अंश।




किश्वरी जी, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है आपका ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर।

नमस्कार, और शुक्रिया मुझे याद करने के लिए।

हम बता नहीं सकते कि हमें कितनी ख़ुशी हो रही है कि हसरत जयपुरी साहब जैसे दिग्गज और लीजेन्डरी गीतकार की पुत्री, यानी कि आप आज हमारे बीच हैं और हमें आप के ज़रिए हसरत साहब की ज़िन्दगी और उनके गीतों से सम्बन्धित तमाम बातचीत करने का मौका मिल रहा है।

मुझे भी यकीनन बेहद ख़ुशी होगी, अपने डैडी के बारे में बताते हुए। 

किश्वरी जी, हसरत साहब के बारे में जो आम जानकारी है वो सब तो इन्टरनेट पर उपलब्ध है, उनके लिखे गीतों की फ़ेहरिस्त भी आसानी से मिल जाती है, इसलिए हमने सोचा कि आज के इस साक्षात्कार में हम आपसे कुछ ऐसे सवाल पूछें जो बिल्कुल एक्स्क्लूसिव हों। मेरा मतलब है कि एक बेटी की नज़र से हसरत साहब की शख़्सियत को हम जानना चाहेंगे।

जी ज़रूर! आप पूछ सकते हैं अपने सवाल।

शुक्रिया! सबसे पहले तो आप यह बताइए कि कैसा लगता है हसरत जयपुरी की बेटी कहलाना, वो हसरत जयपुरी जो हिन्दी फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के सबसे लोकप्रिय गीतकारों में से एक थे?

मुझे अपने डैडी की एकलौती बेटी बनने का जो मौका मिला है, इससे मैं अपने आप को बहुत ही ज़्यादा ख़ुशनसीब समझती हूँ, I feel extremely privileged। मैं अल्लाह का शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मुझे इस धरती पर रोमान्स के मशहूर शहंशाह की एकलौती बेटी बना कर भेजा है। इससे ज़्यादा और इससे बेहतर मैं कुछ नहीं माँग सकती थी। 

वाह, क्या बात है! वाकई आप ख़ुशक़िस्मत हैं कि आप हसरत जयपुरी की बेटी हैं। अच्छा किश्वरी जी, यह बताइए कि आपका जो बाल्यकाल था, यानी जब आप एक बच्ची के रूप में बड़ी हो रही थीं, वह दशक कौन सा दशक था?

मेरा जन्म साल 1963 को हुआ था और यह वह दौर था जब डैडी अपनी लोकप्रियता और कामयाबी की बुलन्दियों को छू रहे थे। 

जी, मेरा इशारा भी उसी तरफ़ था, मैं भी इसी बात पर आ रहा था कि हसरत साहब की उस सफल दौर में जब आप बड़ी हो रही थीं, तब क्या आपको यह अहसास था, क्या इतनी समझ थी उस वक़्त कि आप इतने बड़े गीतकार की बेटी हैं?

हसरत जयपुरी नन्ही किश्वरी के साथ
जी, जैसे जैसे मैं बड़ी हो रही थी, मेरा रिश्ता डैडी के गीतों के साथ जुड़ता और पनपता चला जा रहा था। मैं, मेरी माँ, मेरे दोनों भाई और डैडी, हम सब बैठ कर हमारे Philips Record Player पर उनके गीतों को सुना करते थे। अफ़सोस की बात है कि हम 40 और 50 के दशकों के उनके गीतों का आनन्द नहीं ले सके और उनकी कामयाबी के जश्नों को अपनी आँखों से नहीं देख सके। क्योंकि मेरा जन्म 1963 में हुआ, इसलिए 60 का दशक भी बहुत कम उम्र होने की वजह से समझ ही नहीं सकी। पर जैसे-जैसे बड़ी हुई, मैं उनके गीतों की तरफ़ खींचती चली गई, आकर्षित होती चली गई। उनका लहू मेरे रगों में दौड़ रहा है, इसलिए बाद में ही सही, पर मैं उनके गीतों से जुड़ ज़रूर गई।

हसरत साहब एक पिता के रूप में कैसे थे? किस तरह का सम्बन्ध था आप दोनों के बीच?

मेरा मेरे डैडी के साथ जो सम्बन्ध था वह इस दुनिया से परे था। यह रिश्ता बहुत ही ज़्यादा मज़बूत और बहुत ही ज़्यादा प्यार भरा था। क्योंकि मैं उनकी एकलौती बेटी थी, इसलिए लाड़-प्यार कुछ ज़्यादा ही करते थे। मैं उनकी आँखों का तारा थी, वो मुझसे इतना ज़्यादा प्यार करते थे कि अगर मैं कहती कि पिताजी, अभी दिन है, तो वो कहते हाँ दिन है, फिर चाहे वह रात ही क्यों न हो!

जो तुमको हो पसन्द वही बात कहेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे... 

जी बिल्कुल! और फिर हर रात को सोने जाने से पहले वो हमारे बेडरूम में आते और हम तीनों से कहते - "अल्लाह इनकी हज़ारी उमर करे"। मैं क्या बताऊँ, वो एक बहुत ही ज़्यादा प्यार करने वाले पिता थे। आज भी मैं उन्हें बहुत ज़्यादा मिस करती हूँ, उनकी कमी को महसूस करती हूँ।

किश्वरी जी, मैं यही कह सकता हूँ कि भले वो शारीरिक रूप से हमारे बीच में नहीं हैं, पर उनका जो काम है, उनके जो लिखे हुए गीत हैं, वो हमेशा-हमेशा इस धरती पर गूँजते रहेंगे। इसलिए यह कहना अनुचित होगा कि आज वो हमारे बीच नहीं हैं। कलाकार भले इस फ़ानी दुनिया से चला जाए, पर उसकी कला अमर रहती है।

बिल्कुल सही कहा आपने!

पिता की गोद में किश्वरी; माँ और बड़े भाई के साथ
अच्छा किश्वरी जी, यह बताइए कि घर में सारे लोग जब मौजूद होते थे, पिताजी, माँ, दोनों भाई और आप, तो किस तरह का माहौल हुआ करता था घर में? अपनी यादों को ताज़ा करना चाहेंगी आप?

ज़रूर, पिताजी तो बड़े ही सीधे-सादे इंसान थे, फ़कीर थे, he was very down to earth। उन्हें मम्मी के हाथों से बना अच्छा मुग़लई खाना बहुत पसन्द था। शायरी तो ख़ैर उन्हें पसन्द थी। उन्होंने अपने तमाम सुनहरे हिट गीत हमारे खार स्थित एक बेडरूम-हॉल फ़्लैट में लिखे थे। 

यानी आप यह कहना चाहती हैं कि भीड़ में बैठ कर वो गाने लिखते थे, उन्हें एकान्त में लिखना पसन्द नहीं था? 
जी हाँ, क्योंकि वो God-gifted थे, उन्हें लिखने के लिए किसी तरह की प्राइवेसी की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। मैंने उन्हें किसी गीत को मिनटों में लिखते हुए देखा है। वो छन्दों को इस क़दर लिख जाते थे कि जैसे ये छन्द उपर से उतार दिए हों किसी ने उन पर। जब वो किसी गीत के मुखड़े और अन्तरों को लिख डालते, तो वो माँ को बुलाते और कहते - "अजी सुनती हो, लो यह गाना सुनो"। अगर माँ उस कमरे में मौजूद ना हों तो ख़ुद किचन में चले जाते थे और खाना बनाती हुई मेरी माँ को उसी वक़्त अपना लिखा गाना सुनाने लग जाते।

बहुत ख़ूब! अच्छा आपने तो यह बता दिया कि हसरत साहब आपकी माँ को अपना लिखा हुआ गीत पढ़ कर सुनाते थे। क्या वो आप बच्चों को भी सुनाते थे या फिर किसी गीत को लिखते समय आप से सुझाव माँगते थे या आपकी राय लेते थे?

वो ज़्यादातर माँ के साथ ही अपने गीतों की चर्चा किया करते थे। कभी-कभार वो मुझे या मेरे भाइयों से अपने गीत को हिन्दी में लिखने के लिए कहते थे क्योंकि उन्हें हिन्दी लिखना और पढ़ना नहीं आता था।

"हिन्दी लिखना और पढ़ना नहीं आता था", मतलब???

जी हाँ, वो उर्दू में अपनी शायरी और गीत लिखते थे। उन्हें हिन्दी नहीं आती थी।

बहुत ही आश्चर्य हुआ यह जानकर। हिन्दी फ़िल्मों के सफलतम गीतकारों में से एक, और हिन्दी भाषा पढ़ना और लिखना नहीं जानते थे। कमाल की बात है! किश्वरी जी, यह बताइए कि क्या आपने कभी उन्हें किसी गीत में असिस्ट किया है?

एक गीत याद है मुझे जिसमें मैंने उनकी मदद की थी क्योंकि बहुत ही कम समय में उन्हें वह गीत तैयार करना था। और वह गीत था ’राम तेरी गंगा मैली’ फ़िल्म का "सुन साहिबा सुन प्यार की धुन"। "सुन साहिबा सुन" जुमला तैयार था, पर आगे का गीत उन्हें पूरा करना था। इसलिए उन्होंने मुझसे कहा कि "सुन" से तुकबन्दी करते हुए कुछ शब्द मैं सुझाऊँ। मैंने उन्हें "धुन", "चुन", "पुन", "बुन", "शगुन" जैसे शब्द सुझाए।

वाह क्या बात है, क्या बात है! इसका मतलब यह कि इस बेहद मशहूर गीत की सफलता में आपका भी योगदान रहा है। यह बड़ी ही अनोखी जानकारी आपने दी हमें। अच्छा उसके बाद क्या हुआ?

उसके बाद डैडी ने फ़टाफ़ट अन्तरों को पूरा किया और निकल गए। रेकॉर्डिंग् से वापस आकर उन्होंने मुझे 5000 रुपये इनाम में दिए, और मेरी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा।

बहुत ख़ूब! गीतों की जब बात चल ही पड़ी है तो किश्वरी जी, यह बताइए कि हसरत साहब के लिखे अनगिनत गीतों में से वह एक गीत कौन सा है जिसे आप सबसे उपर रखना चाहेंगी, या जो आपको सबसे ज़्यादा अज़ीज़ है?

सबसे पसन्दीदा गीत तो वही गीत है जिसे Song of the Century कहा गया है, "बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है"। जैसे ही मेरे कानो में यह बात पहुँची कि डैडी के लिखे इस गीत को Song of the Century का ख़िताब दिया गया है, मैं तो जैसे आसमान में उड़ने लगी। डैडी हम सब से दूर जाने के बाद भी अमर हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं! अच्छा यह बताइए कि इस गीत की क्या ख़ास बात है?

इस गीत की सबसे बड़ी ख़ासियत तो यही है कि भले यह एक रोमान्टिक गीत है, पर डैडी ने इसे किसी ख़ूबसूरत लड़की की कल्पना करते हुए नहीं लिखा था। यह गीत तो उन्होंने हमारे प्रोफ़ेट मोहम्मद की शान में लिखा था। यह मुझे डैडी ने ख़ुद एक बार बताया था।

क्या बात है! यानी कि इस गीत को अगर गहराई से समझा जाए तो इसे एक आध्यात्मिक गीत का दर्जा भी दिया जा सकता है। 

जी हाँ।

मुझे याद है ऐसा ही एक गीत एस. एच. बिहारी साहब का लिखा हुआ है "है दुनिया उसी की ज़माना उसी का, मोहब्बत में जो हो गया हो किसी का", इस गीत के साथ भी इसी तरह का क़िस्सा जुड़ा हुआ है।

जी।

किश्वरी जी, आपका सबसे चहीता गीत रफ़ी साहब की आवाज़ में "बहारों फूल बरसाओ" है। पर एक टीम हुआ करती थी राज कपूर, शैलेन्द्र-हसरत, शंकर-जयकिशन और मुकेश की। तो मुकेश का गाया और आपके पिताजी का लिखा हुआ वह कौन सा गीत है जो आपके दिल के बहुत क़रीब है?

वह गीत यकीनन फ़िल्म ’संगम’ का है, "ओ महबूबा, तेरे दिल के पास ही है मेरी मंज़िल-ए-मक़सूद"। यह दरअसल राज जी के जज़्बात थे वैजयन्तीमाला जी के लिए, जिसे डैडी ने इस ख़ूबसूरत रूमानी शायरी का जामा पहनाया। और आपको बताऊँ, यह गीत बिल्कुल उस वक़्त लिखा गया था जब राज जी और वैजयन्तीमाला जी का रोमान्स सर चढ़ कर बोल रहा था फ़िल्म ’संगम’ के निर्माण के दौरान।

किश्वरी जी, हमने अभी-अभी टीम की बात की, तो उस ज़माने में क्या आपकी भी मुलाक़ातें हुईं शंकर-जयकिशन, शैलेन्द्र जी, लता जी, मुकेश जी, और रफ़ी साहब जैसे दिग्गज हस्तियों के साथ?

जब मैं छोटी थी, तब मैं शंकर अंकल, जय अंकल, मुकेश जी और राज कपूर जी से कई बार मिली जब ये लोग डैडी से मिलने हमारे घर पर आते थे। जय अंकल तो दीवाली पर हमारे घर आनेवाले लोगों में सबसे पहले होते थे अपने एक बड़े से मिठाई के डब्बे और ड्राई फ़्रूट्स के साथ। मैं बहुत ख़ुशक़िस्मत हूँ कि मुझे ग्रेट रफ़ी साहब और मन्ना दा से भी मिलने का मौका मिला जब मैं डैडी के किसी गीत की रेकॉर्डिंग् पर उनके साथ गई थी। रफ़ी साहब और मैंने एक दूसरे को सलाम किया और उन्होंने मेरे माथे को चूमा। आशा जी भी बहुत ही प्यार से मिलीं जब मैं अपने पति के साथ उनकी किसी रेकॉर्डिंग् पर गई थी। इस तरह से मेरी ख़ुशनसीबी ही कहूँगी कि मुझे ऐसे बड़े-बड़े कलाकारों से मिलने का मौक़ा नसीब हुआ अपने डैडी की वजह से।

हसरत साहब की बेटी बन कर जन्म लेना ही अपने आप में एक सौभाग्य है। अच्छा, किश्वरी जी, अब हम जानना चाहेंगे आपकी माताजी के बारे में। कहा जाता है कि हर कामयाब आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है, तो बताइए कि आपकी माताजी का आपके पिता की सफलता में कितना बड़ा योगदान था?

मेरी माँ मेरे डैडी का ताक़त स्तम्भ थीं। वो डैडी और उनकी कमाई का उचित देख-रेख किया करती थीं और चाहे ख़ुशहाली हो या तंगी, हर तरह के दिनों में, बिना किसी शर्त के, वो उनका साथ दिया करतीं। माँ डैडी के कई गीतों की प्रेरणा भी बनीं। "ग़म उठाने के लिए" एक ऐसा पछतावा भरा गीत है जिसे डैडी ने माँ के लिए लिखा था जिन्हे वो बहुत ज़्यादा प्यार करते थे।

"ग़म उठाने के लिए", आपका मतलब है फ़िल्म ’मेरे हुज़ूर’ का वह गीत?

जी हाँ।

"ग़म उठाने के लिए मैं तो जिए जाऊँगा, साँस की लय पे तेरा नाम लिये जाऊँगा"। बहुत ही ख़ूबसूरत गीत है यह।

"तू ख़यालों में मेरे अब भी चली आती है, अपनी पलकों पे उन अश्क़ों का जनाज़ा लेकर, तूने नींदे करी क़ुरबान मेरी राहों में, मैं नशे में रहा ग़ैरों का सहारा लेकर, ग़म उठाने के लिए मैं तो जिए जाऊँगा"

बहुत ख़ूब! अच्छा किश्वरी जी, यह गीत तो एक ऐसा गीत था जिसे हसरत साहब ने आपकी माताजी की याद में लिखा था। आप की राय में उनका लिखा वह कौन सा गीत होगा जिसे आप अपनी माँ की तरफ़ से हसरत साहब को समर्पित करना चाहेंगे?

"हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे"

वाह! वाह! क्या बात है!

"हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे" महज़ एक गीत नहीं है बल्कि ये प्यार की धाराएँ हैं जो स्वर्ग से धरती पर बरसी हैं। ऐसा गीत और कोई नहीं सिर्फ़ रोमान्स का बादशाह ही लिख सकता था। "हम प्यार के गंगाजल में बमलजी तन मन अपना धो बैठे"। यह गीत मुझे बेहद पसन्द है।

हम बात कर रहे थे आपकी माताजी की। उनसे जुड़ा और कोई वाक्या बताना चाहेंगी?

एक बार एक पार्टी में भगवान दादा और नादिरा जी मेरे डैडी से कहने लगे, "हसरत मिया, आप बहुत ख़ुशक़िस्मत हो जो आपको ऐसी बीवी मिली है, वरना आप जयपुर में या तो भीख माँग रहे होते या मज़दूरी कर रहे होते"। डैडी का जो ड्रीम-हाउस बंगला है ’ग़ज़ल’ के नाम से, उसके पीछे भी माँ का ही सबसे बड़ा हाथ है। डैडी माँ को ’बिलक़िस-ए-ज़मानी’ जिसका अर्थ है दुनिया की राजकुमारी। मेरी माँ का नाम बिलक़िस था।

वाह! किश्वरी जी, जब ऐसी रूमानियत भरी बातें हो रही हैं तो ऐसे में हसरत साहब के किस गीत का ज़िक्र करना चाहेंगी?

फ़िल्म ’तुमसे अच्छा कौन है" का लता जी और रफ़ी साहब का गाया "रंगत तेरी सूरत सी किसी में नहीं नहीं, ख़ुशबू तेरे बदन सी किसी में नहीं नहीं। युं तो हसीं लाख ह दुनिया की राह में, आता नहीं है कोई नहीं मेरी निगाहों में, तुझमें है जो अगन किसी में नहीं नहीं..."। इस गीत का हर एक लफ़्ज़ मोहब्बत की ख़ुशबू से भरा हुआ है। और यह गीत मुझे मेरी पहली मोहब्बत की भी याद दिला जाता है। मैं इस गीत को लगातार सुनती चली जा सकती हूँ और दिन के किसी भी वक़्त गुनगुना भी लेती हूँ।

वाह! एक वह दौर था, एक आज का दौर है। फ़िल्म-संगीत की धारा में बहुत सारे बदलाव आए हैं। तो आज के रोमान्टिक गीतों के बारे में आपके क्या विचार हैं?

आजकल के गीतों में रोमान्स के बारे में मेरा ख़याल यह है कि अब रोमान्स का वजूद ही नहीं है। डैडी के शब्दों में आज के गाने महज़ तुकबन्दी बन कर रह गए हैं। आज जिस तरह के गीत लिखे जा रहे हैं, कोई भी गीतकार बन सकता है, मैं भी लिख सकती हूँ।

क्या आपको भी लिखने का शौक़ है?

जी हाँ, थोड़ा बहुत लिख लेती हूँ। 

कुछ सुनाइए ना?

एक कविता जो मैंने डैडी को डेडिकेट करते हुए लिखा है, वह सुनाती हूँ।

ज़रूर!

हर एक मनज़र तमाशा दिखाई देता है
तेरे बिना सबकुछ फीका दिखाई देता है
अब आयें भी तो कहाँ से सदायें तेरी
ना तू है ना तेरा साया दिखाई देता है।

वाह! बहुत ख़ूब! पर एक हक़ीक़त यह भी है कि अपने गीतों के ज़रिए हसरत साहब हमेशा जीवित रहेंगे। एक और सुनाइए किश्वरी जी?

एक और ग़ज़ल सुनिए...
किस तरह जान को रोकूँ मैं, क्या करूँ मुझको यह ख़याल सताता है,
जाने का नाम जब भी लेता है वो, मैं क्या करूँ दिल मेरा डूब जाता है।

बहुत सुन्दर ग़ज़ल है! वैसे आपको हसरत साहब की कौन सी ग़ज़ल बहुत पसन्द है?

एक ग़ज़ल है फ़िल्म ’मेरे हुज़ूर’ फ़िल्म में रफ़ी साहब की आवाज़ में, "वह ख़ुशी मिली है मुझको", यह मुझे बहुत पसन्द है और हर प्यार करने वाला अपने आप को इस ग़ज़ल के साथ जोड़ सकता है।

इस ग़ज़ल के तमाम शेर आपको याद हैं?

जो गुज़र रही है मुझ पर, उसे कैसे मैं बताऊँ,
वह ख़ुशी मिली है मुझको, मैं ख़ुशी से मर ना जाऊँ।

मेरे दिल की धड़कनों का यह पयाम तुमको पहुँचे,
मैं तुम्हारा हमनशी हूँ, यह सलाम तुमको पहुँचे,
उसे बन्दगी मैं समझूँ जो तुम्हारे काम आऊँ
वह ख़ुशी मिली है मुझको मैं ख़ुशी से मर ना जाऊँ।

वाह!

मेरी ज़िन्दगी में हमदम कभी ग़म ना तुम उठाना,
कभी आए जो अन्धेरे मुझे प्यार से बुलाना,
मैं चिराग़ हूँ वफ़ा का, मैं अन्धेरे में जगमगाऊँ, 
वह ख़ुशी मिली है मुझको मैं ख़ुशी से मर ना जाऊँ।

और जो तीसरा शेर है, वह तो जैसे मेरे जसबात है डैडी के लिए....

मेरे दिल की महफ़िलों में वह मकाम है तुम्हारा,
कि ख़ुदा के बाद लब पर बस नाम है तुम्हारा,
मेरी आरज़ू यही है मैं तुम्हारे गीत गाऊँ,
वह ख़ुशी मिली है मुझको मैं ख़ुशी से मर ना जाऊँ।

वाह! क्या बात है! बहुत ही सुन्दर! अच्छा किश्वरी जी, क्या आपके दोनों भाई भी लिखते हैं? उन्हें भी शौक़ है?

जी नहीं, सिर्फ़ मैं ही थोड़ा-बहुत लिखती हूँ।

क्या नाम हैं आपके दो भाइयों के?

मेरे बड़े भाईसाहब का नाम है अख़्तर हसरत जयपुरी और मेरा छोटा भाई है आसिफ़ जयपुरी।

अच्छा किश्वरी जी, और कौन कौन से गीत हैं हसरत साहब के जो आपको पसन्द हैं?

मुकेश जी का गाया फ़िल्म ’दीवाना’ का गीत "तारों से प्यारे दिल के इशारे, प्यासे हैं अरमान आ मेरे प्यारे" मुझे बहुत पसन्द है। इस गीत को डैडी ने इतने प्यार से लिखा है कि जब भी मैं यह गीत सुनती हूँ तो रोमान्स की एक अलग ही दुनिया में पहुँच जाती हूँ। यह गीत सच्चे प्यार की ताक़त को बयान करता है...  आना ही होगा तुझे आना ही होगा...। फ़िल्म ’आख़िरी दाँव’ का एक गीत है "ऐसा ना हो कि इन वादियों में मैं खो जाऊँ, और तुम मुझे ढूंढा करो और मैं लौट के ना आऊँ", यह भी रफ़ी साहब का गाया हुआ है। डैडी लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल जी के ज़बरदस्त फ़ैन थे और उनकी एक दिली तमन्ना थी एल.पी के साथ काम करने की। इस तरह से लक्ष्मी-प्यारे जी की यह राजसी कम्पोज़िशन जिसे रफ़ी साहब की दिव्य आवाज़ ने संवारा है, मेरे दिल के बहुत करीब है क्योंकि यह मुझे डैडी की याद दिला जाता है। एक और गीत, यह भी रफ़ी साहब का ही गाया हुआ, "रुख़ से ज़रा नक़ाब उठा दो, मेरे हुज़ूर"। शहद से भरी हुई यह ग़ज़ल, और शायद ’मेरे हुज़ूर’ फ़िल्म के शीर्षक गीत के रूप में इससे बेहतर गीत नहीं सकता था। मिठास और ख़ुशबू लिए यह ग़ज़ल हर प्यार करने वाले को समर्पित है। फ़िल्म ’आरज़ू’ की ग़ज़ल "अजी रूठ कर अब कहाँ जाइयेगा" भी मुझे बेहद पसन्द है। डैडी ने प्यार के बेहद नाज़ुक शब्दों का इस्तेमाल इसमें किये हैं, जितनी भी तारीफ़ करूँ रुकती नहीं ज़ुबाँ। राजसी ग़ज़ल!

वाक़ई एक से बढ़ कर एक रचनाएँ हैं ये सभी, और आपकी पसन्द की भी दाद देता हूँ किश्वरी जी।

शुक्रिया!

किश्वरी जी, अब हम इस साक्षात्कार के अन्तिम चरण में पहुँच गए हैं। यह बताइए कि आपकी हसरत साहब से अन्तिम मुलाक़ात कब हुई थी?

डैडी से जो मेरी अन्तिम मुलाक़ात थी वह बहुत ही दिल को छू लेने वाली और दिल को मरोड़ कर रख देने वाली थी। मैं साल 1999 में भारत आई थी और यहाँ तीन महीने रही। तीन महीने ख़त्म हो गए और मेरे वापस जाने का समय आ गया। मुझे याद है कि जब मैं एअरपोर्ट के लिए निकल रही थी तब डैडी ने कस के मुझे गले से लगा लिया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगे और कहने लगे कि बेटा, यह हमारी आख़िरी मुलाक़ात है। और हाँ, उनकी यह भविष्यवाणी सच साबित हुई और मेरे चले जाने के एक महीने बाद ही उनका देहान्त हो गया। मैंने उन्हें उस तरह से रोते हुए कभी नहीं देखा था पहले। उस दिन को याद करते हुए आज भी मेरी आँखें भर आती हैं।

मैं समझ सकता हूँ। आपको बस हसरत साहब का ही लिखा एक गीत याद दिलाना चाहूँगा, "तुम मुझे युं भुला ना पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे, संग संग तुम भी गुनगुनाओगे.."

बिल्कुल सच बात है!

चलते-चलते हसरत साहब के किस गीत के ज़िक्र से इस मुलाक़ात को आप अंजाम देना चाहेंगी?

यकीनन "जाने कहाँ गए वो दिन...", एक बहुत ही दिल को मरोड़ कर रख देने वाला गीत, जो पैथोस से भरा हुआ है। इस गीत में डैडी ने जैसे अपनी निजी भावनाओं को ही गीत की शक्ल में उतार दिए हों, यह वह समय था जब उनके तथाकथित ’good friends' ने उनका साथ छोड़ दिया था। डैडी जब भी कभी यह सुनते, रोने लगते। मैं भी जब भी कभी यह गीत सुनती हूँ, मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

किश्वरी जी, बहुत-बहुत शुक्रिया आपका, आपने हमें इतना लम्बा समय दिया, हसरत साहब की इतनी सारी बातें हमें बताईं, उनके गीतों की चर्चा कीं, ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की तरफ़ से और अपने पाठकों की तरफ़ से, और मैं अपनी तरफ़ से आपको बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ, नमस्कार!

आपका भी बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मुझे याद किया और डैडी से जुड़ी बातें बताने का मौका दिया। नमस्कार!


आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमे अवश्य बताइएगा। आप अपने सुझाव और फरमाइशें ई-मेल आईडी cine.paheli@yahoo.com पर भेज सकते है। अगले माह के चौथे शनिवार को हम एक ऐसे ही चर्चित अथवा भूले-विसरे फिल्म कलाकार के साक्षात्कार के साथ उपस्थित होंगे। अब हमें आज्ञा दीजिए।  



प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 

Comments

Pankaj Mukesh said…
adbhut, prastuti aur dil ko jhakjhor dene wali marmshparshee batein!!! khaskar hamare aaradhya gayak ukesh ji se sambandhit batein aur unse jude geeton ki charcha wakai, ek yaadgaar pal ki anubhooti karanewala shakshatkaar...
WAKAI,MUKESH JI KE JIN GEETO KI CHARCHA HUI, UNKI SAHI SHABDON MEIN WYAKHYA KIYA GAJAY KISHWARI JI DWARA WO APNE MEIN EK DRIDH SATYA HAI.
1. TARON SE PYARE, DIL KE ISHARE, PYAAASE HAIN ARMAAN AA MERE PYARA, AANA HI HOGA TUJHE AANA HI HOGA!!!!
2. JANE KAHAN GAYE WO DIN....IS DEL KE AAASHIAN MEIN AB, UNKE KHAYAAAL RAH GAYE, TOD KE DIL WO CHAL DIYE, HUM FIR AKELE RAH GAYE....
Sajeev said…
WAAH SUJOI...KYA INTERVIEW HAI
ramesh prayag said…
वाह, अद़भुत, दिल का छूने वाना साक्षा
त्‍कार... बधाई।
Rajendra said…
There is no word other than 'Wah' for your interview with Kishvari Ji.Thanks for sharing with us.
Unknown said…
The interview which is full of emotions, and enlighting some hidden corners of a good lyricist as well as great human being
My sincere thanks to Kishwari Ji for sharing such many insights of this great legend Hasrat Jaipuri Ji many of which didn't know.
God Bless !!!
Dr. Ashok Patnaik said…
Dear Sujoy, I have posted your lovely interview with Kishwari several times in her closed private group on Hasrat saab.Due to closure of my FB account for reasons unknown, all my saved research on Hasrat saab got lost, but now I have restored a lot. Though Kishwari & I have never met in person, she remains one of my very few very close friends & I love her as my kid sister. I call her Kish. Due to unwanted reasons & my failing health, we are not in contact since July, but I guess we will connect shortly. She has shared a lot of small tips on her dad & mom with me & I treasure them. She herself is a wonderful human being, a poetess, a singer, & a very good hostess. Her humility is remarkable. She is her dads perfect daughter. Regards.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की