स्वरगोष्ठी – 181 में आज
वर्षा ऋतु के राग और रंग – 7 : कजरी गीतों का लोक स्वरूप
कजरी का लोक रंग : ‘कैसे खेले जइबू सावन में कजरिया, बदरिया घेरि आइल ननदी...’
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर और कजरी गीतों के आभिजात्य स्वरूप पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम कजरी गीतों के पारम्परिक लोक स्वरूप पर चर्चा करेंगे।
डॉ. वनमाला पर्वतकर |
पारम्परिक कजरी : देवी गीत : ‘संकट दूर करो महारानी संकटा आदि भवानी ना...’ : डॉ. वनमाला पर्वतकर और साथी
तृप्ति शाक्य |
पारम्परिक कजरी : ‘कैसे खेले जइबू सावन में कजरिया, बदरिया घेरि आइल ननदी...’ : तृप्ति शाक्य और साथी
उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ |
पारम्परिक कजरी : शहनाई वादन : दादरा और कहरवा ताल में निबद्ध कजरी धुन : उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और साथी
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 181वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको कण्ठ संगीत की एक प्राचीन रेकार्डिंग का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 190वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – कण्ठ संगीत की इस रचना के अंश को सुन कर राग पहचानिए और हमे राग का नाम बताइए।
2 – यह भारतीय संगीत के किस महान गायक की आवाज़ है? एक संकेत सूत्र है- ‘पण्डित भीमसेन जोशी इस गायक की आवाज़ से इतने अधिक प्रभावित हुए थे कि अच्छे गुरु की तलाश में घर छोड़ कर निकल पड़े थे’।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 183वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 179वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी गिरिजा देवी के स्वरों में प्रस्तुत कजरी गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका विदुषी गिरिजा देवी और पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- उपशास्त्रीय संगीत शैली में कजरी अथवा कजली। इस अंक की पहेली के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी और पेंसिलवानिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने दिया है। दोनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों हम ऋतु के अनुकूल रागों अर्थात वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले संगीत पर चर्चा कर रहे हैं। यह इस लघु श्रृंखला का समापन अंक था। अगले अंक से हम एक नई श्रृंखला की शुरुआत करेंगे। हमारे पिछले अंक पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पेंसिलवानिया, अमेरिका की सुश्री विजया राजकोटिया लिखती हैं-
Dear Krishnamohanji,
You have made this topic so interesting by giving beautiful descriptions of subtle Rachana under the Light classical music - Thumri. I can feel the depth of our music in your lines for which I am thankful to you.
The beautiful piece you included in this Paheli is by Ustad Bismillah Khanji whom I have heard personally in the concerts since my childhood. So coming to the answers: 1 (a) The instrument is called Shehnai which is a wind instrument. (b) It is a kind of Kajari meaning Kajari ka Lok-Swaroop. In other words it is a Lok Geet generally played during auspicious occasions like marriage etc. Shehnai is popular in such occasions. 2. This composition is set initially in Dadra taal and then is changed to Kehrava taal.
With regards,
Vijaya Rajkotia
Chalfont, Pennsylvania
USA
विजया जी का हार्दिक आभार प्रकट करते हुए आपको सूचित करना चाहूँगा कि ‘स्वरगोष्ठी’ की अगली श्रृंखला उपशास्त्रीय संगीत शैली ठुमरी पर केन्द्रित होगी। इस लघु श्रृंखला में हम एक नया प्रयोग भी कर रहे हैं। आप भी यदि भारतीय संगीत के किसी विषय में कोई जानकारी हमारे बीच बाँटना चाहें तो अपना आलेख अपने संक्षिप्त परिचय के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के ई-मेल पर भेज दें। अपने पाठको/श्रोताओं की प्रेषित सामग्री प्रकाशित/प्रसारित करने में हमें हर्ष होगा। आगामी श्रृंखलाओं के लिए आप अपनी पसन्द के कलासाधकों, रागों या रचनाओं की फरमाइश भी कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करेंगे। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-प्रेमियों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
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