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"वो हैं ज़रा ख़फ़ा-ख़फ़ा..." - किस बात पर ख़फ़ा हुए थे लता और रफ़ी एक दूजे से?


एक गीत सौ कहानियाँ - 37
 

वो हैं ज़रा ख़फ़ा ख़फ़ा...’



'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 37-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'शागिर्द' के गीत "वो हैं ज़रा ख़फ़ा-ख़फ़ा" के बारे में। 


ह वर्ष 1967 की बात है। निर्माता सुबोध मुखर्जी बना रहे थे फ़िल्म 'शागिर्द'। उन दिनों लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी के बीच मनमुटाव चल रहा था। रॉयल्टी के किस्से को लेकर दोनों में न केवल बातचीत बन्द थी, बल्कि एक दूसरे के साथ गीत गाना भी बन्द कर दिया था। ऐसे में जब भी लता-रफ़ी डुएट की बारी आती किसी फ़िल्म में, या तो लता की जगह सुमन कल्याणपुर की आवाज़ ली जाती या फिर रफ़ी के बदले महेन्द्र कपूर या मुकेश की। तो 'शागिर्द' फ़िल्म के कुल 6 गीतों में से 5 गीतों को तो एकल गीतों के रूप में ही निपटा लिया गया, पर रोमान्टिक फ़िल्म में एक भी युगल गीत न हो, यह भी किसी को गवारा नहीं हो रहा था। तय हुआ कि रफ़ी साहब और सुमन कल्याणपुर की ही आवाज़ों में एक युगल गीत रेकॉर्ड कर लिया जाये। तैयारियाँ होने लगी थीं कि इंडस्ट्री में ख़बर फैल गई कि लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी का झगड़ा खत्म हो चुका है और दोनों एक दूसरे के साथ गाने के लिए अब तैयार हैं। इस ख़बर के फैलते ही संगीतकारों ने जैसे चैन की साँस ली और जैसे एक होड़ सी लग गई लता-रफ़ी के डुएट्स रेकॉर्ड करने की। यह 1967 का ही वर्ष था। इस वर्ष लता-रफ़ी के पुनर्मिलन के बाद जो तीन सर्वाधिक लोकप्रिय गीत रेकॉर्ड हुए, वो थे सचिन देव बर्मन के संगीत में फ़िल्म 'ज्वेल थीफ़' का "दिल पुकारे, आ रे आ रे आ रे", कल्याणजी-आनन्दजी के संगीत में 'आमने-सामने' फ़िल्म का "कभी रात-दिन हम दूर थे, दिन रात का अब साथ है" तथा तीसरा गीत था लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल के निर्देशन में फ़िल्म शागिर्द का - "वो हैं ज़रा ख़फ़ा-ख़फ़ा, सो नैन यूँ चुराये हैं..."। इन तीनों गीतों के बोलों पर अगर ध्यान दिया जाये तो अहसास होता है कि ये तीनों गीत लता-रफ़ी के पुनर्मिलन या नाराज़गी के क़िस्से की तरफ़ इशारा करते हैं। वाक़ई इत्तेफ़ाक़ की बात है, है ना? बाक़ी दो गीतों का नहीं कह सकते, पर फ़िल्म 'शागिर्द' के इस युगल गीत के बोल इत्तेफ़ाकन नहीं थे। यह लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल, मजरूह सुल्तानपुरी और सुबोध मुखर्जी के नटखट दिमाग़ की उपज थी। इन्होंने सोचा कि क्यों न लता जी और रफ़ी साहब को थोड़ा छेड़ा जाये, उनकी ज़रा चुटकी ली जाये, और उन्हें परेशान करने के लिए ही फ़िल्म की कहानी में एक ऐसा सिचुएशन डाला गया कि जिसमें नायक-नायिका एक दूसरे से ख़फ़ा हैं। मजरूह ने भी पूरा पूरा मज़ा लेते हुए लिख डाला "वो हैं ज़रा ख़फ़ा-ख़फ़ा, सो नैन युं चुराये हैं के ओ हो..."। साल 2005 में रफ़ी साहब को श्रद्धांजलि स्वरूप प्यारेलाल जी जब 'विविध भारती' पर विशेष जयमाला प्रस्तुत करने आये थे तो उसमें इस गीत को बजाते हुए कहा था, "हाँ तो फ़ौजी भाइयों, एक मज़ेदार बात बताऊँ आपको? फ़िल्म 'शागिर्द' में एक डुएट गाना था 'वो हैं ज़रा ख़फ़ा-ख़फ़ा'; रिहर्सल होने के बाद जब फ़ाइनल टेक रेकॉर्ड हो रहा था, तब रफ़ी साहब और लता जी दोनों ऐसे मूड में गा रहे थे कि ऐसा लग रहा था कि वो दोनों वाक़ई एक दूसरे से ख़फ़ा हैं। बहुत ही प्यारे ढंग से गाया है दोनों ने"।

लता और रफ़ी के बीच सुलह
करवाया  जयकिशन ने
फ़िल्म 'शागिर्द' के इस गीत के बनने की कहानी तो पता चल गई पर इससे भी बड़ी बात यह कि आख़िर लता जी और रफ़ी साहब के बीच मनमुटाव किस बात को लेकर हुआ कि 1961 से लेकर 1967 तक दोनों ने न तो एक दूसरे के साथ बातचीत की और न ही साथ में कोई गीत गाया? क्या था रॉयल्टी का वह मसला, जान लेते हैं ख़ुद लता जी के ही शब्दों में जो उन्होंने अमीन सायानी को कहा था एक साक्षात्कार में। "हुआ क्या था कि हमारी ऐसोसिएशन थी प्लेबैक सिंगर्स की, उसमें तलत साहब, मुकेश भ‍इया, ये सब मेरे साथ, मतलब, मैंने उनको बताया कि मैं रॉयल्टी लेती हूँ, प्रोड्युसर मुझे रॉयल्टी देते हैं, तो हम सबके लिए क्यों न माँगे? क्योंकि कभी कभी प्लेबैक सिंगर को काम मिलना बन्द हो जाता है, काम कम हो जाता है, तो कम से कम रॉयल्टी तो आती रहेगी! तो जब मैंने यह कहा ऐसोसिएशन में तो सब राज़ी हो गए। पर HMV ने कहा कि हम नहीं देंगे, आप प्रोड्युसर से लीजिये। प्रोड्युसर्स ने कहा कि ये तो HMV को देना चाहिये। HMV ने कहा कि हम प्रोड्युसर्स को ज़्यादा देते हैं। तो ऐसे में हम सब ने तय किया कि अब हम गायेंगे गाना पर HMV में जायेगा नहीं गाना। इस तरह से बिमल दा की एक पिक्चर, 'प्रेम पत्र' शायद, उसके गाने रेकॉर्ड हुए लेकिन HMV में गये ही नहीं। तो इस तरह जब हमने शुरू किया तो कुछ, अब मैं नाम नहीं लूँगी, पर कुछ म्युज़िक डिरेक्टर्स और कुछ सिंगर्स ऐसे थे, जिन्होंने आपस में यह तय किया कि ये सब पागलपन है, हमें कोई रॉयल्टी नहीं चाहिये, और उसमें रफ़ी साहब को भी उन लोगों ने खींचा। अच्छा रफ़ी साहब इतने सीधे थे, जो सामने वाला कहे वो मान जाते थे। तो एक दिन, मुकेश भ‍इया ने आकर मुझसे कहा कि लता, आज मीटिंग्‍ है, तो यह बात ज़रा क्लीयर कर लेना कि हमने सुना है कि दो तीन सिंगर्स हैं जिन्होंने HMV में अपने गाने देने के लिए हाँ किये हैं और रेकॉर्डिंग हुई है। तो मैंने वहाँ कहा कि मैंने ऐसा सुना है कि रेकॉर्डिंग हुई है तो रफ़ी साहब, आप क्या कहते हैं इस बारे में? तो रफ़ी साहब ने भी गाया था, तो वो ज़रा नाराज़ हो गये, बोले, "देखो भई, हमारा तो कुछ नहीं है, हम गाते हैं, प्रोड्युसर हमको पैसे देते हैं, बात खत्म"। मैंने कहा कि बात यहाँ खत्म नहीं होती है, हम लोगों के गाने की वजह से उनके गाने चलते हैं, तो हमें भी रॉयल्टी मिलनी चाहिये। तो मुकेश भ‍इया ने भी कहा कि लता बिल्कुल सही कह रही है, तलत साहब ने भी कहा, और मुबारक़ बेग़म थी, उन्होंने भी कहा। रफ़ी साहब को, हमारे एक सिंगर थे, उन्होंने जाकर कुछ कहा कि ये लता सब गड़बड़ कर रही है, हालाँकि मुझे रॉयल्टी मिल रही थी। मैंने कहा कि देखिये मुझे रॉयल्टी मिल रही है, फिर आप क्यों इस तरह सोचते हैं? तो मुकेश भ‍इया ने कहा कि रफ़ी साहब बोलिये क्या करना है? रफ़ी साहब बोले कि मैं क्या बोलूँ, ये महारानी बैठी हैं न, इनको पूछो? तो मैंने कहा कि आप मुझे महारानी क्यों कह रहे हैं? तो कहने लगे कि आप इस तरह से मेरे साथ बात करेंगे तो मैं गाऊँगा नहीं आपके साथ। मैंने कहा कि आप क्यों तक़लीफ़ कर रहे हैं, मैं ही नहीं गाऊँगी आपके साथ। और मैं वहाँ से चली आई, और मैंने सारे म्युज़िक डिरेक्टर्स को टेलीफ़ोन किया कि रफ़ी साहब के साथ डुएट हो तो आप मुझे नहीं बुलायेंगे, किसी और से ले लीजिये। तो इस तरह से तीन-साढ़े तीन साल तक हमारा गाना साथ में नहीं हुआ। जयकिशन जी एक दिन आकर बोले कि आप दोनो साथ में नहीं गायेंगे तो हम बना नहीं सकते गाना। हमें बड़ी तकलीफ़ होती है। तो इस तरह से सुलह हुई। तो मैंने उनसे लेटर लिखवा लिया था कि जो मैंने कहा वो ग़लत था। पर वहाँ से एक बात हुई कि रॉयल्टी का इश्यु ख़तम हो गया, और लोगों को रॉयल्टी नहीं मिली।"

शाहिद रफ़ी
उपर्युक्त साक्षात्कार में लता जी ने ज़िक्र किया कि उन्होंने रफ़ी साहब से लिखवा लिया था कि जो रफ़ी साहब ने कहा वह ग़लत था। इस साक्षात्कार के इस हिस्से की तरफ़ शायद किसी का ध्यान नहीं गया होगा, पर यही बात जब लता जी ने साल 2012 में एक साक्षात्कार में कही तो हंगामा ख़ड़ा हो गया। रफ़ी साहब के बेटे शाहिद रफ़ी ने जब यह इन्टरव्यू पढ़ा तो भड़क गये और प्रेस-कॉन्फ़्रेन्स बुलाकर कहा - "My father was national property. I am hurt and so are his fans. His fan following is much bigger than any other artist. If she can prove that my father had written an apology letter to her, then I am ready to apologise. But the main thing is that she should come forward and produce that letter. All I want is that the truth should come out." शाहिद रफ़ी ने कहा कि प्रेस कॉन्फ़्रेन्स बुलाने से पहले उन्होंने लता जी को फोन इसलिए नहीं किया क्योंकि वो हमेशा ही व्यस्त रहती हैं, पहले भी जब भी कभी उन्हें फ़ोन किया तो हर बार यही जवाब मिला कि वो व्यस्त हैं। जैसा कि लता जी ने बताया कि जयकिशन ने दोनों के बीच सुलह करवाई और रफ़ी साहब से लिखित माफ़ी मँगवाई, इस पर शाहिद रफ़ी ने कहा कि रफ़ी साहब ने ऐसा कोई भी ख़त नहीं लिखा था और न ही उन्होंने माफ़ी माँगी। बल्कि हक़ीक़त यह है कि लता जी ने ही जयकिशन को कहा कि वो जाकर उन दोनों के बीच सुलह करवाये क्योंकि लता जी को यह बात खाये जा रही थी कि सारे अच्छे डुएट गाने रफ़ी साहब सुमन कल्याणपुर के साथ गाते चले जा रहे हैं। सुमन कल्याणपुर को अपने रास्ते से हटवाने के लिए उन्होंने जयकिशन का सहारा लेकर रफ़ी साहब से सुलह करवा ली। शाहिद रफ़ी ने लता जी को चुनौती देकर कहा है कि अगर रफ़ी साहब ने ऐसी कोई चिट्ठी लिखी भी है तो वो गई कहाँ? या तो लता जी उस चिट्ठी को दुनिया को दिखाये, रफ़ी साहब के गुज़रे 25 साल हो चुके हैं और अब लता जी उस चिट्ठी के बारे में बता रही हैं। लोग मूल्यवान वस्तुओं को सालों तक सम्भाल कर रखते हैं और यह ख़त तो लता जी का सम्मान और बढ़ा सकती थी, तो लता जी ने इसे सम्भाल कर क्यों नहीं रखा? शाहिद रफ़ी ने प्रेस को बताया कि अगर लता जी ने 10-12 दिनों में कोई ठोस जवाब नहीं दिया तो उनके ख़िलाफ़ वो मानहानी का मुक़द्दमा कर देंगे। लेकिन इसके बाद क्या हुआ कुछ पता नहीं चल पाया। शाहिद रफ़ी से फ़ेसबुक पर एकाधिक बार सम्पर्क करने पर भी वो चुप्पी ही साधे रहे। बस यही थी लता-रफ़ी के झगड़े की दास्तान। आइए, फिल्म 'शागिर्द' का वही युगलगीत सुनते हैं।

फिल्म - शागिर्द : 'वो हैं जरा खफा खफा तो नैन यूँ चुराए हैं...' : लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी : संगीत - लक्ष्मीकान्त, प्यारेलाल : गीत - मजरूह सुल्तानपुरी 



अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें cine.paheli@yahoo.com के पते पर।


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 

Comments

Pankaj Mukesh said…
Kripaya isi tarah se LATA aur RAAJ KAPOOR ke masale par, jise LEGENDARY SINGER MUKESSH ne niptaya tha, bhi prakash dalne ki cheshtha karein, aur lata ji ka pahala kaun sa geet tha jo unhone RK films ke liye gaya, jhagada sulajhane ke baaad...
aabhaar
Sujoy Chatterjee said…
Pankaj ji,

is baare mein agar aapke paas jaankaari hai to soojoi_india@yahoo.co.in par likh bhejiye. aalekh hum tayyar kar lenge.

Regards
Sujoy

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