स्वरगोष्ठी – 179 में आज
वर्षा ऋतु के राग और रंग – 5 : राग देस मल्हार और जयन्त मल्हार
दो रागों के मेल से सृजित मल्हार अंग के दो राग
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राग देस, भारतीय संगीत का अत्यन्त मनोरम और प्रचलित राग है। प्रकृति का सजीव चित्र उपस्थित करने में यह पूर्ण सक्षम राग है। यदि इस राग में मल्हार अंग का मेल हो जाए तो फिर 'सोने पर सुहागा' हो जाता है। आज हम आपको राग देस मल्हार का संक्षिप्त परिचय देते हुए इस राग में निबद्ध एक रचना सरोद पर प्रस्तुत करेंगे, जिसे सुविख्यात वादक उस्ताद अली अकबर खाँ ने बजाया है। इसके अलावा इसी राग पर आधारित फिल्म ‘प्रेमपत्र’ का एक गीत लता मंगेशकर और तलत महमूद की आवाज़ में प्रस्तुत करेंगे। राग देस मल्हार के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह स्वतंत्र राग देस और मल्हार अंग के मेल से निर्मित राग है। राग देस अत्यन्त प्रचलित और सार्वकालिक होते हुए भी वर्षा ऋतु के परिवेश का चित्रण करने में समर्थ है। एक तो इस राग के स्वर संयोजन ऋतु के अनुकूल है, दूसरे इस राग में वर्षा ऋतु का चित्रण करने वाली रचनाएँ बहुत अधिक संख्या में मिलती हैं। राग देस औड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है, जिसमें कोमल निषाद के साथ सभी शुद्ध स्वरों का प्रयोग होता है। राग देस मल्हार में देस का प्रभाव अधिक होता है। दोनों का आरोह-अवरोह एक जैसा होता है। मल्हार अंग के चलन और म रे प, रे म, स रे स्वरों के अनेक विविधता के साथ किये जाने वाले प्रयोग से राग विशिष्ट हो जाता है। राग देस की तरह राग देस मल्हार में भी कोमल गान्धार का अल्प प्रयोग किया जाता है। राग का यह स्वरुप पावस के परिवेश को जीवन्त कर देता है। परिवेश की सार्थकता के साथ यह मानव के अन्तर्मन में मिलन की आतुरता को यह राग बढ़ा देता है।
अब हम आपको राग देस मल्हार सरोद पर सुनवाते हैं। इसे प्रस्तुत किया है, उस्ताद अली अकबर खाँ ने। मैहर घराने के उस्ताद अली अकबर खाँ का जन्म तो हुआ था त्रिपुरा में, किन्तु जब वे एक वर्ष के हुए तब बाबा अलाउद्दीन खाँ सपरिवार मैहर जाकर बस गए। उनके संगीत की पूरी शिक्षा-दीक्षा मैहर में ही हुई। बाबा के कठोर अनुशासन में ध्रुवपद, धमार, खयाल, तराना और अपने चाचा फकीर आफताब उद्दीन से अली अकबर को पखावज और तबला-वादन की शिक्षा मिली। नौ वर्ष की आयु में उन्होने सरोद वाद्य को अपना मुख्य लक्ष्य बनाया और साधनारत हो गए। एक दिन अली अकबर बिना किसी को कुछ बताए मुम्बई (तत्कालीन बम्बई) चले गए। बाबा से सरोद-वादन की ऐसी उच्चकोटि की शिक्षा उन्हें मिली थी कि एक दिन रेडियो से उनके सरोद-वादन का कार्यक्रम प्रसारित हुआ, जिसे मैहर के महाराजा ने सुना और उन्हें वापस मैहर बुलवा लिया। 1936 के प्रयाग संगीत सम्मेलन में अली अकबर खाँ ने भाग लिया। इस सम्मेलन में उनके द्वारा प्रस्तुत राग ‘गौरी मंजरी’ को विद्वानों ने खूब सराहा था। इसमें राग नट, मंजरी और गौरी का अनूठा मेल था। कुछ समय तक आप आकाशवाणी के लखनऊ केन्द्र पर भी कार्यरत रहे। इसके अलावा कई वर्षों तक महाराजा जोधपुर के दरबार में भी रहे। आज हमने आपको सुनवाने के लिए उस्ताद अली अकबर खाँ का सरोद पर बजाया राग देस मल्हार चुना है। इस राग में उन्होने आलाप, जोड़, झाला और मध्यलय सितारखानी ताल में एक मोहक रचना प्रस्तुत किया है। तबला संगति पण्डित शंकर घोष ने की है।
राग - देस मल्हार : सरोद पर आलाप, जोड़, झाला और सितारखानी ताल में रचना : उस्ताद अली अकबर खाँ
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राग – देस मल्हार : ‘सावन की रातों में ऐसा भी होता है...’ : लता मंगेशकर और तलत महमूद : संगीत - सलिल चौधरी : फिल्म – प्रेमपत्र
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आपको सुनवाने के लिए हमने राग जयन्त मल्हार की एक प्राचीन और मोहक बन्दिश का चयन किया है। अपने समय के बहुआयामी संगीतज्ञ पण्डित विनायक राव पटवर्धन ने इस रचना को स्वर दिया है। पण्डित विनायक राव पटवर्धन ने न केवल रागदारी संगीत के क्षेत्र में, बल्कि सवाक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर में अपनी संगीत रचनाओं का अनमोल योगदान किया था। लीजिए, राग जयन्त मल्हार की तीनताल में निबद्ध यह रचना आप भी सुनिए।
राग जयन्त अथवा जयन्ती मल्हार : ‘ऋतु आई सावन की...’ : पण्डित विनायक राव पटवर्धन
आज हम राग जयन्ती अथवा जयन्त मल्हार पर आधारित एक मोहक फिल्मी गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। यह गीत 1976 में प्रदर्शित फिल्म ‘शक’ से लिया गया है। विकास देसाई और अरुणा राजे द्वारा निर्देशित इस फिल्म के संगीत निर्देशक बसन्त देसाई थे। बसन्त देसाई ने मल्हार अंग के रागों पर आधारित सर्वाधिक गीतों की रचना की थी। मल्हार अंग के रागों के प्रति उनका लगाव इतना अधिक था कि इस श्रृंखला में बसन्त देसाई द्वारा संगीतबद्ध किया यह तीसरा गीत प्रस्तुत है। इस लघु श्रृंखला में आप फिल्म 'गुड्डी' से राग मियाँ की मल्हार पर आधारित गीत- 'बोले रे पपीहरा...' और राग सूर मल्हार पर आधारित 1967 की फिल्म 'रामराज्य' का गीत- 'डर लागे गरजे बदरवा...' सुनवा चुके हैं। ‘शक’ जिस दौर की फिल्म है, उस अवधि में बसन्त देसाई का रुझान फिल्म संगीत से हट कर शिक्षण संस्थाओं में संगीत के प्रचार-प्रसार के ओर अधिक हो गया था। फिल्म संगीत का मिजाज़ भी बदल गया था। परन्तु बसन्त देसाई ने बदले हुए दौर में भी अपने संगीत में रागों का आधार नहीं छोड़ा। फिल्म ‘शक’ उनकी अन्तिम फिल्म साबित हुई। फिल्म के प्रदर्शित होने से पहले एक लिफ्ट दुर्घटना में उनका असामयिक निधन हो गया। राग जयन्ती अथवा जयन्त मल्हार के स्वरों पर आधारित फिल्म ‘शक’ का जो गीत हम सुनवाने जा रहे हैं, उसके गीतकार हैं गुलज़ार और इस गीत को स्वर दिया है आशा भोसले ने। आइए सुनते हैं यह रसपूर्ण गीत। इसी गीत के साथ श्रृंखला के इस अंक को यहीं विराम देने की हमें अनुमति दीजिए।
राग जयन्त मल्हार : ‘मेहा बरसने लगा है आज...’ : आशा भोसले : संगीत – बसन्त देसाई : फिल्म – शक
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 179वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको कण्ठ संगीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 180वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 - कण्ठ संगीत की इस रचना का अंश सुन कर गायिका की आवाज़ को पहचानिए और हमे उनका नाम बताइए।
2 – यह भारतीय संगीत की कौन सी शैली है?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 181वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 177वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको सुप्रसिद्ध गायक पण्डित भीमसेन जोशी की आवाज़ में राग सूर मल्हार के खयाल का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- गायक पण्डित भीमसेन जोशी और पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- राग सूर मल्हार। इस अंक की पहेली के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी, हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी और पेंसिलवानिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों हम ऋतु के अनुकूल रागों अर्थात वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों पर चर्चा कर रहे हैं। अगले अंक में हम एक और वर्षाकालीन संगीत शैली पर आपसे चर्चा करेंगे। आप भी यदि भारतीय संगीत के किसी विषय में कोई जानकारी हमारे बीच बाँटना चाहें तो अपना आलेख अपने संक्षिप्त परिचय के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के ई-मेल पर भेज दें। अपने पाठको/श्रोताओं की प्रेषित सामग्री प्रकाशित/प्रसारित करने में हमें हर्ष होगा। आगामी श्रृंखलाओं के लिए आप अपनी पसन्द के कलासाधकों, रागों या रचनाओं की फरमाइश भी कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करेंगे। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-प्रेमियों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
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