Skip to main content

"हवा हवा ऐ हवा ख़ुशबू लुटा दे", क्या आपकी भी स्कूल-कालेज के दिनों की यादें जुड़ी हुई हैं इस गीत के साथ?


एक गीत सौ कहानियाँ - 39
 

‘हवा हवा ऐ हवा ख़ुशबू लुटा दे...





'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ - 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 39-वीं कड़ी में आज जानिये हसन जहाँगीर के गाये मशहूर गीत - "हवा हवा ऐ हवा ख़ुशबू लुटा दे..." के बारे में। 




1980 के दशक में जब फ़िल्म-संगीत का स्तर गिरने लगा, तब इसके साथ क़दम से क़दम मिला कर संगीत की दो अन्य धाराएँ भी बहने लगी। ये धाराएँ थीं ग़ज़लों की और पॉप गीतों की। जहाँ एक तरफ़ ग़ुलाम अली, जगजीत सिंह, चन्दन दास, पंकज उधास, पिनाज़ मसानी, हरिहरन् आदि ने ग़ज़लों को क्लास से मास तक पहुँचाया, वहीं दूसरी तरफ़ नाज़िया हसन, पार्वती ख़ान, अलिशा चिनॉय, बिद्दू, बाबा सहगल, उषा उथुप जैसे गायक-गायिकाओं ने पॉप-संगीत जगत में हंगामा पैदा कर दिया। इसी कड़ी में साल 1987 में सर्वाधिक लोकप्रिय और हंगामाख़ेज़ जो पॉप गीत आया, वह था हसन जहाँगीर का "हवा-हवा"। यह गीत न केवल गली-गली गूँजा बल्कि इसके ऑडियो कैसेट्स की भारत में 1.5 करोड़ प्रतियाँ बिकी। इस गीत ने हसन जहाँगीर को, जो 80 के दशक के शुरुआती सालों से एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के हिट गीत के लिए कोशिशें कर रहे थे, रातों रात दक्षिण एशिया के देशों में पॉप स्टार बना दिया। हसन जहाँगीर को पाकिस्तान में पॉप संगीत का जनक भी कहा जाता है; उनका पहला एकल ऐल्बम 1982 में आया था जिसका शीर्षक था "Imran Khan is a Superman"। "हटो बचो", "शादी ना करना यारों" और "आ जाना दिल है दीवाना" हसन जहाँगीर के कुछ और लोकप्रिय गीत रहे हैं।

कूरोश याघमाई
"हवा हवा ऐ हवा ख़ुशबू लुटा दे...", यह हसन जहाँगीर का प्राइवेट ऐल्बम का गीत था, और इस गीत को लिखा और कम्पोज़ भी उन्होंने ही किया (कम से कम कैसेट कवर में किसी और को क्रेडिट नहीं दिया गया है)। कहा जाता है कि रीमिक्स का दौर होने के बावजूद उस ज़माने में हसन जहाँगीर ने किसी भी रीमिक्स कम्पनी को इस गीत या ऐल्बम के रीमिक्स वर्ज़न जारी करने की अनुमति नहीं दी। इस तरह से इस गीत पर हसन जहाँगीर ने अपना एकाधिपत्य बनाये रखते हुए करोड़ों का मुनाफ़ा कमाया। यह गीत 1987-88 के दौरान जैसे एक ऐन्थेम बन गया था। स्कूल-कालेजों के फ़ेअरवेल फ़ंक्शन हो या घर-परिवार की पार्टियाँ, गली-मोहल्लों, दुकानों, हर जगह से सुनाई पड़ती थी "हवा-हवा"। लेकिन रोचक या यूँ कहें कि चौकाने वाली बात यह है कि जिस "हवा हवा" ने हसन जहाँगीर को शोहरत की बुलन्दी तक पहुँचाया, और जिस "हवा-हवा" ने रातों-रात अपनी कामयाबी का झण्डा चारों तरफ़ फ़हराया, वह दरअसल हसन जहाँगीर का अपना ख़ुद का कम्पोज़िशन नहीं था। क्योंकि प्राइवेट ऐल्बमों पर गीतकार या संगीतकार का नाम नहीं लिखा जाता था और जिस कलाकार का वह प्राइवेट ऐल्बम हो, जिसने उस पर पैसे खर्च किये हो, सिर्फ़ उसी का नाम प्राइवेट ऐल्बमों पर अक्सर देखा गया है। इस वजह से किसी ने इस तरफ़ शुरू-शुरू में ध्यान ही नहीं दिया कि "हवा-हवा" की धुन ऑरिजिनल नहीं है, बल्कि यह एक इरानी गीत की धुन है। "हवा हवा" की धुन इरानी गायक / संगीतकार कूरोश याघमाई की एक रचना है जिसके बोल हैं "हवार हवार" जो 'अरायाशे खोरशीद' ऐल्बम का एक गीत है और यह ऐल्बम साल 1980 में जारी हुआ था। मात्र 10 वर्ष की आयु में कूरोश को मिला था उनका पहला वाद्य सन्तूर, जिस पर वो इरानी लोक धुनें बजाया करते थे। आगे चलकर उन्होंने गिटार को अपना साथी बना लिया और अपने ग्रुप की स्थापना की जिसके वो लीड गिटारिस्ट व गायक बने। 1974 में उनका पहला ऐल्बम आया 'गोल-ए-यख'। साल 2011 तक वो सक्रिय रहे।

"हवा-हवा" का जादू उस ज़माने में कुछ इस क़दर छाया हुआ था कि केवल आम ही नहीं बल्कि ख़ास भी इससे बच नहीं सके। हुआ यूँ कि 1988 में सुरेश सिन्हा की फ़िल्म 'बिल्लू बादशाह' बन रही थी। फ़िल्म में थे शत्रुघन सिन्हा, अनीता राज, गोविन्दा और नीलम प्रमुख। उस समय "हवा-हवा" हर किसी की ज़ुबान पर चढा हुआ था और गोविन्दा भी उन्हीं में से एक थे। तो एक बार फ़िल्म के सेट पर गोविन्दा इस गीत को गा रहे थे और उन्हें गाते हुए सुन लिया फ़िल्म के निर्देशक शिशिर मिश्र ने। उनको एक विचार आया कि क्यों न इसी धुन पर गोविन्दा से ही एक गीत गवाया जाये और इसे फ़िल्म के किसी सिचुएशन में डाल कर कहानी का हिस्सा बना लिया जाये! सभी को यह प्रस्ताव अच्छा लगा। गोविन्दा शुरू-शुरू में गीत गाने से हिचकिचा रहे थे पर फ़िल्म के संगीतकार जगजीत सिंह के सलाह पर गाने के लिए तैयार हो गये। सभी को पता था कि इस धुन के इस्तेमाल से हसन जहाँगीर कोई कानूनी कार्यवाई नहीं कर पायेंगे क्योंकि मूल धुन उनका भी नहीं है, इसलिए गीतकार निदा फ़ाज़ली से केवल बोल नये से लिखवा लिये गये और धुन बिल्कुल वही रखा गया।

इस तरह से हसन जहाँगीर का गाया "हवा-हवा ऐ हवा ख़ुशबू लुटा दे..." बन गया गोविन्दा का गाया "जवाँ जवाँ हो जवाँ इश्क़ जवाँ है..."। यह गीत भी ख़ूब चला, पर "हवा-हवा" जैसा नहीं। गोविन्दा के गाये गीत को सुन कर संगीतकार बप्पी लाहिड़ी (जो दूसरों की धुनों से प्रेरित होने के लिए मशहूर रहे हैं) ने भी सोचा कि क्यों न बहती गंगा में हाथ धो लिया जाये! अर्थात जब 1989 की फ़िल्म 'आग का गोला' में एक आइटम नम्बर बनाने की बारी आयी तो बप्पी दा ने भी इसी धुन को अपनाते हुए अलका याज्ञनिक के साथ स्वर मिलाते हुए गाया "आया आया वो आया, यार मेरा आया रे..."। गीत फ़िल्माया गया सनी देओल और अर्चना पूरन सिंह पर। दरसल यह धुन इतना कैची है कि हर बार यह धुन कमाल कर जाता है। "हवा-हवा" हो या "जवाँ-जवाँ" या फिर "आया आया", इन तीनों गीतों को जनता ने स्वीकारा। यही नहीं "हवा हवा" गीत को 1988 की विडियो फ़िल्म 'डॉन 2' में भी शामिल किया गया था जो अभिनेता जीत उपेन्द्र पर फ़िल्माया गया था।

हसन और हृदय
"हवा हवा" बनने के लगभग 22 साल बाद, साल 2009 में 'हरि ओम साईं प्रोडक्शन्स' के मैनेजिंग डिरेक्टर मंगेश डफाले ने मीडिया को बताया कि उनकी अगली फ़िल्म 'आप के लिए हम' में हसन जहाँगीर के गाये "हवा-हवा" को रखने का प्रस्ताव हसन साहब को दिया गया है और वो उनकी आवाज़ में इसे दोबारा फ़िल्म के लिए रेकॉर्ड करना चाहते हैं। हसन जहाँगीर इस प्रस्ताव से बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने न केवल अनुमति दी बल्कि अपनी आवाज़ में इसे दोबारा रेकॉर्ड भी करवाया। जया बच्चन, मिथुन चक्रवर्ती, मनीषा कोइराला, रवीना टण्डन अभिनीत यह फ़िल्म 2013 में रिलीज़ तो हुई पर बुरी तरह से पिट गई और इस गीत की तरफ़ भी किसी का ध्यान नहीं गया। 'आप के लिए हम' फ़िल्म के बनने में इतना समय लग गया कि मौके का फ़ायदा उठाते हुए फ़िल्मकार हृदय शेट्टी ने अपनी फ़िल्म 'चालीस चौरासी' में भी इस गीत को रखने का फ़ैसला किया। हृदय शेट्टी के अनुसार - "इस फ़िल्म के संगीत की योजना बनाते समय मैं एक ऐसा पुराना गीत चाहता था जो कि सभी चार अभिनेता - नसीरुद्दीन शाह, अतुल कुलकर्णी, के के मेनन और रवि किशन पर फ़िल्माया जा सके। मैं अपने पसन्दीदा संगीतकार आर. डी. बर्मन के किसी गीत को लेने के बजाय "हवा हवा" को ही चुना। जब मैंने हसन जहाँगीर को इन्टरनेट पर ढूँढने की कोशिशें की तो कुछ जगहों पर यह लिखा हुआ था कि उनका अल्पायु में निधन हो चुका है। मैं हताश हो गया; पर जब मैंने अपने पाक़िस्तानी और दुबई के दोस्तों को फ़ोन लगाया तो हक़ीक़त पता चली और हसन साहब से भी सम्पर्क स्थापित हो गया।" हृदय ने फिर फ़िल्म की कहानी हसन को सुनाई और यह भी बताया कि यह गीत फ़िल्म के सभी अभिनेताओं पर एक रीमिक्स गीत के रूप में एक डान्स पार्टी में फ़िल्माया जायेगा। यह सुन कर हसन जहाँगीर बहुत ख़ुश हुए और तुरन्त गीत के अधिकार उन्हे दे दिये। साथ ही अपनी आवाज़ में भी इस गीत को फिर एक बार गाने का ऑफ़र भी दे दिया। यही कारण है कि "हवा हवा" गीत 'चालीस चौरासी' के म्युज़िक ऐल्बम में दो बार शामिल किया गया है, एक बार नीरज श्रीधर और अमिताभ नारायण की आवाज़ों में, और दूसरी बार हसन जहाँगीर की आवाज़ में। अभिनेता अतुल कुलकर्णी के कहा, "मैं भूल नहीं सकता कि यह गीत उस ज़माने में किस हद तक पॉपुलर हुआ था। मैं उस वक़्त 20 साल का था, और आज मेरे उपर यह गीत फ़िल्माया जा रहा है सोच कर एक अजीब सा रोमांच हो रहा है।" 'चालीस चौरासी' में "हवा हवा" के प्रस्ताव पर हसन जहाँगीर का कहना था, "हृदय शेट्टी के ज़रिये हवा-हवा के साथ मैं बॉलीवुड में दोबारा एन्ट्री करने जा रहा हूँ। उनके साथ काम करते हुए मुझे बहुत अच्छा लगा और उनके काम से मैं बहुत मुतासिर भी हुआ। उनकी क्रिएटिविटी ही उनकी ताक़त है। मुझे फ़िल्म की कहानी अच्छी लगी जिस वजह से मैं अपने इस गीत के अधिकार उन्हे सौंपे और मुझे इस फ़िल्म के लिए इस गीत को एक बार फिर से रेकॉर्ड करते हुए बहुत अच्छा लगा।"

"हवा-हवा" के इतने ज़्यादा लोकप्रिय होने पर भी हसन जहाँगीर को बॉलीवुड फ़िल्मों में गाने के मौके क्यों नहीं मिले यह कह पाना मुश्किल है। पर सम्भव है कि भारत-पाक़िस्तान मसले की वजह से वो आसानी से भारत आ पाने में असमर्थ रहे होंगे। उपलब्ध जानकारियों के अनुसार हसन जहाँगीर ने केवल एक हिन्दी फ़िल्म में गीत गाया है। यह है फ़िल्म 1990 की 'सोलह सत्रह', जिसमें संगीतकार नदीम श्रवण ने हसन जहाँगीर से गवाया था एक गीत "अपन का तो दिल है आवारा, उसे प्यार करे जो लगे प्यारा", जो अभिनेता अरबाज़ पर फ़िल्माया गया था। फ़िल्म के फ़्लॉप होने की वजह से इस गीत की तरफ़ भी किसी का ज़्यादा ध्यान नहीं गया, पर उस ज़माने में यह गीत रेडियो पर कुछ समय तक ज़रूर बजा करता रहा। यह सच है कि हसन जहाँगीर ने फ़िल्मों के लिए ज़्यादा नहीं गाये पर बस एक "हवा-हवा" गीत अन्य हज़ार गीतों पर भारी पड़ता है। इस गीत के साथ हम सब की जवानी के दिनों की यादें जुड़ी हुई हैं, शायद यह भी एक कारण है इस गीत को दिल के करीब महसूस करने का। आपका क्या ख़याल है? लीजिए, चलते-चलते अब आप भी यह गीत सुन लीजिए।

ऐल्बम गीत : "हवा हवा ऐ हवा ख़ुशबू लुटा दे..." : हसन जहाँगीर 





अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तम्भ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें cine.paheli@yahoo.com के पते पर।



खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 

Comments

Smart Indian said…
वही हवा, वही सुगंध,वही आज़ादी, वही बेफिक्री, यादें ताज़ा हो गईं। आभार!
Pankaj Mukesh said…
lajawaab prastuti. sach mein yadein taza ho gain...us waqt main class 1st mein tha, pahali baar admission huwa, school gaya.. school jate samay raste mein bahut se cassate recording shop wale e gana khoob bajattey they, mujhe bhi achha lagata tha, magar main bahut chhota bachha tha to koi apni pratikriya nahin karta tha..
original recordding ke sath krambadha geeton ke kuchh link-
https://www.youtube.com/watch?v=HNFhUXGX718

https://www.youtube.com/watch?v=psYgmvgTJuw

https://www.youtube.com/watch?v=3TPhnVJB_TE

https://www.youtube.com/watch?v=Si17_7q9Be0

https://www.youtube.com/watch?v=q6cjZtePTVY#t=27

https://www.youtube.com/watch?v=rFi8p8CLyUc

https://www.youtube.com/watch?v=wI32H6Yww-k
Sajeev said…
thank u sujoy ye batane ke liye ki ye geet bhi copy tha, is baahne original dhoondha aur waah kya baat hai original kii jaroor dekho ise

https://www.youtube.com/watch?v=Zt5v5wZXHxM

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की