'सिने पहेली 'पुरस्कार वितरण सभा
'सिने पहेली' के सभी चाहनेवालों को सुजॉय चटर्जी का एक बार फिर से प्यार भरा नमस्कार। जैसा कि आप जानते हैं कि 'सिने पहेली' के महामुकाबले के अनुसार श्री प्रकाश गोविन्द और श्री विजय कुमार व्यास इस प्रतियोगिता के संयुक्त महाविजेता बने हैं, और साथ ही श्री पंकज मुकेश, श्री चन्द्रकान्त दीक्षित और श्रीमती क्षिति तिवारी सांत्वना पुरस्कार के हक़दार बने हैं। आज के इस विशेषांक के माध्यम से आइये इन सभी विजेताओं को इनके द्वारा अर्जित पुरस्कारों से सम्मानित करें। यह है 'सिने पहेली' प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण अंक।
'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की तरफ़ से महाविजेता को मिलता है 5000 रुपये का नकद इनाम। क्योंकि प्रकाश जी और विजय जी संयुक्त महाविजेता बने हैं, अत: यह राशि आप दोनों में समान रूप से विभाजित की जाती है।
श्री प्रकाश गोविन्द को 2500 रुपये की पुरस्कार राशि बहुत बहुत मुबारक़ हो! आपके बैंक खाते पर यह राशि ट्रान्सफ़र कर दी गई है।
रेडियो प्लेबैक इंडिया : प्रकाश जी, इस पुरस्कार को स्वीकार करते हुए आप अपने बारे में और 'सिने पहेली' के साथ आपके सफ़र के बारे में कुछ कहना चाहेंगे?
प्रकाश गोविन्द : जी ज़रूर कहना चाहूँगा। जहाँ तक अपनी बात है, 1992 में 'स्वतंत्र भारत' समाचार पत्र से बतौर संवाद सूत्र के रूप में शुरुआत, तत्पश्चात 'अमर उजाला' समाचार पत्र में संवाददाता, उसके बाद 'राष्ट्रीय सहारा दैनिक' से जुड़ा, आखिर में 'समाचार भारती' में उप-सम्पादक के रूप में कार्य किया। साथ ही जमकर स्वतंत्र लेखन भी। कई फीचर एजेंसियों के लिए नियमित लेखन। देश की अधिकाँश पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुईं। कुछ वर्षों से ब्लॉग लेखन में भी सक्रिय रहा हूँ। वर्तमान में स्वयं का व्यवसाय एवं साथ ही एक NGO चला रहा हूँ। रूचियों में शामिल हैं अध्ययन, क्विज़, शतरंज, पेंटिंग, पर्यटन, गायन, और क्लासिक सिनेमा।
'सिने पहेली' के साथ मेरा जुड़ाव बहुत ही अच्छा रहा। 100 सप्ताह कोई छोटा समय नहीं होता, बल्कि बहुत ही लम्बा समय था। मैं अपने आप को भाग्यशाली समझता हूँ कि शुरु से लेकर अन्त तक मैं इससे जुड़ा रह सका। 'सिने पहेली' सुलझाते हुए बहुत मज़ा आया। It was full of fun and excitement. और पूरे सीरीज़ में आपने पहेलियों के स्तर को कायम रखा। हालाँकि मैं एक सिनेमा-प्रेमी हूँ और इससे जुड़ी बहुत सी बातों का ज्ञान है मुझे, पर 'सिने पहेली' में पूछे गये सभी सवालों के जवाब मुझे मालूम नहीं थे। सवालों के जवाब ढूंढने के लिए मुझे सिनेमा और संगीत की कुछ किताबें भी खरीदनी पड़ी (जो इस इनाम राशि से ज़्यादा हैं)। पर मुझे इसका कोई अफ़सोस नहीं है क्योंकि इन किताबों के माध्यम से बहुत सी नई जानकारियाँ मिलीं। सुजॉय जी ने बहुत मेहनत की है, और हर एपिसोड में कुछ नया कर दिखाया है। Hats off to him!"
रेडियो प्लेबैक इंडिया : बहुत बहुत धन्यवाद प्रकाश जी, और एक बार फिर से आपको बधाई!
और अब हम आमन्त्रित करते हैं दूसरे सह-महाविजेता विजय कुमार व्यास जी को। विजय जी, आप यह पुरस्कार स्वीकार करें! आपके बैंक खाते पर यह राशि ट्रान्सफ़र कर दी गई है।
रेडियो प्लेबैक इंडिया : आप से भी हम जानना चाहेंगे आपके बारे में और 'सिने पहेली' के बारे में आपकी प्रतिक्रिया भी जानना चाहते हैं।
विजय कुमार व्यास : पहेलियॉं खेलने में रूचि और उत्साह बचपन से ही रहा। स्कूल-कॉलेज के दिनों में खूब क्विज खेले परन्तु पत्र पत्रिकाओं में किस तरह भाग लिया जाता है, उस समय पता नहीं था। 1995 से पत्र पत्रिकाओं व समाचार पत्रों की पहेलियॉं खेलनी प्रारम्भ की। 'राष्ट्रदूत साप्ताहिक' पत्रिका में जब प्रथम पुरस्कार 25 रूपये हुआ करता था, तब मैंने अपनी पहली प्रतियोगिता जीती जो कि एक चित्र शीर्षक प्रतियोगिता थी। उसके बाद अब तक विभिन्न पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, टीवी क्विज, ऑनलाईन क्विज व अन्य मिलाकर लगभग 175 से अधिक बार प्रतियोगिताऍं जीत चुका हूँ एवं कुछ पत्रिकाओं में लघु आर्टिकल भी छपें हैं। मेरे परिवार के सभी लोग फिल्मों में रूचि रखतें हैं क्योंकि दादाजी फिल्म एवं गीत-संगीत प्रेमी थे। वे रेडियो में गाने सुन सुनकर लिखा करते थे। पिताजी भी 'बिनाका गीतमाला' का रजिस्टर बनाकर रखते थे। हालांकि अब मेरे दादाजी व पिताजी इस दुनिया में नहीं परन्तु मेरे संयुक्त परिवार में मेरे तीन चाचाजी एवं मेरे परिवार सहित हम कुल 21 सदस्य हैं।
बहरहाल, स्वयं के बारे में यही बताना चाहूँगा कि कॉलेज टॉप के साथ मास्टर ऑफ कॉमर्स की डिग्री प्राप्त करने के बाद मेरा चयन राजस्थान लोक सेवा आयोग के माध्यम से 18 वर्ष पूर्व राजकीय सेवा में हुआ। हालांकि कम्प्यूटर में मैंने कोई डिग्री हासिल नहीं की परन्तु मैंने इसे 1996 से ही अपना लिया और घर पर ही कम्प्यूटर सीखा। राजकीय सेवा के साथ-साथ पुस्तकें पढने, पहेलियॉं खेलने एवं कम्प्यूटर उपयोग मेरी दैनिक दिनचर्या में शामिल है। फिलहाल लगभग सभी विषयों की पुस्तकें घर पर लाता हूँ जिनमें मुख्यत: सिने ब्लिट्ज, स्टारडस्ट, फिल्म फेयर, यैस ओशो, कल्याण, क्रिकेट सम्राट, बालहंस, छोटूमोटू, अहा जिन्दगी, सुमन सौरभ, सरस सलिल, हंस, बिन्दिया, गृहशोभा इत्यादि है। अब तक लगभग सभी पत्रिकाओं की क्विज खेली और कईं बार विजेता रहा। इसके अतिरिक्त दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, दैनिक नवज्योति, हिन्दुस्तान, द टाईम्स ऑफ इण्डिया एवं राष्ट्रदूत समाचार पत्रों के कईं क्विज/कॉन्टेस्ट में प्रथम स्थान प्राप्त किया। ऑनलाईन प्रतियोगिताओं में दैनिक भास्कर की WHO SAID IT, सबसे बडा मैच फिक्सर, Know & Go Contest तथा फोटो कॉन्टेस्ट जीता एवं सिम्पली जयपुर पत्रिका में भी फोटो कॉन्टेस्ट एवं मासिक पत्रिका 'फुल टेंशन' में भी कईं बार विजेता रहा।
रेडियोप्लेबैक के साथ यह ऑनलाईन सिने पहेली खेलना एक अद्भुत संस्मरण बन गया है। फेसबुक के माध्यम से इस लिंक पर पहुँचा और पहेली खेलना प्रारम्भ किया तो मात्र अपना फिल्मी ज्ञान जॉंचनें के लिए। प्रतियोगिता के तीसरे सेगमेंट के बीच से हिस्सा लेने के बावजूद सिने पहेली के नियम देखकर लगा कि यदि मेहनत की जाए तो इसमें आगे की पायदान पर पहुँचा जा सकता है। फिर क्या, प्रति सप्ताह अवकाश के दिन पहेली को परिजनों के साथ बैठकर हल करता। कभी किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता तो अपने फिल्म प्रेमी मित्रों से मदद लेता। इस सफर में बहुत से नए दोस्त बने। ऑनलाईन नहीं बल्कि ऑफलाईन अर्थात अपने बीकानेर के ही, क्योंकि पहेलियों के उत्तर के लिए कई बार खूब घूमना पडता और इसी दौरान हर सप्ताह पता चलता रहा कि बीकानेर जैसे छोटे शहर में बहुत सारे फिल्म प्रेमी मौजूद है जिन्हें बहुत सी बातें बिना किसी इन्टरनेट या ऑंकडों के मुँह जुबानी याद है। पिछले कुछ महीनों से तो जो भी मिलता, वह पूछता '''कैसी चल रही है पहेली, कहॉं तक पहुँचे'' आदि।
हॉं, एक बात और कि सिने पहेली का प्रारम्भ से जॉंच किया तो पता चला कि लगभग सभी प्रतियोगियों ने सिने पहेली प्रारम्भ करने के बाद कोई ना कोई ऐपिसोड मिस किया है परन्तु मैंने जिस सैगमेन्ट से खेलना प्रारम्भ किया, उसके बाद बिना किसी ऐपिसोड मिस किये लगातार फाईनल तक अनवरत खेला। यहॉं तक कि मेरे साथ संयुक्त विजेता रहे प्रकाश जी ने भी एक पूरा सेगमेण्ट नहीं खेला। हालांकि प्रकाश जी ने जब खेलना छोडा तो पहेली का मजा कम होने लगा था परन्तु अप्रेल, 2013 से वे वापस आए और तब मेरे लिये यह एक चैलेन्ज जैसा हो गया। इस पहेली में मेरे द्वारा भाग नहीं लेने तक प्रकाश जी तीन सेगमेण्ट में प्रथम स्थान प्राप्त कर चुके थे परन्तु मेरे आने के बाद मैंनें 7 में से 5 सेगमेण्ट में प्रथम स्थान प्राप्त किया और यह मेरे लिए बहुत बडी उपलब्धि रही क्योंकि प्रकाश जी जैसे धुरन्धर खिलाडी की चुनौती को मैंनें सहर्ष स्वीकार करते हुए अपना शत प्रतिशत देने की कोशिश की और आप सभी की शुभकामनाओं से इस ऑनलाईन पहेली में उनके साथ संयुक्त विजेता बना।
सुजॉय जी के बारे में तो क्या कहना। जब भी पहेली आती और सबके सामने रखता तो सर्वप्रथम यही बात आती कि वाह ! पहेली बनाने वाले ने कितना दिमाग लगाया है और क्या क्या आईडिया, कहॉं कहॉं से लाते हैं। वाकई, सुजॉय जी की सभी पहेलियॉं रचनात्मक और दिलचस्प रही। आपके लिए तो बस यही कहूँगा कि सेगमेंट/महामुकाबला जीतने में बहुत पसीना आया । बडे ही रोचक प्रश्न बनाते हैं आप। मेरे हिसाब से प्रतियोगियों को जितनी मेहनत प्रश्न के हल के लिए करनी पडी उससे कहीं अधिक मेहनत आपको प्रश्न बनाने में करनी पडी होगी।
इसके अतिरिक्त रेडियोप्लेबैक के सभी संचालकों का हार्दिक आभार जिन्होनें समय समय पर सभी प्रतियोगियों की काफी हौसलाअफजाई की और 100 सप्ताह से भी अधिक समय तक सफल आयोजन करने के साथ साथ प्रतियोगियों में समन्वय बनाकर इसे अविस्मरणीय बना दिया । पहेली के अन्य सभी साथी प्रतियोगियों का भी बहुत बहुत धन्यवाद जिनके कारण पहेली में रोचकता बनी रही, विशेषकर पंकज जी, क्षिति जी एवं चन्द्रकान्त जी का आभार और सांत्वना पुरस्कार जीतने पर बधाई । प्रकाश जी को संयुक्त विजेता बनने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऍं। आशा है शीघ्र ही किसी मोड पर फिर मुलाकात होगी।
रेडियो प्लेबैक इंडिया : विजय जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका इन विचारों के लिए और एक बार फिर से आपको बधाई!
और अब श्री पंकज मुकेश, श्री चन्द्रकान्त दीक्षित और श्रीमती क्षिति तिवारी को हम प्रदान करना चाहेंगे पुरस्कार स्वरूप यह पुस्तक-
यह पुरस्कार आपके डाक के पते पर भेज दिया जायेगा। अप्रैल माह के अन्त तक आपको यह पुस्तक प्राप्त होगी।
तो यह था 'सिने पहेली' प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण समारोह। आशा है आप सब को अच्छा लगा होगा। विजेताओं को एक बार फिर से बधाई देते हुए यह अंक यहीं समाप्त करते हैं, नमस्कार।
प्रस्तुति: सुजॉय चटर्जी
Comments
-AABHAAR redioplayback india team ka!!!!
दोनों के श्रीमुख से जो विवरण जाना, तो लगा कि इतने धुरंधर और लगन के पक्के प्रतियोगियों (जो कि काफ़ी सिद्ध भी हैं फिल्मों और संगीत के ज्ञान में) को तो अव्वल आना ही था.
प्रेरणा मिली है कि चाहे जो हो, जूनून और दिलचस्पी अगर बरक़रार हो तो सफ़र ज़रूर पूरा होता है.
इंतज़ार..सुदीप जी की इस ग़ज़ब की सिने पहेली के द्वितीय सीज़न का...
आभार सम्पूर्ण रेडियो प्लेबैक इण्डिया टीम का!