Skip to main content

जारी है जंग 'सिने पहेली' का, बढ़ते जा रहे हैं क्लाइमैक्स की ओर

सिने पहेली –96




'सिने पहेली' के सभी चाहनेवालों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, सप्ताह भर अत्यन्त व्यस्त रहने की वजह से आज, 11 जनवरी शनिवार, सुबह 5 बजे उठ कर ठिठुरती ठंड में रजाई ओढ़ कर 'सिने पहेली' बना रहा हूँ, और वह भी पूरे मज़े लेते हुए। और मज़ा क्यों न आए, जब आप प्रतियोगी इतने चाव से इसमें भाग लेते हैं, जिस नियमितता से पहेलियों को सुलझाते चले आते रहे हैं, ऐसे में जब कभी भी 'सिने पहेली' का अंक पोस्ट नहीं हो पाता है, हमें भी बड़ा अफ़सोस होता है। हर सप्ताह एक नई तरह की पहेली तैयार करने की उम्मीद लिए जब लैपटॉप पर बैठता हूँ तो कुछ न कुछ नया दिमाग़ में आ ही जाता है। आज भी एक नई पहेली के साथ हाज़िर हूँ। जनवरी के इस शीत लहर का आनन्द लेते हुए आप इस पहेली को सुलझाने में जुट जाइए, all the best!



आज की पहेली : गान पहचान

आज की पहेली में आपको एक गीत पहचानना है। यह किशोर कुमार का गाया हुआ एकल गीत है। इसके मुखड़े में कई शब्द ऐसे हैं जो फ़िल्मों के भी शीर्षक हैं। ऐसे 10 शब्दों के सूत्र (क्रमानुसार नहीं) हम नीचे लिख रहे हैं। इन सूत्रों से जब आप इन 10 शब्दों को भांप लेंगे तो किशोर दा के गाये उस गीत का अनुमान लगाना बेहद आसान हो जायेगा। तो ये रहे उन 10 शब्दों के लिए सूत्र। हर शब्द का सही अनुमान लगाने पर आपको 1 अंक मिलेंगे, कुल 10 अंकों की है आज की पहेली।

1. इस शीर्षक से कम से कम दो फ़िल्में बनी हैं - एक में रेखा है तो दूसरे में उर्मिला।

2. इस शीर्षक से 60 के दशक में जो हिन्दी फ़िल्म बनी है उसके संगीतकार हैं मदन मोहन। इसी शीर्षक से साल 1975 में एक इरानी फ़िल्म भी बनी है जिसके निर्देशक थे मसूद किमियाई।

3. इस शीर्षक से भी कम से कम दो फ़िल्में बनी हैं - एक के संगीतकार हैं मन्ना डे तो दूसरे के शंकर जयकिशन। इस शब्द के सामने अगर एक prefix लगा दिया जाये तो एक और फ़िल्म शीर्षक बनता है जिस फ़िल्म में यशुदास का गाया बड़ा ही ख़ूबसूरत गीत है रवीन्द्र जैन के संगीत में।

4. इस शब्द से पहले "एक" लगाने पर ही फ़िल्म शीर्षक बनता है, और इस फ़िल्म में प्रदीप कुमार व माला सिन्हा हैं।

5. इस शीर्षक से आमिर ख़ान - माधुरी दीक्षित अभिनीत फ़िल्म है जिसके गीतों में आवाज़ें अनुराधा पौडवाल, साधना सरगम, उदित नारायण और सुरेश वाडकर की हैं।

6. इस शीर्षक से कई फ़िल्में बनी हैं - साल 1940, 1964, 1976. 1964 वाली फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं राजेन्द्र कुमार और वैजनतीमाला।

7. इस शीर्षक से बनी फ़िल्म की कहानी देवर-भाभी के रिश्ते पर आधारित है। फ़िल्म में लता मंगेशकर का गाया "भोर" का एक सुन्दर गीत है।

8. इस शीर्षक से बनी फ़िल्म में रवि का संगीत था। इसके गीत बेहद मशहूर हुए जिसमें आशा भोसले का गाया एक राखी गीत और एक भक्ति गीत शामिल हैं।

9. इस शीर्षक से भी कम से कम दो फ़िल्में तो बनी ही हैं। एक में किशोर कुमार का गाया हुआ एक गीत है जिसमें रस्ते की बात हो रही है। दूसरी फ़िल्म में अक्षय कुमार व शिल्पा शेट्टी हैं।

10. इस शीर्षक से आप सचिन देव बर्मन और उषा खन्ना को जोड़ सकते हैं। यानी कि इस शीर्षक से भी दो फ़िल्में बनी हैं इन दो संगीतकारों के साथ।


अपने जवाब आप हमें cine.paheli@yahoo.com पर 16 जनवरी शाम 5 बजे तक ज़रूर भेज दीजिये।


पिछली पहेली का हल


1. चश्मे बद्दूर

2. कथा



पिछली पहेली के विजेता


पिछली पहेली के जवाब में हमारे चार प्रतियोगियों के साथ-साथ बहुत दिनों बाद जबलपुर की क्षिति तिवारी जी और पटना के राजेश प्रिया जी ने भी भाग लिया। और सभी खिलाड़ियों ने फ़ारूख़ शेख अभिनीत दोनों फ़िल्मों को सही-सही पहचाना, यानी सभी खिलाड़ियों को मिलते हैं 100% अंक। सबसे पहली जवाब भेज कर इस बार 'सरताज प्रतियोगी' बने हैं लखनऊ के श्री प्रकाश गोविन्द। बहुत बहुत बधाई आपको प्रकाश जी!
और अब इस सेगमेण्ट के सम्मिलित स्कोर कार्ड पर एक नज़र...







और अब महाविजेता स्कोर-कार्ड पर भी एक नज़र डाल लेते हैं।





इस सेगमेण्ट की समाप्ति पर जिन पाँच प्रतियोगियों के 'महाविजेता स्कोर कार्ड' पर सबसे ज़्यादा अंक होंगे, वो ही पाँच खिलाड़ी केवल खेलेंगे 'सिने पहेली' का महामुकाबला और इसी महामुकाबले से निर्धारित होगा 'सिने पहेली महाविजेता'। 


एक ज़रूरी सूचना:


'महाविजेता स्कोर कार्ड' में नाम दर्ज होने वाले खिलाड़ियों में से कौछ खिलाड़ी ऐसे हैं जो इस खेल को छोड़ चुके हैं, जैसे कि गौतम केवलिया, रीतेश खरे, सलमन ख़ान, और महेश बसन्तनी। आप चारों से निवेदन है (आपको हम ईमेल से भी सूचित कर रहे हैं) कि आप इस प्रतियोगिता में वापस आकर महाविजेता बनने की जंग में शामिल हो जायें। इस सेगमेण्ट के अन्तिम कड़ी तक अगर आप वापस प्रतियोगिता में शामिल नहीं हुए तो महाविजेता स्कोर कार्ड से आपके नाम और अर्जित अंख निरस्त कर दिये जायेंगे और अन्य प्रतियोगियों को मौका दे दिया जायेगा।


तो आज बस इतना ही, नये साल में फिर मुलाक़ात होगी 'सिने पहेली' में। लेकिन 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के अन्य स्तंभ आपके लिए पेश होते रहेंगे हर रोज़। तो बने रहिये हमारे साथ और सुलझाते रहिये अपनी ज़िंदगी की पहेलियों के साथ-साथ 'सिने पहेली' भी, अनुमति चाहूँगा, नमस्कार!

प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...